पाटलिपुत्र इंटरसिटी ट्रेन के परिचालन के लिए चंपारण के गौरव मिश्र ने रेल मंत्री से किया आग्रह

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अब, जबकि कोविड के बाद की स्थिति में आवश्यक ट्रेनों का परिचालन पूरे देश में आरम्भ होने लगा है, ऐसे में उक्त ट्रेन के परिचालन की आवश्यकता अहम है।

गीतांजलि शर्मा

देश में प्रतिष्ठित लोक नीति विश्लेषक और स्थानीय रामगढवा मौजे ग्राम निवासी गौरव कुमार मिश्र ने केंद्रीय रेल मंत्री को पत्र लिख कर रक्सौल पाटलिपुत्र इंटरसिटी एक्सप्रेस के परिचालन को आरंभ करने की मांग की है।

पत्र में उन्होंने लिखा है कि चंपारण अपनी ऐतिहासिक विरासत के साथ न केवल भारत के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि वैश्विक स्तर पर इसकी अमिट छाप है। ऐसे में चंपारण के विकास की बात राष्ट्रीय मुद्दा है। साथ ही चंपारण वासी होने के कारण उनके लिए यह व्यक्तिगत महत्व भी रखता है।

उन्होंने राज्य की राजधानी को चंपारण से जोड़ने वाली इंटरसिटी ट्रेन के परिचालन के मुद्दे को गंभीर समस्या बताते हुए इसे तत्काल शुरू करने की मांग की है। पत्र में उन्होंने लिखा है कि माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में भारत का प्रत्येक क्षेत्र विकास के नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है.। देश का प्रत्येक भाग विकास की मुख्यधारा में शामिल हो रहा है। किन्तु विडंबना है या अधिकारियों की उदासीनता कि बिहार के उत्तर में अवस्थित पूर्वी और पश्चिमी चंपारण के लोग आज अपने प्रदेश के मुख्यालय तक पहुँचने के लिए एक अदद सार्वजनिक परिवहन के अभाव से जूझ रहे है।

इस पर गहरा दुख जताते हुए उन्होंने कहा है कि यह अत्यंत दुखद स्थिति है कि चंपारण वासी अपने अंतर्राष्ट्रीय महत्व को याद कर गौरवान्वित तो होते हैं, किन्तु इस प्रकार की मूलभूत सुविधा से वंचित हैं।

उन्होंने कहा है कि विगत कई वर्षों से रक्सौल- सुगौली- पाटलिपुत्र इंटरसिटी एक्सप्रेस ट्रेन (05201 और 05202 ) का परिचालन हो रहा था, जिससे दोनों चंपारण के लोग और नेपाल सीमा से लगे होने के कारण नेपाल के नागरिक भी इसका लाभ ले रहे थे। किन्तु करीब 2 वर्ष पूर्व कोविड के कारण इसका परिचालन बंद कर दिया गया। इससे परिवहन की असुविधा से लोगों को अपार कष्ट हो रहा है और इसके साथ राजस्व की हानि भी हो रही है।

अब, जबकि कोविड के बाद की स्थिति में आवश्यक ट्रेनों का परिचालन पूरे देश में आरम्भ होने लगा है, ऐसे में उक्त ट्रेन के परिचालन की आवश्यकता अहम है।

पत्र में उन्होंने सभी चंपारण वासियों की तरफ से उक्त ट्रेन के परिचालन को पूर्व स्थिति की भाँति आरम्भ कराने हेतु निवेदन किया है। जिससे न केवल प्रतिदिन सैकड़ो यात्रियों को लाभ होगा बल्कि इससे रेल राजस्व की वृद्धि भी होगी। इसके साथ ही राज्य की राजधानी से अंतर्राष्ट्रीय सीमा क्षेत्र का संपर्क भी स्थापित हो सकेगा।

विद्या भारती के मंच से क्या एफबी लाइव हो सकेगा ‘ओछा लल्लनटॉप’

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इस तरह की खबर सुनकर और पढ़कर उन लोगों का विश्वास जरूर कमजोर पड़ता है, जो इस विचार के साथ अडिग हैं

यश चौधरी

यस चौधरी

एक बार फिर लल्लनटॉप वाले सौरभ द्विवेदी विवादों में आ गए हैं। सोशल मीडिया पर उन्हें लेकर यह अभियान जोर पकड़ता जा रहा है, जिसमें साफ—साफ कहा जा रहा है कि उन्हें विद्या मंदिर के आयोजन से दूर रखा जाना चाहिए। जिस तरह का एजेन्डा उनकी वेबसाइट लगातार भारतीयता के खिलाफ चलाती रही है, उन्हें विद्या भारती जैसा मंच देना, उनके लिखे को विश्वसनीयता प्रदान करने जैसा होगा। इस लाइव को रोके जाने की अपील सोशल मीडिया पर जोर पकड़ती जा रही है। यह आवाज विद्या भारती के अधिकारियों तक भी अवश्य पहुंची होगी।

मीडिया स्कैन को इस कार्यक्रम के संबंध में एक चैट प्राप्त हुआ है, जिसमें लिखा गया है— ”सर कैसे भी करके कल के इस एफबी लाइव कार्यक्रम को रुकवाए। क्या विद्या भारती को ये भी वाम वाला मिला इसके लल्लनटॉप में इसने एक से एक हिंदू विरोधी भर रखे है और कुछ दिन पहले तो ये भाजपा समर्थकों को ओछी गाली देकर माफी भी मांग चुका है।”

इस मुद्दे पर जलज कुमार मिश्रा लिखते हैं— ”आप भाजपा और उसके समर्थकों को गाली दो! भाजपा और संघ से जुड़ें संस्थान आपको सम्मानित करेंगे अपना धरोहर घोषित करेंगे। यह नयी विकसित परम्परा है! भाई आखिर समस्या क्या है? लम्पटों को‌‌‌ ही अगर धरोहर बनाना है तो बहुत नाम है! ऐसे नमूनों से बचना चाहिए!”

जयपुर से प्रमोद शर्मा विद्या भारती की पहल पर अपना दुख इन शब्दों में व्यक्त करते हैं — ”चिंता वाजिब है। लेकिन संघ के लोगों में वैचारिक दारिद्र्य है। उनमें एक तरह का हीनता बोध भी है, यदि वामी उनकी तनिक भी प्रशंसा कर दे तो वह इनके लिए पूजनीय हो जाता है और खोजबीन कर उसके साथ रिश्ता निकाल लेते हैं।”

यदि प्रमोद शर्मा की बात सही है तो यह दारिद्रय कब तक बना रहेगा? कब तक राष्ट्रवादी विचार परिवार को अपमानित करने वाले इनके ही मंचों से सम्मानित होते रहेंगे। पिछले दिनों यह तक खबर बाहर आई थी कि लल्लनटॉप के विज्ञापन का काम देखने वाले व्यक्ति को उत्तर प्रदेश के एक बड़े अधिकारी से बड़े विज्ञापन का आश्वासन मिला है।  

इस तरह की खबर सुनकर और पढ़कर उन लोगों का विश्वास जरूर कमजोर पड़ता है, जो इस विचार के साथ अडिग हैं। सौरभ के संबंध में रिसर्च करते हुए यह जानकारी सामने आई कि वे उत्तर प्रदेश, जालौन के रहने वाले हैं। उनके पिताजी भाजपा नेता रहे हैं। आशु सक्सेना नाम के सोशल मीडिय यूजर ने लिखा — ”मेरे जिला जालौन का है सौरभ द्विवेदी। इनके पिताजी जी भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता रहे हैं। गांधी महाविद्यालय में शारीरिक शिक्षा के प्रोफेसर रहे और कालपी विधानसभा से दो बार विधायक की का चुनाव लड़ चुके। इसका एक चचेरा भाई भी जिला भारतीय जनता पार्टी में सक्रिय राजनीति करता है।

यह कमेन्ट आशु ने उस विवाद पर लिखा था, जब सौरभ ने भाजपा समर्थकों को कंडोम इस्तेमाल करने की सलाह दी थी। कई लोगों ने इस पर चुटकी भी ली कि इस सलाह पर यदि उनके पापा ने अमल किया होता। इस तरह के कमेन्ट सामने आने के बाद सौरभ को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने फौरन माफी मांग ली।

लल्लनटॉप—विद्या भारती विवाद पर उज्जैन के सुरेश चिपलुनकर की टिप्पणी भी काबिले गौर है— अगर विद्या भारती के पूर्व छात्र इनका सम्मान कर रहे हैं, तो और भी गलत बात है, क्योंकि “पूर्व छात्रों” को तो विचारधारा की समझ और भी अधिक होनी चाहिए।

अब बड़ा सवाल यह है कि विद्या भारती के मंच पर सौरभ के जाने को सौरभ की घर वापसी मानी जाए या फिर विद्या भारती की बड़ी भूल?



हिन्दू आतंकवाद शब्द पर भड़के सीनियर न्यूज एंकर अमिश देवगन

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एक बार फिर अफगानिस्तान की धरती पर भूचाल आया हुआ है। दरअसल अमेरिका ने अपनी सेनाएं अफगानिस्तान से हटा ली है और उसके बाद कुछ ही दिनों के अंदर देश के बड़े हिस्से पर ‘तालिबान’ का कब्जा हो गया है। राष्ट्रपति देश छोड़कर भाग चुके हैं और उनका कोई पता नहीं है। वहीं अमेरिका और भारत जैसे देश अपने राजनियकों और नागरिकों को लगातार वहां से निकाल रहे है। इसी बीच ट्विटर पर तालिबान को लेकर बहस छिड़ी हुई है।

दरअसल कई लोग तालिबान का विरोध तो कर रहे है, लेकिन उसकी तुलना हिन्दू आतंकवाद से कर रहे है। इसी बीच अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने एक ऐसा ट्वीट कर दिया जिससे कई लोगों को ठेस पहुंची।उन्होंने एक ट्वीट करते हुए लिखा कि हम तालिबान आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं कर सकते, लेकिन उसी के साथ उन्होंने हिन्दू आतंकवाद को भी जोड़ दिया।

‘न्यूज18 इंडिया’ (हिंदी) के मैनेजिंग एडिटर और ‘आर-पार’ के होस्ट अमिश देवगन ने उनके इसी ट्वीट पर नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने ट्वीट को रीट्वीट करते हुए पूछा कि हिन्दू आतंकवाद से इस धरती का कौन सा हिस्सा प्रभावित है जरा बताएं? इसी के साथ उन्होंने यह भी कहा कि ये तो हिन्दुस्तान है इसलिए आप ऐसे शब्दों के इस्तेमाल करने के बाद भी आराम से एन्जॉय कर सकती हैं, क्यूंकि ये देश सहिष्णु है। देखा जाए तो अफगानिस्तान में जो तालिबान कर रहा है उसकी तुलना हिन्दू आतंकवाद से करना इस देश की एकता और अखंडता के साथ एक क्रूर मजाक है।

उन्होंने यह भी लिखा कि हमारे देश में बैठकर कुछ लोग तालिबान को कवर फायर देते हैं। जब देश हित की बात हो तो यही लोग तख्तियां हाथ में लेकर CAA, NRC और तीन तलाक का विरोध करते हैं। 370 पर छातियां पीटते हैं। इस गैंग को बुरहान वानी, याकूब मेनन याद आते हैं लेकिन विक्रम बतरा कैप्टन कालिया का नाम तक याद नहीं हैं।

The Pioneer अखबार का नाम DAVP ने इस लिस्ट से हटाया

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अब ‘विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय’ (डीएवीपी) ने सरकारी/सार्वजनिक उपक्रमों के विज्ञापन देने के लिए बनी अखबारों की अपनी लिस्ट से ग्रुप के अखबार ’पायनियर’ (Pioneer) का नाम हटा दिया है। इससे‘द पायनियर ग्रुप की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं।

अखबार का 80 प्रतिशत से ज्यादा रेवेन्यू ‘डीएवीपी’ से आता है। ऐसे में इस अखबार को गंभीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ सकता है। बता दें कि ‘डीएवीपी’ सरकारी एजेंसी है जो पब्लिकेशंस को सरकारी/सार्वजनिक उपक्रमों के विज्ञापन जारी करती है।

मीडिया खबर के मुताबिक, ‘द पायनियर’ के खिलाफ एक आरोप यह है कि उसने सरकार से ज्यादा रेवेन्यू हासिल करने के लिए ‘डीएवीपी’ और ‘रजिस्ट्रार ऑफ न्यूजपेपर इंडस्ट्री’ को (आरएनआई) को अपनी बिक्री के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया।

अक्टूबर 2020 में ‘द पायनियर’ के तत्कालीन सीईओ ने ‘डीएवीपी’ को सूचित किया था वह रोजाना अंग्रेजी और हिंदी में अखबार की 4,50,000 प्रतियां छापता और बेचता है, जबकि एक डायरेक्टर के अनुसार यह आंकड़ा बहुत ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया था। निलंबित किए गए इस डायरेक्टर का कहना था कि कंपनी रोजाना सिर्फ करीब 10 हजार प्रतियां छापती है।

माना जाता है कि वित्तीय और परिचालन लेनदारों को बकाया राशि का भुगतान न करने के लिए निदेशक मंडल के खिलाफ एक फैसले के बाद ‘नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल’ (एनसीएलटी) द्वारा नियुक्त आईआरपी ने भी अपनी रिपोर्ट्स में कंपनी द्वारा किए गए सर्कुलेशन के इन आंकड़ों को गलत बताया था।

भारतीय स्वातंत्र्य समर का पुनरावलोकन

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दत्तात्रेय होसबले

दत्तात्रेय होसबले

डॉ. हेडगेवार लोकमान्य तिलक की प्रेरणा से कांग्रेस से जुड़े और सेन्ट्रल प्रोविंस के सचिव चुने गये। 1920 में नागपुर में सम्पन्न राष्ट्रीय अधिवेशन की आयोजन समिति के वे उप-प्रधान थे। इस अधिवेशन में उन्होंने अपने साथियों के साथ पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित कराने के भरसक प्रयत्न किये किन्तु कांग्रेस नेतृत्व इसके लिये तैयार नहीं हुआ। अंततः यह प्रस्ताव आठ वर्ष बाद लाहौर में पारित हो सका।

आज भारत औपनिवेशिक दासता से मुक्ति का पर्व मना रहा है। समारोहों की इस श्रृंखला के बीच जहां स्वतंत्र भारत की 75 वर्षों की यात्रा का मूल्यांकन होगा वहीं इसे पाने के लिये चार शताब्दी से अधिक के कालखण्ड में निरंतर चले संघर्ष और बलिदान का पुण्यस्मरण भी स्वाभाविक ही है।

भारत में औपनिवेशिक दासता के विरुद्ध चला राष्ट्रीय आन्दोलन “स्व” के भाव से प्रेरित था जिसका प्रकटीकरण स्वधर्म, स्वराज और स्वदेशी की त्रयी के रूप में पूरे देश को मथ रहा था। संतों और मनीषियों के सान्निध्य से आध्यात्मिक चेतना अंतर्धारा के रूप में आंदोलन में निरंतर प्रवाहित थी।  

युगों-युगों से भारत की आत्मा में बसा “स्व” का भाव अपनी सम्पूर्ण शक्ति के साथ प्रकट हुआ और इन विदेशी शक्तियों को पग-पग पर प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। इन शक्तियों ने भारत की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक व्यवस्था को तहस-नहस किया, ग्राम स्वावलम्बन को नष्ट कर डाला। विदेशी शक्तियों द्वारा यह सर्वंकश आक्रमण था जिसका सर्वतोमुख प्रतिकार भारत ने किया।

यूरोपीय शक्तियों के विरुद्ध भारतीय प्रतिरोध विश्व इतिहास में अनूठा उदाहरण है। यह बहुमुखी प्रयास था जिसमें एक ओर विदेशी आक्रमण का सशस्त्र प्रतिकार किया जा रहा था तो दूसरी ओर समाज को शक्तिशाली बनाने के लिये इसमें आई विकृतियों को दूरकर सामाजिक पुनर्रचना का काम जारी था।

देशी रियासतों के राजा जहां अंग्रेजों का अपनी शक्ति भर प्रतिकार कर रहे थे वहीं अपने सहज-सरल जीवन में अंग्रेजों के हस्तक्षेप और जीवनमूल्यों पर हमले के विरुद्ध स्थान-स्थान पर जनजातीय समाज उठ खड़ा हुआ। अपने मूल्यों की रक्षा के लिये जाग उठे इन लोगों का अंग्रेजों ने क्रूरतापूर्वक नरसंहार किया किन्तु वे संघर्ष से पीछे नहीं हटे। 1857 में हुआ देशव्यापी स्वातंत्र्य समर इसका ही फलितार्थ था जिसमें लाखों लोगों ने बलिदान दिया।    

भारतीय शिक्षा व्यवस्था को नष्ट करने के प्रयासों को विफल करने के लिये काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, शांति निकेतन, गुजरात विद्यापीठ, एमडीटी हिन्दू कॉलेज तिरुनेलवेल्ली,  कर्वे शिक्षण संस्था व डेक्कन एज्यूकेशन सोसाइटी  तथा गुरुकुल कांगड़ी जैसे संस्थान उठ खड़े हुए और छात्र-युवाओं में देशभक्ति का ज्वार जगाने लगे। प्रफुल्लचन्द्र राय और जगदीश चंद्र बसु जैसे वैज्ञानिकों ने जहाँ अपनी प्रतिभा को भारत  के उत्थान के लिये समर्पित कर दिया वहीं नंदलाल बोस, अवनीन्द्रनाथ ठाकुर और दादा साहब फाल्के  जैसे कलाकार तथा माखनलाल चतुर्वेदी सहित प्रायः सभी राष्ट्रीय नेता पत्रकारिता के माध्यम से जनजागरण में जुटे थे। अपनी कलाओं के माध्यम से देश को जगा रहे थे। महर्षि दयानन्द, स्वामी विवेकानन्द और महर्षि अरविन्द आदि अनेक मनीषियों की आध्यात्मिक प्रेरणा इन सबके पथप्रदर्शक के रूप में कार्यरत थी।

बंगाल में राजनारायण बोस द्वारा हिन्दू मेलों का आयोजन, महाराष्ट्र में लोकमान्य तिलक द्वारा गणेशोत्सव और शिवाजी उत्सव जैसे सार्वजनिक कार्यक्रम जहाँ भारत की सांस्कृतिक जड़ों को सींच रहे थे वहीं ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले जैसे समाज सुधारक महिला शिक्षा और समाज के वंचित वर्ग को सशक्त करने के रचनात्मक अभियान में जुटे थे। डॉ अम्बेडकर ने समाज को संगठित होने और सामाजिक समानता पाने के लिये संघर्ष करने का मार्ग दिखाया।

भारतीय समाज जीवन का कोई क्षेत्र महात्मा गाँधी के प्रभाव से अछूता नहीं था। वहीं विदेशों में रह कर भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन को धार देने का काम श्यामजी कृष्ण वर्मा, लाला हरदयाल और मादाम कामा जैसे लोगों के संरक्षण में प्रगति कर रहा था। लंदन का इंडिया हाउस भारत की स्वतंत्रता संबंधी गतिविधियों का केन्द्र बन चुका था। क्रान्तिवीर सावरकर द्वारा लिखा गया 1857 के राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम का इतिहास भारतीय क्रांतिकारियों के बीच अत्यंत लोकप्रिय था। स्वयं भगत सिंह ने इसे प्रकाशित करा कर इसकी सैकड़ों प्रतियाँ वितरित कीं।

देश भर में सक्रिय चार सौ से अधिक भूमिगत संगठनों में शामिल क्रांतिकारी अपनी जान हथेली पर लेकर भारत माता को मुक्त कराने के अभियान में लगे थे। बंगाल के क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति की गतिविधियों में सक्रिय डॉ. हेडगेवार लोकमान्य तिलक की प्रेरणा से कांग्रेस से जुड़े और सेन्ट्रल प्रोविंस के सचिव चुने गये। 1920 में नागपुर में सम्पन्न राष्ट्रीय अधिवेशन की आयोजन समिति के वे उप-प्रधान थे। इस अधिवेशन में उन्होंने अपने साथियों के साथ पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित कराने के भरसक प्रयत्न किये किन्तु कांग्रेस नेतृत्व इसके लिये तैयार नहीं हुआ। अंततः यह प्रस्ताव आठ वर्ष बाद लाहौर में पारित हो सका।

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ही नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का नेतृत्व संभाला। उनके नेतृत्व में न केवल स्वतंत्र भारत की प्रथम सरकार का गठन हुआ अपितु आजाद हिन्द फौज ने पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों को स्वतंत्र कराने में सफलता भी प्राप्त की। लाल किले में आजाद हिन्द फौज के अधिकारियों पर चले मुकदमे ने पूरे देश को रोष से भर दिया। इसके साथ ही नौसेना द्वारा ब्रिटिश अधिकारियों के विरुद्ध किये गये विद्रोह ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिये विवश कर दिया।

स्वतंत्रता का सूर्य उगा, लेकिन विभाजन का ग्रहण उस पर लग चुका था। कठिन परिस्थिति में भी आगे बढ़ने का हौंसला बना रहा, इसका श्रेय प्रत्येक भारतीय को जाता है जिसने सैकड़ों वर्षों की राष्ट्रीय आकांक्षा को पूर्ण करने के लिये अपना खून-पसीना बहाया।

महर्षि अरविन्द ने कहा था – भारत को जागना है, अपने लिये नहीं बल्कि पूरी दुनियाँ के लिये, मानवता के लिये। उनकी यह घोषणा सत्य सिद्ध हुई जब भारत की स्वतंत्रता विश्व के अन्य देशों के स्वतंत्रता सेनानियों के लिये प्रेरणा बन गयी। एक के बाद एक, सभी उपनिवेश स्वतंत्र होते चले गये और ब्रिटेन का कभी न छिपने वाला सूर्य सदैव के लिये अस्त हो गया। 

पुर्तगाली, डच, फ्रेंच तथा सबसे अंत में ब्रिटिश भारत आये। सभी ने व्यापार के साथ-साथ भारतीय संस्कृति को नष्ट करने तथा मतान्तरण करने के निरन्तर प्रयास किये। औपनिवेशिकता के विरुद्ध प्रतिकार उसी दिन प्रारंभ हो गया था जिस दिन पहले यूरोपीय यात्री वास्को-दा-गामा ने वर्ष 1498 में भारत की भूमि पर पाँव रखा। डचों को त्रावणकोर के महाराजा मार्तण्ड वर्मा के हाथों पराजित होकर भारत छोड़ना पड़ा। पुर्तगाली गोवा तक सिमट कर रह गये। वर्चस्व के संघर्ष में अंततः ब्रिटिश विजेता सिद्ध हुए जिन्होंने अपनी कुटिल नीति के बल पर भारत के आधे से कुछ अधिक भाग पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। शेष भारत पर भारतीय शासकों का आधिपत्य बना रहा जिनके साथ अंग्रेजों ने संधिया कर लीं। स्वतंत्रता के पश्चात इन राज्यों के संघ के रूप में भारतीय गणतंत्र का उदय हुआ।

भारत ने लोकतंत्र का मार्ग चुना। आज वह विश्व का सबसे बड़ा और सफल लोकतंत्र है। जिन लोगों ने भारत के सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा के लिये स्वतंत्रता के आन्दोलन में अपना योगदान किया, उन्होंने ही भारत के लिये संविधान की रचना का कर्तव्य भी निभाया। यही कारण है कि संविधान की प्रथम प्रति में चित्रों के माध्यम से रामराज्य की कल्पना और व्यास, बुद्ध तथा महावीर जैसे भारतीयता के व्याख्याताओं को प्रदर्शित कर भारत के सांस्कृतिक प्रवाह को अक्षुण्ण रखने की व्यवस्था की गयी। “स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव” का यह अवसर उन बलिदानियों, देशभक्तों के प्रति कृतज्ञताज्ञापन का अवसर है जिनके त्याग और बलिदान के कारण ही हम स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में जागतिक समुदाय में अपना यथोचित स्थान प्राप्त करने की दिशा में बढ़ रहे हैं। उन अनाम वीरों, चर्चा से बाहर रह गयी घटनाओं, संस्थाओं और स्थानों, जिन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन को दिशा दी और मील का पत्थर सिद्ध हुईं, का पुनरावलोकन, मूल्यांकन तथा उनसे जुड़ी लोक स्मृतियों को सहेज कर उन्हें मुख्यधारा से परिचित कराना होगा ताकि आने वाली पीढ़ियां जान सकें कि आज सहज उपलब्ध स्वतंत्रता के पीछे पीढ़ियों की साधना, राष्ट्रार्चन के लिये शताब्दियों तक बहाये गये अश्रु, स्वेद और शोणित का प्रवाह है।

(लेखक वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह हैॆ।)

A look back into the War of Bharat Independence

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Dattatreya Hosabale

Dattatreya Hosabale

Today, Bharat is celebrating the festival of liberation from colonial dependence. Amid this series of celebrations, while the journey of 75 years of independent Bharat will be evaluated, it is also natural to remember the constant struggle and sacrifice of more than four centuries to achieve it.

The national movement against this colonial slavery in Bharat was inspired by the spirit of “self” whose manifestation was churning the whole country in the form of a trilogy of Swadharma, Swaraj and Swadeshi. As a result of the presence of saints and sages in the movement, spiritual consciousness was constantly flowing in the form of an undercurrent.

The spirit of “self”, which has been in the soul of Bharat since ages, manifested itself with all its might and these foreign powers had to face resistance at every step. These forces destroyed Bharat’s economic, social, cultural, and educational system; and destroyed village self-reliance. It was a totalitarian invasion by foreign powers, which Bharat retaliated in all spheres of life.

The Bhartiya resistance against European powers is a unique example in world history. It was a multifaceted effort in which, on the one hand, armed resistance was being undertaken against the foreign invasion, and on the other hand, the work of social reconstruction was happening by removing the distortions in the society to make it strong.

While the kings of the princely states were resisting the British with all their might, the janjati society rose from place to place against the interference of the British in their simple life and the attack on their values ​​of life. These people who woke up to protect their values ​​were brutally massacred by the British, but they did not back down from the struggle. The nationwide war of Independence of 1857, in which lakhs of people sacrificed their lives, was a result of this.

To thwart the efforts to destroy the Bhartiya education system, institutions like Banaras Hindu University, Shantiniketan, Gujarat Vidyapeeth, MDT Hindu College Tirunelveli, KarveShikshanSanstha and Deccan Education Society and GurukulKangri rose and created a sense of patriotism among the students and youth.  While scientists like Prafulla Chandra Ray and Jagdish Chandra Basu dedicated their talents for the upliftment of Bharat, artists like Nandlal Bose, Avanindranath Thakur and DadasahebPhalke and almost all national leaders, including MakhanlalChaturvedi were involved in public awareness through journalism. They were awakening the country through their arts. The spiritual inspiration of many learned men like Maharishi Dayanand, Swami Vivekananda and Maharishi Aurobindo were acting as the guiding light for all of them.

While Hindu fairs being organized by Rajnarayan Bose in Bengal, Ganeshotsav and ShivajiUtsav by LokmanyaTilak in Maharashtra were watering Bharat’s cultural roots, social reformers like JyotibaPhule and SavitribaiPhule were engaged in the creative campaign of promoting women’s education and empowering the underprivileged sections of the society. Dr.Ambedkar showed the way to organize the society and struggle for achieving social equality.

No area of ​​Bharatiya social life remained untouched by the influence of Mahatma Gandhi. While living abroad, the work of giving edge to the Bhartiya independence movement was progressing under the patronage of people like Shyamji Krishna Varma, LalaHardayal and Madam Cama. London’s India House had become the center of activities related to Bharat’s independence. The Bhartiya War of Independence 1857, written by KrantiveerSavarkar, was very popular among Bhartiya revolutionaries. Bhagat Singh himself got it published and distributed hundreds of copies of it.

The revolutionaries involved in more than four hundred underground organizations operating across the country were engaged in the campaign to free Bharat Mata by putting their lives at stake. Active in the activities of AnushilanSamiti, the revolutionary organization of Bengal, Dr.Hedgewar joined the Congress under the inspiration of LokmanyaTilak and was elected as the Secretary of the Central Provinces. He was the Vice-President of the organizing committee of the National Convention held in Nagpur in 1920. In this session, he along with his colleagues made every effort to get the resolution of PurnaSwaraj passed, but the Congress leadership was not ready for it. Ultimately this resolution was passed in Lahore after eight years.

NetajiSubhash Chandra Bose took over the leadership of the Azad Hind Fauj during the Second World War. Not only was the first government of independent Bharat formed under his leadership, but the Azad Hind Fauj also succeeded in liberating some parts of Northeast Bharat. The trial of the officers of the Azad Hind Fauj in the Red Fort filled the whole country with fury. Along with this, the rebellion made by the Navy against the British officers forced the British to leave Bharat.

The sun of freedom rose, but the eclipse of partition had fallen on it. The credit for the courage to move forward even in difficult circumstances goes to every Bhartiya who shed his blood and sweat to fulfil the national aspiration of hundreds of years.

Maharishi Arvind had said – Bharat has to wake up, not for itself but for the whole world, for humanity. His declaration proved to be true when Bharat’s independence became an inspiration for the freedom fighters of other countries of the world. One by one, all the colonies became independent, and Britain’s never-ending sun went down forever.

The Portuguese, Dutch, French and lastly the British came to Bharat. Alongside trade, all of them made constant efforts to destroy Bhartiya culture and engage in proselytization. The retaliation against colonialism had begun on the very day Vasco-da-Gama, the first European traveller, set foot on Bhartiya soil in the year 1498. The Dutch had to leave Bharat after being defeated at the hands of Maharaja MarthandaVarma of Travancore. The Portuguese remained confined to Goa. In the struggle for supremacy, the British eventually proved to be the victors who, on the strength of their devious policy, established control over a little more than half of Bharat. The rest of Bharat remained under the control of Bhartiya rulers with whom the British made treaties. After independence the union of these states emerged as the Republic of Bharat.

Bharat chose the path of democracy. Today it is the largest and most successful democracy in the world. Those who contributed to the freedom movement to protect the cultural values ​​of Bharat, also performed the duty of framing the constitution for Bharat. This is the reason that in the first copy of the Constitution, arrangements were made to keep the cultural flow of Bharat intact by displaying the image of Ram Rajya through pictures and exponents of Bhartiyata like Vyasa, Buddha and Mahavira.

This “AmritMahotsav of Bhartiya Independence” is an occasion to show gratitude towards patriots due to whose sacrifice, we are moving towards getting our rightful place in the world community as an independent nation. Those unnamed heroes, events left out of discussion, institutions, and places, which gave direction to the freedom movement and proved to be milestones, will have to be reviewed, evaluated, and preserved in the folk memories associated with them. They should be introduced to the mainstream so that the coming generations recon that behind the innately available freedom today, there lies a struggle of the past generations for the nation and their tears, sweat and blood of many centuries.

(The author is presently Sarkaryavah of Rashtriya Swayamsevak Sangh)

नए नाम से जाना जाएगा ‘न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन’

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 निजी टेलिविजन न्यूज चैनल्स का प्रतिनिधित्व करने वाले समूह ‘न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन’ अब अपना नाम बदलकर ‘न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन’ रखने का फैसला किया है।  

वर्तमान में टेक्नोलॉजी के कारण मीडिया के परिदृश्य में भारी बदलाव आया है। अब दर्शकों के पास कंटेंट तक पहुंचने के लिए तमाम विकल्प उपलब्ध हैं। डिजिटल मीडिया काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है। ऐसे में एनबीए बोर्ड का मानना है कि नाम बदलकर ‘NBDA’ करने से परिलक्षित होगा कि डिजिटल मीडिया पब्लिशर्स भी इसके सदस्यों मे शामिल हैं।

हिंदी न्यूज चैनल ‘इंडिया टीवी’ के चेयरमैन और एडिटर-इन-चीफ व ‘एनबीए’ के प्रेजिडेंट रजत शर्मा का इस बारे में कहना है, ‘एनबीए ने डिजिटल मीडिया न्यूज ब्रॉडकास्टर्स को अपने दायरे में लाने का फैसला किया है। अपने नए चरण में, डिजिटल मीडिया न्यूज ब्रॉडकास्टर्स को शामिल करने के साथ, एनबीए बोर्ड ने अब इस निकाय का नाम ‘एनबीए’ से ‘एनबीडीए’ में बदलने का निर्णय लिया है।’

रजत शर्मा ने कहा, ‘मुझे पूरा विश्वास है कि एनबीडीए ब्रॉडकास्ट और डिजिटल मीडिया दोनों के लिए एक मजबूत व सामूहिक आवाज बनेगा। वाणिज्यिक और नियामक मुद्दों के साथ यह एसोसिएशन को भारत के संविधान के तहत मीडिया को मिले वाक एवं अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार की रक्षा करने में भी सक्षम बनाएगा।’ 

उल्लेखनीय है कि एनबीए ने करीब 14 साल पहले एक स्वतंत्र स्व-नियामक निकाय न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी का गठन किया था। इसका गठन प्रसारण के खिलाफ आई शिकायतों पर विचार करने और फैसला लेने के लिए किया गया है। अब एसोसिएशन में डिजिटल न्यूज ब्रॉडकास्टर्स के शामिल होने के बाद एनबीए बोर्ड इसका भी नाम बदलकर न्यूज ब्रॉडकास्टिंग एंड डिजिटल स्टैंडर्स अथॉरिटी करेगा।

कोरोना से बचाव में ‘आरोग्य मित्र’ की भूमिका में होंगे संघ के स्वयंसेवक

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ओमप्रकाश सिसोदिया

शुक्रवार को भोपाल प्रवास के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कार्यकर्ताओं से संगठनात्मक बैठक में संवाद किया। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी अभी समाप्त नहीं हुई है। इसकी तीसरी आवृत्ति आने की आशंका जताई जा रही है। ऐसे में संघ के कार्यकर्ताओं को आवश्यक तैयारी कर लेनी चाहिए। नगर गांव में चयनित कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण हो जाए इस बात की चिंता की जाए। संघकार्य के विस्तार के लिए आगामी तीन वर्ष की कार्ययोजना बनाने के लिए भी उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा है।

सरकार्यवाह होसबाले ने संघकार्य विस्तार की दृष्टि से स्वयंसेवकों से कहा कि संघ कार्य भौगोलिक और सर्वस्पर्शी, दोनों प्रकार से बढ़ना चाहिए। इसके लिए स्वयंसेवकों को आगामी तीन वर्ष की कार्ययोजना तैयार करनी चाहिए। विद्यार्थी शाखा के विस्तार पर भी ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार हमने भोपाल में श्रम साधकों के बीच विशेष प्रयास करके कार्य खड़ा किया है। उसी प्रकार सभी वर्गों एवं क्षेत्रों में कार्य पंहुचाना है । उन्होंने कहा कि हमें अब  कार्यविस्तार के साथ कार्य की गुणवत्ता बढ़ाने की दिशा में भी प्रयास करने चाहिए।

( लेखक मध्यभारत के प्रांत प्रचार प्रमुख हैॅ)

पत्रकार हामिद ने पाकिस्तान की पोल खोली

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इमरान सरकार की आलोचना पाक सेना के खिलाफ कठोर टिप्पणी करने पर अनिश्चित काल तक हटाए गए पाकिस्तानी के वरिष्ठ पत्रकार हामिद मीर ने की है। उन्होंने कहा है कि इमरान खान एक ‘असहाय’ प्रधानमंत्री हैं और देश के मीडियाकर्मियों में डर का माहौल बनता जा रहा है।

मंगलवार को डॉन अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार, इस्लामाबाद से बीबीसी वर्ल्ड सर्विस को दिए इंटरव्यू में मीर ने पाकिस्तान में प्रेस की स्वतंत्रता के घटते दायरे और पत्रकारों के प्रति बढ़ते ‘डर के माहौल’ की आलोचना की।

बीबीसी के शो ‘हार्ड टॉक’ के होस्ट स्टीफन सैकर से मीर ने कहा, ‘पाकिस्तान में लोकतंत्र होकर भी नहीं है। यहां सिर्फ नाममात्र के लिए ही लोकतंत्र रह गया है। यहां संविधान भी नाममात्र का है और मैं पाकिस्तान में सेंसरशिप का जीता जगता उदाहरण हूं।’

मीर ने कहा कि देश में मीडियाकर्मियों पर जिस तरह से हमले हो रहे हैं, उसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए। इस्लामाबाद से बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में मीर ने प्रेस की आजादी के लिए सिकुड़ती जगह और पाक में पत्रकारों के लिए भय के बढ़ते माहौल की भी निंदा की।

उन्‍होंने होस्‍ट स्टीफन सैकर के साथ हुई बातचीत में कहा कि पाकिस्‍तान के पत्रकार वहां पर कानून का राज चाहते हैं। यदि कोई पत्रकार इस बाबत किसी सवाल का जवाब चाहता है तो उसकी आवाज को दबाना नहीं चाहिए।

क्‍या पत्रकारों पर हुए हमले में पाकिस्‍तान की खुफिया एजेंसी का भी हाथ है? पूछे जाने पर मीर ने कहा कि इसके दस्‍तावेजी सबूत मौजूद हैं। स्‍टेट एजेंसी और पाकिस्‍तान की खुफिया एजेंसियों पर पत्रकारों पर हमले करवाने और उन्‍हें अगवा कराने के आरोप बार बार लगते रहे हैं। उनके खिलाफ भी सरकार और सेना की तरफ से कई मामले दर्ज करवाए गए हैं, जिसके लिए वह पूरी जिंदगी जेल में सड़ने को भी तैयार हैं। ऐसा इसलिए क्‍योंकि यदि वह ऐसा करते हैं और उन्‍हें सजा होती है तो कम से कम इससे पूरी दुनिया को इस बारे में पता तो चल जाएगा कि आखिर पाकिस्‍तान में हो क्‍या रहा है।

यह पूछे जाने पर कि क्या प्रधानमंत्री इमरान खान व्यक्तिगत तौर पर उन पर प्रतिबंध लगाना चाहते हैं? इस पर मीर ने जवाब दिया, ‘मेरे ऊपर लगाई गई पाबंदी के लिए इमरान खान सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं हैं। मुझे नहीं लगता कि वह मुझे (टीवी से) हटाना चाहते हैं। लेकिन पिछले प्रधानमंत्रियों की तरह वह बहुत ताकतवर प्रधानमंत्री नहीं हैं। वह असहाय हैं और मेरी मदद नहीं कर सकते।’

उन्‍होंने इंटरव्‍यू में कहा कि पाकिस्‍तान में हमेशा से ही प्रेस की आजादी को लेकर सरकार की आलोचना होती रही हैं। जून में तीन इंटरनेशनल राइट्स ग्रुप ने अपने एक संयुक्‍त बयान में पाकिस्‍तान में प्रेस पर लगी पाबंदी पर गहरी चिंता व्‍यक्‍त की थी। इस बयान में सरकार की भी कड़ी आलोचना की गई थी। ह्यूमन राइट वाच, एमनेस्‍टी इंटरनेशनल और इंटरनेशनल कमीशन आफ ज्‍यूरिस्‍ट्स ने कहा था कि इसके खिलाफ दोषियों को सजा दी जानी चाहिए।

बता दें कि पाकिस्तान के ताकतवर सैन्य प्रतिष्ठान के विरुद्ध कड़ी टिप्पणी करने पर मीर के कार्यक्रम पर अनिश्चितकाल के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया था। वह जियो न्यूज चैनल पर प्राइमटाइम राजनीतिक चर्चा के शो ‘कैपिटल टॉक’ के मेजबान थे, जिसे अब बंद कर दिया गया है। इस्लामाबाद में पत्रकार और यू-ट्यूबर असद अली तूर पर तीन अज्ञात व्यक्तियों द्वारा हमले के विरोध में 28 मई को पत्रकारों ने विरोध प्रदर्शन किया था, जिसमें मीर ने आक्रोश से भरा भाषण दिया था। मीर ने हमले की जवाबदेही तय करने की मांग की थी, जिसके बाद 30 मई को उनका शो बंद कर दिया गया था। देश की सेना के विरोध में बोलने वाले पत्रकारों पर इस तरह के हमले होते रहे हैं।

3 स्थानीय रिपोर्टर पत्रकार की हत्या के आरोप में गिरफ्तार

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पुलिस ने बिहार के पूर्वी चंपारण में तीन आरोपियों को टीवी चैनल के रिपोर्टर मनीष कुमार सिंह  की हत्या के मामले में गिरफ्तार कर लिया है, जिनसे अब पूछताछ की जा रही है। गिरफ्तार आरोपियों की पहचान अमरेंद्र कुमार, अशजद आलम और महेंद्र सिंह के तौर पर हुई है और ये सभी स्थानीय रिपोर्टर हैं। एसपी नवीन चंद्रा ने बताया कि आरोपी अमरेंद्र के घर से मृतक पत्रकार मनीष का बैग, आई कार्ड, हेडफोन समेत कई सामान जब्त किया गया है।

घटनास्थल के पास लगे सीसीटीवी के आधार पर पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की है। वहीं अब तक हत्या के कारणों का पता नहीं चल सका है। पुलिस मामले की जांच कर रही है।

मालूम हो कि तीन दिनों से लापता रहे टीवी न्यूज चैनल के रिपोर्टर मनीष कुमार सिंह का शव मंगलवार को तालाब में मिला। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मनीष ‘सुदर्शन न्यूज’ चैनल में अरेराज अनुमंडल संवाददाता के पद पर कार्य करते थे।

उल्लेखनीय है कि मनीष शनिवार की शाम से गायब थे, जिसके बाद उनके पिता संजय सिंह ने स्थानीय थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने अमरेंद्र कुमार और असजद आलम समेत 13 लोगों को नामजद किया था। मंगलवार को जिले के हरसिद्धि थाना क्षेत्र स्थित मठलोहियार गद्दी टोला के समीप तालाब से मनीष का शव बरामद हुआ था। उनकी एक आंख भी गायब थी।

बताया जाता है कि मनीष कुमार एक पार्टी में जाने के लिए घर से बाहर निकले थे, उसके बाद वह वापस ही नहीं लौटे। तब जाकर उनकी गुमशुदगी की बात पता चल सकी। गायब होने से पहले मनीष ने अपने परिवार को मठ लोहियार गांव के गद्दी टोला के पास होने की बात कही थी। पत्रकार ने कहा था कि वह पार्टी से जल्द वापस लौटेंगे। मनीष को आखिरी बार अमरेंद्र कुमार, अशजद आलम और महेंद्र सिंह के साथ देखा गया था। घटना वाली जगह से पुलिस को CCTV फुटेज मिला था, जिसमें तीनों गिरफ्तार आरोपी और मनीष साथ जाते दिख रहे थे, लेकिन लौटने के समय पर जर्नलिस्ट उनके साथ नहीं था। इसके बाद पुलिस को तीनों पर शक हुआ और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस का कहना है कि हत्या के पीछे का मकसद अभी तक स्पष्ट नहीं है।

मनीष के शव को पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए सदर अस्पताल भेज दिया था। शव के सड़ने की वजह से उसे SKMCH रेफर कर दिया गया। इसके बाद शव पोस्टमार्टम के लिए मुजफ्फरपुर पहुंचा।

एक स्थानीय अखबार से जुड़े संजय सिंह का आरोप है कि जमीन के विवाद में उनके बेटे की हत्या की गई है। संजय सिंह का कहना है कि उनके बेटे का गला रेता गया था, जबकि शरीर पर कई जगह चाकू से गोदने के निशान थे। इसके साथ ही उन्होंने पुलिस पर भी इस मामले में ढिलाई बरतने का आरोप लगाया है।

विस्थापित हिन्दुओं का यथार्थ है पुण्यपथ

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संस्कार भारती, बिहार के तत्वधान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के‌ पटना मुख्यालय, विजय निकेतन  के चाणक्य सभागार में सर्वेश तिवारी ‘श्रीमुख’ की पाकिस्तानी हिन्दुओं के उपर केन्द्रित उपन्यास पुण्यपथ पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस मौके पर बोलते हुए संस्कार भारती के अखिल भारतीय महामंत्री अमीर चंद ने कहा कि पुण्यपथ आज के समय में विस्थापित हिन्दुओं का यथार्थ है।सर्वेश ने जो हिम्मत अपने कलम के माध्यम से दिखाई है वह प्रशंसनीय है।मैंने जब यह किताब पढ़ी मैं अंदर से हिल गया। विस्थापित हिन्दुओं का सम्मान लौटाना आज के समय की माँग है। कल का सुखद संयोग इस बात की गवाही दे रहा था कि मनोयोग से किया गया अपनों के लिए किया गया प्रयास कभी विफल‌ नही होता है।

गीता में भगवान कहते हैं कि

ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।

भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया।।18.61

हे अर्जुन ! ईश्वर सम्पूर्ण प्राणियोंके हृदयमें रहता है और अपनी माया से शरीर रूपी यन्त्र पर आरूढ़ हुए सम्पूर्ण प्राणियों‌ को उनकी नीयत के हिसाब से भ्रमण कराता रहता है।

प्रसिद्ध सिने समीक्षक विनोद अनुपम ने कहा कि पुण्यपथ के विषय पर और बातें होनी चाहिए। सर्वेश ने जो आज किया है बहुत पहले किया जाना चाहिए था लेकिन यह इस देश का दुर्भाग्य है कि ऐसी बात पहले शुरु नही हुयी। आनंद कुमार ने कहा कि सर्वेश तिवारी ‘श्रीमुख’ उन चंद लेखकों में से एक हैं जिन्होंने कभी राष्ट्रवाद की डोर नहीं छोड़ी। उनका पहला उपन्यास “परत” लव जिहाद की परतों को उधेड़ता उस विषय पर लिखा गया हिन्दी का इकलौता उपन्यास है, जिसे पाठकों ने खूब सराहा और यह किताब बेस्ट सेलर बनी।

सर्वेश तिवारी ‘श्रीमुख’ ने पुस्तक की भूमिका पर बोलते हुए कहा कि मैं एक साहित्यकार का धर्म निभा रहा हूँ। अपने समय के सत्य को उधृत करना ही साहित्यकार का कर्तव्य है और मैं उसको जी रहा हूँ।

प्रो. अरुण भगत ने किताब पर बोलते हुए कहा कि यह पाकिस्तानी हिन्दुओं की पीड़ा को केंद्र में रख कर लिखा गया उपन्यास समाज की आँखे खोलने वाली है। उनकी यह पुस्तक समाजोपयोगी है।यह किताब उत्कृष्ट साहित्य का नमूना है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पद्मश्री प्रो. श्याम शर्मा ने कहा कि पुण्यपथ, हर हिन्दू के घर में होनी चाहिए ताकि उनको विस्थापित हिन्दुओं की पीड़ा का एहसास हो सके।

इस मौके पर जलज कुमार अनुपम ने मंच का संचालन करते हुए कहा कि अपने और पराये लोगों के बीच की रेखा की पहचान करना नितांत आवश्यक है। जो धर्म के साथ नही है इसका सीधा मतलब है कि वह अधर्म के साथ है क्योंकि मौन भी अधर्म ही होता है। इस मौके पर प्रसिद्ध रंग निर्देशक संजय उपाध्याय, संस्कार भारती, बिहार के संगठन मंत्री वेद प्रकाश, संजय पोद्दार, नीतू कुमार ‘नूतन’, और डा. संजय कुमार चौधरी के अलावे अनेकों बुद्धिजीवी लोग बहुत दूर से चल कर आये और कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना योगदान दिया।

विकट परिस्थितियों में भी न्यास का शिक्षा में सुधार का अभियान यज्ञ के रूप में रुकने वाला नहीं है – अतुल कोठारी

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प्रो. श्रीधर श्रीवास्तव

“शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास राष्ट्रीय शिक्षा नीति” के क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए नीति देश के लिए कैसे उपयोगी हो, इस दिशा में कार्य कर रहा है। 130 करोड़ जनसंख्या वाले देश में दूरदराज के विद्यालयों तक हम क्रियान्वयन के लिए विभिन्न आयामों पर विचारों को साझा कर रहे हैं। स्कूल लीडरशिप को कैसे प्रयोग में लाया जाए इसके लिए देश में जागरूकता की आवश्यकता है।” यह उद्गार शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की दो दिवसीय राष्ट्रीय शैक्षिक कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद एनसीईआरटी, नई दिल्ली के निदेशक प्रोफेसर श्रीधर श्रीवास्तव ने व्यक्त की।

अतुल कोठारी

कार्यशाला की प्रस्तावना रखते हुए शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने कहा कि विकट परिस्थितियों में भी न्यास का शिक्षा में सुधार का अभियान यज्ञ के रूप में रुकने वाला नहीं है। कार्यशाला में सभी प्रांतों के द्वारा विगत एक वर्ष में किए गए कार्यों की समीक्षा के साथ-साथ तीन महत्वपूर्ण सत्रों में न्यास के कार्यों, लक्ष्य, कार्यपद्धति एवं विभिन्न विषयों, आयामों तथा कार्य विभागों पर विस्तार से चर्चा हुई। कोरोना महामारी के दौरान भारत की शिक्षा-व्यवस्था में जिस वैकल्पिक व्यवस्था की आवश्यकता है, उस पर केंद्रित दो महत्वपूर्ण प्रस्तावों को चर्चा एवं विमर्श के तदुपरांत सर्व-सम्मति से पारित किया गया। कार्यशाला में 28 प्रांतों के 500 से अधिक प्रतिभागी आभासी माध्यम से जुड़े हुए हैं। प्रथम दिवस कार्यशाला का संचालन राजस्थान क्षेत्र के संयोजक डॉ. चंद्रशेखर ने किया।

“चीनी कोरोना महामारी के दौरान न्यास की कार्यशाला में भारतीय शिक्षा” विषयक प्रस्ताव में बताया गया है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की घोषणा एवं कोरोना महामारी के एक वर्ष पश्चात देश की शिक्षा व्यवस्था आकस्मिक रूप से व्यापक बदलाव से गुजर रही है। देश में शिक्षा के क्षेत्र में नए प्रयोग हुए हैं साथ ही शिक्षकों द्वारा भी नवाचार किए गए हैं। ऑनलाइन शिक्षण, पढ़ाने की प्रक्रिया, मूल्यांकन, परीक्षा प्रक्रिया आदि विषयों पर न्यास, शैक्षणिक संस्थाएँ तथा सरकार ने चुनौती को अवसर में बदलने का काम किया है। न्यास ने अपने इस प्रस्ताव में मिश्रित शिक्षा प्रणाली, पाठ्यक्रम में स्वास्थ्य एवं योग शिक्षा के समावेश करने का आग्रह किया है। सतत मूल्यांकन, 360 डिग्री मूल्यांकन की कार्य-योजना बनाने की बात कही है। तकनीक के प्रयोग हेतु शिक्षकों के प्रशिक्षण की भी मांग की गई है।

दूसरे प्रस्ताव में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की समीक्षा की बात रखी गई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बहुत सारी नई बातों एवं आयामों का समावेश किया गया है। उसके क्रियान्वयन में सरकार के साथ समाज का भी दायित्व है। देशभर के विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और विद्यालयों में क्रियान्वयन समितियों का गठन करना चाहिए, ऐसा आग्रह किया गया है। जिला स्तर की समितियाँ बनें, जो इसकी निगरानी एवं मार्गदर्शन कर सके। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन से शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन किया जा सकता है। इस हेतु सरकार के साथ-साथ समाज के बुद्धिजीवियों एवं शिक्षाविदों को साथ लेकर इस दिशा में सफलता प्राप्त की जा सकती है।

Twitter ने दो न्यूज एजेंसियों से मिलाया हाथ

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फेक न्यूज पर तमाम उपायों के बाद भी पूरी तरह से लगाम नहीं लग पा रही है। ऐसे में यह मुद्दा काफी चिंता का विषय बना हुआ है। अपने प्लेटफॉर्म पर फेक न्यूज के प्रसार पर लगाम लगाने के लिए अब माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म ‘ट्विटर’ ने न्यूज एजेंसी ‘रॉयटर्स’ और एसोसिएटेड प्रेस (एपी) से हाथ मिलाया है। इस करार के तहत ये दोनों एजेंसियां ट्विटर को उन न्यूज स्टोरीज के बारे में अधिक पृष्ठभूमि और संदर्भ प्रदान करने में सहायता करेंगी, जिनके वायरल होने की संभावना है।

एक ब्लॉग पोस्ट में ट्विटर का इस बारे में कहना है, ‘हम यह सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं कि जब लोग तमाम जानकारियों के लिए ट्विटर पर आएं तो उन्हें आसानी से विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध हों। ट्विटर इस दिशा में लगातार प्रयत्नशील है कि लोगों को रोजाना देश-दुनिया में हो रहे घटनाक्रमों के बारे में तेजी से विश्वसनीय सूचनाएं और विचारों को समय से उपलब्ध कराया जाए।’

बतौर ट्विटर ‘किसी न्यूज के वायरल होने के बाद उस मुद्दे से निपटने के बजाय ट्विटर इस पार्टनरशिप के जरिये लोगों को पहले से ही उन न्यूज स्टोरीज के बारे में अधिक पृष्ठभूमि और संदर्भ प्रदान करने में सहायता मिलेगी।’

ट्विटर की क्यूरेशन टीम लोगों को वर्तमान में ट्विटर पर दिखाई देने वाली जानकारी के बारे में सूचित विकल्प बनाने के लिए संदर्भ देती है। इस बारे में ट्विटर का कहना है, ‘जब ट्विटर पर बड़े पैमाने पर या तेजी से बातचीत होती है तो यह विवादास्पद,  संवेदनशील अथवा संभावित रूप से भ्रामक जानकारी हो सकती है, ऐसे में ट्विटर की क्यूरेशन टीम स्रोत और विश्वसनीय स्रोतों से प्रासंगिक संदर्भ को ऊपर उठाती है।‘ इस पार्टनरशिप के जरिये यूजर्स अब अतिरिक्त संदर्भ और विश्वसनीय जानकारी को ट्रेंड्स, एक्प्लोरर, सर्च, प्रॉम्ट्स और लेबल्स टैब पर देख सकेंगे।

संपादक की गिरफ्तारी पर कोर्ट ने पुलिस से पूछा सवाल

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गुरुवार को डिजिटल मीडिया पोर्टल ‘न्यूजक्लिक’ के संस्थापक-संपादक प्रबीर पुरकायस्थ की विदेशी फंडिंग के संबंध में गिरफ्तारी पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने 17 दिसंबर तक रोक बढ़ा दी है। दिल्ली पुलिस ने वर्ष 2020 में मामले में एक प्राथमिकी दर्ज की थी।

दिल्ली पुलिस से पुरकायस्थ की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति योगेश खन्ना ने पूछा कि जब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने उनके पक्ष में प्रथम दृष्टया निष्कर्ष निकाला है, तो उन्हें हिरासत में लेकर पूछताछ की जरूरत क्यों है?

न्यायमूर्ति योगेश खन्ना ने पूछा कि प्रथम दृष्टया जब आरबीआई ने उनके खिलाफ कोई शिकायत नहीं दी उस मामले में आपको याची को हिरासत में पूछताछ की जरूरत क्यों है? वहीं वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए पेश जांच अधिकारी ने कहा कि वह अभी भी अन्य लेनदेन का सत्यापन कर रहे हैं और जांच अभी चल रही है।

मालूम हो कि उच्च न्यायालय प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जांच किए जा रहे धनशोधन के मामले में दंडात्मक कार्रवाई से उन्हें पहले ही संरक्षण दे चुका है। उनकी गिरफ्तारी पर रोक कोर्ट ने दो सितंबर तक बढ़ा रखी है।

उल्लेखनीय है कि दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा द्वारा दायर प्राथमिकी में आरोप है कि पीपीके न्यूजक्लिक स्टूडियो प्राइवेट लिमिटेड ने कानून का उल्लंघन करते हुए वित्त वर्ष 2018-19 में वर्ल्डवाइड मीडिया होल्डिंग्स एलएलसी यूएसए से 9.59 करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्राप्त किया।

वहीं कोर्ट में पुरकायस्थ की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पहले ही यह बता चुके हैं कि अमेरिका स्थित कंपनी से न्यूजक्लिक ने उस साल निधि प्राप्त की थी, जब एफडीआई पर कोई सीमा नहीं थी। सिब्बल ने तर्क दिया था कि वह लोकप्रिय पत्रकार हैं और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म चलाते हैं। डिजिटल मीडिया मंचों को विदेशों से पैसा लेने की अनुमति है, जिस पर सीमा मामल के अगले साल से प्रभावी हुई थी।’ साथ ही उन्होंने दलील दी थी कि पैसों के हेर-फेर का कोई सवाल नहीं उठता है क्योंकि इसका इस्तेमाल कर्मचारियों को वेतन देने में किया गया था और इस प्रक्रिया में कोई राजकोषीय घाटा नहीं हुआ था।

कांग्रेस के विधायक ने पत्रकारों को ‘इलाज’ कराने की नसीहत दी

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एक बार फिर छत्‍तीसगढ़ के रामानुजगंज से कांग्रेस विधायक बृहस्पति सिंह विवादों में हैं। इस बार उन्होंने आदिवासियों को लेकर एक विवादित बयान दिया है। उन्होंने एक पत्रकार वार्ता में आदिवासियों को अंगूठा छाप कहा। बता दें कि बृहस्पति खुद आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित सीट से विधायक हैं। इस बयान के बाद भाजपा उनके खिलाफ आक्रामक हो रही है।

दरअसल, अंबिकापुर में एक पत्रकारवार्ता में कुछ पत्रकारो के सवाल से बौखला कर विधायक भड़क गये और पत्रकारों के लिए अंगूठाछाप आदिवासी शब्द का प्रयोग किया। इसके अलावा उन्होंने एक पत्रकार को यह तक कह दिया कि आपकी दिमागी हालत ठीक नहीं है।

जानकारी के अनुसार राज्य के रामानुजगंज विधानसभा सीट से विधायक बृहस्पति सिंह के काफिले पर कुछ दिनों पहले हमला हुआ था। इस हमले के बाद कांग्रेस विधायक ने राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव पर आरोप लगाया था कि यह हमला उन्हीं के इशारे पर हुआ है। इतना ही नहीं बृहस्पति सिंह ने कहा था कि टीएस सिंहदेव महाराजा हैं, वो कुछ भी करते हैं और उनकी हत्या भी करवा सकते हैं। अपने इस बयान के बाद उन्होंने माफी भी मांगी थी। उनके इसी बयान को लेकर पत्रकारों ने जब उनसे सवाल किया तब वो भड़क गए।

बृहस्पति से पत्रकारों द्वारा सवाल किया गया कि उन्होंने मंत्री टीएस सिंहदेव पर हत्या कराने का आरोप लगाया था, लेकिन विधानसभा में माफी क्यों मांग ली? इस पर बृहस्पति ने कहा कि सरगुजा के अनपढ़ आदिवासियों की तरह सवाल न करें। मैंने क्या आरोप लगाया, विधायक दल की बैठक में क्या हुआ और विधानसभा में किसने माफी मांगी, यह सब रिकॉर्ड में है। बृहस्पति यहीं नहीं रुके, उन्होंने यह भी पूछा कि आखिर किसके इशारे पर सवाल पूछ रहे हो। उन्होंने पत्रकारों को भी अपनी दिमागी हालत ठीक करने की नसीहत तक दे दी।

बयान सामने आने के बाद प्रदेश में आदिवासियों को लेकर राजनीति गरमा गई है। भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष विकास मरकाम ने कहा, बृहस्पति सिंह ने सरगुजा के आदिवासी समाज को अपमानित किया है। इस पर प्रदेश के आदिवासी समाज को कड़ी आपत्ति है। भाजपा नेताओं ने कहा, ’48 घंटे में यदि विधायक बृहस्पति सिंह ने आदिवासी समाज से सार्वजनिक माफी नहीं मांगी तो भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा पूरे सरगुजा संभाग में उनके खिलाफ विरोध-प्रदर्शन करेगा।’

सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष अनूप टोपो ने इस बीच कहा, विधायक जब तक माफी नहीं मांगते, तब तक उनके कार्यक्रम का बहिष्कार किया जाएगा।

विदेशी पत्रकारों को लेकर भारत ने पाकिस्तान के अनुरोध को ठुकराया

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पाकिस्तान के उस अनुरोध को भारत ने अस्वीकार कर दिया है, जिसमें यह मांग की गई थी कि भारत में रहने वाले पांच विदेशी पत्रकारों के एक समूह को वाघा के जरिए इस्लामाबाद की यात्रा करने की अनुमति दी जाए। दरअसल, भारतीय अधिकारियों ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि कोरोना वायरस महामारी के कारण सीमा से जाना लगभग बंद है। हालांकि भारत के इस कदम की पाकिस्तान ने आलोचना की।

अलग-अलग ट्वीट में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी, सूचना मंत्री फवाद चौधरी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ ने आरोप लगाया कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और स्वतंत्र पत्रकारिता का ह्रास हो रहा है।

पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने कहा कि भारत द्वारा पांच अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों को पाकिस्तान की यात्रा करने की अनुमति से इनकार करना ‘एक तानाशाही शासन के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और स्वतंत्र पत्रकारिता के ह्रास का एक और घातक संकेत है।’

अपने ट्वीट में पाकिस्तान के सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने कहा कि पत्रकारों को 5 अगस्त को पीओके विधानसभा के एक सत्र में शामिल होना था।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ ने कहा, ‘ये एक आशंकित सरकार के कदम हैं, जिसके पास छिपाने के लिए बहुत कुछ है और वह नहीं चाहती कि दुनिया कश्मीर की वास्तविकता को देखे।’

मालूम हो कि वाघा सीमा पारगमन पॉइंट को शुरू में पिछले साल मार्च में कुछ हफ्तों के लिए बंद किया गया था और बाद में इसे बढ़ा दिया गया था। फिलहाल अभी यह राजनयिकों और कुछ अन्य को छोड़कर सभी श्रेणियों के यात्रियों के लिए बंद है। वर्तमान में भारत और पाकिस्तान के बीच उड़ान सेवाएं भी महामारी के कारण स्थगित हैं।

मीडिया खबर अनुसार, इस तरह की भी जानकारी सामने आयी है कि पाकिस्तान ने पत्रकारों को अफगानिस्तान में समग्र स्थिति पर शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बातचीत के लिए ले जाने की योजना बनाई थी। तालिबान को कथित रूप से अपना समर्थन जारी रखने के लिए अफगानिस्तान सरकार द्वारा इस्लामाबाद की बढ़ती आलोचना के बीच पाकिस्तान अफगानिस्तान में अपनी भूमिका को लेकर अंतरराष्ट्रीय विमर्श को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है।

घटनाक्रम से जुड़े लोगों में से एक ने कहा कि यह दौरा तीन से सात अगस्त के बीच तय किया गया था। अफगान पत्रकारों के एक समूह ने पिछले महीने पाकिस्तान का दौरा किया था और उन्होंने इस्लामाबाद में प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ बातचीत की थी।

वहीं अन्य रिपोर्ट्स की मानें तो, कश्मीर का विशेष दर्जा निरस्त किए जाने के पांच अगस्त को दो साल पूरे होने पर कश्मीर और पाकिस्तान में विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई गई है। भारत ने 2019 में कश्मीर का विशेष दर्जा रद्द कर दिया था।

भारत का कहना है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 से संबंधित मुद्दा पूरी तरह से देश का आंतरिक मामला है।

इस अवसर पर नवनिर्वाचित विधानसभा ने भी एक सत्र की योजना बनाई है और पत्रकारों को कार्यवाही का गवाह बनना था।

दिल्ली के न्यू महाराष्ट्र सदन में ‘ग्लोबल ऑर्गेनिक एक्सपो’ का आयोजन

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3 अगस्त को दिल्ली के न्यू महाराष्ट्र सदन में ग्लोबल ऑर्गेनिक एक्सपो’ का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का आरम्भ कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में केंद्रीय सामाजिक न्याय राज्य मंत्री रामदास आठवले द्वारा किया गया। शाम 5.00 बजे तक चलने वाले इस कार्यक्रम में पूरे भारत से 100 से अधिक ऑर्गेनिक कंपनी के मालिक, निदेशक, सचिव, प्रोफेसर, छात्र, पोषण विशेषज्ञ, जैविक खाद्य उत्पादक और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित होकर कुपोषण, लघु उद्योग, मिलावट, दुष्प्रचार, हब, कृषि पर मार्गदर्शन आदि मांगे आठवले साहब के सामने रखी।

इस अवसर पर भारत सरकार के आयुष, बाल विकास, कृषि एवं अन्य विभागों के सचिव एवं अन्य अधिकारी उपस्थित थे। कार्यक्रम का आयोजन नवीन लाडे, मनोज मिश्रा, नाजनीन अंसारी, राजीव बंसल, निदेशक, आइकोनेक्स कंपनी, अभिमन्यु सिंह, कार्यक्रम के लिए विशेष सहायता द्वारा किया गया था। सीमा यादव और दीपिका घाडी ने कड़ी मेहनत की है।

ग्रांट न मिलने से दिल्ली सरकार के वित्त पोषित कॉलेजों में आर्थिक संकट

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डॉ ए के भागी

दिल्ली सरकार के वित्त पोषित 12 कॉलेजों में पिछले कई महीने से सेलरी और अन्य  ग्रांट समय पर जारी नहीं होने से शिक्षकों और कर्मचारियों को करोना काल में अनेक मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। ग्रांट और सेलरी नियमित रूप से जारी करने की मांग को लेकर  शिक्षकों ने डूटा के आह्वान पर दिल्ली सरकार से तुरंत सेलरी व अन्य ग्रांट जारी करने की मांग करते हुए एक दिन की हड़ताल की ।

नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट के अध्यक्ष डॉ ए के भागी ने बताया कि  पिछले कई महीने से समय पर ग्रांट  ना मिलने के कारण दिल्ली सरकार के वित्त पोषित कॉलेजों में आर्थिक संकट गहरा गया है। समय पर समुचित  ग्रांट जारी ना होने के कारण वैश्विक महामारी में शिक्षकों और कर्मचारियों को न तो समय पर वेतन मिल रहा है और न ही उनको मेडिकल और अन्य सुविधाएं मिल पा रही है । कई कॉलेजों में तो दो माह से शिक्षक और कर्मचारियों को वेतन भी  नहीं मिला है। शिक्षकों और कर्मचारियों को वेतन न मिलने से उनको अपने परिवार के भरण पोषण व ई एम आई आदि देने में दिक्कतें होने लगी  हैं। गौरतलब है कि कोविड् की दूसरी लहर में बहुत से शिक्षक और कर्मचारियों को जान से हाथ धोना पड़ा है।

डॉ भागी ने बताया कि दिल्ली सरकार के एजुकेशन मॉडल की हकीकत सामने आ गई है। दिल्ली सरकार के कई वित्त पोषित कॉलेज स्कूल की बिल्डिंग में चल रहे हैं। इनकी इमारतें जर्जर हो गई है। यहां सुविधाओं और संसाधनों का घोर अभाव है। एनडीटीएफ के महासचिव डॉ वी एस नेगी ने कहा कि शिक्षा के नाम पर आम आदमी पार्टी केवल प्रचार प्रसार कर रही है जबकि हकीकत इसके एकदम विपरीत है।

काव्य-पुरुष डॉ. देवेन्द्र दीपक के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी आयोजित

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अरविन्द अभय

बिहार लोकसेवा आयोग के सदस्य और महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. अरुण कुमार भगत ने  इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा वरिष्ठ साहित्यकार, राष्ट्र-चिंतक एवं काव्य-पुरुष डॉ. देवेन्द्र दीपक के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आयोजित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में  वक्तव्य देते हुए कहा कि ‘डॉ. देवेंद्र दीपक के साहित्य में सूक्तियों की भरमार है। इन सूक्तियों में जीवन-दर्शन छिपा हुआ है। इनपर बड़े स्तर पर शोध होना चाहिए। उनकी रचना या लेखन में सांस्कृतिक और सामाजिक उन्मेष के साथ-साथ सामाजिक समरसता है।’ उन्होंने कहा कि समाज को ‘पानी से नहाया हुआ व्यक्ति स्वच्छ होता है और पसीने से नहाया व्यक्ति पवित्र होता है।’ और ‘अपनी कलम से खाई नहीं कुआँ खोदो, ताकि लोगों की प्यास बुझे।’ जैसे विचार देनेवाले डॉ. दीपक निश्चित ही काव्य-पुरुष हैं। प्रो. भगत ने कहा कि आपातकाल के दौरान शासकीय सेवा की दहशत की सींखचों में घिरे होने के बावजूद कलम की धार कम नहीं होने दी। उन्होंने अपनी रचना के आईने में लोकतंत्र के दमन को उकेरा। आपातकाल पर लिखनेवालों में वह अग्रणी रहे।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ पत्रकार और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने इस अवसर पर कहा कि देवेंद्र दीपक जी के साथ समाज ने न्याय नहीं किया है। देवेंद्र दीपक जी का रचना-संसार वैदिक संस्कृति और इतिहास का प्रतिनिधित्व करता है। यह अपने आपमें बहुत बड़ी बात है। इसलिए हमारा दायित्व है कि उसे सामने लाएँ। यह कार्योत्सव एक साहित्योत्सव है।

इससे पहले स्वागत-वक्तव्य देते हुए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य-सचिव एवं वरिष्ठ शिक्षाविद् प्रो. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि यह बहुत सौभाग्य की बात है कि 90वीं जयंती मनाने का सौभाग्य मिल रहा है। उन्होंने हमें अपनी रचनात्मकता से प्रभावित किया है। वे हमेशा धारा के विपरीत खड़े रहे  हैं। युवाओं में वे वरिष्ठों की तुलना में काफी लोकप्रिय रहे हैं। वे हमेशा अपने आपको बेहतर करने के लिए प्रतिबद्ध रहे हैं। वे मेरे जैसे छोटे और नौजवान को भी बिठाकर सीखाते थे। वे मेरे जीवन के आले में सुरक्षित पल हैं।   

कार्यक्रम के वक्ता और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. अशोक कुमार ज्योति ने कहा कि डॉ. दीपक एक ऐसे वृक्ष हैं, जिनकी काव्य, गद्य, शासकीय और शिक्षकीय गुण शाखाएँ हैं। उनके शिक्षकीय गुण का जितना बखान किया जाए,  कम है। उन्होंने अपनी रचना ‘मास्टर धरमदास’ के जरिए एक शिक्षक की पीड़ा और छात्र के प्रति उसके स्नेह को बताया है। उन्होंने कहा कि डॉ. दीपक वर्तमान और आनेवाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा के सागर हैं।

मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार एवं केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के पूर्व निदेशक प्रो. नंदकिशोर पांडेय ने कहा कि समकालीन कवियों में देवेंद्र दीपक शामिल हैं। वे चर्चा से स्वयं को आगे बढ़ानेवाले नहीं हैं। जिन विषयों पर कवि माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखा, खंडवा में बूचड़खाने खुलने के खिलाफ लगातार लिखा, उसी मध्यप्रदेश की धरती से देवेंद्र दीपक ने ‘गौ उवाच’ लिखा। उनका पूरा-का-पूरा रचना-संसार पढ़ा जाना चाहिए। उनकी कविता ध्वंस पर ध्वंस करती है। उपासना करती है। उन्होंने गद्य और पद्य लेखन को एक भारतीय दृष्टि दी है।

हिंदुस्तानी एकेडमी, प्रयागराज के अध्यक्ष प्रो. उदय प्रताप सिंह ने बतौर मुख्य वक्ता कहा कि यदि रचना रचनाकार में परिवर्तन लाती है तो वह सही मायने में रचना है। सरकारी नौकरी करते हुए उन्होंने आदिवासियों की आवाज को पद्य के जरिए सामने रखा है।

बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ, उत्तर प्रदेश के कुलाधिपति डॉ. प्रकाश सी. बरतूनिया ने कहा कि हमने उनकी कथनी और करनी में कभी अंतर नहीं देखा। उनकी कई काव्य-प्रस्तुतियाँ भी देखने को मिला है। उन्होंने सद्भावना के लिए काफी काम किया है। उन्होंने अस्पृश्यता पर काफी लिखा है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज के हाशिए पर रह रहे लोगों में आत्मविश्वास को बढ़ावा दिया है।

इस सत्र का संचालन दिल्ली विश्वविद्यालय की अध्यापिका डॉ. सारिका कालरा ने किया।

संगोष्ठी का दूसरा सत्र डॉ. देवेंद्र दीपक के गद्य-साहित्य पर केंद्रित रहा। इस सत्र में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश के निदेशक डॉ. विकास दवे ने बतौर विशिष्ट वक्ता कहा कि जो देवेंद्र दीपक जी ने कहा, वह किया। उन्होंने बाल-विमर्श करते हुए परिवार-विमर्श भी किया। उन्होंने अपनी भाषा के विमर्श पर बहुत काम किया है। वे परिवर्तन को लेकर, सुधार को लेकर काफी काम किया है। उन्होंने हमेशा सिंहासन को चुनौती देने का कार्य किया है।

इस अवसर पर मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी-विभाग के प्राध्यापक डॉ. मृगेंद्र राय ने अपने व्याख्यान में कहा कि उनके साहित्य का अध्ययन करते हुए मैंने महसूस किया कि उन्होंने खुद को तपाया है। उनमें निरंतर पढ़ते रहने की लालसा है। यह संस्कार आज के समाज में पैदा करने की आवश्यकता है।

इस सत्र में श्रीमती विनय राजाराम ने बताया कि किस प्रकार डॉ. देवेंद्र दीपक का साहित्य सांस्कृतिक एवं पौराणिक लेखन में पाठकों को बाँधकर रखने की क्षमता है।

इस अवसर पर अपने उद्बोधन में डा. देवेंद्र दीपक ने कहा कि मैंने कभी ‘इस’ या ‘उस’ के लिए रचना नहीं लिखी। मेरा ध्यान उपेक्षित और अलक्षित समाज पर रहा।

द्वितीय सत्र की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय की अध्यापिका प्रो. कुमुद शर्मा ने की। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि देवेंद्र दीपक जी अपनी आस्थाओं, मूल्यों और संस्कृति के प्रति बहुत ही प्रतिबद्ध रहे हैं, जो उनकी साहित्य-यात्रा में परिलक्षित होता है। 

इस सत्र का संचालन संजीव सिन्हा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डा. अशोक कुमार ज्योति ने किया।

उ तिरोत सिंह : मेघालय के एक महान स्वतंत्रता सेनानी

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अनूप कुमार

अनूप कुमार

न जाने कितने ही भारत माँ के वीर सपूतों ने हमारे देश भारत को आजाद कराने के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है।तब जाकर हमारा देश अंग्रेजी दासता से मुक्त हुआ और आज हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं। 17 जुलाई को पूर्वोत्तर भारत के मेघालय राज्य के एक वीर सपूत उ तिरोत सिंह जो खासी जनजाति से आते हैं अंग्रेजी दासता को ठुकराकर 33 वर्ष की अल्पायु में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था।

अविभाजित असम (मेघालय व असम के विभाजन के पूर्व) के भूतपूर्व महामहिम राज्यपाल श्री जयरामदास दौलतराम ने 15 दिसम्बर 1952 को मयरांग में उ (खासी भाषा में नाम के आगे सम्मानपूर्वक उ लगाते हैं) तिरोत सिंह के स्मारक का आधारशिला रखते हुए कहा था कि उ तिरोत सिंह एक बहुत हीं कुशल व महान राजा थे और अन्ततः स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। मैं आशा करता हूँ कि उनके नाम को भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में उचित स्थान मिलेगा। उ तिरोत सिंह नंग्ख्लाऊ के राज्य के राजा थे जो खासी पहाड़ में स्थित है।नंग्ख्लाऊराज्य का गौरवशाली इतिहास उ शाजेर और उ सेनट्यू के समय से हीं था। उन्होंने नंग्ख्लाऊ राज्य पर शासन बहुत हीं उत्कृष्टता एवं बुद्धिमत्ता से किया। यह उनके राज्य कुशलता व योग्यता का हीं प्रमाण था कि उनका साम्राज्य गुवाहाटी के पास बोरदुआर से लेकर आज के बांग्लादेश के सिल्हट तक था। यह काल था सोलहवीं शताब्दी के आधा बीत जाने के बाद का काल। उ तिरोत सिंह को विरासत में अपने पूर्वजों से कुछ विशिष्ट गुण प्राप्त हुए थे। उन्होंने अंग्रेजों से अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए अदम्य साहस व स्वाभिमान का परिचय देते हुए मृत्यु को गले लगा लिया लेकिन कभी भी अंग्रेजी आधिपत्य के सामने सर नही झुकाया।

 अपने मामा उ हेन सिंह के मृत्यु के पश्चात उ तिरोत सिंह नानखलाऊ राज्य के उत्तराधिकारी नियुक्त हुए। खासी जनजाति मातृ प्रधान समाज होने के कारण राजा के छोटी बहन का पुत्र यानी भांजा हीं राजा होता हैं। बाध्यकारी नियम, कानून एवं परंपरा जो उस भू-भाग पर लागू होते थे उसके कारण उनकी पकड़ को राज्य पर मजबूत करता था। खासी रीति के अनुसार राज्य की सुरक्षा के लिए एक मुखिया की आवश्यकता थी। उ तिरोत सिंह को नानखलाऊ राज्य का मुखिया यानी राजा मात्र 12 वर्ष की अल्पायु में 1814 ई० में घोषित किया गया। उनकी सरकार का संचालन उ तिरोत सिंह की माँ कसान सियम किया करती थी। प्रशासनिक कार्य और वहाँ की संसद जिसे दरबार हीमा कहा जाता है उसका संचालन कैबिनेट जो कि अनेक मंत्रियों का समूह हुआ करता था उसके माध्यम से होता था।

उस जमाने में भी खासी राज्य का संविधान पूरी तरह से लोकतांत्रिक था। ब्रिटिश आने से पूर्व खासी पहाड़ में कुल 30 राज्य थे। इन राज्यों के राजा स्वायत व बहुत हीं अधिक शक्तिशाली थे। सभी के पास उनके स्वयं के मंत्रिमंडल थे जिनकी अनुमति के बगैर कोई भी व्यापार नही हो सकता था। खासी राज्य में वस्तुतः ऐसी एक लोकतांत्रिक व्यवस्था थी जिसमें कोई भी ऊँचा नीचा नही था,अपितु सभी का बराबरी का सहभाग था। अगर कभी विवाद या उत्तराधिकारी को लेकर प्रश्न भी खड़ा होता था तो उस विषय की चर्चा सदन में होती थी,जहाँ सभी को अपना मत प्रकट करने व वोट देने का अधिकार था। अंग्रेज अधिकारी डेविड स्कोट के सहायक कैप्टन वाइट एक बार ऐसे ही मौके पर दरबार में उपस्थित थे। वे दो दिनों तक चली एक चर्चा की व्यवस्था, शालीनता व शिष्टाचार देखकर वो आश्चर्यचकित हो गए।

अंग्रेजी शासन को यह महसूस होने लगा कि अगर ब्रह्मपुत्र वैली से आगे हमें राज्य विस्तार करना है तो असम वैली से सुरमा वैली (सिल्हट) तक सीधा रास्ता तैयार करना होगा। इसके लिए 1827 में डेविड स्काउट ने नानखलाऊ के राजा उ तिरोत सिंह से संपर्क किया व संधि किया जो कि दोनों राज्यों के बीच से नानखलाऊ से होकर सड़क निर्माण कि अनुमति देता है। अंग्रेजों की चाल भोले भाले खासी समझ नही पाए।

उ तिरोत सिंह को थोड़े ही समय में समझ आ गया कि अंग्रेजों की संधि ऑगलाल टेटन सिओक्स के प्रमुख रेड क्लाउड के कथन के अनुसार है जिन्होंने कहा था कि “उन्होंने हमसे बहुत सारे वादे किए। इतने सारे वादे कि हम उतने याद भी नही रख सकते। पर सिर्फ उन्होंने एक ही वादा निभाया जो उन्होंने हमारी जमीन लेने का किया था। अन्ततः उन्होंने हमारी जमीन ले ली।” अप्रैल 1829 यानी संधि के दो वर्ष के भी पहले नानखलाऊ राज दरबार ने निर्णय लिया कि धोखेबाज अंग्रेज एवं उनके समर्थकों को यहाँ से खदेड़ा जाय एवं संधि को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाय। यह निर्णय अंग्रेज अधिकारियों के बदले रवैये, उनका नानखलाऊ राज्य कि शासक कि तरह व्यवहार एवं खासी जनता पर शोषण व अत्याचार के कारण लंबी चर्चा के बाद लिया गया। जनता पर अत्याचार की खबरें लगातार सिल्हट व गुवाहाटी से भी प्राप्त हो रहीं थी।

अंग्रेजों से संधि टूटने के बाद अपरिहार्य संघर्ष के लिए मंच सज चुका था क्योंकि दोनों पक्ष समझौते के लिए तैयार नही थे। युद्ध की घोषणा हो गयी थी व अन्य खासी राज्य ने भी युद्धनाद कर दिया था। तीर धनुष से सुसज्जित खासी जनजाति ने सबसे पहले एक ब्रिटिश सैन्य दुर्ग पर हमला किया जिसकी सुरक्षा बंगाल फौज के लेफ्टिनेंट बेफिंगफील्ड और लेफ्टिनेंट बुरीटोन कर रहे थे। अंग्रेजों के ऊपर हुए अचानक हमले से उनका काफी नुकसान हुआ, जिसमें बहुत ही बड़े बड़े अधिकारी मारे गए। अंग्रेजों ने इसे नानखलाऊ हत्याकांड नाम दिया। स्वाभाविक रूप से ब्रिटिश ने इसकी जबाबी कार्यवाही की। 44 वी असम लाइट इन्फेंट्री जिसका नेतृत्व कैप्टन लिस्टर कर रहे थे एवं 43 वीं असम लाइट इन्फेंट्री जिसका नेतृत्व नेतृत्व लेफ्टिनेंट वेच कर रहे थे उन्हें खासी पहाड़ पर हमले के लिए आदेश दिया गया। खासी राज्य के लोग संख्या व अस्त्र-शस्त्र के मामले में अंग्रेजों से कम थे,परंतु कभी भी सिपाहियों का साहस व उत्साह उ तिरोत सिंह ने कम नही होने दिया।

उ मोन भुट्ट, उ लूरशाई जारेन और उ खेन खारखंगोर उ तिरोत सिंह के कुछ खास सिपहसलार थे, जो उनके कुशल नेतृत्व में अंग्रेजी सेना से लोहा ले रहे थे। यह युद्ध चार वर्षों तक लंबा चला और खासी सिपाहियों के निरंतर संघर्ष के कारण खासी पहाड़ अंग्रेजी आधिपत्य से अप्रभावित रहा। खासी पहाड़ पर शिकंजा कसने के लिए अंग्रेजों द्वारा आर्थिक नाकेबंदी की गई। जिसके कारण अन्न का आयात निर्यात थम सा गया। किन्तु इसके बावजूद खासी सिपाहियों के हौसले बुलंद थे। यहाँ तक कि का फान नोंगलेट जो महिला सैन्य टुकड़ी का नेतृत्व कर रही थी उन्होंने अपने साथियो के साथ अनेक ब्रिटिश सिपाहियों को मार गिराया। उ तिरोत सिंह बहुत हीं तेजी से जब भी मौका मिलता तो अंग्रेजों को अपने गृह पहाड़ियों पर छापामार युद्ध से दांत खट्टे करते रहते।

आर्थिक प्रतिबंध का दुष्प्रभाव खासी राज्य पर पड़ने लगा था और यह युद्ध का एक नया मोड़ साबित हुआ। इस मौके का फायदा अंग्रेजों ने तोलमोल व धमकाने के लिए उठाया। डेविड स्कोट के परवर्ती आये अधिकारी ओबर्स्टन ने गोआलपाड़ा, सिहबंदीश , मॉन्स (बर्मा के बंदूकधारी) और मणिपुरी घुड़सवारों को अधिकृत किया और उसी समय आर्थिक नाकेबंदी को और भी कड़ा किया। सारी खेती बारी बंद हो गयी और अन्न का आयात भी पूरी तरह से बंद हो गया। इंग्लिश नाम का एक अधिकारी जो खासी पहाड़ के ही मिलयम पोस्ट का कमांडर था उसने देखा कि खासी लोग आर्थिक रूप से बहुत हीं कमजोर हो चुके हैं और यही सही मौका है उ तिरोत सिंह को बंदी बनाने का। उसने 13 जनवरी 1833 को उ तिरोत सिंह से बातचीत का प्रस्ताव रखा और खासी रीति के अनुसार तलवार की धार पर नमक रखकर कसम भी खाया कि वह राजा को कोई भी क्षति नही पहुंचाएगा। भोले भाले खासी लोगों को धोखे में रखा गया। 13 जनवरी 1833 को उ तिरोत सिंह मिलयम के लूम मैदान इंग्लिश से बातचीत के लिए गए।इंग्लिश ने उन्हें अभिवादन किया एवं एक बार फिर तलवार की धार से नमक खाकर विश्वास दिलाया। लेकिन अपनी योजना अनुसार अंग्रेजों ने छल से उ तिरोत सिंह को बंदी बना लिया।

राबर्टसन की योजना फलीभूत होने वाली थी। उनका असली उद्येश्य खासी पहाड़ को एक यूरोपियन उपनिवेश बनाने का था और इसके लिए वर्मा के बंदूकधारियों एवं तेजतर्रार मणिपुरिओं को खासी पहाड़ में तैनात करने की योजना बनाई ताकि मणिपुरिओं एवं खासी में संघर्ष बना रहे और इसका लाभ अंग्रेज उठाये। लेकिन खासी मुखिया एवं वहाँ के लोग बड़े ही दूरदर्शी थे उन्होंने इस असमान युद्ध को जारी न रखने में ही अपनी भलाई समझी। अपने लोगों से ही युद्ध का परिणाम हार या पूरे खासी पहाड़ का खोना हो सकता था।

अंग्रेजी हुकूमत की यह योजना जिसमे पूरे पूर्वोत्तर को अपना उपनिवेश बनाया जाय इसका प्रयास आज भी जारी है। हाल फिलहाल में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा FCRA: Foreign Contribution Regulation Act को निरस्त किया गया। जिसका विरोध पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा की जाती है। इस एक्ट के माध्यम से वे बे-रोकटोक विदेशी धन पूर्वोत्तर में भारत विरोधी गतिविधियों में खर्च हो रहा था। इसके विरोध का स्वर हमें फिर से राबर्टसन ने जो स्वप्न देखा था उसको पूरा करने के लिए ताकतें प्रयासरत प्रतीत होती हैं।

उ तिरोत सिंह को बंदी बनाये जाने के बावजूद खासी राज्य के ज्यादातर भाग को आजाद करा लिया गया था। यद्यपि उन्हें मजबूरीवश रास्ता बनाने के लिए एक अंग्रेजी एजेंट को अनुमति देनी पड़ी। कैप्टन लिस्टर जो सिल्हट के लाइट इन्फेंट्री से था वो उ तिरोत सिंह के अंग्रेजों की ओर से मध्यस्त थे। अंग्रेजी में कहा जा सकता है: Discretion is the perfection of reason ,and guide to us all in all the duties of life, It is only found in men of sound sense and good understanding.

चेन से बांधकर बन्दी बनाकर उ तिरोत सिंह को गुवाहाटी लाया गया। जहाँ उनके मध्यस्त को टेनासेरिम (वर्मा) सुपुर्द करने का आदेश दिया गया। लेकिन कलकत्ता काउंसिल ने उन्हें निर्वासन के लिए डेक्का भेज दिया गया। एक उपयुक्त लेकिन मजबूत घर उनके लिए ढूंढा गया एवं उन्हें महीने का तिरेसठ रुपये और दो नौकर साथ रखने की अनुमति दी गयी। उन्हें कैद में बहुत यातना दी गयी। यहाँ तक कि यातना के पश्चात अंग्रेज अधिकारियों ने उन्हें प्रलोभन भी दिया और उनके समक्ष पेशकश की कि आप वापस अपने राज्य जा सकते हैं और अंग्रेजी हुकूमत को सर्वोच्च मानकर शासन कर सकते हैं। लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और कहा कि “गुलाम राजा के जीवन से बेहतर है मैं आजाद रहकर मरूँ।” उ तिरोत सिंह अंतिम स्वतंत्र राजा थे, जिन्होंने अपनी शहादत 1835 के पूर्व अपना जीवन कैद एवं एकाकीपन में व्यतित किया। इस तरह से एक बहुत हीं वीर लेकिन भारतीय इतिहास के किसी पन्ने में खोए हुए स्वतंत्रता सेनानी की जीवन यात्रा समाप्त होती है।

उनकी शहादत के 186 वर्ष पूरे हो चुके हैं। नमन है मेघालय के खासी जनजाति का जिन्होंने ऐसे वीर सपूत को जन्म दिया जिन्होंने देश कि संस्कृति,परंपरा और अपना भारतीय धर्म बचाने के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। आज भी देश के बहुत से नागरिक ऐसे वीर हुतात्मा के बारे में नही जानते। आइये हम सब मिलकर उ तिरोत सिंह सियम की जीवन से प्रेरणा ले व उनके संदेश को जन-जन तक पहुँचाए।

(लेखक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के उत्तर-पूर्व क्षेत्र के क्षेत्रीय विश्वविद्यालय कार्य प्रमुख हैं।)

न्यूज चैनल के प्रधान संपादक के खिलाफ शिकायत दर्ज

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एक मामला सामने आया है, जिसमें नोएडा स्थित एक हिंदी न्यूज चैनल के प्रधान संपादक के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई है। दरअसल, मामला जयपुर का है, जहां मीणा समुदाय की भावनाओं को आहत करने के सिलसिले में पुलिस ने यह शिकायत दर्ज की है।

हाल में कथित रूप से जयपुर के ट्रांसपोर्ट नगर थाने में अंबागढ किले से भगवा झंडा हटाने के विवाद में मीणा समुदाय की भावनाओं को आहत करने के सिलसिले में सुदर्शन टीवी के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाण के खिलाफ शुक्रवार को प्राथमिकी दर्ज करवाई गई है।

पुलिस के अनुसार मीणा का आरोप है कि चैनल में मीणा समुदाय को अपशब्द कहे गए और पूरे समुदाय की भावनाओं को आहत किया गया है, जिसके बाद चव्हाण के खिलाफ मामला दर्ज करवाया गया।

आदर्शनगर के सहायक पुलिस आयुक्त नील कमल ने बताया कि प्राथमिकी भारतीय दंड संहिता तथा सूचना प्रौद्योगिकी कानून की संबंधित धाराओं और अनुसूचित जाति-जनजाति (उत्पीड़न से निवारण) कानून के तहत दर्ज की गयी है। उन्होंने कहा कि किसी को भी इलाके में सद्भाव और कानून व्यवस्था को बिगाडने नहीं दिया जायेगा।

उन्होंने बताया कि इलाके में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है और शनिवार को फ्लैग मार्च भी निकाला गया है।

कुंद्रा की नीली फिल्मों से अधिक खतरनाक यह लाल फिल्म…!

पंकज झा

पंकज झा

राज कुंद्रा के कारण अभी ओटीटी की काफी चर्चा है. हालांकि अभी तक शायद फिल्म देखने के लिए यह प्लेटफॉर्म हमारे जन-जीवन का हिस्सा नहीं हो पाया है लेकिन, फिर भी जैसा कि कहते हैं, गांव बसा नहीं पर चोर हाज़िर हो गए, यही हाल इस प्लेटफोर्म का भी हो गया है. पोर्न आदि तो खैर ऐसी चीज़ है समाज में जो कभी ख़त्म हो भी नहीं सकती. वह कितना जायज या नाजायज़, कानूनी या गैर कानूनी होना चाहिए, वह अलग से विश्लेषण का विषय है. लेकिन ओटीटी पर भी जिस तरह से वैचारिक दुराग्रहियों, बेईमानों ने पैठ बना लिया है, जिस तरह जातीय ज़हर वे परोस रहे हैं, उसके आगे पोर्न आदि का ख़तरा कोई ख़तरा ही नहीं है. प्रशासन और पुलिस को इन सफेदपोश वैचारिक अपराधियों पर नज़र रखने की अधिक ज़रूरत है. नक्सल प्रेरित, वाम समर्थित, इप्टा गिरोहों द्वारा रचित सामग्रियों की आने वाले समय में इस पर भरमार होने वाली है,जिसे अभी से ध्यान देकर विनियमित करने की आवश्यकता है.

मुट्ठी भर भी वेब सीरिज नहीं देख पाया हूं, अभी तक लेकिन हाल में बिहार पर आधारित एक सीरिज ‘महारानी’ पर नज़र गयी. तमाम वामपंथियों ने गिरोहबंदी कर जिस तरह की हरकत इस सीरिज में की है, जिस तरह दुनिया भर का झूठ, हर तरह की कमीनगी, तमाम तरह के ज़हर को फैलाने का काम इस सीरिज में हुआ है, मुझे आश्चर्य लग रहा है कि लोगों की अभी तक इस पर उस तरह से नज़र क्यों नहीं पड़ी. इन अपराधियों आतंकियों के आगे तो कुंद्रा का अपराध काफी कम है. इन लुच्चों पर मुकदमा क्यों नहीं कायम हुआ अभी तक, अभी तक ये लोग बाहर कैसे हैं, सोच कर अजीब लगता है.

कहानी बिहार के सीएम रहे लालू यादव के चारा घोटाला में जेल जाने के बाद अपनी अनपढ़ पत्नी को सीएम बना देने के विषय पर आधारित है. लेकिन इस कहानी के बहाने ऐसे-ऐसे नैरेटिव, ऐसे-ऐसे झूठ गढ़े गए हैं, इस तरह नक्सलियों का महिमामंडन किया गया है, इस तरह जातीय निष्ठा और विष्ठा को इसमें उड़ेल दिया गया है, जिसकी सड़ांध लम्बे समय तक समाज में कायम रहती अगर ओटीटी जनता का माध्यम होता तो. लेकिन आज भले न हो,पर आने वाला समय तो निस्संदेह वेब फिल्मों का ही है. ऐसे में शासन को इस मीडिया पर अतिरिक्त ध्यान देने की ज़रूरत है. सबसे पहले तो सेल्युलाइड फिल्मों की तर्ज़ पर एक अलग से इसका सेंसर बोर्ड होना चाहिए. भारत में वेब पर स्ट्रीम होने वाले सभी कंटेंट के लिए सेंसर बोर्ड बनाने का काम उच्च प्राथमिकता पर किये जाने की ज़रूरत है. अन्यथा यह गाली-गलौज का अड्डा तो बना ही है, हत्यारों-आतंकियों के लिए वैचारिक पैकेज के भीतर हिंसक गंदगी उड़ेलने का माध्यम भी इसे होते देर नहीं लगेगी.

सबसे पहले आलोच्य ‘महारानी’ की बात. सीधे तौर पर यह फिल्म बिहार की ‘पहली महिला और अकेली महिला सीएम’ के बारे में बताया गया है. तब के चारा घोटाला समेत सभी वास्तविक घटनाक्रम का जिक्र होने के बाद इसे केवल किसी घटना से प्रेरित होकर काल्पनिक चित्रण नहीं माना जा सकता. साथ ही क्योंकि सब कुछ लगभग दस्तावेज़ की तरह दिखाया है, ऐसे में ‘रचनात्मक आज़ादी’ जैसे बहाने की गुंजाइश ही नहीं बचती. या तो उसे प्रदेश आदि का नाम सही नहीं बताना था और अगर सही ही दिखाना था तो तथ्यों के प्रति इमानदारी बरतते हुए काम करना था. इस मामले में बुरी तरह बेइमानी और रचनात्मक कमीनगी का परिचय इस फिल्म में दिया गया है. जितनी भी लानत इसके निर्माताओं को भेजा जाय, वह कम है.

अव्वल तो यह सबको पता है कि बिहार का सीएम रहते हुए बेदर्दी से प्रदेश को लूटने और चारा घोटाला करके पशुओं का चाराखा जाने के मामले में लालू यादव को जेल हुई थी. हालात इतने खराब थे कि उसे तब गिरफ्तार करने के लिए सेना तक को बुलाना पड़ गया था. ऐसे हालात में जेल जाते-जाते उसने अपनी पत्नी राबडी देवी को जो अनपढ़ थी, उसे बिहार का सीएम बना दिया. और उस निरक्षर महिला के कंधे पर बंदूख रख कर न केवल लालू यादव बिहार का शासन जेल से चलाता रहा बल्कि प्रदेश के भविष्य को भी इस तरह रौंदता रहा जिसकी भरपाई के लिए अनेक पीढियां कम साबित होंगी. लेकिन फिल्म में इतने बड़े तथ्य को ही निगल कर यह दिखाया गया है कि ‘सवर्णों की सेना’ द्वारा सीएम  को गोली मार दी गयी थी. वह गोली सवर्ण राज्यपाल ने एक बाबा के सहयोग से मरवाई ताकि चारा घोटाला चलता रह सके. लालू इस घोटाले का विरोध करने लगा था, इसलिए उसकी ह्त्या की साज़िश रच ऐन छठ की शाम गोपालगंज के उसके गांव में गोली मारी गयी. फिर ‘माइल्ड लकवाग्रस्त’ लालू ने पत्नी को सीएम बना दिया. उसे सीएम बनाने के लिए जिन रणनीतियों को दिखाया गया है, वह भी बेसिकली लालू के खुद के सीएम बनते समय दलित रामसुंदर दास (शायद यही नाम था उस नेता का जितना स्मरण है मुझे) को रोकने के लिए किया था. जैसे वीपी सिंह ने धोखा देकर पीएम बनने के लिए देवीलाल के साथ किया था. जबकि फिल्म में ‘सवर्ण नीतीश’ कुमार (नवीन कुमार) को रोकने के लिए पत्नी को सीएम बनाने की बात है. खैर.

इसके बाद तो खैर फिल्मों का सड़ांध तो ऐसे निकलता है कि पूछिए मत. ऐसा लगता है मानो बिहार का उद्धार करने नक्सली देवता लोग आये थे जिन्होंने प्रदेश को बचा लिया. फिल्म के अनुसार चारा घोटाला से लालू यादव का कोई लेना-देना नहीं था. हां.. उसने कुछ ‘मासूम सी’ ग़लती की थी जो आज़ादी की इस नयी लड़ाई के लिए निहायत ही ज़रूरी था. फिल्म के अनुसार चारा घोटाले का मास्टरमाइंड वहां का सवर्ण राज्यपाल था जो फिल्म के नितीश कुमार का मौसा लगता था. कि चारा घोटाला किये ही इसलिए गए थे ताकि ‘रणवीर सेना’ को फंड मुहय्या कराते हुए दलितों का कत्ल ए आम कराया जा सके. और यह सभी काम वहां के सवर्ण राज्यपाल की देख-रेख में उसी के इशारे पर किया जा रहा था. राज्यपाल ने लालू यादव से पशुपालन विभाग की तरफ आंखे भी नहीं उठाने का वचन उसके बीबी-बच्चों की शपथ देकर ले लिया था, उसी कारण घोटाला होते रहे. दलितों का संहार होता रहा. पैसा सब सवर्ण राज्यपाल के खा जाने के कारण विकास ठप पड़े हुए थे. वेतन का भी सारा पैसा सवर्ण राज्यपाल जो कि नितीश कुमार का मौसा था, खा जाता था. जिस कारण वर्षों तक वेतन नहीं मिलते थे सरकारी बाबुओं को. और जब इसे रोकने की कोशिश की लालू ने तब उसे सवर्ण राज्यपाल ने सवर्ण महंत की मदद से लगभग मरवा ही दिया था लेकिन अपनी जीजिविषा से फैंटम महोदय बच गए.

उसके बाद घायल मसीहा स्वास्थ्य लाभ करता है. अनपढ़ पत्नी गद्दी सम्हालती है. कुछ दिनों में ही हस्ताक्षर करना सीख कर फिर ऐसी चमत्कारी सीएम बन जाती हैं राबडी जी कि न केवल चारा घोटाला का उद्भेदन कर देती हैं बल्कि इतनी बड़ी त्यागी साबित होती हैं कि मासूम सी अपराध के लिए अपने पति लालू यादव को भी जेल भेज देती हैं, भरे सदन से उठवा कर. सवर्ण पशुपालन मंत्री को भी उससे पहले जेल भिजवा कर फिर सत्ता की लगाम खुद के हाथ में सम्हालती हैं. और यह ‘चंडी’ जैसी बन कर बेऊर जेल में भी धमकी दे आती हैं पति लालू को कि पति बन कर घर आना तो ठीक, ‘सीएम’ के रास्ते में आये तो अच्छा नहीं होगा.

हँसे तो खूब होंगे आप इस फिलिम का संक्षिप्त विवरण पढ़ कर? लेकिन बात महज इतनी सी ही होती तब भी छोड़ देते इसके निर्माता अभागों को. सोचते कि पान-बीडी के मुहताज हो गए इप्टा के अभागों को कोई देखता नहीं है अब, तो यही नौटंकी सही. पर नहीं. बात इतनी भी नहीं थी. सीधे तौर पर ‘सवर्ण’ नितीश कुमार वाले पात्र से पराजित होने की स्थिति में बिहार को सवर्ण आतंकियों के हाथ में छोड़ देने से बेहतर रास्ता लालू ने यह तलाशा कि ‘संघर्ष’ किये जाएं और इस लिए उस मसीहा ने अपने मित्र नक्सल सरगना शंकर महतो से हाथ मिला कर बिहार में जातीय सफाए की शुरुआत की. इस सफाए को आज़ादी की कीमत के रूप में दिखाया गया है. वह इसलिए करना पड़ा क्योंकि स्वर्ग देने का वादा कर चुके बिहार की सात करोड़ आबादी को कम से कम ‘स्वर’ दिया जा सके. यह कीमत स्वर देने की थी, और वह कथित तौर पर वैसी ही थी, जैसा स्वतन्त्रता संग्राम.

नैरेटिव यहां भी नहीं रुक जाता है. ‘फिलिम’ के बीचोबीच यह भी साथ-साथ दिखाते रहा जाता है कि सवर्ण भले किसी भी छोटे पद पर भी हो लेकिन वह पिछड़ी जातियों को गुदानता नहीं है. कोई सवर्ण एसपी भी पिछड़े डीजीपी को सीधे कह सकता है कि आप हमारा …. भी नहीं कबार पाइयेगा. यह भी कि सवर्णों की सेना तो इतनी निष्ठुर थी कि वह नरसंहार करते समय बच्चे-बच्चे तक का बेदर्दी से क़त्ल करता है, नयी ब्याही महिला से रेप करना पाप लेकिन उसके पीठ में गोली मार कर ह्त्या कर देने को पुण्य समझता है लेकिन, लेकिन नक्सली इतने कोमल ह्रदय हैं कि वे बच्चों की ह्त्या से साफ़ इनकार कर देते हैं, कि सरगना शंकर महतो इतना पढ़ा लिखा है कि किरांति के बीचों-बीच भी लाइब्रेरी में ही बसेरा डाले रहता है लेकिन सारे सवर्ण शोषक इतने मूर्ख कि एसपी-मंत्री हो कर भी मां-बहन की गालियां निकालते, रम-रांड-रोहू में मस्त होकर मसीहा के खिलाफ षड्यंत्र रचता रहता है. ह्त्या पर ह्त्या करता रहता है. फिल्म का अंत जैसे ऊपर बताया गया है, मसीहा के जेल पहुंच जाने पर होता है. और ‘तेजस्वी मां’आंखों में आसूं लेकिन दिल में पिछड़ों की भलाई की आग, बिहार की सात करोड़ जनता को ब्राम्हण शोषकों से मुक्त कराने का संकल्प लिए वापस सीएम हाउस लौटती हैं. बिहार को एक लेडी मसीहा अर्थात मसीही सीएम मिलता है…….

सीरिज में अभिनय करने वाले कुछ लोगों को निजी तौर पर भी जानता हूं. और क्योंकि उनकी निष्ठा पता है, तो और बेहतर समझ सकता हूं कि किस भावना से यह निर्माण किया गया होगा. जैसे इसमें रणवीर सेना के मुखिया बरमेसर मुखिया का किरदार निभाने वाले आलोक चटर्जी जी. एनएसडी के गोल्ड मेडलिस्ट चटर्जी हमें दो दशक पहले थियेटर पढ़ाने माखनलाल विश्वविद्यालय भोपाल आते थे. तब जवान थे तो अधिक वामी थे. पूरा का पूरा बीडी का एक पैकेट एक क्लास में ही धूक देते थे और अक्सर पूरे क्लास के दौरान मुझसे ही बहस करते-करते डेढ़-दो पीरियड ख़त्म हो जाता था. वे कट्टर वामी थे और अपन तब विचारधारा का छात्र ही हुआ करते थे लेकिन बहसें दिलचस्प होती थी. तब के अपने सहपाठी बता सकते हैं कि कुछ के लिए बड़ा रोचक होता था वह विमर्श और कुछ होशियार टॉप करने की इच्छा रखने वाले छात्रों को वह समय की बर्बादी लगता था, ऐसे टॉपर आकांक्षी छात्रों पर सरोकारी छात्र हंसते भी थे, गोया यहां का नंबर ही उन्हें आगे रवीश कुमार बनाता. अद्वितीय प्रतिभाशाली लेकिन वामी आलोक जी को लम्बे समय बाद अपने उसी एजेंडे को साधते हुए इस फिल्म में देखना रोचक लगा जिसके खिलाफ छात्र जीवन में अपन क्लास का क्लास उनसे बहस में गुजार देते थे. ऐसे परिचित कुछ और चेहरे इस सीरिज में दिखे, जिनका जिक्र फिर कभी. बहरहाल!

ये जहां भी जायेंगे गंदगी फैलायेंगे, कमीनों का कोई जहां नहीं होता. ऐसे कमीनों-कुटिलों ने ओटीटी प्लेटफॉर्म के रूप में एक नया ‘बस्तर’ तलाश लिया है. वहां से शहरी नक्सली और इप्टाई अब बौद्धिक गुरिल्ला वार इसी तरह अंजाम देंगे. सरकार को सचेत होते हुए अभी से ध्यान देना शुरू कर देना चाहिए. कुंद्रा की नीली फ़िल्में समाज को हल्का-फुल्का भी नुकसान नहीं पहुचा पाएंगी लेकिन ये ‘लाल फ़िल्में’ फ़िल्में फिर से नस्लें तबाह कर देंगी. फिर से लक्ष्मनपुर बाथे, बारा नरसंहार से लेकर बस्तर तक को लहुलुहान करने के लिए उत्प्रेरक का काम करने लगेंगी. फिर से कोई फिल्म बस्तर पर भी बनेगा जिसमें दंतेवाड़ा की डेढ़ वर्ष की बची ज्योति कुट्टयम तक को 65 अन्य के साथ ज़िंदा जला देने को ये क्रान्ति कहते-दिखाते रहेंगे, रानीबोदली से लेकर चिंतलनार तक जैसी कार्यवाहियों के महिमामंडन करते, ऐसे हर संहार को स्वतन्त्रता संग्राम, इसे खाद-पानी देने वाले हर लालू को ये मसीहा ऐसे ही साबित करते रहेंगे, प्रतिरोध में फिर कोई बरमेसर मुखिया, फिर कोई सलवा जुडूम पैदा होते रहेगा. इस कलातंकियों की यहीं गर्दन मरोड़ दीजिये सरकार प्लीज़. कल को फिर से काफी देर हो जायेगी.आज़ादी के पहले साठ वर्ष इन्होंने सांप्रदायिक विभेद पैदा कर सत्ता हासिल की और कायम रखा उसे. अब साम्प्रदायिकता इनके लिए घाटे का सौदा हो गया है क्योंकि उसके विरुद्ध होता सनातन ध्रुवीकरण इन्हें शून्य तक पर ला देता है. तो इन्हें सत्ता फिर से हासिल करने और छग जैसे राज्यों में मिल गयी सत्ता को कायम रखने हेतु ऐसे ही जातीय-वैचारिक आतंक को बढ़ाना होगा जिसमें ये नए माध्यमों के साथ जुट गए हैं. इस संकट पर समय रहते ध्यान देना होगा. ये किस तरह हमारे ही संसाधनों का इस्तेमाल हमारे ही खिलाफ कर जाते हैं, यह हर सीरिज के अंत में मध्यप्रदेश के सीएम, उत्तराखंड के राज्यपाल, जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल को उनके सहयोग के लिए दिये जाने वाले धन्यवाद से भी पता चलता है. हमें पता भी नहीं चलता और वे हमें उपयोग कर ले जाते हैं. नारे फिर वही पुराने दुहराने की ज़रूरत है….. कांगरेडों से लड़ने का ज़ज्बा तो ले आओगे, कमीनापन कहां से लाओगे…..!

समस्या समाधान पाने हेतु अन्तर्मुखी होना पड़ेगा

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अतुल कोठारी

अतुल कोठारी

पूरा विश्व विगत डेढ़ वर्ष से कोरोना के शिकंजे में है । इस दरम्यान अपने देश में बीच-बीच में कम से कम दो बार ऐसा समय आया कि अभी कोरोना की विदाई हो रही है, परंतु पिछले दो-तीन सप्ताह से कोरोना का ऐसा भयानक स्वरूप सामने आया है जो अत्यंत विकराल है । अभी तक यह धारणा बनी थी कि बड़ी उम्र के और उसमें भी जिनको उच्च रक्तचाप, डायबिटीज आदि बिमारियां है उन पर ज्यादा प्रभाव हो रहा है और अधिकतर उन्हीं की मृत्यु हो रही है । परंतु इस चक्र में वह सारी धारणाएं बदल गई है । युवक से लेकर छोटे बच्चे भी चपेट में आ रहे है और उनकी मृत्यु भी हो रही है । इस बार इसके विस्तार की गति भी बहुत तेज है । इन दो तीन सप्ताह में हर दिन कोरोना प्रभावितों की संख्या में बढ़ोत्तरी हजारों से लाखों तक पहुंच गई है । इसके परिणाम स्वरूप देश के अनेक राज्यों में अलग-अलग प्रकार से प्रतिबंध (लॉकडाउन) प्रारंभ हो गए है । इस वर्ष की विद्यालय स्तर की (12वीं को छोड़कर) सारी परीक्षाएं रद्द कर दी गई है । लगातार छात्र दो वर्ष तक बिना परीक्षा उपर की कक्षाओं में बढ़ जाएंगे, इसका कुल मिलाकर उनकी भविष्य की शिक्षा पर क्या प्रभाव होगा? यह भी चिंता एवं चिंतन का विषय है । इसके साथ ही मजदूर, कर्मचारियों का पुनः शहरों से गांवो की ओर स्थानान्तर प्रारंभ हो गया है । इन सारी बातों का दुष्परिणाम देश की आर्थिक स्थिति पर भी होगा ।

यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि इस प्रकार की विकट परिस्थितियों में भी कुछ राजनैतिक पक्षों के नेता अपनी राजनैतिक रोटियां सेकने से बाज नहीं आ रहे । हमारे देश में अच्छी, सकारात्मक बातों की चर्चा होती ही नहीं है या बहुत कम होती है । कोरोना महामारी के कारण विगत डेढ़ वर्ष से सरकारों की आय बहुत कम हुई है, व्यापार-रोजगार आदि आर्थिक गतिविधियों पर बहुत बुरा असर पड़ा है । ऐसी परिस्थिति में देश की 135 करोड़ जनसंख्या को कोरोना के वैक्सीन से लेकर दवाएं, इन्जेकशन आदि चिकित्सा की सारी व्यवस्था सरकार के द्वारा बिना शुल्क उपलब्ध कराना यह कोई छोटी बात है क्या? साथ ही भारत ने दुनिया के कई देशों को भी वैक्सीन, दवाएं, इन्जेकशन आदि उपलब्ध कराए है । इस प्रकार सामाजिक स्तर पर भी अनेक सकारात्मक प्रयास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं उनसे वैचारिक दृष्टि से जुड़ी संस्थाओं, संगठनों एवं अन्य धार्मिक-सामाजिक संस्थाओं द्वारा हो रहे है इसको भी बहुत कम संज्ञान में लिया जा रहा है । ऐसे समय में विभिन्न प्रकार के समाचार माध्यमों का यह दायित्व बनता है कि ऐसे सकारात्मक प्रयासों को अपने माध्यमों में प्राथमिकता से प्रकाशित करें और क्षुद्र राजनीति करने वालों को दरकिनार करें ।

विश्व के समक्ष यह भयानक चुनौती है । इस चुनौती का समाधान भी करना है और इसमें भविष्य के अवसर को भी तलाशना है । इससे भयभीत होने से कोई सकारात्मक परिणाम नहीं हो सकते । इस हेतु आवश्यक सावधानी अवश्य रखनी है वास्तव में चुनौती को अवसर में बदलना इसी में मनुष्य जीवन की सार्थकता है । इस दिशा में व्यक्ति से लेकर वैश्विक समुदाय के स्तर पर व्यापक चिंतन, चर्चा प्रारंभ करने की आवश्यकता है ।

इस दृष्टि से जब विचार करते है तब ध्यान में आता है कि विश्व ने विज्ञान, तकनीकी आदि दृष्टि से काफी प्रगति की है । परंतु मात्र भौतिक विकास यही विकास का मानदंड होना चाहिए? यह विचार का विषय है कि वैश्विक स्तर पर विज्ञान एवं तकनीकी ने जो भी प्रगति की है उसके परिणामस्वरूप विश्व भर में मनुष्य को सुख, शांति एवं आनन्द की अधिक प्राप्ति हुई है क्या? इसी प्रकार दुनिया में हिंसा, अत्याचार, दुराचार, महिलाओं का उत्पीडन, गरीबी आदि में कमी आयी है की बढ़ोत्तरी हुई है?वैश्विक स्तर पर पर्यावरण का संकट, स्वास्थ्य का संकट, विभिन्न देशों के आपसी संघर्ष आदि. में कमी आयी है क्या? इस प्रकार समाज जीवन के सभी पहलुओं पर व्यापक चिंतन करके हम सही या गलत दिशा में आगे बढ़ रहे हैं? इस पर व्यापक चिन्तन करके निष्कर्ष निकालना होगा ।          

वैश्विक स्तर पर कोरोना जैसी अनेक समस्याएं विद्यमान है परंतु उसका स्थाई समाधान नहीं मिल रहा । किसी भी समस्या का समाधान चाहिए तब प्रथम उसके कारण ढ़ूंढ़ने चाहिए तब समाधान की दिशा सुनिश्चित हो सकती है । दूसरी बात है की जहां समस्या होती है वहीं उसका समाधान होता है यह प्राकृतिक नियम है । तीसरी बात है कि मनुष्य बहिर्मुखी हो गया इसलिए हम समाधान बाहर ढ़ूंढ़ते है परंतु समाधान बाहर नहीं अन्दर होता है, इस हेतु अन्तर्मुखी होना पड़ेगा । यही आध्यात्मिक दृष्टि है । आवश्यकता है दृष्टि बदलने की, दृष्टि बदलेगी तो सृष्टि भी बदलेगी । इस प्रकार आध्यात्मिक दृष्टि से प्रयास करने से कोरोना जैसी किसी भी समस्या का समाधान भी हो सकता है और नए अवसर भी उपलब्ध हो सकते हैं । इन सारी परिस्थिति का नेतृत्व भारत को करना होगा क्यूंकि यह हमारे अनुभव का विषय है । विश्व में एक ही देश को आध्यात्मिक राष्ट्र कहा गया है और वह हमारा भारत राष्ट्र है ।

(लेखक शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव हैं।)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व सेवा भारती ने कोरोना के दूसरे काल में सहायता के लिए तैयार की कार्य योजना

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वर्तमान में हम सब वैश्विक महामारी से जूझ रहे हैं। आज पूरा विश्व कोविड-19 के दुष्प्रभाव से ग्रस्त है। इस कारण पूरे विश्व की गति थम सी गई है। समाज के हर वर्ग पर इसकी मार पड़ी है। ऐसी विषम और त्रासदीपूर्ण परिस्थितियों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व सेवा भारती ने समाज की सज्जन शक्ति को साथ में लेकर दिल्ली में कोरोना से सम्बंधित समस्याओं के समाधान के लिए नीचे दिए बिन्दुओं के अनुसार व्यापक प्रयास शुरू कर दिए हैं –

1.       दिल्ली में स्थानीय स्तर पर पुलिस व प्रशासन के साथ समन्वय करके कार्यकर्ताओं ने कोरोना काल में जरूरतमंदों को आयुर्वेदिक काढ़ा/होम्योपैथिक दवाई, ऑक्सिजन सिलेंडर, आइसोलेशन सेंटर आदि की व्यवस्था के लिए योजना बनाई है। एक हेल्पलाइन नंबर सेवा भारती द्वारा शीघ्र जारी किया जाएगा जिस पर कॉल करने पर जरूरतमंदों को कोरोना काल से सम्बंधित सभी जरूरी आवश्यकताएं पूरी की जाएँगी।

2.       कोरोना से बचाव के लिए  सामाजिक, धार्मिक व व्यापारिक संस्थाओं के सहयोग से मास्क, सोशल डिस्टेंस व स्वच्छता के लिए जनजागरण अभियान भी आरम्भ किये जाएंगे जिसमें स्थानीय स्तर पर मास्क बनाकर वितरित किये जाएंगे। क्षेत्र में वैक्सीनेशन के लिए जागरूकता अभियान एवं इसके पंजीकरण में लोगों की सहायता की जाएगी सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म पर भी इसके लिए जनजागरण अभियान शुरू किया जाएगा।

3.  डॉक्टर्स के द्वारा स्थानीय स्तर पर ऑनलाइन संवाद के कार्यक्रम किये जाएंगे, साथ ही FAQ के लिए कुछ डॉक्टर्स के वीडियो बनाकर शेयर करने की योजना है।

4.इस कोविड काल में सबसे ज्यादा समस्या अकेले रह रहे वरिष्ठ नागरिकों को हो रही है, इसके लिए अपने-अपने क्षेत्र में सेवा भारती कार्यकर्ताओं वरिष्ठ नागरिकों की सूची तैयार करेंगे, जिसमें से प्रत्येक कार्यकर्ता अकेले रह रहे एक-एक वरिष्ठ नागरिक को अपनाकर उनकी हर तरह की सहायता करेगा।

5.कोरोना संक्रमित रोगी की सहायता के लिए प्लाज्मा दान सहित अन्य हर संभव प्रयास कार्यकर्ता अपने-अपने क्षेत्र में करेंगे। इसके अतिरिक घर से दूर रहकर काम करने वाले, पी.जी. छात्रावासों में रहने वाले विद्यार्थी एवं जिन परिवारों में सब लोग यदि कोरोना पीड़ित हैं उनके लिए हेल्पलाइन नंबर के माध्यम से कॉल आने पर निशुल्क भोजन पहुँचाने की व्यवस्था पर भी कार्य योजना तैयार की गई है।

6.शमशान घाटों में दाह संस्कार के लिए बड़ी संख्या में आ रहे शवों के कारण हो रही व्यवस्था में किसी भी प्रकार की कमी को ठीक करने के लिए वहां की प्रबंध समिति को कार्यकर्ता सहायता करेंगे ।

7.क्षेत्र में पलायन कर रहे दिहाड़ी मजदूरों, श्रमिक परिवारों को हर संभव सहायता देने की व्यवस्था की जाएगी।

8.राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दिल्ली प्रान्त के अंतर्गत प्रत्येक नगर इकाई में कोरोना से संक्रमित व्यक्तियों की सूची तैयार की जाएगी ताकि उनके स्वस्थ होने पर उनसे प्लाज़्मा आदि की स्थानीय स्तर पर व्यवस्था हो सके।

9.  UTKARSH BHARAT एप के द्वारा ‘रक्त-सेवा’ Digital Helpline प्रारम्भ हो गयी है। इस Helpline के माध्यम से प्रत्येक बस्ती में जो Blood/Plasma/Platelets – Donate कर सकते हैं उनका पंजीकरण करवाया जा रहा है । इसके पश्चात जिन्हें भी Blood/Plasma/Platelets की आवश्यकता होगी उन्हें सहायता उपलब्ध कराई जा सकेगी।

पत्रकार पर जानलेवा हमला

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एक पत्रकार पर जानलेवा हमला करने का मामला हरियाणा के रेवाड़ी जिले में सामने आया है। मीडिया खबर के अनुसार, रेवाड़ी जिला के डहीना बस स्टैंड पर सोमवार की सुबह पत्रकार संजय कुमार पर मोटरसाइकिल सवाल चार बदमाशों ने कुल्हाड़ी से जानलेवा हमला कर उसे लहूलुहान कर दिया। संजय कुमार ने बस स्टैंड स्थित पुलिस चौकी में जाकर अपनी जान बचाई।

सोमवार की सुबह करीब सवा चार बजे घटना उस समय हुई, जब संजय कुमार बस स्टैंड स्थित एजेंसी जा रहे थे। पुलिस चौकी के जवानों ने लहूलुहान हालत में संजय कुमार को को प्राथमिक उपचार के लिए निजी अस्पताल में भर्ती कराया।

संजय कुमार को गंभीर हालत को देखते हुए रेवाड़ी के ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया गया है। संजय कुमार की शिकायत पर पुलिस ने चार अज्ञात बदमाशों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।

कोरोना से वरिष्ठ पत्रकार बृजेन्द्र पटेल का निधन

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दिनोंदिन कोरोनावायरस का कहर बढ़ता जा रहा है। तमाम लोग इसकी चपेट में आकर अपनी जान गंवा चुके हैं और कई लोगों का विभिन्न अस्पतालों में इलाज चल रहा है। कोरोना के संक्रमण के कारण जान गंवाने वालों में कई पत्रकार भी शामिल हैं। ऐसी ही एक दुखद खबर आगरा से आई है। खबर है कि हिन्दुस्तान के आगरा एडिशन में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार बृजेन्द्र पटेल का कोरोना से निधन हो गया है।

बृजेन्द्र पटेल ने कुछ दिनों पूर्व तबीयत खराब होने पर कोविड-19 की जांच कराई थी, जिसमें रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी, इसके बाद उन्हें आगरा के निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। हालत में थोड़ा सुधार होने पर एक-दो दिन पूर्व उन्हें एसएन अस्पताल, आगरा में भर्ती कराया गया था, जहां शुक्रवार की सुबह उन्होंने दम तोड़ दिया।

कानपुर के मूल निवासी बृजेन्द्र पटेल लगभग 25 वर्षों से मीडिया में सक्रिय रह अब तक दैनिक आज, अमर उजाला और सहारा समेत तमाम मीडिया संस्थानों में अपनी जिम्मेदारी निभा चुके थे। करीब दो साल से वह हिंदुस्तान, आगरा में अपनी भूमिका निभा रहे थे।  

डॉ. अनिल दीक्षित, विनोद भारद्वाज, पीपी सिंह, अवधेश माहेश्वरी, ताज प्रेस क्लब के महासचिव उपेंद्र शर्मा और राज कुमार दंडौतिया सहित तमाम पत्रकारों ने बृजेन्द्र पटेल के निधन पर दिवंगत आत्मा को सद्गति और शोकाकुल परिवार को यह दुख सहन करने की शक्ति देने की ईश्वर से प्रार्थना की है।

महाराष्ट्र के CM से मीडिया-मनोरंजन उद्योग ने किया ये अनुरोध

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कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर ने पूरे देश को अपनी चपेट में ले लिया है। हर दिन देशभर में वायरस के रिकॉर्ड मामले दर्ज किए जा रहे हैं। इस बीच बीते कई दिनों से कोरोना का गढ़ बन चुके महाराष्ट्र में 15 दिनों का  लॉकडाउन लगाया गया है। इस लॉकडाउन के कारण कई फिल्मों की शूटिंग रुक गई है, जिसके चलते इन फिल्मों में दिहाड़ी पर काम करने वाले लोगों की रोजी रोटी पर संकट आ गया है। लिहाजा इसे देखते हुए मीडिया और मनोरंजन उद्योग की समन्वय समिति, जिसमें IMPPA, IFTDA, FWICE और CINTAA जैसे फिल्म निकाय शामिल हैं, सभी ने मिलकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि 15 दिनों के कर्फ्यू के दौरान उन्हें सीमित स्तर पर काम करने की अनुमति दी जाए।

15 दिनों के लिए बंद होने को लेकर समिति ने पत्र में आग्रह किया है कि बंद वातावरण में पोस्ट-प्रॉडक्शन के काम को करने की अनुमति दी जानी चाहिए ताकि प्रसारण के लिए कंटेंट को एडिट किया जा सके।

साथ ही उन्होंने अनुरोध किया है कि प्रड्यूसर्स को होने वाले नुकसान से बचने के लिए इस निर्माण कार्य की अनुमति दी जानी चाहिए। निर्माण श्रमिकों की तरह, सेट बिल्डिंग से जुड़े लोग भी सभी सावधानियों के साथ सेट पर रहकर काम कर सकते हैं। दैनिक वेतन भोगियों के लिए घोषित वित्तीय पैकेज को मीडिया और मनोरंजन उद्योग के श्रमिकों, तकनीकी विभाग के लोगों और अभिनेताओं के लिए भी छूट बढ़ाई जाने सहित पत्र में कई तरह के अनुरोध किए गए हैं।

निकाय ने आग्रह किया कि यदि संभव हो तो फिल्म सिटी और मीरा-भायंदर क्षेत्र में टीकाकरण केंद्र और फिल्म व टीवी कर्मचारियों के लिए खानपान की स्थापना की जाए।

PM को पत्र लिखकर अरविंद केजरीवाल ने पत्रकारों के लिए उठाई ये मांग

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कोरोनावायरस का प्रकोप देश में बढ़ता जा रहा है। तमाम लोग इस महामारी की चपेट में आकर अपनी जान गंवा चुके हैं, वहीं तमाम लोगों का विभिन्न अस्पतालों में इलाज चल रहा है। कोरोना को खत्म करने के लिए वैक्सीन लेना सबसे ज्यादा जरूरी बताया जा रहा है। कोरोना के बढ़ते मरीजों की संख्या के बीच सरकार वैक्सीनेशन में जुटी हुई है और लोगों से वैक्सीनेशन करवाने की अपील कर रही है।

 तमाम पत्रकार मुस्तैदी से कोरोना के बढ़ते संक्रमण के खतरों के बीच अपने काम में जुटे हुए हैं। कोरोना के खिलाफ जंग में अपनी भूमिका निभाते हुए राष्ट्रीय राजधानी में पिछले एक साल में कई पत्रकार कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। ऐसे में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार से मांग की है कि पत्रकारों को फ्रंटलाइन वर्कर मानकर उन्हें भी जल्द से जल्द वैक्सीन लगानी चाहिए।

केजरीवाल का बुधवार को किए गए एक ट्वीट में कहना है, ‘पत्रकार बेहद विपरीत परिस्थितियों में रिपोर्टिंग कर रहे हैं। उन्हें फ्रंटलाइन वर्कर्स मानकर प्राथमिकता के आधार पर उनकी वैक्सीनेशन होनी चाहिए।’ मीडिया खबर के अनुसार, अरविंद केजरीवाल ने इस बारे में प्रधानमंत्री को एक चिट्ठी भी लिखी है।

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के पदाधिकारी चुने गए ये पत्रकार

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पत्रकारों की सबसे बड़ी संस्था ‘प्रेस क्लब ऑफ इंडिया’ के पदाधिकारियों के चयन के लिए 10 अप्रैल को हुए चुनाव के परिणाम घोषित हो गए हैं। इन परिणामों के मुताबिक वरिष्ठ पत्रकार उमाकांत लखेड़ा प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के प्रेजिडेंट पद पर चुने गए हैं। उन्हें 729 वोट मिले, जबकि इस पद पर उनके प्रतिद्वंद्वी संजय बसक को 632 वोट मिले।

शाहिद के. अब्बास वाइस प्रेजिडेंट पद पर चुने गए हैं। उन्हें 668 वोट मिले, जबकि इस पद के लिए उनकी प्रतिद्वंद्वी पल्लवी घोष को 655 वोट मिले। सेक्रेटरी जनरल के पद पर विनय कुमार ने 635 वोटों के साथ जीत दर्ज की है, जबकि राहिल चोपड़ा को 132 और संतोष कुमार ठाकुर को 576 वोट मिले।

बात जॉइंट सेक्रेट्री की करें तो इस पद पर चंद्र शेखर लूथरा ने जीत हासिल की है। उन्हें 578 वोट मिले, जबकि इस पद के लिए उनके प्रतिद्वंद्वी अंजलि भाटिया को 226 और मानस प्रतिम गोहेन को 470 वोट मिले। कोषाध्यक्ष पद पर 649 वोटों के साथ सुधि रंजन सेन को चुना गया है, जबकि इस पद के लिए उनकी प्रतिद्वंद्वी ज्योतिका ग्रोवर को 629 वोट मिले।

सीमा सिद्दीकी को माइक्रोसॉफ्ट में मिली बड़ी जिम्मेदारी

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सीमा सिद्दीकी को अमेरिका की दिग्गज टेक्नोलॉजी कंपनी ‘माइक्रोसॉफ्ट’ ने ‘माइक्रोसॉफ्ट इंडिया’  का डायरेक्टर (कम्युनिकेशंस) नियुक्त किया है।

सिद्दीकी माइक्रोसॉफ्ट में आने से पहले ‘शिनाईजेर इलेक्ट्रिक’ में जीएम और हेड (PR, Corporate & Internal Communication) की जिम्मेदारी निभा रही थीं। यहां वह करीब साढ़े चार साल से कार्यरत थीं।  

पब्लिक रिलेशंस, कॉरपोरेट कम्युनिकेशन, इंटरनल कम्युनिकेशन, स्ट्रैटेजी मैनेजमेंट और ब्रैंड रेपुटेशन मैनेजमेंट में सीमा को विशेषज्ञता हासिल है। सीमा ने अपने प्रोफेशनल करियर की शुरुआत पीआर एजेंसी Text 100 अब (Archetype) से की थी। अब तक वह PwC India, Dessault Systemes और Scheider Electric समेत तमाम प्रतिष्ठानों में प्रमुख जिम्मेदारी निभा चुकी हैं। फिलहाल नई नियुक्ति के बारे में सीमा सिद्दीकी की ओर से किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई है।

अदालत ने जारी किया गंभीर आरोपों में घिरे न्यूज एंकर के खिलाफ गैरजमानती वारंट

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दिल्ली की एक अदालत ने युवती के साथ दुष्कर्म के मामले में आरोपित मुंबई के न्यूज एंकर वरुण हिरेमथ की गिरफ्तारी के लिए गैरजमानती वारंट जारी किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पुलिस ने वरुण की गिरफ्तारी के लिए इनाम की घोषणा करने का भी फैसला किया है और इस संबंध में मंजूरी के लिए एक फाइल दिल्ली पुलिस मुख्यालय भेजी गई है।

पूर्व में वरुण की अग्रिम जमानत की अर्जी को दिल्ली की अदालत खारिज कर चुकी है और पुलिस उसके खिलाफ लुकआउट सर्कुलर जारी कर चुकी है। मालूम हो कि दिल्ली के चाणक्यपुरी थाने में दर्ज एफआईआर में एक युवती ने आरोप लगाया था कि अंग्रेजी न्यूज चैनल में कार्यरत वरुण हिरेमथ उसे दोस्ती के नाम पर दिल्ली के एक होटल में ले गया था और उसके साथ रेप किया।

करीब 22 वर्षीय इस युवती का अपनी शिकायत में कहना है कि वह पुणे में कॉलेज के दिनों से वरुण को करीब तीन सालों से जानती है। मामले के सामने आने के बाद से ही वरुण फरार हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पुलिस का कहना है कि वरुण की तलाश के लिए टीमें मुंबई भेज दी गई हैं और विभिन्न स्थानों पर कई छापे मारे गए हैं।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर चल रहे न्यूज चैनल्स को अब यूं होगा फायदा

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न्यूज वेब चैनल्स को सूची में सम्मिलित करने के लिए पंजाब सरकार ‘द पंजाब न्यूज वेब चैनल पॉलिसी 2021’ लेकर आयी है।

मीडिया खबर के मुताबिक, पंजाब सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि यह समय की मांग है कि पंजाब सरकार की नीतियों के प्रचार के लिए आज के युग के इन मंचों का सही तरीके से प्रयोग किया जाए।

यह भी प्रवक्ता ने कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स फेसबुक और यूट्यूब पर चल रहे न्यूज चैनल्स को इस नीति के अंतर्गत कवर किया जाएगा।

इन शर्तो पर मिलेंगे सरकारी विज्ञापन

नीति की अन्य शर्तों और नियमों के अलावा पंजाब आधारित न्यूज चैनल जिनमें मुख्य तौर पर 70 प्रतिशत खबरें पंजाब से संबंधित होती हैं, को सूची में सम्मिलित करने पर विचार किया जाएगा। इस नीति के अंतर्गत सूचना एवं लोक संपर्क विभाग द्वारा सूचीबद्ध किए जाने वाले चैनल सिर्फ राजनैतिक इंटरव्यू या खबरों, डेली न्यूज बुलेटिन, बहस या चर्चा विशेषकर संपादकीय इंटरव्यू और पंजाब संबंधी खबरों के दौरान ही सरकारी विज्ञापन प्रदर्शित करेंगे।

मालूम हो कि पंजाब सरकार के पास अखबार, सैटेलाइट टीवी चैनल्स, रेडियो चैनल्स और वेबसाइट्स के लिए एक विज्ञापन नीति पहले से ही मौजूद है। यह नई नीति मौजूदा प्रचलन और फेसबुक और यूट्यूब चैनल्स की व्यापक उपलब्धता के मद्देनजर लाई गई है। इससे राज्य सरकार को और ज्यादा लोगों तक कल्याण योजनाओं संबंधी जागरूकता फैलाने में और मदद मिलेगी।

खबर के मुताबिक, नीति संबंधी विस्तृत नियम और शर्तें सूचना एवं लोक संपर्क विभाग, पंजाब से प्राप्त की जा सकतीं है या विभाग की वेबसाइट से भी डाउनलोड की जा सकतीं है।

उल्लेखनीय है कि वर्तमान में पंजाब में यू-ट्यूब और वेब चैनल्स की भरमार है, जो इस वक्त पंजाब की रोजाना खबरों को कवर कर रहे हैं। आगामी विधानसभा चुनाव के दौरान पंजाब सरकार इन वेब चैनल्स के माध्यम से अपनी उपलब्धियों का प्रचार प्रसार कर सकती है।

संविधान को ढाल बनाती नक्सली अपील

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राजीव रंजन प्रसाद

नक्सल हमले के बाद बस्तर में गृहमंत्री का आवश्यक दौरा हुआ। कार्रवाई के जो निर्देश और घोषणायें हुईं उसके बाद एक नक्सल पर्चा बाहर आया है जिसमें नृशंस हत्याओं के घिसे पिटे जस्टीफिकेशन के अतिरिक्त एक वाक्य गौर करने योग्य है। नक्सल पर्चे में लिखा है – “अमित शाह देश का गृहमंत्री होने के बावजूद बीजापुर की तेर्रेम घटना पर बदला लेने की असंवैधानिक बात कहता है।  इसका हम खण्डन करते हैं। यह उनकी बौखलाहट है और यह उनकी फासीवादी प्रवृत्ति को ही जाहिर कर रहे हैं”। बाकी पर्चे में क्या है उसे परे कीजिये इन पंक्तियों में बहुत कुछ ऐसा है जिसपर बात आवश्यक है। नक्सलियों ने तीन शब्द प्रयोग में लाये हैं पहला देश, दूसरा संविधान और तीसरा फासीवाद। क्रूर और नृशंस हत्यारे    “फासीवाद” शब्द को एसे उछालते हैं मानो वे अहिंसा की प्रतिमूर्ति हैं। बस्तर अंचल में जवानों की हत्या का जो सिलसिला है वह तो जारी है लेकिन रोज रोज मुखबिरी के नाम पर की जाने वाली ग्रामीण आदिवासियों की हत्या को फासीवाद नहीं कहते तो क्या इसे माक्सवाद-लेनिनवाद जैसे अलंकार मिले हुए है? खैर वामपंथी शब्दावली पर चर्चा मेरा उद्देश्य नहीं वे सिगरेट के छल्लों की तरह गोल गोल शब्द गढते हैं जिनके अर्थ हवा में मिल कर बदबू-बीमारी ही फैलाते हैं सार्थकता तो उनमें क्या खाक होगी। 

अब नक्सल पर्चे के दूसरे शब्द देश पर आते हैं। किसका है यह देश? नृशंश लाल-हत्यारों और उनके शहरी समर्थकों का? यह देश पारिभाषित होता है अपने संविधान से और उसी अनुसार चलेगा….अरे हाँ मैं तो भूल ही गया कि लाल-आतंकवादियों ने गृहमंत्री को संविधान के अनुसार चलने के लिये कहा है। उस संविधान के अनुसार जिसे लालकिले पर लाल निशाल लगाने का चेखचिल्ली सपना देखने वाले हत्यारे मानते ही नहीं? संविधान में देश के विरुद्ध युद्ध करने वालों के लिये कुछ व्यवस्थायें हैं, संविधान में उन नागरिकों को भी सांस लेने का अधिकार है जो हसिया हथैडा वाली मध्यकालीन सोच से तंग आ चुके हैं, संविधान के पास अपनी न्यायव्यवस्था और अदालते हैं वे राक्षसी जन-अदालत तंत्र से संचालित नहीं हैं और संविधान हथियार ले कर हत्या करने वालों को क्रांतिकारी किस पृष्ठ संख्या में मानता है? राज्य और केंद्र सरकार को एक पृष्ठ पर आ कर इन वैचारिक रक्तबीजों का मुकाबला करना ही होगा यही देश के संविधान से आम आदमी की अपेक्षा है। नक्सल और उनके शहरी तंत्र की शब्दावलियों की बारीक जांच कीजिये, इस बार “संविधान” शब्द का प्रयोग इसे न मानने वाले नक्सलियों ने अपनी ढाल बनाने के लिये किया है। 

न्यूजरूम में काम करने की प्रक्रिया पर मीडिया दिग्गज की राय

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तीन अप्रैल को दिल्ली के द इंपीरियल होटल में देश में टेलिविजन न्‍यूज इंडस्ट्री को आगे बढ़ाने में अपना बहुमूल्य योगदान देने वालों को सम्मानित करने के लिए ‘एक्सचेंज4मीडिया’ समूह की ओर से ‘एक्‍सचेंज4मीडिया न्‍यूज ब्रॉडकास्टिंग अवॉर्ड्स’ (enba)  2020 दिए गए। इनबा का यह 13वां एडिशन था। इस मौके पर ‘न्यूजनेक्स्ट कॉन्फ्रेंस 2021’ के तहत वर्चुअल रूप से कई पैनल डिस्कशन भी हुए। ऐसे ही एक पैनल का विषय ‘How much should algorithms control the newsrooms?’ रखा गया था।

लेखक, पत्रकार और रक्षा विशेषज्ञ अभिजीत अय्यर मित्रा, नेटवर्क18 के मैनेजिंग एडिटर (साउथ) विवेक नारायण, नेटवर्क18 के डिप्टी ग्रुप हेड (डिजिटल वीडियो) शुभजीत सेनगुप्ता और इंडिया टुडे के सीनियर एडिटर विवेक त्यागी इस पैनल डिस्कशन में शामिल हुए। इस सेशन को न्यूजएक्स के एसोसिएट एडिटर (स्पेशल प्रोजेक्ट्स) और भारत सरकार के कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के तहत आने वाले थिंक-टैंक ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स’ (IICA) के लिए गठित मॉनिटरिंग कमेटी के सदस्य तरुण नांगिया ने मॉडरेट किया।

तरुण नांगिया का कहना था, ‘यह टॉपिक काफी रोचक है और मेरे दिल के काफी करीब है कि क्या न्यूज चैनल्स के लिए लाइक्स और स्टोरी की लोकप्रियता ही उसके चुनाव का आधार होना चाहिए और उन्हें उसी के साथ आगे बढ़ना चाहिए। यह विशेष रूप से ज्यादा प्रासंगिक है, क्योंकि मैंने पिछले तीन-चार सालों में देखा है कि कंटेंट की लोकप्रियता से तय होता है कि उसे चैनल्स द्वारा लिया जाए। जब हमारे जैसे पॉलिसी जर्नलिस्ट कहते हैं कि यह क्या है और यह क्यों है तो हमें दिखाया जाता है कि बॉटम लाइन किसी भी अन्य लाइन से ज्यादा महत्वपूर्ण है और मुझे लगता है कि कुछ बिंदुओं पर हम सभी को इससे सहमत होना चाहिए, जब आर्थिक माहौल अनुकूल न हो। तमाम निर्णयों पर अर्थशास्त्र भारी पड़ता है। चूंकि हम सभी कंटेंट की तरफ से हैं, हम इस बारे में स्पष्ट हो सकते हैं।’

नारायण का कहना था कि सोशल मीडिया पर ट्रेंड होने वाली चीजों के बारे में बोलने में कुछ भी गलत नहीं है। उनका कहना था, ‘हम न्यूज के बिजनेस में हैं और यदि सोशल मीडिया से न्यूज मिल रही है तो इसमें गलत क्या है। आप बाद में यह पता कर सकते हैं कि यह गलत है या सही, लेकिन सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहे किसी विषय को उठाने में कुछ भी गलत नहीं है।’

अभिजीत अय्यर मित्रा का एल्गोरिदम, यूट्यूब न्यूज और ओपिनियन किस तरह लोकप्रिय हो गए हैं, इस पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए कहना था कि मेरे लिए यह बहुत स्पष्ट है। मीडिया हाउस खुद को कैसे देखता है? क्या यह एक वैचारिक धर्मयुद्ध है या यह एक व्यवसाय है? और यहां दूसरा मुद्दा यह है कि क्या मीडिया हाउस खुद को किसी भी तरह से सामूहिक ज्ञान से श्रेष्ठ मानते हैं, क्योंकि आप जिसे न्यूज के रूप में देखते हैं, वह उस रूप में न हो, जिसे लोग न्यूज की तरह देखना चाहते हैं। यह बहस काफी पुरानी है कि न्यूज क्या होनी चाहिए और क्या नहीं होनी चाहिए। आजकल लोगों के पास तमाम विकल्प हैं। यदि लोगों को वह न्यूज पसंद नहीं है जो आप उन्हें दे रहे हैं तो वे आगे बढ़ जाएंगे और उन स्टोरीज को सुनेंगे, जिन्हें वे सुनना चाहते हैं।

न्यूजरूम को कितने एल्गोरिदम को कंट्रोल करना चाहिए, इस बारे में शुभजीत सेनगुप्ता ने कहा, ‘डिजिटल न्यूजरूम मैनेजर के रूप में यदि मैं ये कहूं कि एल्गोरिदम हमारे काम करने के तरीकों को नियंत्रित नहीं करता है, तो यह गलत होगा। अब सवाल यह है कि लंबे समय तक ऐसा चलेगा या नहीं। सवाल यह है कि आप कितना एल्गोरिदम तय करना चाहते हैं। एल्गोरिदम के अपने फायदे और नुकसान हैं। आखिरकार दिन के अंत में न्यूजरूम को ज्यादा रीडरशिप चाहिए।’

वहीं, विवेक त्यागी के अनुसार सबकुछ भरोसे और विश्वसनीयता पर निर्भर करता है, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कितना एल्गोरिदम या आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल हो रहा है। उनका कहना है, ‘यह एक अच्छा टूल है, इससे समय की बचत होती है, लेकिन आखिर में एक मानवीय स्टोरी में विश्वसनीयता भी जुड़ी होती है। मेरा मानना है कि जहां तक ​​न्यूज की बात है, उसमें मानवीय पहलू और प्रौद्योगिकी अथवा एल्गोरिथ्म का समामेलन होना चाहिए।

जाने माने फिल्म पत्रकार मोहन अय्यर की जिंदगी कोरोना ने निगल ली

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सोमवार शाम जाने-माने फिल्म पत्रकार और पीआरओ मोहन अय्यर का निधन हो गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मोहन अय्यर कुछ दिनों पूर्व कोरोनावायरस (कोविड-19) की चपेट में आ गए थे। इसके बाद उन्हें न्यूमोनिया हो गया और डायबिटीज भी थी।

मुंबई के भयंदर स्थित एक हॉस्पिटल में इलाज के लिए मोहन अय्यर को भर्ती कराया गया था, जहां 29 मार्च को उन्होंने अंतिम सांस ली। 30 मार्च की सुबह उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। वह करीब 60 साल के थे। मोहन अय्यर के परिवार में पत्नी और एक बेटा है।

शुभचिंतकों ने मोहन अय्यर के निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए दिवंगत आत्मा को सद्गति और शोकाकुल परिवार को साहस देने की ईश्वर से प्रार्थना की है।

BBC के दिग्गज रिपोर्टर ने छोड़ दिया चीन

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ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (बीबीसी) के एक दिग्गज रिपोर्टर को चीन में सुरक्षा संबंधी चिंताओं के बीच यहां से पलायन करना पड़ा है। ऐसा इसलिए क्योंकि उनकी रिपोर्टिंग से चीन की सरकार नाराज है। इस बात की जानकारी बीबीसी ने बुधवार को दी।

बीबीसी ने बताया कि जॉन सुडवर्थ को ताइवान भेजा गया है और वह ब्रिटिश सार्वजनिक सेवा प्रसारक के चीन के रिपोर्टर बने रहेंगे।

विदेशी रिपोर्टर्स के ‘क्लब ऑफ चीन’ ने बताया कि सुडवर्थ अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा संबंधी चिताओं के बीच पिछले सप्ताह यहां से चले गए। संगठन ने बताया कि सुडवर्थ की पत्नी योवेने मुरे भी उनके साथ चली गईं। मुरे आयरलैंड के प्रसारक आरटीई में रिपोर्टर हैं। बीबीसी ने ट्विटर पर एक बयान में कहा कि जॉन के काम ने उन सच्चाइयों को उजागर किया, जिसे चीनी अधिकारी दुनिया से छुपाकर रखना चाहते थे।

चीन में सुडवर्थ पिछले नौ वर्षों से रिपोर्टिंग कर रहे थे। शिनजियांग प्रांत में मुसलमानों के शिविरों को लेकर रिपोर्टिंग के लिए उन्हें जॉर्ज पॉल्क अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। चीन का कहना है कि ये शिविर व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र है। चीन यहां किसी भी तरह के उत्पीड़न से इनकार करता रहा है।

चीन ने बीबीसी और अन्य विदेशी मीडिया संगठनों द्वारा शिनजियांग में मानवाधिकार उत्पीड़न की खबरों का खंडन करते हुए कई प्रेस कॉन्फेंस किए। चीन की सरकारी मीडिया और अधिकारियों ने बीबीसी पर झूठी जानकारी का आरोप लगाया। पिछले साल से चीन में काम कर रहे विदेशी पत्रकारों पर दबाव बढ़ गया है।

 ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’, ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ और ‘द वॉशिंगटन पोस्ट’ के 18 पत्रकारों को 2020 में चीन से निकाल दिया। चीन की यह प्रतिक्रिया अमेरिका द्वारा चीन की सरकारी मीडियाकर्मियों की संख्या वहां कम करने के लिए मजबूर किए जाने के बाद आई थी।

UNI से जुड़ा मामला पहुंचा प्रेस काउंसिल

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‘प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया’ में ‘यूएनआई’ पोर्टल पर इस महीने की शुरुआत में पब्लिश एक न्यूज के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है।

यूएनआई के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के चेयरमैन विश्वास त्रिपाठी द्वारा यह शिकायत दर्ज कराई गई है। अपनी शिकायत में त्रिपाठी का कहना है कि प्रवेश कुमार मिश्रा, बिनोद कुमार मंडल, सागर मुखोपाध्याय और सुमीत माहेश्वरी ने 13 मार्च को यूएनआई के पोर्टल पर उनके बारे में भ्रामक, मनगढ़ंत और झूठी न्यूज पब्लिश की।

बतौर शिकायत, इस खबर में कहा गया था कि विश्वास त्रिपाठी को यूएनआई के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के चेयरमैन पद से हटा दिया गया है। इसके साथ ही यह कहा गया था कि बिनोद कुमार मंडल को यूएनआई में एडिशनल डायरेक्टर के पद पर नियुक्त किया गया है।

असम के आठ अखबारों को चुनाव आयोग ने भेजा नोटिस

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कांग्रेस ने असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रंजीत कुमार दास तथा आठ अखबारों के खिलाफ कथित रूप से खबर के रूप में विज्ञापन छपवाने के लिए पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है।

चुनाव आयोग ने इस आठों अखबारों को कांग्रेस की शिकायत के बाद नोटिस जारी किया है। बताया जाता है कि इन अखबारों ने अधिकारियों के समक्ष अपनी रिपोर्ट जमा कर दी हैं, जिन्हें अब चुनाव आयोग को भेजा गया है।

मीडिया खबर के अनुसार, अपनी शिकायत में कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि न्यूज के रूप में छपे इस विज्ञापन के जरिये भाजपा ने ऊपरी असम की उन सभी सीटों पर अपनी जीत का दावा किया है, जहां 27 मार्च को पहले चरण में मतदान हुआ था।

असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी (एपीसीसी) के विधि विभाग के अध्यक्ष निरन बोरा का कहना है कि आदर्श आचार संहिता, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126ए के प्रावधानों और 26 मार्च को जारी चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के कथित उल्लंघन के लिए रविवार की रात शिकायत दर्ज कराई गई।

बोरा का कहना है कि मुख्यमंत्री, भाजपा अध्यक्ष, प्रदेश इकाई के प्रमुख तथा पार्टी के अन्य सदस्यों ने दूसरे और तीसरे चरण में मतदाताओं के प्रभावित करने की पूर्व नियोजति साजिश के तहत जानबूझकर विभिन्न अखबारों के पहले पन्नों पर न्यूज के रूप में विज्ञापन दिया है। इसमें दावा किया गया है कि भाजपा ऊपरी असम की सभी सीटों पर जीत हासिल करेगी।

विज्ञापन प्रकाशन के खिलाफ रविवार को प्रदेश कांग्रेस ने असम के मुख्य निर्वाचन अधिकारी नितिन खाड़े जबकि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) ने चुनाव आयोग के समक्ष शिकायत दर्ज कराते हुए बीजेपी और अखबारों के खिलाफ कार्रवाई का अनुरोध किया है।

लखनऊ में कोविड जांच में पॉज़िटिव पाए गए कई पत्रकार

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कोरोना पहले से भी खतरनाक सूरत में रिटर्न हो चुका है। करीब आठ सौ लोगों की सहभागिता वाला उ.प्र.राज्य मुख्यालय संवाददाता समिति का चुनाव करवाकर पत्रकार झेल रहे हैं। पछता रहे हैं कि जब कोरोना ने दुबारा दस्तक दे दी थी तो क्यों चुनाव करवाया। इस चुनाव को थोड़ी समय अवधि के लिए और आगे बढ़ा दिया जाता तो साथी पत्रकार की जिन्दगी नहीं जाती। ये चुनाव देर से होता तो कौन सा काम रुक जाता ! देश की रफ्तार और पत्रकारिता का सिलसिला भी नहीं रुक जाता। 

एक दर्जन से अधिक जर्नलिस्ट और उनके परिजन पत्रकारों के चुनाव के तुरंत बाद कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं और एक पत्रकार की मौत हो चुकी है। अंदाजा लगाइए कि जब आठ सौ पत्रकारों की सहभागिता वाले चुनाव ने पत्रकारों पर क़हर बरपा कर दिया तो लगभग बारह करोड़ अट्ठाइस लाख से अधिक लोगों की सहभागिता वाले यूपी के पंचायती चुनाव पर कोरोना संक्रमण के कितने खतरे मंडरा रहे होंगे।

कोविड के खतरों में जब संवाददाता समिति के चुनाव में इतने पत्रकार संक्रमित हो सकते हैं और एक पत्रकार की मौत हो सकती है तो इतने बड़े पंचायत चुनाव में बेहद एहतियात बरतने की आवश्यकता होगी। हर पत्रकार शासन द्वारा राज्य मुख्यालय की प्रेस मान्यता नहीं हासिल करता है। सौ में पांच पत्रकार ही स्टेट एक्रीडेटेड होते हैं। जो राजधानी में शासन की राज्य स्तरीय खबरें कवर करते हैं उन्हें ये प्रेस मान्यता मिलती है।

स्वाभाविक है कि ये पत्रकार काफी वरिष्ठ, तजुर्बेकार, जिम्मेदार, जागरूक और नियम कानूनू का पालन करने वाले होते होंगे। इनकी संवाददाता समिति का चुनाव भी सरकार की परमीशन और निगरानी मे होता है। ये चुनाव किसी आम जगह नहीं बल्कि प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण स्थान विधान भवन में होता है। इनके उम्मीदवार, वोटर और चुनाव अधिकारी भी जिम्मेदार वरिष्ठ पत्रकार होते है। फिर भी इस चुनाव पर कोरोना ने हमला कर दिया।

दूसरे दिन चुनाव के नतीजे आए जिसमें तमाम विजेताओं में प्रमोद श्रीवास्तव नाम के एक विजेता पत्रकार शामिल थे। नतीजे के दूसरे दिन इनकी तबियत बिगड़ी तो पता चला कि कोरोना संक्रमित हैं। केजीएमयू में एडमिट हुए, वेंटीलेटर पर रखा गया और दूसरे ही दिन इनकी मृत्यु हो गई। इस घटना के बाद तमाम और पत्रकार संक्रांति थे। कुछ को बुखार जैसे लक्ष्ण महसूस हुए।

पत्रकारों की मांग पर दूसरे ही दिन एनेक्सी मीडिया सेंटर में जांच के लिए विशेष इंतेजाम किए गए। करीब साठ पत्रकारों ने जांच कराए जिसमें कई पत्रकार संक्रमित पाए गए। कुल लगभग एक दर्जन पत्रकार कोरोना का शिकार जाहिरी तौर पर है। साठ लोगों की जांच में जितने जर्नलिस्ट के संक्रमित होने की पुष्टि हुई है अंदाजा लगाइए कि चुनाव में सहभागी करीब आठ सौ पत्रकारों की जांच हो तो उसमें कितने संक्रमित होंगे !

कोविड जांच में पॉज़िटिव पत्रकारों की सूची-

1-आलोक त्रिपाठी
2- विजय त्रिपाठी
3- ज़फ़र इरशाद
4- श्रीमती मुकुल मिश्रा
5- उन्मुक्त मिश्रा
6- विशाल प्रताप सिंह
7- अरविंद चतुर्वेदी
8- मनीष पांडेय
9- ( मनीष पांडेय की बेटी)
10- अभिनव पांडेय
11- ख़ुर्रम निज़ामी
12- आशुतोष गुप्ता
13- अभिषेक रंजन

महसूस करने वाली और जागरुक करने वाला पहलू है कि जब तमाम एहतियातों और सरकार की निगरानी में विधानभवन में हुए बुद्धिजीवी वर्ग के चुनाव में पत्रकारों पर कोरोना बम फट सकता है तो पंद्रह करोड़ से अधिक लोगों की सहभागिता वाले गांव-देहातों में होने जा रहे पंचायत चुनावों में कितनी एहतियात बरतने की जरुरत है।

होली अर्थात विस्मृत वैदिक नव वर्ष

ललित मिश्र

ललित मिश्र

भाषाविज्ञान के अनुसार “होली” शब्द “होला” शब्द से व्युत्पन्न है, जो कि पूर्णिमा के पश्चात भोर के ४ बजे की प्रथम होरा का समय है

स्प्ष्ट है कि “होला” से भी आशय पूर्णता के बाद प्रगति की ओर बढते हुए प्रथम उल्लास से होता है

ऋग्वेद से संबंधित ऐतरेय ब्राह्मण मे उदीच्योँ का उल्लेख है, ये उदीच्य लोग अपने स्थान को “होला” कहते रहे है, वर्तमान के गुजरात प्रदेश के पाटन क्षेत्र मे उदीच्य बहुतायत से प्राप्त होते है, शब्दिक साम्य के आधार पर यदि कहे तो हो सकता है कि पाटन क्षेत्र मे होली की शुरुआत होई होगी, किन्तु अलग से कोई साक्ष्य प्राप्त नही होता है.

शतपथ ब्राह्मण ( ६.२.२.१८ ) मे कहा गया है कि, संवत्सर की प्रथम रात्रि फ़ाल्गुन मास की पूर्णिमा होती है, तात्पर्य यह कि, वैदिक संवत्सर होली से शुरु होता रहा है और होली नये वर्ष को मनाने का त्योहार हौ, इतना विशाल और रंगीन नया वर्ष शायद ही कही और, किसी और सभ्यता मे मनाया जाता रहा हो

!! एषा ह संवत्सरस्य प्रथमरात्रिर्फ़ाल्गुनपूर्णमासी !! 

शतपथ ब्राह्मण ( ६.२.२.१८ )

ऐसे ही कथन हमे तांड्य महाब्राह्मण, गोपथ ब्राह्मण एवं तैत्तिरीय ब्राह्मण मे प्राप्त होते है

 होलीकोत्सव का प्राचीनतम मौर्यकालीन (२५० – ३०० वर्ष ईसा पूर्व ) पुरातात्विक अभिलेख, विन्ध्य पर्वत माला के अन्तर्गत कैमूर की छोटी – छोटी पहाडियों के मध्य बसे हुये रामगढ जो कि छ्त्तीसगढ के अम्बिकापुर जिलॆ मे आता है, से प्राप्त हो गया है, कहने का अर्थ यह कि होली त्योहार मनाने का सिल्सिला अनवरत चालू है

ऐतिहासिक साक्ष्यों मे राजा हर्ष की रत्नावली (लगभग ६०० ईसवी) मे एवं दन्डिन की दश कुमार चरित (लगभग ८०० ईसवी) मे प्राप्त होता है

किन्तु आजादी के बाद होली के अवसर पर शुरू होने वाले वैदिक संवत्सर के स्थान पर शक संवत्सर को प्रधान बना दिया गया, हिंदू संगठन भी इसी शक संवत्सर को अपनाकर चल रहे है।

(लेखक इंडोलाजी फाउंडेशन के संस्थापक हैं)

बांग्लादेश की आजादी और जनसंघ

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26 मार्च 1971 को शेख़ मुजीबुर रहमान ने पूर्वी पाकिस्तान को अलग स्वतंत्र देश “बांग्लादेश” घोषित कर दिया था.  पूर्वी पाकिस्तान की बगावत को रोकने के लिए    पश्चिमी पापिस्तान (वर्तमान पापिस्तान) की सेना, पूर्वी पापिस्तान ( वर्तमान बांग्लादेश) की जनता पर अमानवीय अत्याचार कर रही थी. 

पूर्वी पापिस्तान से लाखों की संख्या में शरणाथी भारत में आ रहे थे, जिनमे प्रताड़ित हिन्दुओ की संख्या बहुत ज्यादा थी. ऐसे में भारत्तीय जनसंघ ने सरकार से आग्रह किया कि- बांग्लादेश को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी जाए, मगर इंदिरा गांधी ने इसे पापिस्तान का आंतरिक मामला कह दिया था.

भारत द्वारा बांग्लादेश को मान्यता देने की मांग को लेकर तब जनसंघ ने आंदोलन किया था. मगर इंदिरा गांधी का मानना था कि यह पाकिस्तान का अंदरूनी मामला है. सरकार पर दबाब बनाने के लिए जनसंघ ने जेल भरो आंदोलन भी चलाया था. जनसंघ के अनेकों कार्यकर्ता तब जेल गए थे.

बांग्लादेश में पाकिस्तान सेना द्वारा चुन चुन कर हिन्दू जनता पर अत्याचार किया जा रहा था लेकिन इसे भारत सरकार मुसलमानो का हिन्दुओं पर अत्याचार नहीं मान रही थी बल्कि इसे उर्दू भाषियों का बांग्लाभाषियों पर अत्याचार कह रही थी. इस बात को लेकर जनसंघ नाराज था.  

प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में राजनीति और अंतरराष्‍ट्रीय संबंध के प्रोफेसर जे. बास की किताब  ‘The Blood Telegram: Nixon, Kissinger and a Forgotten Genocide” के मुताबिक भी  वह युद्ध मूल रूप से पूर्वी पाकिस्‍तान में रह रहे हिंदुओं के खिलाफ हो रहा था.  

कांग्रेसी बखान करते हैं कि- इंदिरा ने पाकिस्तान के दो टुकड़े किये थे जबकि हकीकत यह है कि- बांग्लादेश द्वारा 26 मार्च 1971 को अपने आपको पाकिस्तान से अलग घोषित किये जाने के बाद तब से लेकर 3 दिसंबर 1971 तक इंदिरा गांधी इसे पाकिस्तान का आंतरिक मामला ही मानती थी.

3 दिसंबर 1971 को भी इंदिरा गांधी कलकत्ता में लोगों को यही समझा रहीं थी. वो तो अति उत्साह में आकर पाकिस्तान ने 3 दिसंबर 1971 को भारत के कई शहरों पर एक साथ हवाई हमला (आपरेशन चंगेजखान) कर दिया और इसके कारण की भारत को पाकितान के साथ युद्ध का ऐलान करना पड़ा.

इंदिरा गांधी की सहेली पुपुल जयकर ने तो अपनी किताब में यहाँ तक लिखा है कि – आपरेशन चंगेज खान के बाद भी इंदिरागांधी युद्ध का ऐलान करने में संकोच कर रहीं थी. तब जनरल मानेकशा ने धमकी भरे स्वर में कहा था कि – युद्ध की घोषणा आप करती हैं या फिर मैं करूँ.   

अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि हम न केवल मुक्ति संग्राम में जीवन की आहुति देने वालों के साथ हैं बल्कि हम इतिहास को भी एक नई दिशा देने का प्रयत्न कर रहे हैं. नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘बांग्लादेश की आजादी के लिए संघर्ष में शामिल होना, मेरे जीवन के भी पहले आंदोलनों में से एक था 

मोदी जी उस आंदोलन के समय में कब से कब तक जेल में रहे थे ये तो वे या उनका PRO बता सकता है लेकिन यह सत्य है कि – बांग्लादेश को स्वतंत्र देश की मान्यता दिलाने के लिए जनसंघ ने जेल भरो आंदोलन चलाया और उसके अनेकों कार्यकर्ता जेल गए थे.

बांग्लादेश अपना स्वाधीनता दिवस 26 मार्च 1971 को मनाता है. बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देने वाला पहला देश भूटान था जबकि भारत ने 6 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश को मान्यता दी थी.  पाकिस्तान ने 1974 में स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी थी।

(जीवाभाई अहीर की कलम से।)

एडिटर पैट्रिशिया मुखिम को SC ने दी बड़ी राहत

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सुप्रीम कोर्ट ने शिलॉन्ग टाइम्स की एडिटर और वरिष्ठ पत्रकार पैट्रिशिया मुखिम के खिलाफ फेसबुक पोस्ट को लेकर दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है। मुखिम पर फेसबुक पोस्ट के जरिए कथित तौर पर साम्प्रदायिक वैमनस्य फैलाने का आरोप था।

हाई कोर्ट के उस फैसले को जस्टिस एल नागेश्वर राव और रविंद्र भट्ट की बेंच ने पलट दिया, जिसमें कोर्ट ने पत्रकार के खिलाफ पुलिस द्वारा दर्ज आपराधिक केस को सही ठहराया था और उनके खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने से इनकार कर दिया था।

पीठ ने कहा, अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में मुखीम ने मेघालय में रहने वाले गैर आदिवासियों की सुरक्षा और उनकी समानता के लिए जो तर्क दिए हैं, उसे भड़काऊ भाषण नहीं माना जा सकता है। फैसला लिखने वाले जस्टिस राव ने कहा, सरकार के कामकाज से नाखुशी जाहिर करने को विभिन्न समुदायों के बीच नफरत को बढ़ावा देने के प्रयास के रूप में ब्रैंड नहीं बनाया जा सकता है।

पीठ ने कहा, भारत एक बहुसांस्कृतिक समाज है, जहां स्वतंत्रता का वादा संविधान की प्रस्तावना में दिया गया। अभिव्यक्ति की आजादी, घूमने की आजादी और भारत में कहीं भी बसने समेत हर नागरिक के अधिकारों को कई प्रावधानों में बयां किया गया है।

मालूम हो कि मीडिया खबर के अनुसार, इस केस की सुनवाई कोर्ट ने 16 फरवरी को पूरी कर ली थी, जिसका फैसला गुरुवार को सुनाया गया। पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘हमने अपील को मंजूर कर लिया है।’

यह भी पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में जब राज्य प्रशासन पीड़ितों के प्रति अपनी आंखें मूंद लेते हैं या फिर उनकी असंतोष की आवाजों को दबा देते हैं, तो यही नाराजगी बन जाती है। ऐसे में या तो इंसाफ नहीं मिलता है या फिर न्याय मिलने में देरी होती है। इस मामले में ऐसा ही प्रतीत होता है।

मुखिम की सीनियर वकील वृंदा ग्रोवर ने इससे पहले कोर्ट में दलील दी थी कि तीन जुलाई 2020 को एक जानलेवा हमले से जुड़ी घटना के संबंध में किए गए पोस्ट के जरिए वैमनस्य या संघर्ष पैदा करने का कोई इरादा नहीं था। ग्रोवर ने कोर्ट को बताया कि मुखिम की पोस्ट को एडिट किया गया और सिर्फ उनके कुछ शब्दों को पुलिस के सामने रखा गया। पूरी पोस्ट के बजाय सिर्फ एक बिंदु को देखा गया।

उल्लेखनीय है कि वरिष्ठ पत्रकार ने एक फेसबुक पोस्ट में लॉसहटून के बास्केटबॉल कोर्ट में आदिवासी और गैर-आदिवासी युवाओं के बीच झड़प का जिक्र करते हुए लिखा था कि मेघालय में गैर-आदिवासियों पर यहां लगातार हमला जारी है, जिनके हमलावरों को 1979 से कभी गिरफ्तार नहीं किया गया जिसके परिणामस्वरूप मेघालय लंबे समय तक विफल राज्य रहा।

पुलिस में इस फेसबुक पोस्ट के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी, जिस पर पुलिस ने कार्रवाई करते हुए पत्रकार के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर उन्हें पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन आने को कहा।

पुलिस के इस आदेश को पत्रकार ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी और इसे खारिज करने की मांग की थी, लेकिन मेघालय हाई कोर्ट के जस्टिस डब्लू डिंगडोह ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि यह पोस्ट मेघालय में आदिवासियों और गैर आदिवासियों के सौहार्दपूर्ण संबंधों के बीच दरार पैदा करने वाला है, इसलिए याचिका को रद्द किया जाता है।

विधानसभा का अपना टीवी चैनल लॉन्च करनेवाला दूसरा राज्य बना झारखंड

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विधानसभा की कार्यवाही का प्रसारण करने के लिए झारखंड में एक नया चैनल शुरू किया गया है, जिसे ‘झारखंड विधानसभा टीवी’ (JVSTV) नाम दिया गया है। झारखंड विधानसभा की कार्यवाही का सीधा प्रसारण विधानसभा के अपने टीवी चैनल के साथ-साथ यूट्यूब चैनल और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी होगा।

मंगलवार को ‘झारखंड विधानसभा टीवी’ और स्टूडियो का शुभारंभ और लोकार्पण विधानसभा अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो और मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने किया। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने कहा कि यह हम सभी के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने कहा कि चैनल का उद्देश्य दूरदराज के क्षेत्रों में भी जनता के बीच सीधे संचार के माध्यम से विधानसभा की कार्यवाही के बारे में जागरूकता पैदा करना है। हमने देखा है कि ‘संसद टेलीविजन नेटवर्क’ के तहत लोकसभा और राज्यसभा के चैनल कितने सफल हुए हैं। लिहाजा इस चैनल को शुरू करने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं आम जनता तक पहुंचें। उन्होंने कहा कि लोगों को यह जानने का अधिकार है कि उनके चुने हुए प्रतिनिधि विधायिका में क्या कर रहे हैं। उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष, विधानसभा के अधिकारियों और कर्मचारियों को इसके लिए शुभकामनाएं और बधाई दी। इस मौके पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया, जिसमें कलाकारों ने अपने प्रदर्शन से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।

इस अवसर पर विधानसभा अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो ने कहा कि विधानसभा ने बदलते समय को स्वीकार किया है और सदन की कार्यवाही सीधे लोगों तक ले जाने का फैसला किया है।

इस चैनल के लॉन्च होने के साथ झारखंड अब देश का ऐसा दूसरा राज्य बन गया है, जहां इसकी विधानसभा का अपना टीवी चैनल है। इससे पहले सदन की कार्यवाही का प्रसारण करने के लिए केरल ने पिछले साल अगस्त में ‘सभा टीवी’ लॉन्च किया था।

जानिये, सरकार का प्रिंट मीडिया व निजी चैनल्स के विज्ञापनों पर खर्च

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वित्तीय वर्ष 2021 में 12 मार्च तक सूचना-प्रसारण मंत्रालय के तहत आने वाले ब्यूरो ऑफ आउटरीच एंड कम्युनिकेशन ने प्रिंट मीडिया और प्राइवेट सैटेलाइट चैनल्स पर 73.18 करोड़ रुपए खर्च किए हैं।

सूचना-प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, BOC द्वारा अखबारों सहित प्रिंट मीडिया पर 62.01 करोड़ रुपए खर्च किए गए, जबकि प्राइवेट केबल एंड सैटेलाइट चैनल्स पर 11.17 करोड़ रुपए खर्च किए गए। वहीं, इस दौरान सोशल मीडिया पर विज्ञापनों पर कोई खर्चा नहीं किया गया।

सरकार ने वित्तीय वर्ष 2020 में प्रिंट मीडिया, केबल एंड सैटेलाइट चैनल्स और सोशल मीडिया पर कुल मिलाकर 157.64 करोड़ रुपए की राशि खर्च की थी। इस दौरान लगभग 128.96 करोड़ रुपए प्रिंट मीडिया पर खर्च किए गए, जबकि इसके बाद प्राइवेट केबल एंड सैटेलाइट चैनल्स पर 25.68 करोड़ रुपए और सोशल मीडिया 3 करोड़ रुपए पर खर्च किए गए।

वित्तीय वर्ष 2019 में विज्ञापन खर्च की बात की जाए तो, सरकार ने इस दौरान प्रिंट मीडिया पर 301.03 करोड़, टीवी चैनल्स पर 123.01 करोड़ और सोशल मीडिया पर 2.6 करोड़ रुपए खर्च किए। इस तरह से कुल मिलाकर 426.64 करोड़ रुपए की राशि खर्च की गई।  

प्रिंट मीडिया और निजी चैनल्स पर बीओसी ने वित्तीय वर्ष 2016 में 624.23 करोड़ रुपए खर्च किए। इसके बाद वित्तीय वर्ष 2017 में 621.44 करोड़ रुपए और वित्तीय वर्ष 2018 में 572 करोड़ रुपए खर्च किए।

कोलकाता में हिन्दुस्थान समाचार संवाददाता पर हमला

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मंगलवार को कोलकाता में समाचार एजेंसी हिन्दुस्थान समाचार के पत्रकार पर हमला किया गया। यह घटना कोलकाता प्रेस क्लब में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान हुई। पत्रकार वार्ता में शामिल हिन्दुस्थान समचार एजेंसी के  ओम प्रकाश सिंह हमले में मामूली रूप से घायल हुए हैं। पीड़ित पत्रकार ओम प्रकाश सिंह ने कोलकाता के मैदान थाने में शिकायत दर्ज कराई है।

कोलकाता के कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार और फोटोग्राफर गैर-सरकारी संस्था आल इंडिया एकता फाउंडेशन द्वारा आयोजित संवाददाता सम्मेलन में   उपस्थित थे। इस दौरान फाउंडेशन की तरफ से विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा की गई। इसकी वजह के तौर पर तृणमूल कांग्रेस का धर्मनिरपेक्ष होना बताया गया। 

घायल पत्रकार ओम प्रकाश सिंह के मुताबिक धर्मनिरपेक्षता को लेकर उन्होंने एक सवाल किया जिसका उत्तर भी मिला लेकिन पत्रकार वार्ता समाप्त होने के बाद जब वे कुछ पत्रकारों के साथ बातचीत कर रहे थे तभी आयोजकों में से एक व्यक्ति उनके पास आया और उनसे पूछा कि वे किस मीडिया संस्थान के लिये काम करते हैं? उत्तर में हिन्दुस्थान समाचार का नाम सुनकर वह व्यक्ति वहां से चला गया लेकिन कुछ ही देर में वह आया और ओम प्रकाश पर घूंसे बरसाने लगा हालांकि वहां मौजूद पत्रकारों और प्रेस क्लब के सुरक्षाकर्मियों ने उसे जल्द काबू में ले लिया। घटना में आस पास खड़े कुछ अन्य पत्रकारों को भी चोटें आई हैं। 

पीड़ित पत्रकार ओम प्रकाश ने मामले की शिकायत मैदान थाने में दर्ज कराई है। उधर,  कोलकाता प्रेस क्लब ने क्लब के अन्दर हुई इस घटना की कडी निंदा की है। क्लब ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर घटना की भर्त्सना की। क्लब प्रबंधन ने मामले की जांच पूरी होने तक आयोजक संस्था एकता फाउंडेशन को ब्लैकलिस्ट कर दिया है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ‘लर्निंग टू लर्न’ पर जोर : अमित खरे

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‘मीडिया शिक्षा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन’ पर आईआईएमसी में विमर्श का आयोजन

”अगर हमें भारत को वर्ष 2040 में ‘नॉलेज पावर’ बनाना है, तो ज्ञान प्राप्त करने के साथ- साथ नए ज्ञान का सृजन भी करना होगा। इसलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ‘लर्निंग टू लर्न’ पर जोर दिया गया है।” यह विचार शिक्षा तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव और आईआईएमसी के चेयरमैन अमित खरे ने सोमवार को भारतीय जन संचार संस्थान और महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित विमर्श के दौरान व्यक्त किये। ‘मीडिया शिक्षा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन’ पर आयोजित इस विमर्श में आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश शुक्ल, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति प्रो. बलदेव भाई शर्मा और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संयोजक अतुल कोठारी समेत मीडिया शिक्षण से जुड़े देश के प्रमुख विद्धानों ने हिस्सा लिया। 

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के तौर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए अमित खरे ने कहा कि भारत की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का दृष्टिकोण वैश्विक है, लेकिन उसकी जड़ें भारतीय संस्कृति से जुड़ी हुई हैं। हम विश्व समुदाय के अंग हैं, इसलिए हमारी शिक्षा नीति ऐसी होनी चाहिए जिससे भारतीय संस्थान विश्व के सबसे अच्छे शिक्षण संस्थानों में गिने जाएं। उन्होंने कहा कि मीडिया शिक्षा के सामने कई महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं। संस्थानों ने कई वर्षों से अपने पाठ्यक्रमों में बदलाव नहीं किया है। इसलिए मीडिया शिक्षण संस्थानों को वर्तमान समय की जरुरतों के अनुसार पाठ्यक्रम निर्माण करना चाहिए।

खरे ने कहा कि मीडिया और एंटरटेनमेंट के क्षेत्र में पिछले वर्ष 34 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली है। इसमें विशेष तौर पर एनिमेशन, गेम्स और वीएफएक्स के क्षेत्र में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई है। इसलिए मीडिया शिक्षकों को इन विषयों पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि एक एजुकेशन हब का निर्माण हमारा लक्ष्य होना चाहिए, जहां विद्यार्थियों को देश के अन्य संस्थानों और उनके पाठ्यक्रमों से जुड़ी जानकारी हासिल हो सके। इसी के द्वारा भारत की ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाया जा सकता है।

आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि मीडिया शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए मीडिया एजुकेशन काउंसिल की आवश्यकता है। इसकी मदद से न सिर्फ पत्रकारिता एवं जनसंचार शिक्षा के पाठ्यक्रम में सुधार होगा, बल्कि मीडिया इंडस्ट्री की जरुरतों के अनुसार पत्रकार भी तैयार किये जा सकेंगे। उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा के पास विदेशी मॉडल की तुलना में बेहतर संचार मॉडल हैं। इसलिए हमें संवाद और संचार के भारतीय मॉडल को मीडिया पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना चाहिए।

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश शुक्ल ने कहा कि भारत में अब तक संस्थान केंद्रित शिक्षा प्रणाली पर जोर दिया जाता था, लेकिन नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने ‘सब पढ़ें और सब बढ़ें’ का रास्ता हमें दिखाया है। उन्होंने कहा कि शिक्षा नीति के माध्यम से शिक्षकों को नए प्रयोगों के लिए अवसर मिल रहा है। इसलिए ये हमारा दायित्व है कि हम अपने विद्यार्थियों को इस तरह तैयार करें, कि वे चुनौतियों को अवसर में बदल पाएं।

इस अवसर पर शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संयोजक अतुल कोठारी ने कहा कि शिक्षा मंत्रालय का नाम पूर्व में मानव संसाधन मंत्रालय था, लेकिन मेरा मानना है कि मनुष्य ‘सोर्स’ तो हो सकता है, लेकिन ‘रिसोर्स’ नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि इस नीति में समाज के सभी वर्गों के उत्थान की बात कही गई है। इसलिए सभी मीडिया संस्थानों को साझा कार्य करने का स्वभाव अपनाना होगा। इसके अलावा कंटेट प्रोडक्शन, कंटेट मैनेजमेंट और कंटेट डिस्ट्रीब्यूशन जैसे नए विषयों को पाठ्यक्रम में शामिल करना होगा।

कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर के पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष प्रो. शाहिद रसूल ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2040 के भारत को ध्यान में रखकर बनाई गई है। भारत युवाओं का देश है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से इसे एक नई आर्थिक शक्ति बनाने पर जोर दिया गया है। उन्होंने कहा कि अगर हम विश्व गुरु बनना चाहते हैं, तो भारत के प्रत्येक व्यक्ति को समान शिक्षा के अवसर मिलने चाहिए।

कार्यक्रम के दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति प्रो. बलदेव भाई शर्मा ने कहा कि एक वक्त था जब लोगों का मानना था कि पत्रकार पैदा होते हैं और पत्रकारिता पढ़ा कर सिखाई नहीं जा सकती। लेकिन अब वक्त बदल गया है। जनसंचार का क्षेत्र आज शिक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। उन्होंने कहा कि मीडिया के शिक्षकों के पास पत्रकारिता की औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ मीडिया में काम करने का प्रत्यक्ष अनुभव भी होना चाहिए, तभी वे बच्चों को प्रभावी ढंग से पढ़ा पाएंगे।

इस सत्र में मीडिया शिक्षण से जुड़े प्रो. मृणाल चटर्जी, डॉ. अनिल कुमार, प्रो. प्रदीप नायर, प्रो. एहतेशाम अहमद खान, प्रो. सपना, प्रो. अनिल अंकित, डॉ. क्षिप्रा माथुर, डॉ. सोनाली नरगुन्दे और डॉ. धनंजय चोपड़ा ने भी अपने विचार व्यक्त किये। 

कार्यक्रम का संचालन प्रो. अनुभूति यादव और प्रो. संगीता प्रणवेंद्र ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन आईआईएमसी के डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह और डीन (छात्र कल्याण) प्रो. प्रमोद कुमार ने किया।

ब्लैकमेंलिग के आरोप में पत्रकार गिरफ्तार

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तीन टीवी पत्रकारों चंचल दुबे, कुलदीप दुबे व प्रवीण दुबे के खिलाफ उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के कोतवाली में एसएसपी आकाश तोमर के निर्देश पर IPC की धारा 383, 392, 504 व 506 में मुकदमा पंजीकृत किया गया है. पत्रकारों पर ब्लैकमेलिंग का आरोप लगा है. तीनों पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया है. इस मामले में एक महिला पत्रकार को भी आरोपी बताया गया है जो फरार है. कोतवाली में अपराध संख्या 115/2021 में इटावा के तीन पत्रकारों के खिलाफ संगीन धाराओं में मुकदमा पंजीकृत कर लिए जाने और गिरफ्तारी होने से मीडिया में हलचल है.

सूचना के अनुसार पुलिस ने तीन पत्रकारों को इटावा में सिद्धि नर्सिंग होम के संचालक से ब्लैकमेंलिग करने के आरोप में गिरफ्तार किया है. एक महिला पत्रकार फरार है. तीनों पत्रकारों की गिरफ्तारी इटावा एसएसपी आकाश तोमर के निर्देशन में सदर कोतवाली पुलिस ने की है. गिरफ्तार किए गए पत्रकारों में हिंदी खबर चैनल के मनोज कठेरिया, नेटवर्क 10 के कुलदीप दुबे और एक अन्य पत्रकार प्रवीण दुबे हैं. इन पत्रकारों की गिरफ्तारी की खबर के बाद से न्यूज वन इंडिया की महिला पत्रकार चंचल दुबे फरार हो गयी है. इसकी तलाश में इटावा कोतवाली पुलिस छापेमारी कर रही है.

बताया जाता है कि इन चारों पत्रकारों ने नर्सिंग होम संचालक से नर्सिंग होम से संबंधित एक खबर को रोकने और नर्सिंग होम को सीज होने से बचाने के एवज में एक लाख रुपये की रिश्वत ली थी. बावजूद इसके नर्सिंग होम को सीएमओ ने सीज कर दिया. इस कथित रिश्वत की रकम को वापस करवाने के लिये संचालक के मामा व इटावा के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी सिंह ने इन चारों पत्रकारों से काफी अनुनय विनय की. लेकिन इन पत्रकारों ने ब्लैकमेलिंग की रकम को वापस नहीं किया. इसके बाद नर्सिंग होम संचालक ने इन चारों पत्रकारो के खिलाफ मामला दर्ज करवा दिया. पुलिस ने तीन पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया है. इस प्रकरण की वायरल आडियो से भी साबित हो रहा है कि इन पत्रकारों ने नर्सिंग होम संचालक से ब्लैकमेलिंग की है।

जानिये कैसी रही TV पर विज्ञापनों के मामले में इस साल की शुरुआत

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वर्ष 2017 के बाद से इस साल जनवरी-फरवरी में कुल एडवर्टाइजिंग वॉल्यूम, टीवी चैनल्स की रेटिंग जारी करने वाली संस्था ‘ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल’ (BARC) इंडिया की एडवर्टाइजिंग रिपोर्ट 2021 के अनुसार सबसे ज्यादा रहा है। खास बात यह है कि इस दौरान एडवर्टाइजर्स और ब्रैंड्स की संख्या कम रहने के बावजूद एडवर्टाइजिंग वॉल्यूम इतना ज्यादा रहा है।  

रिपोर्ट के अनुसार, इस साल की शुरुआत में जनवरी-फरवरी में ऐड वॉल्यूम 21 प्रतिशत तक बढ़ गया और यह वर्ष 2017 के बाद से सबसे ज्यादा हो गया।

बार्क इंडिया के हेड आदित्य पाठक का कहना है, ‘वर्ष 2020 की दूसरी छमाही में मिली गति को बरकरार रखते हुए टीवी ऐड वॉल्यूम की जनवरी-फरवरी में काफी अच्छी शुरुआत रही और यह पिछले पांच वर्षों के सर्वोच्च स्तर तक पहुंच गया। इस दौरान तमाम सेक्टर्स/कैटेगरीज और नॉन एफएमसीजी ब्रैंड्स ने भी टीवी पर अपनी मौजूदगी बढ़ाई।’

पिछले साल की तुलना में जनवरी-फरवरी 2021 में  टॉप जॉनर्स में मूवीज-म्यूजिक और यूथ ने समग्र ऐड वॉल्यूम में क्रमशः 25प्रतिशत और 24प्रतिशत की औसत वृद्धि से अधिक वृद्धि दर्ज की। इसके बाद जनरल एंटरटेनमेंट चैनल्स और न्यूज ने क्रमश: 21 प्रतिशत और 18 प्रतिशत की ग्रोथ दर्ज की।

 जनवरी से फरवरी के दौरान टॉप 10 एडवर्टाइजर्स ने जहां 45 प्रतिशत के योगदान और 35 प्रतिशत ग्रोथ के साथ टीवी ऐड वॉल्यूम को आगे बढ़ाया, वहीं अगले 40 एडवर्टाइजर्स ने 25 प्रतिशत की ग्रोथ दर्ज कराई।

टीवी एडवर्टाइजिंग में वर्ष 2020 में कई नई एंट्रीज हुई थीं और डिजिटल सेगमेंट खासकर ई-कॉमर्स कैटेगरी में एडवर्टाइजर्स की संख्या बढ़ी थी, वर्तमान अवधि के लिए भी यही स्थिति रही। जनवरी-फरवरी 2021 में ई-कॉमर्स में 21 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिससे टीवी विज्ञापन में लगातार वृद्धि देखी गई।

इस साल अन्य कैटेगरीज जैसे रिटेल और बिल्डिंग, इंडस्ट्री और लैंड मैटीरियल्स में विज्ञापन खर्च वर्ष 2020 की तुलना में बढ़ रहा है। जनवरी-फरवरी 2021 के दौरान लाइजॉल, डेटॉल और हार्पिक जैसे ब्रैंड्स का सबसे ज्यादा विज्ञापन रहा, वहीं तमाम नॉन एफएमसीजी ब्रैंड्स ने भी इस अवधि में टीवी पर अपनी मौजूदगी बढ़ाई।

11 और चैनल्स देखने को मिलेंगे DD के फ्रीडिश पर

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‘दूरदर्शन’ के डायरेक्ट टू होम प्लेटफॉर्म ‘फ्रीडिश’ पर खाली पड़े अनारक्षित एमपीईजी-4 स्लॉट्स के 11 विजेताओं की घोषणा नेशनल पब्लिक ब्रॉडकास्टर ‘प्रसार भारती’ ने कर दी है। इसमें 10 न्यूज चैनल्स हैं। 16 मार्च को हुई 53वीं ई-नीलामी में प्रसार भारती को करीब 10 करोड़ रुपये की कमाई हुई है।

News 24 चैनल जिसे 52वीं ई-नीलामी में MPEG-2 स्लॉट जीतने में सफलता नहीं मिली थी, इस ई-नीलामी में स्लॉट जीतने वालों में शामिल है। इसके अलावा इस लिस्ट में Sudarshan TV, Sahara Samay, India News, News State UP/UK, News India 24X7, News 18 UP/UK, India News UP/UK, Chardikla Time TV, और Jantantra News शामिल हैं। इन सभी चैनल्स की बोली 76 लाख से 1.12 करोड़ रुपये रखी गई।

MPEG-4 के लिए आम तौर पर 16 स्लॉट्स की नीलामी की जाती है, लेकिन इस बार यह एक अपवाद था, क्योंकि MPEG-2 की नीलामी में अधिक न्यूज चैनल्स को समायोजित करने के लिए सूची से हटाए गए 4 डीडी चैनल्स को MPEG-4 स्लॉट दिए जाएंगे।

3.1 अरब विज्ञापनों पर Google ने लगाई रोक

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वर्ष 2020 की अपनी वार्षिक विज्ञापन सुरक्षा रिपोर्ट यानी कि ऐड सेफ्टी रिपोर्ट टेक कंपनी गूगल ने जारी की है। यह रिपोर्ट बुरे विज्ञापनों को रोकने के पीछे के प्रयासों पर प्रकाश डालती है और दिखाती है कि गूगल अपने विज्ञापन प्लेटफॉर्म्स को कैसे पारदर्शी बना रहा है। दरअसल, गूगल बुरे विज्ञापनों से परेशान हो चुका है, इसीलिए 2020 में कंपनी ने हर घंटे 5700 से ज्‍यादा विज्ञापनों पर रोक ही नहीं लगाई, बल्कि उन्‍हें हटा दिया है।

बुधवार को अपनी रिपोर्ट के जरिये गूगल ने यह जानकारी दी कि उसने पिछले साल दुनियाभर में कोरोना वायरस से जुड़े 9.9 करोड़ विज्ञापनों समेत कुल 3.1 अरब बुरे विज्ञापनों को अपने प्लेटफॉर्म्स से हटा दिया है, जो यूजर्स को गलत जानकारी दे रहे थे। साथ ही टेक कंपनी ने 6.4 अरब अतिरिक्‍त विज्ञापनों पर पाबंदी भी लगाई है। बता दें कि ऐसा पहली बार हुआ है जब गूगल ने उन विज्ञापनों की जानकारी भी साझा की है, जिन पर पाबंदी लगाई गई है।

दुनियाभर में स्‍थानीय कानूनों व नियमों के आधार पर गूगल ने रोक लगाई है। अब इसके प्लेटफॉर्म्स पर सिर्फ वही विज्ञापन दिखेंगे, जिनको कंपनी ने सभी मानकों के आधार पर मंजूरी दी है। कंपनी ने अपनी सालाना ऐड सेफ्टी रिपोर्ट 2020 में बताया है कि नियमों का उल्‍लंघन करने पर हटाए गए विज्ञापनों की संख्‍या में 70 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। कंपनी ने 17 लाख से ज्‍यादा विज्ञापनों को पॉलिसी का उल्‍लंघन करने की वजह से हटाया है। वहीं, गूगल ने डिटेक्‍शन सिस्‍टम की चोरी करने की कोशिश करने वाले 86.7 करोड़ विज्ञापनों को या तो ब्‍लॉक कर दिया या पूरी तरह से हटा दिया है। गूगल ने यह भी बताया कि नीतियों को गलत तरीके से पेश (Misrepresentation of Policies) करने की वजह से उसने 10.1 करोड़ विज्ञापनों को हटा दिया है।

2020 में विज्ञापनदाताओं और प्रकाशकों के लिए टेक कंपनी ने 40 से भी ज्यादा नीतियों को या तो जोड़ा या उसमें बदलाव किया था। गूगल ने कहा कि पिछले साल महामारी से संबंधित गलत और भ्रामक विज्ञापन सबसे बड़ी चिंता का कारण थे। इनमें चमत्‍कारिक इलाज, एन-95 फेस मास्‍क की कमी और हाल में वैक्‍सीन को लेकर आने वाले जैसे फर्जी विज्ञापन शामिल थे।

पिछले साल चूंकि दुनियाभर में COVID-19 मामलों की संख्या में बेहताशा बढ़ोतरी देखने को मिली थी, इसलिए इससे जुड़े प्रॉडक्ट्स और इलाज का दावा करने वाले झूठे प्रॉडक्ट्स की कीमतों में भी बढ़ोतरी देखने को मिली थी, जिसके चलते ही गूगल ने कोरोना वायरस को लेकर गलत विज्ञापनों पर रोक लगाने के लिए कोविड विज्ञापन नीति जारी की थी। साथ ही कंपनी ने 2020 में विज्ञापनों के साथ ही कोविड या ग्‍लोबल हेल्‍थ इमरजेंसी से ऐसी जुड़ी सामग्री को रोकने के लिए एक नई पॉलिसी भी पेश की थी, जो वैज्ञानिक तथ्‍यों के उलट थीं।

गूगल ने अप्रैल 2020 में विज्ञापनदाता पहचान सत्‍यापन कार्यक्रम भी शुरू किया। इसके तहत अभी 20 देशों के विज्ञापनदाताओं का सत्‍यापन किया जा रहा है। गूगल के विज्ञापन निजता व सुरक्षा विभाग के उपाध्‍यक्ष स्‍कॉट स्‍पेंसर ने कहा कि हजारों कर्मचारियों ने यूजर्स, क्रिएटर्स, पब्लिशर्स और एवर्टाइजर्स की सेफ्टी के लिए 24 घंटे काम किया।

बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री ने भारतीय मीडिया के पक्ष में बुलंद की आवाज

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भारतीय मीडिया के पक्ष में भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने अपनी आवाज बुलंद की है। दरअसल ऑस्ट्रेलिया की संसद ने करीब तीन सप्ताह पहले एक कानून पारित किया था, जिसके तहत डिजिटल कंपनियों को अब खबरें दिखाने के लिए भुगतान करना होगा। 

इस समझौते की घोषणा फेसबुक और ‘न्यूज कॉर्प’ ने की थी। न्यूयॉर्क स्थित ‘न्यूज कॉर्प’ विशेष तौर पर अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में समाचार देता है। अब बीजेपी के वरिष्ठ नेता ने भी अपने ट्विटर अकाउंट पर लगातार तीन ट्वीट करते हुए भारतीय मीडिया के लिए अपनी आवाज बुलंद की है। 

सुशील मोदी ने लिखा, हमारे देश का प्रिंट मीडिया/ न्यूज TV चैनल समाचार संकलन करने से लेकर तथ्यपरक सच्चाई के लिए एक बड़े संस्थागत स्वरूप में  विविध विधा के कर्मियों के साथ अरबों रुपये खर्च कर हमें समाचार प्रदान करता है। इनकी आमदनी का मुख्य स्रोत विज्ञापन है।

उन्होंने आगे लिखा कि यूट्यूब, फेसबुक, गूगल परंपरागत मीडिया द्वारा तैयार कंटेंट को अपने प्लेटफॉर्म पर प्रसारित कर विज्ञापन के माध्यम से पैसा कमा रहे हैं, जिससे मूल कंटेंट निर्माता परंपरागत मीडिया विज्ञापन की आय से वंचित हो रहे हैं।

अपनी अंतिम ट्वीट में उन्होंने भारत सरकार के सहयोग की मांग की है। उन्होंने लिखा कि ऑस्ट्रेलिया सरकार की तरह “News Media Bargaining Code” के समान कानून बनाकर गूगल आदि OTT प्लेटफॉर्म को विज्ञापन रेवेन्यू शेयरिंग के लिए बाध्य किया जाना चाहिए ताकि देश के मीडिया को आर्थिक रुप से कोई नुकसान नहीं हो।

शोध पत्रिका ‘मीडिया मीमांसा’ का विमोचन

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लोकेंद्र सिंह

‘सार्थक एजुविज़न-2021’ के चर्चा सत्र में कुलपति प्रो. केजी सुरेश, एनबीए के सदस्य सचिव डॉ. अनिल कुमार नासा और प्रवेश एवं शुल्क नियंत्रण समिति के अध्यक्ष डॉ. रविन्द्र कान्हेरे ने एमसीयू की ब्लाइंड पीयर रिव्यु शोध पत्रिका ‘मीडिया मीमांसा’ का विमोचन भी किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. अविनाश वाजपेयी, आरएफआरएफ के नोडल अधिकारी डॉ. पवन सिंह मलिक, संपादक डॉ. राखी तिवारी, सह-संपादक लोकेन्द्र सिंह, डॉ. रामदीन त्यागी, डॉ. उर्वशी परमार और मनीष वर्मा उपस्थित रहीं। 

विश्वविद्यालय की शोध पत्रिका ‘मीडिया मीमांसा’ में पत्रकारिता, संचार, प्रबंधन, कंप्यूटर, विज्ञापन, जनसंपर्क एवं फ़िल्म सहित अन्य क्षेत्रों में नवोन्मेषी, समाजोपयोगी एवं गुणवत्तापूर्ण शोध पत्रों को प्रकाशित किया जाता है। कुलपति और पत्रिका के मुख्य संपादक प्रो. केजी सुरेश ने बताया, राष्ट्रीय शिक्षा नीति की अपेक्षा है कि विश्वविद्यालय शोध संस्कृति को बढ़ावा दें। नये ज्ञान की रचना करें। नवोन्मेषी और लोकहित के शोध कार्यों को बढ़ावा दें। हमारा संकल्प है कि हम संचार के क्षेत्र में शोध कार्य संबंधी राष्ट्रीय शिक्षा नीति की आकांक्षा को पूरा करेंगे। मीडिया मीमांसा से हमने देशभर से संचार एवं शोध विशेषज्ञों को सलाहकार मंडल में शामिल किया है। इसके साथ ही शोध पत्रों के ब्लाइंड रिव्यु के लिए देशभर से विभिन्न विषयों के अध्येताओं एवं प्राध्यापकों को जोड़ा है। 

कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रे न्स फाउंडेशन शुरू कर रहा है ‘जस्टिस फॉर एवरी चाइल्डन’ अभियान

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अभियान में ब्रांड अम्‍बेसडर के रूप में शामिल हुए हिंदी फिल्‍मों के मशहूर अभिनेता और निर्देशक फरहान अख्तर

यौन शोषण और बलात्कार के शिकार बच्चों और उनके परिवारों को तय समय पर न्याय, स्वास्थ्य सहायता और पुनर्वास सुविधाओं को सुनिश्चित करने के लिए कैलाश सत्यार्थी चिल्‍ड्रेन्‍स फाउंडेशन (केएससीएफ) देशव्‍यापी ‘जस्टिस फॉर एवरी चाइल्‍ड’ अभियान की शुरुआत करने जा रहा है। 21 मार्च को शुरु होने वाला यह अभियान एक वर्ष तक चलेगा। यह अभियान देश के उन 100 जिलों में चलाया जाएगा जो बाल उत्पीडन और बच्चों के बलात्कार के दृष्टिकोण से अति संवेदनशील हैं। अभियान के सरोकार और उद्देश्‍यों से लोगों को अवगत कराने के लिए हिंदी फिल्‍मों के मशहूर अभिनेता और निर्देशक फरहान अख्‍तर इस अभियान से बतौर ब्रांड अम्बेसडर शामिल हुए हैं।

इस अवसर पर फरहान अख्‍तर ने बाल यौन शोषण की भयावहता को  राष्ट्रीय आपातकाल की संज्ञा देते हुए कहा, ‘‘भारत में हर घंटे तीन बच्चों का बलात्कार होता है और पांच बच्‍चे यौन उत्‍पीड़न के शिकार होते हैं। उन्‍हें न्याय के लिए लम्‍बा संघर्ष करना पड़ता है, जो उन्‍हें जीवनभर पीड़ा देने का काम करता है। यह एक राष्ट्रीय आपातकाल है और भारत के बच्चों को हमारी मदद की आवश्यकता है। ऐसे में “जस्टिस फॉर एवरी चाइल्ड” मुहिम में कैलाश सत्यार्थी चिल्‍ड्रेन्‍स फाउंडेशन से जुड़ कर हम सब को इस लड़ाई को आगे बढ़ाना चाहिए।’’

देश में बच्चों के यौन शोषण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिल पा रहा है। बच्चों के शोषण पर रोक लगाने के खिलाफ बने कानून पॉक्सों अधिनियम के अनुसार एक निश्चित समय में जांच प्रकिया पूरी कर पीड़ितों को न्याय दिलाने का प्रावधान है। लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। “जस्टिस फॉर एवरी चाइल्ड” अभियान का लक्ष्‍य बच्चों के यौन उत्पीडन के मामले में देश के उन 100 संवेदनशील जिलों में यौन अपराधों से बच्‍चों का संरक्षण (पॉक्‍सो) अधिनियम के तहत चल रहे कम से कम 5000 मामलों में बच्‍चों को तय समय में त्वरित न्‍याय दिलाना है। इस अवधि के दौरान केएससीएफ यौन शोषण और बलात्कार के पीडि़त बच्‍चों को कानूनी और स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं, पुनर्वास, शिक्षा और कौशल विकास के अवसरों की सुविधाएं प्रदान करेगा। बाल यौन शोषण के पीडि़तों और उनके परिवारों को विशेष रूप से मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य सहायता भी संगठन मुहैया कराएगा। इस दौरान केएससीएफ लोगों को “बाल मित्र” बनाने की प्रक्रिया के तहत न्यायपालिका और प्रशासनिक प्रणालियों से संबंधित हितधारकों को संवेदनशील बनाने के लिए बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण कार्यशालाओं का भी आयोजन करेगा।

केएससीएफ द्वारा हालिया प्रकाशित एक अध्‍ययन रिपोर्ट ‘पुलिस केस डिस्‍पोजल पैटर्न: एन इन्‍क्‍वायरी इनटू द केसेस फाइल्‍ड अंडर पॉक्‍सो एक्‍ट 2012’ के अनुसार बच्चों के यौन शोषण के पॉक्‍सो के तहत दर्ज लगभग 3000 मामले हर साल निष्पक्ष सुनवाई के लिए अदालत तक पहुंचने में विफल रहते हैं। यानी हर दिन यौन शोषण के शिकार चार बच्‍चों को न्याय से इसलिए वंचित कर दिया जाता है, क्योंकि यौन उत्पीडित होने के बावजूद पर्याप्‍त सबूत और सुराग के अभाव में पुलिस द्वारा उनके मामलों को थाने में ही बंद कर दिया जाता है। लिहाजा, ये मामले सुनवाई के लिए अदालत तक पहुंच ही नहीं पाते। रोंगटे खड़े कर देने वाले ये आंकड़े बताते हैं कि वक्‍त का तकाजा है कि बच्‍चों के लिए न्‍याय को सुनिश्चित करने के लिए ‘जस्टिस फॉर एवरी चाइल्ड’ अभियान की शुरुआत की जाए।

यौन शोषण के शिकार पीडितों और उनके परिवारवालों के दर्द औ पीड़ा को उजागर करते हुए केएससीएफ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एससी सिन्हा कहते हैं, “जब बच्‍चों के साथ यौन दुर्व्‍यवहार होता है, तो उन्‍हें न केवल शारीरिक यातना के दौर से गुजरना पड़ता है, बल्कि उन्‍हें असहनीय मानसिक आघात का भी सामना करना पड़ता है। पुलिस जांच प्रकिया के दौरान पीड़ित और उनके परिवार की पीड़ा उस समय और बढ़ जाती है, जब उन्हें बार-बार उस घटना का उल्‍लेख करना पड़ता है। न्‍याय के लिए भी उनको लंबा इंतजार करना पड़ता है। ये सारी प्रतिकूलताएं उनकी हताशा और दुश्चिंताओं को बढ़ाने का काम करती हैं और न्‍याय पाने की उनकी आकांक्षाओं को समाप्‍त कर देती हैं।”

सिन्हा ने ‘जस्टिस फॉर एवरी चाइल्ड’ अभियान के उद्देश्य को स्पष्ट करत हुए कहा कि अभियान ऐसे पीड़ित बच्‍चों को सहायता उपलब्‍ध कराएगा, ताकि उन्‍हें न केवल समय पर न्याय मिले, बल्कि उन्‍हें उचित मानसिक, पुनर्वास और शैक्षिक सहायता भी मिल सके। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए सिन्‍हा कहते हैं, “कानून के मुताबिक बच्चों के यौन उत्पीडन के मामले में एक साल में अदालत में ट्रायल पूरा हो जाना चाहिए। हम एक संगठन के रूप में बाल संरक्षण के लिए सरकार और न्यायपालिका के साथ काम करना चाहते हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हर बच्चे को न्याय और उसका प्राकृतिक अधिकार मिले। जिससे वह एक खुशहाल और उन्‍मुक्‍त बचपन का आनंद उठा सके।

गौरतलब है कि केएससीएफ लंबे समय से बाल यौन शोषण के खिलाफ अभियान चला रहा है। संगठन ने 2017 में नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित कैलाश सत्‍यार्थी के नेतृत्‍व में बाल यौन शोषण और ट्रैफिकिंग (दुर्व्‍यापार) के खिलाफ कन्याकुमारी से कश्मीर तक 12,000 किलोमीटर की ‘भारत यात्रा’ का भी आयोजन किया था। जिसमें बाल यौन शोषण के शिकार रहे बच्‍चे, सिविल सोसायटी संगठन, विभिन्‍न राजनीतिक दलों के नेताओं, फिल्‍मी हस्तियों, धर्मगुरुओं, जजों आदि ने भाग लिया था।

डिजिटल मीडिया को आलोचना का अधिकार : बरतनी होगी सावधानी

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डिजिटल मीडिया से जुड़े किसी भी व्यक्ति को जेल भेजने की धमकी देने से केंद्र सरकार ने इनकार किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस बारे में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय का कहना है कि सरकार ने कभी भी ट्विटर समेत किसी भी डिजिटल मीडिया कंपनी के कर्मचारी को जेल भेजने की धमकी नहीं दी है।

मंत्रालय का फेसबुक, वॉट्सऐप और ट्विटर आदि के कर्मचारियों के लिए जेल की सजा का प्रावधान किए जाने की खबरों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहना है कि इंटरनेट मीडिया प्लेटफॉर्म अन्य व्यवसायों की तरह भारत के कानूनों और देश के संविधान का पालन करने के लिए बाध्य हैं।

मंत्रालय के अनुसार, जैसा कि संसद में कहा गया है डिजिटल मीडिया यूजर्स सरकार, प्रधानमंत्री या किसी भी मंत्री की आलोचना कर सकते हैं। लेकिन हिंसा को बढ़ावा देना, सांप्रदायिक विभाजन और आतंकवाद के प्रसार को रोकना होगा।

उल्लेखनीय है कि सरकार ने हाल ही में ट्विटर को सैकड़ों पोस्ट, अकाउंट और हैशटैग हटाने का आदेश दिया था। सरकार का कहना था कि ये नियमों का उल्लंघन करते हैं। ट्विटर ने शुरू में पूरी तरह से इसका अनुपालन नहीं किया, लेकिन सरकार द्वारा दंडात्मक प्रावधानों का हवाला देने के बाद उसने अमल किया था। खबर के अनुसार, मंत्रालय का कहना है कि इंटरनेट मीडिया के लिए पिछले दिनों जारी गाइडलाइंस का मकसद सिर्फ इतना है कि ये प्लेटफॉर्म्स यूजर्स के लिए मजबूत शिकायत निवारण तंत्र का गठन करें। मंत्रालय के अनुसार, ‘सरकार आलोचना और असहमति का स्वागत करती है। हालांकि, आतंकी समूहों द्वारा देश के बाहर से नफरत और हिंसा फैलाने के लिए इंटरनेट मीडिया का इस्तेमाल गंभीर चिंता की बात है।’

काक के कार्टून में सेंस ऑफ ह्यूमर और कटाक्ष में गजब की ताजगी थी

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अरविंद गौड़

अपने समय के चर्चित कार्टूनिस्ट काक से आज की पीढ़ी शायद ज्यादा परिचित ना हो, पर 1983 से 1990 के थोड़ा आगे तक का एक ऐसा भी दौर था, जब ज़्यादातर पाठक अखबार हाथ में आते ही काक का कार्टून पहले देखते थे, हेडलाइन बाद में पढ़ते थे। उनकी सेंस ऑफ ह्यूमर और कटाक्ष में गजब की ताजगी थी। उनके कार्टूनों मे रोजाना की देशव्यापी राजनीतिक  हलचलों का पोस्टमार्टम दिखता था।

उनकी तीखी ‘काक’ दृष्टि वाले करारे कार्टून शुरुआत मे जनसत्ता में छपते थे। बाद में काक ने नवभारत टाइम्स ज्वाइन कर लिया। हिंदी पत्रकारिता के दिग्गज प्रभाष जोशी से लेकर राजेन्द्र माथुर और सुरेन्द्र प्रताप सिंह तक उनके कायल थे।

उस समय काक स्टार थे। यह वह वक्त था, जब जनसत्ता में तेज तर्रार खोजी और खांटी पत्रकारिता की नई जमीन तैयार हो रही थी। काक के कार्टून पहले पेज पर प्रकाशित हो रहे थे। काक पहले दैनिक जागरण, धर्मयुग से लेकर दिनमान और शंकर वीकली में छप चुके थे, पर जनसत्ता में नियमित प्रकाशित बेबाक और तीक्ष्ण कार्टूनों से उन्हें देशव्यापी पहचान मिली। तभी 1985 में अचानक उन्होंने जनसत्ता छोड़ नवभारत टाइम्स ज्वाइन कर लिया। कारण कुछ भी रहा हो, पर उनका जाना हमारे जैसे जनसत्ता के हजारों पाठकों के लिए पीड़ादायक था।

उन दिनों मैं थियेटर के साथ साथ फ्रीलांस पत्रकारिता करता यहां वहां भटकता रहता था। काक सेलिब्रिटी थे, वो मुझे शायद ही पहचानते हो, पर हम खफा थे, सो कुछ दिनों तक सामने दिखने पर भी पहले की तरह भागकर नमस्ते करने की कोशिश, चाहकर भी नहीं हुई। पर उनके कार्टूनों का नशा था, सो अब घर में दो अखबार आने शुरू हो गए। फिर वही रोजाना सुबह उनके कार्टूनों को देखकर ही खबरों को पढ़ने का सिलसिला शुरू हुआ।

ऐसा ही कुछ दिवंगत सुथीर तैलंग के नवभारत टाइम्स से अंग्रेजी के हिन्दुस्तान टाइम्स मे जाने के बाद भी हुआ था। हिन्दुस्तान टाइम्स उनकी वजह से ही घर में आना शुरू हुआ था।

यह वह समय था जब हिंदी अखबारों में युवा कार्टूनिस्ट अपनी महत्वपूर्ण जगह बनाने लगे थे। सुधीर तैलंग, इरफान, राजेन्द्र धोड़पकर से लेकर चंदर तक कार्टूनिस्टों की नई जमीन तैयार कर रहे थे। इन सबका गजब का फैन क्लब बन रहा था। राजनैतिक कार्टून्स को लोकप्रियता दिलाने में इस नई पीढ़ी का अद्भूत योगदान है।

बाद में इससे आगे की  हिंदी अखबारों की दास्तानें, विशुद्ध व्यापारीकरण, उत्थान-पतन के साथ भटकाव, बिखराव के क़िस्से है। आज इसका प्रभाव दैनिक अखबारों की खबरों से लेकर कार्टूनों तक भी दिखता है। 

खैर, अपने समय के सुप्रसिद्ध चर्चित कार्टूनिस्ट काक आज 81 के हो गए। आदरणीय काक साहब को जन्म दिन पर हार्दिक शुभकामनाएं। काक का जन्मजात नाम हरीश चंद्र शुक्ल (काक)  है। काक उनका बतौर कार्टूनिस्ट सिग्नेचर है।  

इनका जन्म 16 मार्च 1940 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव के गाँव पुरा में हुआ था। वह पेशे से भूतपूर्व मैकेनिकल इंजीनियर थे। काक जी के पिता, शोभा नाथ शुक्ला, एक स्वतंत्रता सेनानी थे।

अखबारों से सेवानिवृत्त होने के बाद  काक साहब आज भी लगातार कार्टून बना रहे हैं। गाहे-बगाहे अभी भी उनके पेज पर जाकर कार्टून देखता रहता हूं। हम उनके छोटे पर पक्के वाले पुराने फैन हैं। उनके स्वस्थ और खुशहाल जिंदगी की हार्दिक मंगलकामनाएं।

जानें, दुनियाभर में कितने मीडियाकर्मियों की 2020 में काम के दौरान हुई मौत

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2020 में दुनियाभर में इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स के मुताबिक कुल 65 पत्रकारों और मीडियाकर्मियों की उनके काम के दौरान मौत हुई है।

शुक्रवार को पत्रकारों की मौतों पर फेडरेशन ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट का विवरण प्रकाशित किया है, इस रिपोर्ट में उसने कहा कि 2019 की तुलना में यह संख्या 17 अधिक है और मृतक संख्या 1990 के दशक के स्तर के आसपास है।

आईएफजे ने बताया कि वर्तमान में 200 से अधिक पत्रकार अपने काम की वजह से जेल में बंद हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 16 अलग-अलग देशों में हुई पत्रकारों की हत्या टार्गेट किए गए हमलों, बम हमलों और गोलीबारी की घटनाओं से हुई है। साथ ही यह भी कहा गया कि 1990 में जब आईएफजे ने इसकी गिनती शुरू की, तब से लेकर अब तक कुल 2,680 पत्रकार मारे जा चुके हैं।

आईएफजे के महासचिव एंथनी बेलेंगर ने कहा, ‘मैक्सिको, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और सोमालिया में चरमपंथियों की हिंसा के साथ-साथ भारत और फिलीपीन्स में कट्टरपंथियों की असहिष्णुता के कारण मीडिया में रक्तपात हुआ है।’

पांच साल में चौथी बार, मेक्सिको उन देशों की सूची में सबसे ऊपर रहा, जहां सबसे ज्यादा 14 पत्रकार मारे गए हैं। इसके बाद अफगानिस्तान में 10 मौतें हुईं, पाकिस्तान में नौ, भारत में आठ, फिलीपींस और सीरिया में चार-चार और नाइजीरिया और यमन में तीन-तीन मौतें हुई है। इराक, सोमालिया, बांग्लादेश, कैमरून, होंडुरास, पैराग्वे, रूस और स्वीडन में भी मौतें हुईं।

यमुनोत्रीधाम से विश्रामघाट की 620 कि.मी.की पदयात्रा से फैलाएंगे जनजागृति

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यमुना को प्रदूषण से मुक्त कराने की आवाज पिछले कई वर्षों सेकई तरीके से उठी है जिसमें जनताराजनेता, एन0जी0ओ0, साधुसंत यहां तक कि अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाये भी हैं परन्तु शायद यमुना  अब स्वयं को शुद्ध करने के लिए अग्रसर हो रही है। यमुना अब आत्मनिर्भर हो रही है |

प्रोजेक्ट आत्म निर्भर के संस्थापक इग्लेण्ड में पढ़े युवा उद्योगपति रंजीत चतुर्वेदी (पाठक) का भी यही एक प्रयास है।इनकी संस्था प्रोजेक्ट आत्मनिर्भर जिसकी प्रेरणा उन्हें ज्योति कुमारी से मिली।

मानते हैं कि घरना प्रदर्शन, चिट्ठी या सोशल मीडिया से यमुना के कष्टो का निवारण नही हो सकता उसके लिए एकमात्र उपाय है, यमुना के प्रति जन जागरूकता।इसी संदर्भ में मथुरा और यमुनोत्रीधाम के स्थानीय संस्थाओं का सहयोग लेकर उन्होंने 620 कि0 मी0 की कलश पदयात्रा का आयोजन करने का निर्णय लिया जो 20 मार्च 2021 यमुनोत्री से शुरू होकर विकासनगर. पाउण्टा साहिब, हथिनीकुण्ड, कैराना, बागपत गाजियाबाद, दिल्ली नोयडा होते हुए ब्रज के मथुरा स्थित पुण्यतीर्थ विश्रामघाट पर 18 अप्रेल 2021 को यमुना छठ के दिन समाप्त होगी।यात्रा के दौरान यमुना के आध्यात्मिक स्वरूप को प्रकाशित किया जायेगा।

रंजीत चतुर्वेदी ने बताया कि यह यात्रा अद्वितीय है। क्योंकि जल कलश का ब्रज से प्रस्थान 15 नवम्बर 2020 दिवाली पर हुआ था और उसकी स्थापना यमुनोत्री में 17.11.2020 यम द्वितीया अथवा भाई दूज को हुई जो यमराज और यमुना भाईबहन दिवस मनाया जाता है। यात्रा का आरम्भ यमुना के दूसरे भाई शनि के दिवस (शनिवार) और समापन उनके पिता सूर्य के दिवस (रविवार) यमुना छठ चैत्र नवरात्रि के छठे दिन और वर्ष 2021 के 108 वे दिन 18 अप्रैल पर होगा और इस दिवस को ब्रज के अन्य त्यौहार की भांति महा उत्सव मनाये जाने का यह प्रयास है।

दिल्ली पड़ाव में09 अप्रैल को पदयात्रा में पुनः कृष्णकालिन्दी का विवाह रचेगा, जिसमें यमुनोत्री,  ब्रज(माइके और संसुराल) पक्ष की भूमिका निभायेंगे और इस यात्रा से जुड़ी सभी संस्था व दिल्ली निवासी साक्षी बनेंगे | वहीं प्रात काल इस भागवत कार्य से पहले विवाह स्थल छठ घाट पर एक सफाई अभियान का आयोजन होगा जिसमें सहयोगी सस्थाओं के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे। अन्त में प्रोजेक्ट आत्मनिर्भर ने देशवासियों का आहवान किया और मांग रखी कि यमुना छठ को माई दिवस घोषित किया जाये |

डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स के साथ सूचना-प्रसारण मंत्री ने की चर्चा

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पिछले दिनों डिजिटल मीडिया के लिए केंद्र सरकार द्वारा जारी गाइडलाइंस को लेकर सूचना-प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ‘डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन’ के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा की। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये हुई इस मीटिंग में ‘इंडिया टुडे’, ‘दैनिक भास्कर’, ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’, ‘एबीपी’, ‘ईनाडु’, ‘दैनिक जागरण’ और ‘लोकमत’ के प्रतिनिधि शामिल हुए।

जावड़ेकर का कहना था कि नए नियमों में डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स के लिए कुछ जिम्मेदारियां भी हैं। इनमें ‘भारतीय प्रेस परिषद’ द्वारा निर्धारित पत्रकारीय आचरण के नियम और केबल टेलिविजन नेटवर्क अधिनियम के तहत प्रोग्राम कोड जैसी आचार संहिताओं का पालन करना शामिल है।

उन्होंने कहा कि लोगों की शिकायतों के समाधान के लिए इन नियमों में तीन स्तरीय शिकायत समाधान तंत्र उपलब्ध कराया गया है। इसमें पहले और दूसरे स्तर पर डिजिटल न्यूज पब्लिशर और उनके द्वारा गठित स्व नियामक संस्थाएं होंगी।

जावड़ेकर ने बताया कि डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स को एक आसान से फॉर्म में मंत्रालय को कुछ मूलभूत जानकारियां भी देनी होंगी, जिसे अंतिम रूप दिया जा रहा है। समय-समय पर उन्हें अपने द्वारा की गई शिकायतों के समाधान को सार्वजनिक करने की जरूरत होगी।

जावड़ेकर ने कहा कि प्रिंट मीडिया और टीवी चैनल्स के डिजिटल संस्करण हैं, जिनका कंटेंट काफी हद तक उनके पारम्परिक प्लेटफॉर्म जैसा ही होता है। हालांकि, कुछ ऐसा कंटेंट भी होता है जो विशेष रूप से डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए होता है। इसके अलावा कई ऐसी इकाइयां हैं, जो सिर्फ डिजिटल प्लेटफॉर्म पर हैं। इस क्रम में, डिजिटल मीडिया पर पब्लिश समाचारों पर नियम लागू होने चाहिए, जिससे उन्हें पारम्परिक मीडिया के स्तर का बनाया जा सके।

नए नियमों का स्वागत करते हुए इस मीटिंग के दौरान विभिन्न मीडिया संस्थानों के प्रतिनिधियों का कहना था कि टीवी और प्रिंट मीडिया लंबे समय से केबल टीवी नेटवर्क अधिनियम और प्रेस परिषद अधिनियम के नियमों का पालन करते रहे हैं। इसके अलावा डिजिटल संस्करणों के प्रकाशन के लिए पब्लिशर्स पारम्परिक प्लेटफॉर्म्स के मौजूदा नियमों का पालन करते हैं। उन्हें लगता है कि उनके साथ उन न्यूज पब्लिशर्स से अलग व्यवहार करना चाहिए, जो सिर्फ डिजिटल प्लेटफॉर्म पर हैं। इस पर जावड़ेकर ने कहा कि सरकार इन पर विचार करेगी और मीडिया इंडस्ट्री के समग्र विकास के लिए इस परामर्श की प्रक्रिया को जारी रखेगी।

मालूम हो कि इससे पहले चार मार्च को जावड़ेकर ने विभिन्न ‘ओवर द टॉप’ प्लेटफॉर्म्स जैसे- अल्‍ट बालाजी, डिज्नी+ हॉटस्टार, एमेजॉन प्राइम वीडियो, नेटफ्लिक्स, जियो टीवी, जी5, वूट, शेमारू और एमएक्स प्लेयर के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की थी।

आत्मनिर्भर हरियाणा की नई तस्वीर

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मुकेश वशिष्ठ

संकट कभी भी समाधान के प्रयासों से बड़ा नहीं हो सकता। कुशल नेतृत्व की दृढ़ इच्छाशक्ति, सामूहिक प्रयास और चुनौतियों से टकराने का साहस हो तो संकट इतिहास के पन्नों में समेट सकते हैं। कोरोना काल के अनुभव ने इसे समझने और सीखने का मौका दिया है। हरियाणा जैसे राज्य के लिए एक अलग मायने में अवसर भी है, जिसमें वह अग्रणी राज्य बनने की अपनी योग्यता से आत्मनिर्भर हरियाणा की नई तस्वीर तैयार कर सकता है। इसकी झलक बजट में साफ दिखती है, जो करीब 10 महीने के कोरोना काल में ठप आर्थिक गतिविधियों के बाद पेश किया गया है। आंकड़ों में प्रदेश के विकास का खाका है, तो उन अरमानों का ताना-बाना भी, जो उस हरियाणा को आत्मनिर्भर बनाकर नई ऊंचाइयों पर ले जाने को उत्साहित है, जिसकी स्थापना हुए 54 साल बीत गए, लेकिन श्रम, संसाधन और अवसरों के बाद भी अग्रणी राज्यों की कतार में पीछे ही रहा।

इसमें कोई संदेह नहीं कि मनोहर सरकार बीते छह साल के कार्यकाल में प्रदेश की आर्थिक, सामाजिक हालत को सुधारने के लिए चरणबद्व तरीके से काम कर रही है। इसलिए विधानसभा चुनाव 2019 में जनता ने एकबार फिर मनोहर सरकार को सकारात्मक नीयत, प्रयास, ईमानदारी के साथ ई-गर्वनेंस के रूप में स्वीकारा। अपने दूसरे कार्यकाल के पहले बजट 2020—21 में सरकार ने एकबार फिर बुनियादी ढांचे पर पुर्ननिर्माण का कार्य शुरू किया। जिसमें खासकर कृषि, महिला सशक्तिकरण और आम लोगों तक सरकारी सेवाओं को आनलाइन तरीके से पहुंचाने के यशस्वी काम हुए। लेकिन, कोविड—19 महामारी ने अप्रत्याशित चुनौतियों को जन्म दिया। लॉकडाउन के दौरान पर्यटन समेत राजस्व प्राप्ति के लगभग सारे स्रोत बंद रहने से प्रदेश की आर्थिक सेहत बुरी तरह बिगड़ गई। वित्त वर्ष में सरकार को 20856.25 करोड़ की राजस्व हानि उठानी पड़ी। प्रति व्यक्ति आय में करीब 8093 रुपये की कमी आई। विकास दर में भी करीब 2.5 फीसद कम रही। अन्य मोर्चों पर भी ऐसी ही आर्थिक चुनौती दिख रही है। सरकार का राजकोषीय घाटा 24912.63 करोड़ रुपये रहा। लेकिन, आर्थिक स्रोत की कमी के बावजूद सरकार द्वारा पेश बजट दिल नहीं तोड़ता बल्कि समाज के गरीब एवं कमजोर वर्गों का उत्थान पर विशेष फोकस रखा गया।

वर्ष 2021—22 के लिए सरकार ने 1 लाख 55 हजार 645 करोड़ रूपये का बजट पेश किया। जो वर्ष 2020—21 से 13 प्रतिशत अधिक है। बजट के जरिये सरकार ने आम आदमी पर कोई नया टैक्स नहीं थोपा है। सरकार ने अंत्योदय पर पूरा ध्यान केंद्रित किया है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने नई योजना मुख्यमंत्री अंत्योदय उत्थान अभियान की शुरू करने की घोषणा की। जिसके अंतर्गत 1.80 लाख रुपये वार्षिक आमदनी वाले दो लाख निर्धनतम परिवारों की पहचान की जाएगी। सरकार उनके आर्थिक उत्थान को सुनिश्चिचत करने हेतु शिक्षा, कौशल विकास, रोजगार और स्व—रोजगार के लिए प्रयास करेंगी।बजट में कृषि एवं कृषि आधारित उद्योगों को मजबूत बनाए जाने का भी प्रस्ताव है। विशेष तौर पर फसल बीमा योजना को लेकर सरकार उत्साहित है। इस योजना के तहत, अब तक 13 लाख 27 हजार किसानों को क्लेम के रूप में 2980.74 करोड़ रूपये की राशि वितरित की गई। हरियाणा सरकार की “किसान मित्र योजना” की शुरूआत भी एक स्वागतयोग्य फैसला है। इस योजना में बैंकों की साझेदारी से प्रदेश में 1000 किसान एटीएम स्थापित करने की परिकल्पना है। हरियाणा सरकार वर्तमान में गेंहू, चना, सरसों, सूरजमुखी, धान, मक्का, बाजरा, मूंग और मूंगफली पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दे रही है। कोविड—19 महामारी में भी सरकार ने रबी 2020—21 में 74.01 लाख मीट्रिक टन गेंहू और 7.49 लाख मीट्रिक टन सरसों की खरीद की। इसी तरह खरीफ 2020—21 के दौरान सरकार ने 56.07 लाख मीट्रिक टन धान और 7.76 लाख मीट्रिक टन बाजरे की खरीद की। सरकार ने बजट में एमएसपी पर खरीद जारी रखने का प्रावधान किया है। साथ ही 6.60 लाख मीट्रिक टन के अतिरिक्त कृषि उत्पाद भंडारण क्षमता को बढाने का निर्णय लिया है। सरकार प्रदेश के एक बड़े तबके को कृषि संबंधी गतिविधियों से बाहर निकालने का प्रयास कर रही है। बागवानी को लेकर प्रदेश सरकार की तैयारी इसी दिशा में जाता महत्वपूर्ण कदम है। बीते कुछ सालों में प्रदेश में 80.67 लाख मीट्रिक टन उत्पादन के साथ बागवानी क्षेत्र बढकर 4.78 लाख हेक्टेयर हो गया है। बजट में इस उत्पादन को तीन गुणा करने का लक्ष्य रखा गया है। मनोहर सरकार ने बजट के माध्यम से गुणवत्तापरक स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने का संकल्प दोहराया है। दवाईयों की उपलब्धता बढाने के साथ—साथ बुनियादी सुविधाएं, मानव संसाधन, उपकरणों को बढाया गया है। मनोहर सरकार ने वर्ष 2021—22 में सभी नागरिक अस्पतालों में कैथ लैब, एमआरआई और सीटी स्कैन की सेवाएं मुहैया कराने के साथ—साथप्रदेश में हेल्थ वेलनेस सेंटरों की स्थापना करने का प्रस्ताव है। वित्त मंत्री ने वर्ष 2021—22 के लिए 7731 करोड़ रूपये आवंटित करने का प्रस्ताव रखा है। यह प्रस्तावित परिव्यय वर्ष 2020—21 के अनुमान परिव्यय पर 20.2 प्रतिशत ज्यादा है। मनोहर सरकार ने बजट में 12वीं कक्षा तक फ्री शिक्षा व्यवस्था करने की घोषणा की है। इसके अलावा तीन से पांच आयु वर्ग के बच्चों के लिए सरकार की ओर से 4000 प्ले—वे स्कूल, 500 नए क्रैच, सभी खंडों में आदर्श संस्कृति स्कूल, अंग्रेजी माध्यम के राजकीय आदर्श संस्कृति स्कूल शुरू करने का प्रस्ताव रखा है। सरकारी स्कूलों के सौदर्यकरण करने एवं इन्हें आकर्षक बनाने के लिए उपयुक्त धनराशि, सभी स्कूलों की चारदीवारी, आरओ से शुद्व पेयजल मुहैया कराना भी सरकार की प्राथमिकता में है।

सुखद बात ये है कि, कठोर वित्तीय विवेकपूर्ण उपायों के कारण सरकार ने 8585 करोड रुपये का उधारी क्षमता का उपयोग नहीं किया। इसका शत-प्रतिशत श्रेय मुख्यमंत्री के अनुभव और विजन को दिया जाना चाहिए। असाधारण परिस्थितियों में असाधारण नीतियों की आवश्यकता होती है। चूंकि कोविड—19 महामारी के चलते सरकार ने अप्रत्याशित चुनौतियों का सामना किया। सरकार को आय और व्यय के अभूतपूर्व असंतुलन का सामना करना पड़ा। बावजूद इसके सरकार ने कोरोना पीड़ितों की मदद में अपने खजाने से भरपूर मदद की। इस पृष्ठभूमि में बजट गढ़ते हुए मनोहर सरकार के पास अवसर था कि वह कोरोना के सिर पर ठीकरा फोड़कर खुद बच निकलती, मगर सरकार ने इसके बजाय प्रदेश की उम्मीदों में रंग भरने का हौसला जुटाया। बजट में प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत से प्रेरित आत्मनिर्भर हरियाणा के लक्ष्य को आकार देने के प्रयास में कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, इंफ्रास्ट्रक्चर और महिला विकास जैसी प्राथमिकताओें के लिए स्थायी भाव की योजनाएं पेश करके सरकार ने चौंकाया ही है। यह कतई आसान नहीं था। जाहिर है, मनोहर लाल को एक तरफ प्रदेश के संसाधनों, खासकर कृषि पर भरोसा है, तो दूसरी ओर केंद्र सरकार पर। यह विश्वास भी बजट प्रस्ताव में साफ झलक रहा है।

(यह लेखक के निजी विचार है)

HC ने केंद्र से डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के नए नियमों के खिलाफ दायर याचिका पर मांगा जवाब

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दिल्ली हाई कोर्ट ने नेटफ्लिक्स, अमेजॉन प्राइम और हॉटस्‍टार जैसे प्लेटफॉर्म्स और डिजिटल मीडिया पर केंद्र सरकार के न‌ए नियमों को चुनौती देने वाली एक याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस जश्मीत की बेंच ने केंद्र सरकार को यह नोटिस जारी किया है। कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 16 अप्रैल को करेगी।

मालूम हो कि यह याचिका ‘फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिस्ट’ ट्रस्ट की ओर से दायर की गई है। यह ट्रस्ट ‘द वायर’ व ‘द न्यूज मिनट’ के संस्थापक और प्रधान संपादक धन्या राजेंद्रन और ‘द वायर’ के संस्थापक संपादक एमके वेणु द्वारा बनाया गया है।  

केंद्र सरकार ने 25 फरवरी को OTT प्लेटफॉर्म और डिजिटल मीडिया के लिए तकनीकी सूचना रूल्स, 2021 जारी की थी।

मीडिया खबर के अनुसार, याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट नित्या रामाकृष्णन ने कोर्ट से कहा कि सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से नए नियमों को लेकर दिए गए हलफनामे और गूगल के नियम अलग हैं। नियमों में अखबारों और समाचार-संस्थाओं के बारे में नहीं बताया गया है। ऐसा नहीं है कि समाचार माध्यम नियंत्रण से परे हैं, लेकिन इसका नियंत्रण एक कानून के माध्यम से किया जाना चाहिए।

 पिछले शुक्रवार को इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई गाइडलाइंस में अनुचित कार्यक्रम दिखाने वाले या नियमों का उल्लंघन करने वाले डिजिटल प्लेटफॉर्म के खिलाफ अभियोजन या सजा को लेकर उपयुक्त कार्रवाई करने के लिए कोई प्रावधान नहीं है।

सरकार ने गाइडलाइंस की घोषणा करते हुए कहा था कि नए नियमों से सोशल मीडिया कंपनियों और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को अधिक जिम्मेदार और जवाबदेह बनाने की जरूरत है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इन प्लेटफॉर्म पर अनुपयुक्त सामग्री को नियंत्रित करने के लिए नियमों में कुछ भी नहीं है और बगैर किसी कानून के इसे नियंत्रित करना संभव नहीं हो सकता। बेंच ने अपने आदेश में कहा था, ‘नियमों का अवलोकन करने से यह संकेत मिलता है कि नियम दिशानिर्देश के रूप में हैं और दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ छानबीन या उपयुक्त कार्रवाई के लिए कोई प्रभावी तंत्र नहीं है।’

Google को न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन ने लिखा लेटर

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अमेरिका की दिग्गज टेक्नोलॉजी कंपनी ‘गूगल’ से निजी टेलिविजन न्यूज चैनल्स का प्रतिनिधित्व करने वाले समूह ‘न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन’ ने फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों की तरह भारतीय न्यूज पब्लिशर्स को भी उनके कंटेंट को इस्तेमाल करने से होने वाली कमाई में हिस्सेदारी देने का आग्रह किया है।

मीडिया खबर के अनुसार, इस बारे में एनबीए ने गूगल इंडिया के कंट्री मैनेजर संजय गुप्ता को एक लेटर लिखा है। एनबीए प्रेजिडेंट रजत शर्मा की ओर से लिखे इस लेटर में कथित रूप से कहा गया है, ‘ऐडवर्टाइजिंग रेवेन्यू का असमान वितरण और एडवर्टाइजिंग सिस्टम में पारदर्शिता की कमी से डिजिटल न्यूज बिजनेस काफी दबाव में आ रहा है।’

इस लेटर के हवाले से मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है, ‘विश्वसनीय जानकारी जुटाने, सत्यापित करने और वितरित करने के लिए एंकर्स, पत्रकारों और रिपोर्टर्स को नियुक्त करने में न्यूज ऑर्गनाइजेशंस काफी निवेश करते हैं, लेकिन उन्हें पर्याप्त रूप से रेवेन्यू नहीं मिल पाता है। एडवर्टाइजिंग रेवेन्यू का एक बड़ा हिस्सा असमान रूप से गूगल, यूट्यूब, फेसबुक जैसे टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म्स को चला जाता है।’ लेटर के अनुसार, ‘इस कड़ी में गूगल अपने ऑडियंस को न्यूज कंटेंट उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और रेवेन्यू जुटाता है, लेकिन न्यूज पब्लिशर्स को इस रेवेन्यू में हिस्सेदारी नहीं मिल पाती है। गूगल ने पिछले दिनों फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों के न्यूज पब्लिशर्स को उनका कंटेंट इस्तेमाल करने के बदले रेवेन्यू में हिस्सेदारी देने पर सहमति जताई है। उम्मीद है कि एक बहुराष्ट्रीय ऑर्गनाइजेशन होने के नाते गूगल वैश्विक सिद्धांतों का पालन करेगा और भारतीय न्यूज पब्लिशर्स को भी उनका न्यूज कंटेंट दिखाने के ऐवज में भुगतान करेगा।’

आंदोलनों में लगे दीमक हैं आंदोलनजीवी

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 डॉ. सुजाता मिश्र

आज़ादी का संघर्ष भारतीय समाज में पुनर्जागरण का एक ऐसा दौर था जिसमें  नये भारत का भविष्य लिखा जा रहा था। तमाम तरह की समाजिक विसंगतियों से मुक्ति, रुढिवाद से मुक्ति और नये – बेहतर कल के इस राष्ट्रीय कायाकल्प का आधार ही “राष्ट्रवाद” था। समाज का बुद्धिजीवी  वर्ग इस बदलाव का पथ प्रदर्शक था, जिसमें स्वामी दयानंद सरस्वती, राजाराम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर , स्वामी विवेकानंद जैसे राष्ट्रभक्त शामिल थे। इसके साथ ही साहित्यकारों , पत्रकारों का देशभक्त वर्ग भी नवजागरण के इस प्रकाश को गांव – कस्बों सहित समस्त देश में फैला रहा था। मकसद था विदेशी शासन से मुक्ति…. स्वराज्य की स्थापना, इसीलिये आत्मगौरव , राष्ट्र्गौरव के भाव को जन – जन में जगाने का प्रयास शुरु हुआ। ये सभी राष्ट्र्भक्त बुद्धिजीवी , सजग समाजिक समूह ही समाज सेवक कहलाये। जनता के मार्गदर्शक के रूप में इनका स्थान सत्ता से , पुलिस प्रशासन से यहां तक की अंग्रेजी कानूनों से भी ऊपर था।

वर्ष 1947 में देश आज़ाद हो गया, लेकिन तब तक पत्रकारों, साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों का एक वर्ग पुन: रीतिकालीन दरबारी परिवेश में लौट गया था। ब्रिटिश हुकूमत के रहते यह वर्ग अंग्रेजों को खुश करने हेतु, उनका दिल जीतने हेतु साहित्य सृजन करता था, बदले में बडे – बडे सम्मान, पुरस्कार और पद प्राप्त करता था। इसी कथित बुद्धिजीवी अवसरवादी वर्ग ने अंग्रेजी शासन से विरुद्ध संघर्ष की दिशा बदलकर धर्म, जाति , गरीबी, अमीरी पर केंद्रित कर दी। परिणामत: देश आज़ाद तो हुआ किंतु मज़हबी आधार पर बंटवारे के साथ। समाज को धर्म- मज़हब , अमीर – गरीब और जातिगत वर्गो में बांटने वाले झंडाबरदार अब समाज सुधारक कहलाये जाने लगे। साहित्य, सिनेमा,  गीतों के माध्यम से बडे जतन और चालाकी के साथ आमजन के मन से पत्रकारों और एनजीओ धारी व्यावसायिक समाज सेवकों को समाज के सच्चे हितैषी के रूप में स्थापित किया गया। ये जो कहे वही सौ आना सच। ये जब चाहे, जिसके खिलाफ मोर्चा खोल दें। गांधी जी को अपना “ब्रांड अम्बेसडर” बनाकर इन लोगों ने इस देश में अहिंसा पूर्वक विरोध के नाम पर धरना, प्रदर्शन , अनशन को एक राजनीतिक तमाशा बनाकर रख दिया। बात – बात पर लोकतंत्र और संविधान की दुहाई देना किंतु स्वयं को जनता द्वारा चुनी गयी सरकार से भी ऊपर मानना! व्यक्तिवाद, क्षेत्रवाद,जातिवाद के पहिये पर सवार होकर खुद को समाज सुधारक कहने वाले इस वर्ग का सीधा विरोध  राष्ट्र के हर उस तत्व  से है जिनपर आज़ादी से पूर्व के समाज सुधारकों को गर्व था। राष्ट्रभाषा, राष्ट्र सेना, राष्ट्र की प्रशासनिक व्यवस्था, राष्ट्र की कानून व्यवस्था , राष्ट्र के वो व्यवसायी जिनके उद्योगो के दम पर करोडों लोगों को रोजगार मिला हुआ है…. जिनके दम पर राष्ट्र की अर्थव्यवस्था चलती है। राष्ट्र की अवधारणा के विरुद्ध चलने वाले ये कैसे समाज सुधारक हैं? यह विमर्श का मुद्दा है!

  आज़ादी के बाद इस देश में एक लम्बे समय तक लोकतंत्र के नाम पर एक ही परिवार का राजतंत्र चलता रहा। यह इन कथित समाज सुधारकों के लिये स्वर्ण काल था। धडल्ले से लाखों प्रकार के एनजीओ इस देश में बने….लेकिन समाज की स्थिति वही की वही रही …. एक वक्त ऐसा था कि चार बेरोजगार दोस्त मिलकर यह सोचकर ही एनजीओ बना लेते थे कि “यार बहुत कमाई है इसमें” …. एनजीओ की आड में कितनी समाज सेवा हुई यह तो समाज की स्थिति ही देखकर समझ आ जाता है। पर जब सईयां भये कोतवाल तो डर काहे का? कांग्रेसी शासन में इन कथित समाज सेवियों को राष्ट्रीय – अंतराष्ट्रीय सम्मानों से नवाज़ा गया…. बडे – बडे पद दिये गये। रणनीतिकार के रूप में ये समाज से सहयोगी बने रहे और बढियां मलाई खाते रहे। गरीबी भुखमरी में उलझी जनता इन्हें “मसीहा” के रूप में देखती रही। गरीबों के जीवन से जुडे जो सुधार कार्य जो सरकार को करने थे वो सरकार की छ्त्रछाया में पलने वालें पत्रकार और एनजिओं कर रहे थे…. यहीं से इनकी जडे फैलती चली गयी, और अब सिनेमा जगत के लोग भी इनके झंडे थाम कर खडे हो गये।

2014 में इस देश में दो बडे बदलाव हुए, एक तरफ जहां एक कर्मठ प्रधानमंत्री  देश को मिला, तो वहीं एनजिओ से जन्मा एक मुख्यमंत्री देश की राजधानी दिल्ली को मिला। कर्मठ प्रधानमंत्री ने अपनी इच्छाशक्ति , संकल्पशक्ति और रणनीति के दम पर देश में अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन किये। जम्मू कशमीर से अनुच्छेद 370 को हटाना, मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के खौफ से मुक्ति, घर – घर बिजली,गरिबों को आवास,गैस चूल्हा  वितरण …. सब ऐसे कार्य जिनके दम पर बरसों से सामाज सेवकों की दुकानें चलती थी।

दूसरी ओर एनजीओ और आंदोलन  से जन्मी दिल्ली की सरकार है, जिसने दिल्ली को आंदोलनकारियों  की नयी प्रयोगशाला बना दिया है। देश के तमाम मुद्दे अब दिल्ली की सडकों पर ही उठाये जाते हैं….विद्यार्थियोंकी समस्या हो या किसानों की, बेरोजगारों की समस्या हो या पेंशनधारियों की, स्त्रीयों की सुरक्षा का मुद्दा हो या समलैगिकों के अधिकारों की लडाई हो…. कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक देश के हर मुद्दे को आवाज़ देने वाले वही गिने – चुने चेहरे …. ये प्रोफेशनल समाज सेवी हैं! हर वक्त नये मुद्दों की तलाश में रहते हैं! आंदोलन ही इनका व्यवसाय है…. प्रोपोगैंडा इनका हथियार …. भय का व्यापार करते हैं और दिल्ली के आस – पास मौजूद तमाम मीडिया हॉउस 24 घंटे इनके प्रोपोगैंडा को ही राष्ट्रीय विमर्श का मुद्दा बनाकर दिखाते हैं! आंदोलनजीवियों का यह खेल तब तक चलता रहेगा , जब तक जनता स्वयं जिम्मेदार बनकर इनके दावों और हकीकत का मेल करना नहीं सीखेगी। मोदी जी ने शुरुआत की है, अब जनता को पहचानना होगा …. इन परजीवी आन्दोलनजीवी व्यावसायिक समाज सेवियों को।

(लेखिका भोपाल रहती हैं। पेशे से प्राध्यापक हैं। अध्ययन और लेखन उनके रुचि का क्षेत्र है।)

एडिटर्स गिल्ड ने कश्मीरी पत्रकारों की हिरासत पर जताई हैरानी

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जम्मू-कश्मीर स्थित अखबारों के एडिटर्स को उनकी रिपोर्टिंग या एडिटोरियल के लिए ‘अनौपचारिक तरीके’ से हिरासत में लिए जाने पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने हैरानी जताई है। एडिटर्स गिल्ड ने अपने बयान में ‘द कश्मीर वाला’ के एडिटर-इन-चीफ फहाद शाह की हाल में हुई हिरासत का जिक्र किया।

EGI ने अपने बयान में कहा कि शाह को कुछ ही घंटे हिरासत में रखने के बाद छोड़ दिया गया था, हालांकि ये तीसरी बार है जब अपनी लेखनी के लिए फहाद शाह को हिरासत में लिया गया है। एडिटर्स गिल्ड ने कहा कि उनका यह मामला अकेला नहीं है। कई ऐसे पत्रकार हैं जो इस न्यू नॉर्मल का सामना कर रहे हैं कि सरकार के घाटी में शांति लौटने के नैरेटिव से कुछ भी अलग लिखने वालों को सुरक्षा बल हिरासत में ले सकते हैं।

जम्मू-कश्मीर प्रशासन से एडिटर्स गिल्ड ने ऐसी परिस्थिति बनाने की मांग की है, जहां प्रेस ‘बिना किसी डर और तरफदारी’ के अपना नजरिया जाहिर कर सके और खबरों की रिपोर्ट कर सके।

मालूम हो कि भारतीय सेना ने 30 जनवरी को ‘द कश्मीर वाला’ के एडिटर-इन-चीफ फहाद शाह और असिस्टेंट एडिटर यशराज शर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। ये एफआईआर 27 जनवरी की एक न्यूज रिपोर्ट के लिए हुई थी, जिसमें कहा गया था कि सेना के लोगों ने शोपियां जिले में कथित तौर से एक स्कूल को गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम करने के लिए मजबूर किया था।

इसके अलावा भी कई ऐसे पत्रकार हैं, जिन पर कार्रवाई की गई है। 5 मई को दो फोटोजर्नलिस्ट को श्रीनगर के नौहट्टा इलाके में प्रदर्शन शुरू होने के बाद पुलिस ने कथित तौर से पीटा था। पिछले साल 18 अप्रैल को फ्रीलांस फोटोजर्नलिस्ट मसरत जहरा पर उनके सोशल मीडिया पोस्ट्स को लेकर UAPA लगाया गया था।

पत्रकार के घर हुई चोरी

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एक वरिष्ठ पत्रकार के घर चोरी की वारदात बिहार के लखीसराय के बड़हिया थाना क्षेत्र में सामने आई है। चोरों ने तकरीबन 60 लाख की संपत्ति पर अपना हाथ साफ किया है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक, यह चोरी पत्रकार कल्याण सिंह के बड़हिया स्थित घर में हुई है। वे नोएडा स्थित सहारा समय में कार्यकारी संपादक के पद पर कार्यरत हैं।

घटना दो दिन पहले की बताई जा रही है। सोमवार को पहुंचे पीड़ित परिवार ने चोरी की गई संपत्ति का आंकलन किया और पुलिस को बताया कि चोरो ने करीब 60 लाख से ज्यादा के जेवरात, कैश और चांदी के बर्तन उड़ा लिए। इस बीच पुलिस ने खोजी कुत्ते की मदद से तफ्तीश शुरू कर दी है।

जानकारी के अनुसार, वारदात के वक्त घर में कोई भी नहीं था, क्योंकि घर के सभी सदस्य दिल्ली और बेगूसराय में थे। घर पर रहने वाली मां बहू के साथ तीन माह से बेगूसराय में बेटी के घर रह रही थी। घर के साथ ही कृषि कार्यों की देखरेख के लिए पास के ही ललित साव को जिम्मेदारी दी गई थी। शनिवार की दोपहर ललित भी किसी काम से बाहर चला गया था और जब अगले दिन रविवार की शाम वापस लौटा तो मुख्य दरवाजे पर लगा ताला टूटा पाया। अंदर जाकर देखा तो पाया कि मकान के अंदर स्थित सभी कमरों के ताले टूटे पड़े थे। संदूक और अलमीरा का सारा सामान कमरे में फैला हुआ था। घटना की सूचना तत्काल गृहस्वामी को दी गई, इसके बाद थाने में शिकायत दर्ज कराई गई।

गृहस्वामी की मां और पत्नी रविवार की सुबह बेगूसराय से वापस बड़हिया पहुंची। उन्होंने बताया कि मां के पुश्तैनी समेत दोनों बहू के सारे जेवरात संदूक के ही अंदर थे, जिसमें 80 तोले सोने के जेवरात, 10 किलो चांदी के बर्तन और 2 लाख रुपए नकद पड़े थे, जोकि गायब थे। इसके अलावा कुछ जरूरी दस्तावेज भी चोर ले गए।

पुलिस ने डॉग स्क्वायड की टीम के साथ ही घटना के बाद अपनी जांच शुरू कर दी। एक ही नहीं बल्कि आसपास के कुल तीन घरों में चोरी हुई है। इन एक घर में हुई चोरी का आकलन पूर्व में ही कर लिया गया था, लेकिन दो घरों में हुई चोरी के मामले में गृहस्वामी की अनुपस्थिति में आकलन नहीं हो सका था, जिस जगह पीड़ित कल्याण सिंह का घर है, वह एनएच 80 से महज 10 फीट की दूरी पर है। एक-दो नहीं बल्कि दस-दस कमरों के दरवाजे का ताला तोड़कर चोरों ने आसानी से पूरी घटना को अंजाम दे डाला और किसी को कुछ भनक तक नहीं लग सकी।

ज्यादातर बाल यौन शोषण के मामले की फाइल थाने में ही बंद हो जाती है – कैलाश सत्या्र्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन

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कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रेन्‍स फाउंडेशन (केएससीएफ) ने अंतर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। फाउंडेशन द्वारा जारी एक अध्ययन रिपोर्ट बताती हैं कि हर साल बच्चों के यौन शोषण के तकरीबन तीन हजार मामले निष्पक्ष सुनवाई के लिए अदालत तक पहुंच ही नहीं पाते। हर दिन यौन शोषण के शिकार चार बच्‍चों को न्याय से इसलिए वंचित कर दिया जाता है कि क्योंकि पुलिस पर्याप्‍त सबूत और सुराग नहीं मिलने के कारण इन मामलों की जांच को अदालत में आरोपपत्र दायर करने से पहले ही बंद कर देती है। बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ प्रिवेन्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्सेस एक्ट (पॉक्सो) के तहत मामला दर्ज किया जाता है। भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन कार्यरत नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की साल 2019 की रिपोर्ट बताती है कि बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों में उनके यौन शोषण के खिलाफ मामलों की हिस्सेदारी 32 फीसदी है। इसमें भी 99 फीसदी मामले लड़कियों के यौन शोषण के मामले होते हैं।   

अंतर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रेन्‍स फाउंडेशन ने “पुलिस केस डिस्‍पोजल पैटर्न: एन इन्‍क्‍वायरी इनटू द केसेस फाइल्‍ड अंडर पॉक्‍सो एक्‍ट 2012’’ और “स्टेट्स ऑफ पॉक्सों केस इन इंडिया” नामक दो अध्ययन रिपोर्ट तैयार किया है। यह अध्‍ययन रिपोर्ट साल 2017-2019 के बीच पॉक्‍सो मामलों के पुलिस निपटान के पैटर्न का विश्लेषण है। यह तथ्‍य नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर आधारित है जो हर साल क्राइम ऑफ इंडिया रिपोर्ट नाम से जारी जाती है। रिपोर्ट में पिछले कुछ सालों के तुलनात्मक अध्ययन से पता चलता है कि आरोपपत्र दाखिल किए बिना जांच के बाद पुलिस द्वारा बंद किए गए मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है। पॉक्सो कानून के मुताबिक बच्चों के यौन शोषण से जुड़े मामले की जांच से लेकर अदालती प्रकिया एक साल में खत्म हो जानी चाहिए। यानी एक साल के भीतर ही पीड़ित को न्याय मिल जाना चाहिए। जबकि रिपोर्ट बताती है कि सजा की यह दर केवल 34 फीसदी है। इसकी वजह से अदालतों पर पॉक्सों के मामलों का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है।

बच्‍चों का यौन शोषण सबसे जघन्य अपराधों में से एक है। यह अपराध समाज के लिए एक धब्बा है, क्योंकि यह मासूमों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने में विफल रहा है। आंकड़ों से पता चलता है कि देश में पिछले कुछ वर्षों में यौन अपराधों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। जबकि सरकार ने एक विशेष कानून की जरूरत को महसूस करते हुए ही पॉक्‍सो कानून बनाया था। लेकिन जमीन पर इसका प्रभाव और परिणाम अत्‍यंत निराशाजनक रहा है। सरकार ने बच्चों के यौन शोषण के मामले में अतिशीघ्र सुनवाई कर त्वरित गति से न्याय दिलाने के लिए 2018 में फास्टट्रैक कोर्ट बनाने की घोषणा की थी। लेकिन अभी तक इसे अमलीजामा नहीं पहनाया गया। आकड़े बताते हैं कि साल 2017 में पॉक्‍सो के तहत 32,608 मामले दर्ज किए गए जो 2018 में बढ़कर 39,827 हो गए। यह वृद्धि करीब 22 फीसदी थी। जबकि 2019 में यह संख्या बढ़कर 47,335 हो गई। साल 2018 के मुकाबले इसकी तुलना की जाए तो साल 2019 में पिछले के मुकाबले बच्चों के यौन शोषण के मामलों में 19 फीसदी की बढोत्तरी देखने को मिली।

पीडि़तों के न्‍याय को सुनिश्चित करने में आरोपपत्र दाखिल करना एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि यह निष्पक्ष सुनवाई और न्याय का मार्ग प्रशस्त करता है। नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यरो के आंकड़ों में यह देखा गया है कि पॉक्‍सो के तहत दर्ज कुल मामलों में से 6 फीसदी मामले सबूत का अभाव बताकर थाने की फाइलों में ही बंद कर दिए जाते हैं। जो मामले बिना आरोपपत्र दाखिल किए ही पुलिस द्वारा बंद किए गए थे, उनमें 40 फीसदी मामले सही थे। लेकिन, जांच में उसके पक्ष में पर्याप्‍त साक्ष्‍य या सुराग नहीं मिल पाए थे। चूंकि मामलों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है, जिन्हें चार्जशीट दाखिल किए बिना बंद कर दिया गया। इसलिए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जांच ठीक से नहीं की गई थी। यह एक ऐसा संवेदनशील मसला है, जिसे पीड़ितों को न्याय दिलाने और बच्चों के प्रति यौन अपराधों की संख्या पर रोक लगाने के लिए तुरंत कार्रवाई करने की जरूरत है।

इसके अलावा केएससीएफ ने (2017 से 2019) पॉक्‍सो मामले में एक अन्य विश्लेषण का भी खुलासा किया है। जिसमें कहा गया है कि बाल यौन दुर्व्‍यवहार के पीड़ितों के न्‍याय को सुनिश्चित करने के लिए अदालतों को अपने न्याय वितरण तंत्र को तत्‍काल तेज करने की आवश्यकता है। पिछले मामले (बैकलॉग) भी अगले वर्ष में जांच के लिए मामलों की संख्या में वृद्धि कर रहे हैं। यह ऐसे गंभीर मामलों से निपटने के लिए पुलिस की प्रभावी भूमिका पर भी सवाल उठता है। इस प्रकार 2017 के बाद से जांच के लंबित मामलों में 2019 तक 44 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह सालाना औसतन 15 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि के साथ यह जारी है। यदि लंबित मामलों में यह वृद्धि जारी रहती है तो लंबित मामलों की संख्या सात वर्षों में दोगुनी हो जाएगी।

स्टेट्स ऑफ पॉकसों केस इन इंडिया रिपोर्ट बताती है कि मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्‍तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली ऐसे राज्‍य हैं, जहां बच्चों के यौन शोषण यानी पॉक्सो के कुल मामलों में भागीदारी 51 फीसदी है। जबकि इन राज्यों में पॉक्सो मामले में सजा की दर 30 फीसदी से 64 फीसदी के बीच है, जो काफी कम है। एक हकीकत यह भी है कि जिन मामलों में पीड़ित वंचित और हाशिए के समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, उन मामलों में पीड़ित एफआईआर में वर्णित तथ्यों से किसी प्रभाव में आकर या किसी मजबूरी में समय आने पर अपने बयान को बदल देते हैं या सच से खुद मुकर जाते हैं।   

रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रेन्‍स फाउंडेशन की निदेशक ज्योति माथुर ने कहा, “पीडि़तों के न्‍याय को सुनिश्चित करने और प्रभावी ढंग से चुनौतियों का समाधान करने के लिए पॉक्‍सो के तहत पंजीकृत सभी मामलों को अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक या पुलिस उपायुक्त स्तर के वरिष्ठ अधिकारी द्वारा बारीकी से देखा जाना चाहिए। दूसरी ओर बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से संबंधित मामलों के बढ़ते हुए खतरों को देखते हुए इसकी जांच के लिए जिला स्तर पर एक समर्पित यूनिट की की भी आवश्यकता है। साथ ही पीड़ितों को शीघ्र न्याय दिलाने के लिए फास्टट्रैक और स्पेशल कोर्ट की जरूरत है। इसके अलावा यौन अपराध के शिकार बच्‍चों और महिलाओं को ऐसे प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिकों को भी मुहैया कराने की आवश्‍यकता है, जो उन्‍हें ऐसे आघातों से पार पाने में सहायता कर सकें। फाउंडेशन देश से बाल यौन शोषण के किसी भी खतरे को दूर करने के लिए सभी संबंधित हितधारकों को अपना पूर्ण समर्थन और सहयोग देगा।’’

चरैवेति चरैवेति…

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साथी अजीत भारती के विदाई पर कुछ इस तरह याद किया अजीत झा ने

2021 की इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को एक पुरुष साथी अलग सफर पर निकला पड़ा तो मुझे सहसा ऐतरेय ब्राह्मण की याद आई। इसमें कहा गया है;

चरन् वै मधु विंदति चरन् स्वादुमुदंबरम

सूर्यस्य पश्य श्रेमाणं यो न तंद्रयते चरंश्चरैवेति

यानी, चलते हुए मधु प्राप्त होता है। चलते हुए फल का स्वाद मिलता है। सूर्य की श्रेष्ठता देखो, चलते हुए उसे तंद्रा नहीं आती। चलते रहो।

तो हमारे एक साथी ने एक और नए सफर पर चलते रहना का आज आधिकारिक तौर पर फैसला कर लिया। वह फैसला जिसके बारे में मैं काफी समय से जानता था। जिसको लेकर आपमें से कई ने फोन कर, कुछ ने संदेश भेज मुझसे पूछा था। और मैं हमेशा कहता कि मुझे जानकारी नहीं। वे आज भी मेरे संपादक हैं और मुझे निर्देश दे रहे हैं।

तो अब आधिकारिक खबर यह है कि अजीत भारती मेरे संपादक से पूर्व संपादक हो गए हैं। मुझे सहसा जून 2019 का महीना याद आ गया। मैं करीब एक महीने बाद दिल्ली लौटा था और एक दिन शाम के वक्त एक नंबर पर कॉल मिलाया। नंबर के उस पार अजीत भारती थे। मैंने कहा कि फलाने आदमी से आपका नंबर मिला। उन्होंने कहा- अरे महराज मार्च में मेरी उनसे बात हुई थी, आपको अब याद आई है। आप कल आकर मिलिए। उन्होंने पता बताया और समय। अगले दिन मैं नियत जगह पर पहुंचा। वे एक केबिन में ले गए। सोफे पर बिठाया और खुद से मेज पर रखा कॉफी का मग और अन्य कूड़ा साफ करने लगे। फिर इधर-उधर की कई बातें हुई। मैंने पूछा कि काम के सिलसिले में कुछ पूछना हो। वे बोले- आप इतने अनुभवी हैं। क्या पूछना। आप बताइए कब से शुरू करेंगे? इसके बाद 7 मार्च 2021 तक यह सफर साथ-साथ चलता रहा। 

यह बेहतरीन सफर रहा! ऐसा सफर जिसे आप पूरी जिंदगी याद रखना चाहेंगे!

अजीत जी की चर्चाओं के साथ कुछ सवाल भी हैं। व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि राष्ट्रवादी पत्रकारिता को मजबूत करने की दिशा में अभी इतना काम करने की जरूरत है कि ढेर सारे वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध संस्थान खड़ा करना जरूरी है। इसलिए, अजीत जी के नए वेंचर से इस तरह की पत्रकारिता को कोई नुकसान नहीं होगा। यह और समृद्ध होगा। इससे ऑप इंडिया के विचारों को भी और विस्तार मिलेगा।

इसलिए, यह वक्त किंतु-परंतु का नहीं। दुख या अवसाद का नहीं। उल्लास का है! DO Politics को भी वैसा ही दुलार और सहयोग दें, जैसा आप ऑप इंडिया को देते रहे हैं। हां, रोजमर्रा की जीवन में डोंट डू पॉलिटिक्स!

चलते-चलते बाबा नागार्जुन याद आ रहे हैं। उन्होंने कहा था, 

पुरजन, परिजन के छोड़ि छाड़ि

पातिल पुरहर के फोड़ि फाड़ि

हम जा रहल छी आन ठाम

आन ठाम, यानी दूसरी जगह। लेकिन इससे फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि हम उस परंपरा के लोग हैं जो दूसरी जगह जाते वक्त भी पातिल पुरहर (पत्राच्छादित कलश) को नहीं फोड़ते।  

नई सफर की हृदय से शुभकामनाएं। मां उच्चैठ भगवती आपको और प्रखरता दें।

पहली बार हुई इस देश में ट्रांसजेंडर न्यूज एंकर की नियुक्ति

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पहली बार बांग्लादेश में एक ट्रांसजेंडर को न्यूज एंकर के पद पर नियुक्त किया गया है। बांग्लादेश की आजादी के 50 साल पूरे होने पर ‘बोइशाखी टीवी’ चैनल ने ट्रांसजेंडर तश्नुवा आनन शिशिर को न्यूज एंकर के तौर पर नियुक्ति दी है।

मीडिया खबर के अनुसार, तश्नुवा एक मॉडल और एक्टर भी हैं और वह अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस यानी आठ मार्च से न्यूज एंकर के रूप में अपनी पारी की शुरुआत करेंगी। तश्नुवा ने 2007 में थिएटर मंडली नटुआ के साथ अपने अभिनय करियर की शुरुआत की थी। वह दो साल से अधिक समय तक थिएटर मंडली बोटटोला का हिस्सा रही हैं और कई प्रस्तुतियों में अहम भूमिका निभाई है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार ‘बोइशाखी टीवी’ चैनल के जनसंपर्क अधिकारी दुलाल खान का कहना है, ‘ हमने स्वतंत्रता स्वर्ण जयंती की पूर्व संध्या और महिला दिवस पर दो ट्रांसजेंडर महिलाओं को अपने चैनल की न्यूज और नाटक टीम में नियुक्त किया है। यह पहली बार है जब देश के लोग एक ट्रांसजेंडर को न्यूज एंकरिंग करते हुए देखेंगे। ऐसा स्वतंत्रता के 50 वर्षों में पहले कभी नहीं हुआ है।’

किसके सिर सजा e4m Influencer Of Year Award का ताज

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‘एक्सचेंज4मीडिया इन्फ्लुएन्सर ऑफ द ईयर’ अवॉर्ड 2020 से‘इनमोबी और ग्लांस’ के फाउंडर और सीईओ नवीन तिवारी को सम्मानित किया गया है। शुक्रवार को आयोजित एक कार्यक्रम में नवीन तिवारी को यह अवॉर्ड दिया गया। यह अवॉर्ड हर साल ऐसे व्यक्ति को दिया जाता है, जिसने अपने आयडिया अथवा कामों से इंडस्ट्री की दशा और दिशा को बदलने में महत्वपूर्ण काम किया है।

थोड़े से समय में ही उनके द्वारा किए गए अनुकरणीय कार्यों के लिए नवीन तिवारी को जाना जाता है। उन्होंने एक स्टार्ट-अप कंपनी को एक सफल ग्लोबल टेक्नोलॉजी कंपनी में परिवर्तित कर अपनी खास पहचान बनाई है।

नवीन तिवारी ने वर्ष 2008 में ‘इनमोबी’ की स्थापना कर एंटरप्रिन्योरशिप की दुनिया में ग्लोबल कंसल्टेंसी कंपनी ‘मैकिन्से’ में संक्षिप्त पारी के बाद कदम रखा था। उनके नेतृत्व में भारत की पहली यूनिकॉर्न कंपनियों में से एक ‘इनमोबी’ ने अब खुद को दुनिया के अग्रणी एडवर्टाइजिंग प्लेटफॉर्म के रूप में स्थापित कर लिया है। बता दें कि जब कोई कंपनी एक अरब डॉलर का वैल्यूएशन हासिल करती है, तो उसे यूनिकॉर्न कहा जाता है। तिवारी के दूसरे बिजनेस वेंचर ‘ग्लांस’ ने भी यूजर्स के बीच अपनी खास पहचान बना ली है। नवीन तिवारी ‘पेटीएम’ के बोर्ड मेंबर भी रह चुके हैं।

नवीन तिवारी ने यह प्रतिष्ठित अवॉर्ड मिलने पर कहा, ‘मैं काफी शुक्रगुजार हूं और अपनी टीम की ओर से इस अवॉर्ड को स्वीकार करता हूं, जिसने अपनी मेहनत से यह सब कर दिखाया है। पिछला साल देखें तो एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि जीवन में बहुत सी बड़ी चीजें हैं, जिनकी हमने पहले कल्पना नहीं की थी। e4m एक बेहतरीन प्लेटफॉर्म है, जो लोगों के काम की पहचान कर उन्हें सम्मानित करता है। यह अवॉर्ड मिलने पर मैं काफी खुश हूं।’

कार्यक्रम के दौरान नवीन तिवारी और ‘बिजनेस वर्ल्ड’ और ‘एक्सचेंज4मीडिया’ ग्रुप के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ डॉ. अनुराग बत्रा के बीच सवाल-जवाब का दौर भी चला। इस दौरान यह पूछे जाने पर कि पिछले 12 महीने उनके लिए कैसे रहे हैं और इस समय से उन्हें क्या सीखने को मिला, तिवारी ने कहा कि दुनिया पिछले 12 महीनों में हुई हर चीज से प्रभावित हुई है। हालांकि शारीरिक व मानसिक तौर पर यह लोगों के लिए काफी मुश्किल समय रहा है, लेकिन कुछ चीजें विकसित भी हुई हैं। मैं अपने बिजनेस की बात करूं तो डिजिटल काफी तेजी से आगे बढ़ा है। व्यक्तिगत रूप से अपनी बात करूं तो इन महीनों में मेरी सोच में काफी महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं और जीवन जीने के तरीकों में काफी बदलाव आया है। उम्मीद है कि आगे काफी अच्छा होगा।

मालूम हो कि ‘एक्सचेंज4मीडिया इन्फ्लुएन्सर ऑफ द ईयर’ अवॉर्ड 2016 में शुरू हुआ था। उस साल ‘वायकॉम 18’ के तत्कालीन सीओओ राज नायक को इस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। वर्ष 2017 में इस अवॉर्ड से ‘डब्ल्यूपीपी इंडिया’ के कंट्री मैनेजर सीवीएल श्रीनिवास को सम्मानित किया गया था। वर्ष 2018 में यह अवॉर्ड ‘डेलीहंट’ के फाउंडर और सीईओ वीरेंद्र गुप्ता और इसके को-फाउंडर उमंग बेदी को दिया गया था, जबकि पिछले साल ‘गूगल इंडिया’ के कंट्री मैनेजर संजय गुप्ता को इस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था।

एकल ने अपने ध्येय वाक्य को साकार किया है : राम बहादुर राय

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एकल ने शिक्षा-संस्कार के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इसके साथ ही समाज को स्वावलंबन का पाठ भी पढ़ाया है। कोरोना काल में जब पूरा विश्व महामारी से प्रभावित था, भारत में समाज की ताक़त ने इस बीमारी को हराया है। 40 करोड़ भारतवासियों तक एकल की पहुँच और महामारी से बचाव ने मानवता की मिसाल पेश की है। यह कहना था वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा का। वे एकल श्री हरि सत्संग समिति के रजत जयंती महोत्सव के उद्घाटन सत्र में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि अभी जहाँ विकास की रोशनी ही नहीं पहुँच पाई वहाँ एकल ने शिक्षा के ज़रिए अलख जगायी है। 

इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने कहा कि एकल ने अपने ध्येय वाक्य को साकार किया है। महात्मा गांधी के सपनों का भारत सही मायनों में एकल ने बनाया है। गांधीजी का स्वप्न एकल का सपना बना है। उन्होंने कहा कि 1 लाख एकल गाँव सत्ता के चार केंद्रों का प्रतिरूप हों। उन्होंने एकल अभियान को शुभकामनाएं देते हुए उसके उत्तरोत्तर प्रगति की कामना भी की।

 द्वितीय सत्र के मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार सुधीर चौधरी ने एकल अभियान को अद्वितीय बताते हुए कहा कि एकल ने समाज को एकाकार कर असंभव को संभव किया है। उन्होंने एकल में नवाचारों को महत्व देने की बात करते हुए कहा कि अब आने वाली पीढ़ी को एकल से जोड़ना महत्वपूर्ण है और मुझे आशा है कि संगठन इस कार्य को पूर्ण करेगा। 

वरिष्ठ पत्रकार अंशुमान तिवारी ने एकल को समाज जीवन की गीता बताते हुए कहा कि शिक्षा पद्धति में विज्ञान और चरित्र का समावेश ही सही शिक्षा है। इसे शासन से दूर रखना चाहिए। सही मायने में शिक्षा समाज के हाथों में ही रहना चाहिए। 

कार्यक्रम में सिद्धार्थ शंकर गौतम द्वारा लिखित पुस्तक स्वराज का शंखनाद-एकल अभियान का विमोचन भी हुआ। बजरंग बागड़ा ने एकल श्री हरि सत्संग समिति की कार्य योजना पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के अंत में श्री हरि सत्संग समिति के कथाकारों की फ़िल्म का प्रदर्शन हुआ।

जान से मारने की धमकी मिली पत्रकार दीपक चौरसिया को

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जाने माने वरिष्ठ पत्रकार दीपक चौरसिया को लोकप्रिय डिबेट शो ‘देश की बहस’ में जान से मारने की धमकी दी गई। ये धमकी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी PTI के प्रवक्ता चौधरी इफ्तिखार गुज्जर ने दी। चौधरी इफ्तिखार गुज्जर ने कहा, ‘अगर हमारे नबी के बारे में बकवास की तो मैं तुम्हारी गर्दन काटने के लिए इंडिया भी पहुंच जाऊंगा…’

दरअसल ‘देश की बहस’ में चर्चा हो रही थी कि कैसे पाकिस्तान के अंदर मासूम बच्चों का ब्रेनवॉश किया जा रहा है और उन्हें पढ़ाई के नाम पर जिहाद की ट्रेनिंग दी जा रही है। यही नहीं उन्हें गला काट देने तक की शिक्षा दी जा रही है। इस मुद्दे पर शो में शामिल सभी पैनलिस्ट के साथ चर्चा की जा रही थी और इसी दौरान जब PTI के प्रवक्ता चौधरी इफ्तिखार गुज्जर से इस पर सवाल किया गया, तो वो तिलमिला गए और जान से मारने की धमकी देने लगे। जिस तरह से पाकिस्तान के स्कूलों में बच्चों को जान से मारने की शिक्षा दी जा रही है, ठीक उसी तरह से भारत के नेशनल न्यूज चैनल पर चौधरी इफ्तिखार गुज्जर ने वरिष्ठ पत्रकार और शो के एंकर दीपक चौरसिया को भारत में आकर गला काटने की धमकी देने लगे।

शो में शामिल बाकी एक्सपर्ट भी चौधरी इफ्तिखार गुज्जर की इस जिहादी सोच को सुनकर हैरान रह गए। पाकिस्तान मूल के कनाडा के लेखक तारेक फतेह ने कहा कि इसके अलावा ये लोग कर भी क्या सकते हैं? वहीं इस्लामिक स्कॉलर मुफ्ती वजाहत कासमी ने भी चौधरी इफ्तिखार गुज्जर से कहा कि आप देश के इतने बड़े पत्रकार को इस तरह की धमकी कैसे दे सकते हैं? शो में शामिल दर्शकों ने भी इमरान खान की पार्टी के प्रवक्ता की इस धमकी की निंदा की।

आतंक की फैक्ट्री है पाकिस्तान और भारत समेत दुनियाभर में आतंकी वारदातों में पाकिस्तान का नाम आता रहा है और जिस तरह से पाकिस्तान सरकार में शामिल पार्टी के प्रवक्ता चौधरी इफ्तिखार गुज्जर ने LIVE शो के दौरान भारत के जाने माने पत्रकार को जान से मारने की धमकी दी, उससे पता चलता है कि किस तरह से पाकिस्तान के अंदर भारत के खिलाफ नफरत भरी हुई है और पाकिस्तान सरकार के नुमाइंदे भी आतंकियों की तरह बात करते हैं। वैसे ये पहली बार नहीं हुआ है कि किसी पाकिस्तानी ने इस तरह जहर उगला हो।

पत्रकार अरविंद कुमार सिंह राज्यसभा में विपक्ष नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के मीडिया सलाहकार नियुक्त

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अतुल मोहन गहरवार

वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह को राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का मीडिया सलाहकार नियुक्त किया गया है। यह नियुक्ति राज्यसभा सचिवालय ने की है। मूलरूप से बस्ती जनपद के निवासी अरविंद कुमार सिंह की शिक्षा एवं दीक्षा प्रयागराज में हुई।  सिंह हिंदी के जाने-माने लेखक और पत्रकार हैं। दो महीने पहले तक राज्यसभा टीवी में वरिष्ठ सहायक संपादक के तौर संसदीय मामलों के प्रमुख और कृषि तथा परिवहन क्षेत्र के प्रभारी के तौर पर कार्यरत रहे। अरविन्द कुमार सिंह ने दशकों से खेती-बाड़ी, कृषि अनुसंधान और संचार तथा परिवहन तंत्र पर विशेष कार्य किया है। अरविंद की कई किताबें चर्चित हैं। ‘भारतीय डाक सदियों का सफरनामा’, ‘डाक टिकट में भारत दर्शन’, ‘भारत में जल परिवहन’ जैसे ऐतिहासिक पुस्तकें लिखने वाले अरविंद ने पत्रकारिता में सफलता के प्रतिमान स्थापित किए।

भारत के विकास में महिलाओं का अहम योगदान : स्मृति ईरानी

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आईआईएमसी के ‘शुक्रवार संवाद’ कार्यक्रम में बोलीं केंद्रीय मंत्री

”जब हम घर से बाहर निकल कर सफल हुई महिलाओं के लिए खुश होते हैं, तो हमें उन महिलाओं की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, जो अपनी मर्जी से घर पर रहना पसंद करती हैं। भारत के विकास में उन महिलाओं का भी अहम योगदान है।” यह विचार केंद्रीय महिला एवं बाल विकास व कपड़ा मंत्री स्मृति ज़ुबिन ईरानी ने शुक्रवार को भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘शुक्रवार संवाद’ में व्यक्त किए। इस अवसर पर आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी विशेष तौर पर उपस्थित थे।

‘लोकतंत्र में स्त्री शक्ति’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जब भी हम लोकतंत्र में स्त्री शक्ति की बात करते हैं, तो सिर्फ संसद में सेवा दे रही महिलाओं की बात होती है। लेकिन हम समाज के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही उन महिलाओं को भूल जाते हैं, जिनकी वजह से भारत ने एक मुकाम हासिल किया है।

स्मृति ईरानी ने कहा कि मेरी परवरिश गुरुग्राम में हुई है। उस वक्त अगर मैं कहती कि एक तबेले में पैदा हुई लड़की गुरुग्राम से दिल्ली तक का 20 किलोमीटर का फासला 40 साल में तय कर लेगी, तो शायद लोग मुझ पर हंसते। लेकिन मुझे पूरा भरोसा था कि मेरी सोच, जज़्बे और आकांक्षा को एक शहर की सीमा नहीं रोक सकती। उन्होंने कहा कि मैंने कभी रास्ते में आने वाली मुश्किलों को एक बाधा के रूप में नहीं देखा, मैंने इसे समाधान खोजने के लिए मिलने वाले एक रचनात्मक अवसर के रूप में देखा। 

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि समानता का मतलब है कि हर महिला को ये अधिकार मिले कि वो अपना जीवन कैसे जीना चाहती है। वो होममेकर बनना चाहती है या ऑफिस में काम करना चाहती है। उन्होंने कहा कि भारतीय राजनीति में एक महिला सरपंच का भी उतना ही महत्व है, जितना एक महिला मुख्यमंत्री का है।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर अपने विचार व्यक्त करते हुए स्मृति ईरानी ने कहा कि सिर्फ एक ही दिन महिलाओं के सम्मान का कोई औचित्य नहीं है। एक महिला का संघर्ष सिर्फ एक दिन तक ही सीमित नहीं होता। उसे हर दिन नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए महिलाएं हर दिन सम्मान पाने की अधिकारी हैं।  

इस अवसर पर आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि स्त्री, शक्ति का ही रूप है। पुरुष का संपूर्ण जीवन नारी पर आधारित है। कोई भी पुरुष अगर सफल है, तो उस सफलता का आधार नारी ही है। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि नई शिक्षा नीति में सरकार का पूरा ध्यान इस बात पर केंद्रित है कि लड़कियां पीछे ना रहें और उन्हें शिक्षा के समान अवसर प्राप्त हों। 

कार्यक्रम का संचालन प्रो. संगीता प्रणवेंद्र ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन संस्थान की अपर महानिदेशक (प्रशिक्षण) ममता वर्मा ने किया। कार्यक्रम में डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह, डीन (छात्र कल्याण) प्रो. प्रमोद कुमार, समस्त प्राध्यापक, अधिकारी एवं विद्यार्थियों ने भाग लिया।

परजीवियों की प्रयोगशाला से निकले हैं आंदोलनजीवी

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समीर कौशिक

(लेखक शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास में पश्चिमी उत्तरप्रदेश(मेरठ-बृज प्रान्त) के संयोजक हैं)

बात 2011 से आरम्भ होती है जब देश में जन लोकपाल हेतु आंदोलन के नए रूप को देखा जिसमें देश भर की कई नामचीन हस्तियां कई राजनैतिक दलों ने अपना भाग्य आजमाया जो इस आंदोलन में परजीवियों की तरह आये जिस प्रकार परजीवी एक स्वस्थ शरीर देखते हैं उस पर चिपकते हैं और रक्त पीकर स्वंय को ह्रष्टपुष्ट करके अगले शरीर को जीर्ण शीर्ण करने की तलाश करते हैं। वैसा ही तब हुआ उस आंदोलन में देश ने परजीवियों को एक नई बिरादरी देखी जिन्होंने आंदोलन को पकड़ा और उसे अपनी राजनैतिक जमीन तैयार करने की प्रयोगशाला बना लिया जिस प्रयोगशाला में से मंत्री, मुख्यमंत्री से लेकर राज्यसभा सांसदों , एवं पूर्णरूपेण आन्दोलनजीवयों का अविष्कार हो गया परंतु आंदोलन जैसा पुण्य भाव कंही समाप्त हो गया । समय बीतता गया देश में सत्ता परिवर्तन हुआ देश अखण्डता और समग्रता की तरफ अग्रसर होने लगा तथापि कुछ लोगों की जीविका का साधन आंदोलन बन गए तो उन्हें रोज भोजन एवं काम के रूप आन्दोलनों की प्रतीक्षा रहने लगी । वो अपनी क्षणिक प्रसिद्धि में ये भूल जा रहे हैं कि देश में रहकर देशवासियों के हित में आंदोलन किया जाए या विदेशी ताकतों की टूलकिट का एक टूल बनकर उपयोग हुआ जाए । एक समय था देश में जब आंदोनलकारी हुआ करते थे वो हमेशा परिधि के भीतर जाकर संघर्ष करते थे । देश और आंदोलन की अस्मिता को बरकरार रखा जाता था । एक द्रष्टान्त यंहा स्मरण आता है कि गाँधी जब असहयोग आंदोलन चला रहे थे । पुलिस एवं आंदोलन में भाग ले रहे जनमानस के बीच टकराव हुआ एवं 4 फरवरी 1922 को आक्रोशित भीड़ द्वारा थाना जला दिया गया । गोरखपुर के समीप चौरा चौरी कांड के नाम से जाना जाता है जिसमें 3 नगरिकों समेत 22 पुलिसकर्मियों की जान गई । तथापि आंदोलन देश की स्वातंत्रय समर का हिस्सा था चूंकि गांधी के जीवन मूल्यों एवं आंदोलन की अस्मिता में अहिंसा समाहित थी ।  इस घटना में हुई हिंसा से गांधी ने देश भर में ये आंदोलन तत्काल प्रभाव से समाप्त किया । क्योंकि गांधी के चिंतन में आंदोलन एक क्षणिक लाभ लेने वाली फुलझड़ी नही है । गांधी के चिंतन में आंदोलन एक चिंगारी है जो सहज सहज ज्वालामुखी बने वो भी अपने भाव व प्रकृति को विकृत किये बगैर । आज आंदोलनकारी नही रहे आंदोलनजीवीयों की प्रजाति परजीवी के रूप में उतपन्न हो गए हैं । यंहा हमे “जीवी” और “कारी” दोनों का शाब्दिक अर्थ भी समझना होगा जीवी अर्थात किसी पर जीवन यापन करने वाला अपनी जीविका चलाने वाला जैसे श्रमजीवी श्रम से जीवन यापन करता है बुद्धिजीवी बुद्धि ज्ञान आदि के बल पर जीविकोपार्जन करता है । वैसे ही आज के ये आंदोलनजीवी हैं जो आंदोलनों से अपना जीवन यापन कर रहे हैं । “कारी” अर्थात करने वाला उसमें किसी भी प्रकार का लोभ न देखने वाला वो होता है जिसका भाव मात्र ..

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ गीता जी (2-47)

की जैसी पवित्रता से उद्धत है ।

समीर कौशिक

जो अनेकता में एकता को संचारित करते हुए राष्ट्र समाज को एक सुत्र में बांधे । दिन भर आपस में वैचारिक मतभेद करते हुए द्वंद करे परंतु रात्रि को सामने के पक्ष के पास जाकर उनकी कुशल क्षेम भी करें ।आज हमारे सामने एकता में अनेकता करने वाले चेहरे हैं । जो सुनियोजित प्रायोजित आंदोलन करते हैं गांधी और बाबासाहेब के झण्डे लगाते हैं परंतु गांधी के असहयोग आंदोनल से सिखते नही । अपितु देश की अस्मिता सुरक्षा अखण्डता से खिलवाड़ करते हैं गणतंत्र दिवस पर देश मे गण और तंत्र दोनों का अपमान करते हैं । गांधी इन आन्दोलनजीवों के सिर्फ पोस्टर ब्वाय हैं बाकी सब तो टूलकिट जैसी पोस्टल सेवाओं पर निर्धारित है । ये सब अनेक स्थानों पर दिखने वाले वही व्यवसायी आन्दोलनजीव हैं जिनका व्यवसाय आंदोलन है इनमें मेगा पाटकर जैसा कोई स्वयं को पर्यावरण कार्यकर्ता कहता है परंतु पर्यावरण इनके लिये अंशकालिक कार्य है । मुख्यत: ये देश में आंदोलन भक्षण से अपनी क्षुदा शांत करती हैं । ऐसे ही एक राजनैतिक विश्लेषक हैं योगेंद्र यादव जो अन्ना आंदोलन के बाद अपना विश्लेषण भी नही कर पाए और समाजिक राजनैतिक रूप से हाशिये पर जाने के बाद इन्होंने भी आंदोलन पर्यटन आरम्भ किया हुआ है । चाहे कहने को अधिवक्ता प्रशांत भूषण हों या अन्य कोई भी ऐसे चेहरे जो सिर्फ आंदोलन घुमन्तु हैं । जिन्हें कोई भी आंदोलन देश में दिखे ये अपना तंबू वंहा गाड़ लेते हैं और आदोंलन को दिशा हीन तर्क हीन तथ्य हीन करके सिर्फ टूलकिट के आधार पर उसे चलाते हैं । जिसका परिणाम हमेशा हिंसा है चाहे CAA के विरोध में , 370 हो या किसान के नाम पर ये सब जगह पाए जाते हैं । किसान के नाम पर जीवन यापन करने वाले एक साहब हैं जिनकी खुद की  सम्पत्ति इन्हीं आंदोलनों के चलते चलते आज कई सौ गुना है । किसानी जिनका अंशकालिक कार्य है पूर्णरूप से तो वो भी आंदोलन की तलाश में ही रहते हैं । घ्यान में आता है कि आंदोलनों से पूर्व उनके पास कोई 8-10 बीघा जमीन थी वर्तमान में करोडों की संपत्ति कई सौ बीघा जमीन पैट्रोल पंप, होटल लग्ज़री गाड़ियां आलीशान बंगले हैं । देश को अराजकता के मुँह में धकेल कर राजधानी में अराजकता करवा कर अपने डंडे के झंडे में गांधी की आत्मा को लपेटकर अब पुनः एक बार लाखों ट्रेक्टर दिल्ली में लाने की धमकियां सरकार को दे रहे हैं सामान्य मानस को भयभीत कर रहे हैं । आज आंदोनल के नाम पर देश में सिर्फ भय अराजकता हिंसा का वातावरण निर्माण करके देश की चुनी हुई सरकारों को दबाव में लेकर अपनी राजनीति खड़ी करने के अवसर तलाशे जा रहे हैं । अन्यथा संवाद में हर विवाद का समाधान है परंतु ये लोग संवाद नही उत्पात चाहते हैं । आज इन आन्दोलनजीवियों का बस एक ही काम है कि किस प्रकार से स्वयं पर जमी धूल हटे । हमें कैमरा मिले अखबार में छपें अपनी बातों में जनसामान्य को भावुकता के आधार पर बहकाकर उनके आवेश को अपने राजनैतिक हितपूर्तियों के लिए उपयोग कर स्वयं के लिए राजनैतिक जमीन खड़ी करना । जिनकी जमीन खड़ी हो चुकी है वो इसे और विस्तारित करने में लगे हैं । इन्हें देश से देश की अखण्डता सुरक्षा से कोई लेना देना नही क्योंकि इनकी टूलकिट ही विदेशी है । ऐसे आन्दोलनजीवियों से हमे सावधान रहना होगा ये कालनेमि हैं जो देश को आत्मनिर्भरता रूपी संजीवनी देने वाले सामान्य करदाता सामान्य व्यवसायी नौकरीपेशा हनुमान को विचलित दिगभर्मित एवं दुर्बल करने में लगे हैं ।

BEST DANGAL OF WEST BENGAL

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Sanjeev Uniyal

(Advocate, Supreme Court of India)

The fertile and spiritual land of swami Vivekananda, RabindranathThakur, Chaitanya Mahaprabhu, Ramakrishna Paramhans, AurobindoGhosh on one hand and revolutionary breed of freedom fighters like Subhash Chandra Bose, Bankim Chandra Chatterjeeand many others besides social reformers like Shyama Prasad Mukherjee speaks volume about the gravityof soil of HAMAR SONAR BANGLA.

Nowadays the atmosphere in Bengal is very dangerous, alarming and fearsome the law and order situation is out of control from the hands of chief minister of the state. The one of the reasons for this could be VidhanSabhaelections.If one looks into the National Crime Records Bureau (NCRB) report of 2018 -19 the murders in the state of Bengal tops the list. The mostly murders have been given a glimpse of political vendetta, around 300 or more murders have been taken place in last one and half years which mostly belonged to the BJP and RSS workers.

As Chanakyaneeti suggests:  यस्य  स्नेहो  भयं  तस्य  स्नेहो  दुःखस्य  भाजनम् 

means when a person loves excessively with his or her son or gaddi then it becomes the reason of downfall of that person.

         It doesn’t indicateMamtadidi excessive love and affection towards her nephew Abhishek but it is a moral foundation for all of us to introspect.

         When a political party derail from the track of basics like fair election in the organisation at district level, care of its workers, meetings, schemes of benefits and developing the intellectual and leadership qualities of a common worker. Which all are lacking in the TMC now that is the fundamental reason of weakening of TMC day by day. From cabinet ministers, MLA’s, counsellors, state office bearers etc. have left TMC party in midway and join BJP in big number.The reason of this is a food for thought and self-introspection for TMC top leadership.

         There is deterioration of law and order and at the same time nepotism, corruption and cut money culture are rising day by day and is the most important factors by which a common worker of TMC besides voter of West Bengal have been feeling morally sabotaged.

         When MamtaDidi governed the power around 9 years back, the people of Bengal supported her to get rid from the unruly, corrupt and mis governance of communists, but people of Bengal are still struggling for the same. Non development is a big issue in the present Bengal regime. No new industry for employment, hospitals, colleges, bridges and roads have never been a priority for Manta government.

The height of hypocrisy by the Mamta government is that they have not allowed to operate the central schemes which were beneficial for the people living below poverty line (BPL) and downtrodden people of West Bengal.

         She had not allowed Ayushmanyojana of central government,by which crores of poor ailing in native of Bengal could not get  the free health benefits up to rupees 5 lakhs, she has not allowed theUjjwalayojana by which more than 10 crores of women below poverty line(BPL) received the free LPG cylinders,MamtaDidi government has not allowed Sukanyasumridhiyojana to get implemented in the state of West Bengal in which the parents of a girl child can build a fund for future education and marriage expenses for their female child, even Soubhagyayojana has not been allowed to execute in West Bengal, kisansammannidhi in which a kisangets rupees 6000 annually has not been allowed by Mamta government in West Bengal by which 60 lacs of Bengal farmers were not able to get benefited for rupees 14,000 each till date,even farmers have been devoid to get the benefit of kisan soil card also. These are some very beneficial scheme which have not been implemented by the Mamta government just for the sake of political jealousy. Mamtadidi’s appeasement policy to lure Muslim community is an open secret and talk of the town.

The slogan off MAA MAATI MANUSH has not seen the light of the day the red Maati due to brutal killing of Manush has compelled MAA to cry in West Bengal, more than 300 BJP and RSS workers have been killed in broad daylight by the TMCgoons. This could be one of the reason for not submitting the  crime records report of West Bengal to National Crime Records Bureau in the year of 2019. After 1947 the Bengal was one of the pioneer industrial state but today the industrial production of the West Bengal is at 20th place. The GDP rank of West Bengal is at 16th place out of 32 states. According to records Bengal is number one in non povertyeradication efforts and policies.

Overall position of West Bengal under the leadership of chief minister Mamtadidi  is very alarming  and dangerous. West Bengal government has not even given the 7th Pay Commission to their employees.

The Mamtadidiparty has become a private limited company.  Abhishek, his wife and his sister have been summoned by CBI in the Coalscam on February 12th of this year,  the Kolkata High Court allowed the CBI to probe the Coal scam FIR which has been registered in the month of November 2020. The Kolkata High Court in its order unambiguously directed the CBI to go for the inquiry in the case without taking prior permission from the state of West Bengal. It is high time when this quotation of Sanskrit ‘’अतिसर्वत्रवर्जयेत्’’ similar to the English proverb ‘excess of everything is bad’ squarely matches the four corners with the present situation of Mamtadidi regime in West Bengal.

श्रीराम वनगमन-पथ काव्ययात्रा का किया संकल्प

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राष्ट्रीय कवि संगम श्रीराम वनगमन-पथ काव्ययात्रा का संकल्प सरयू के पावन तट पर विधि विधान के साथ हवन पूजन कर किया गया। परमार्थ निकेतन के अधिष्ठाता स्वामी चिदानंद जी महाराज ने संकल्प यज्ञ किया। उनके साथ राष्ट्रीय कवि संगम के संरक्षक, आर.एस.एस. के वरिष्ठ पदाधिकारी इंद्रेश , अंतरराष्ट्रीय कलाकार बाबा सत्यनारायण मौर्य, राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदीश मित्तल, राम जन्मभूमि मंदिर ट्रस्ट के महामंत्री चंपत राय, राष्ट्रीय कवि संगम के महामंत्री डॉ अशोक बत्रा, सह-महामंत्री एवं यात्रा संयोजक महेश शर्मा, राष्ट्रीय मंत्री सुदीप भोला, कमलेश मृदु मौर्य, क्षेत्रीय अध्यक्ष शिव कुमार व्यास, ब्रज प्रान्त संरक्षक रुचि चतुर्वेदी, म.प्र. अध्यक्ष कवि शंभू मनहर, अवध प्रान्त सलाहकार हरीश श्रीवास्तव, अध्यक्ष प्रियंका राय, बुंदेलखंड प्रान्त अध्यक्ष अजय अंजाम, अयोध्या जिला अध्यक्ष अरुण द्विवेदी, महामंत्री अनुजेंद्र तिवारी समेत अनेक कार्यकर्ताओं ने आहुतियां डाली। इसके उपरांत सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों ने सरयू की ओर अभिमुख होकर वैदिक मंत्रोच्चार से संकल्प लिया तथा अक्षत व पुष्प पुण्य सलिला सरयू की पावन धार में विसर्जित किए। 

राष्ट्रीय कवि संगम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदीश मित्तल ने बताया कि 2022 की मकर संक्रांति से यह यात्रा श्रीलंका से शुरू होगी और महाशिवरात्रि को अयोध्या पहुंचेगी। यात्रा का उद्देश्य है कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम को वनवास में जिन्होंने वन में श्रीराम का सहयोग दिया था, उसी पथ पर काव्य रथयात्रा श्रीलंका से उन समस्त वनवासी बंधुओं का आभार व्यक्त करते हुए अयोध्या पहुंचेगी। यात्रा में जगह-जगह अखिल भारतीय कवि सम्मेलन के साथ युवा कवियों की श्रीराम काव्य प्रतियोगिता, धार्मिक व लोक संस्कृति से जुड़े आयोजन भी होंगे | 

अयोध्या महोत्सव स्थल पर  परमार्थ निकेतन के स्वामी चिदानंद जी महाराज ने अपने उद्बोधन में काव्य यात्रा को अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप में सहयोग करने की बात कहते हुए उपस्थित जन समूह को अपने आशीर्वाद से अभिसिंचित किया । आर.एस.एस. के वरिष्ठ पदाधिकारी माननीय इंद्रेश जी, श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट के अध्यक्ष चम्पत राय जी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। बाबा सत्यनारायण मौर्य द्वारा मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम पर चित्र प्रदर्शनी एवं संगीतमय काव्य संध्या प्रस्तुत की गई। अखिल भारतीय कवि सम्मेलन डॉ रुचि चतुर्वेदी की वाणी वन्दना से शुरू हुआ जिसका संचालन रामकिशोर तिवारी किशोर ने किया। महेश शर्मा, बाबा सत्यनारायण मौर्य, डॉ अशोक बत्रा, शम्भू सिंह मनहर, सुदीप भोला, अजय अंजाम, प्रियंका राय ‘ओमनंदिनी’ ने कवि सम्मेलन को ऊंचाईयां प्रदान की।

इस अवसर पर पूर्वी उत्तरप्रदेश (अवध, काशी, बुंदेलखंड, गौरक्ष प्रान्त) का क्षेत्रीय अधिवेशन आयोजित किया गया। जिसमें सभी प्रान्तों ने अपना कार्यवृत्त निवेदित किया। राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदीश मित्तल जी ने अवध और गोरक्ष प्रान्तों के संगठन में कुछ दायित्व परिवर्तन किए। सभी आगंतुक कवियों को बाबा सत्यनारायण मौर्य जी द्वारा प्रतीक चिन्ह, पुष्प गुच्छ एवं अंगवस्त्र  प्रदान कर सम्मानित किया गया तत्पश्चात जगदीश मित्तल जी ने अवध प्रांत सलाहकार श्री हरीश श्रीवास्तव एवं अयोध्या इकाई के जिलाध्यक्ष अरुण द्विवेदी और उनके सहयोगियों को इस भव्य आयोजन हेतु बधाई दी। बाबूजी के आशीर्वचन के साथ  भोजनोपरान्त सभी को प्रेमपूर्वक विदाई दी गई।

आंदोलन का भी एक मौसम होना चाहिए

तृप्ति शुक्ला

(तृप्ति युवा पत्रकार हैं। नवभारत टाइम्स से जुड़ी हैं। सोशल मीडिया पर तृप्ति एक जाना पहचाना नाम हैं)

रामचंद्र कह गए सिया से, ऐसा कलजुग आएगा
आंदोलन में बैठ-बैठ, आंदोलनजीवी खाएगा

दरअसल, रामचंद्र कहीं कुछ ऐसा नहीं कह गए थे क्योंकि उनको भी ये अंदाज़ा नहीं था कि कलियुगी मानुष असल में कितना विकट हो सकता है। इतना विकट कि आंदोलनों तक पर जीवन बसर कर सकता है।

इन्हीं विकट मानवों के प्रताप का फल है कि आज की तारीख़ में आंदोलनों को हमारे देश में वो उच्च स्थान प्राप्त हो चुका है कि अब आंदोलनों को भी एक मौसम मानकर हमारी ऋतुओं में शामिल कर लेना चाहिए। न केवल शामिल कर लेना चाहिए बल्कि उसे ऋतुओं का राजा घोषित कर देना चाहिए। सर्दी, गर्मी, बरसात, वसंत और आंदोलन। पिछले कुछ सीज़न से देश में सर्दी आए न आए, आंदोलन पहले आ जाता है। रही बात दिल्ली की तो वहाँ तो सर्दी अब वैसे भी नहीं होती है, तो वहाँ सर्दी के मौसम को आंदोलन के मौसम से रिप्लेस किया जा सकता है।

क्या कहा? दिल्ली में सर्दी होती है? दो हफ़्ते की सर्दी को सर्दी नहीं कहते भइया और न ही कहते हैं मौसम। मौसम देखना है तो कभी शाहीनबाग में जुटे तो कभी दिल्ली बॉर्डर पर डटे आंदोलनजीवियों को देखो, दो-चार महीना तो यूँ चुटकियों में निकाल देते हैं। यही वजह है कि अब इस देश को आंदोलनों की आदत सी पड़ती जा रही है। मेरा एक दोस्त है, वो पहले शाहीनबाग के आंदोलन में जाकर बैठा था और फिर किसानों के आंदोलन में जाकर बैठ गया।

कभी-कभी मुझे उसकी फिकर होती है कि खुदा न खास्ता किसी साल देश में आंदोलन न हुआ तो उसको तो बहुत सूना-सूना लगेगा। कहीं सूनेपन में आकर कुछ कर-करा बैठा तो अलग झंझट। इसलिए अगली सर्दियां आते-आते हमें आगे बढ़कर अगला आंदोलन छेड़ देना चाहिए कि आंदोलन का भी एक मौसम डिक्लेयर किया जाए और अगली की अगली सर्दियों में आंदोलनजीवियों को आरक्षण दिलवाने के मुद्दे पर आंदोलन। फिर, उनको एक अलग राज्य बनाकर देने के मुद्दे पर आंदोलन, और फिर उस राज्य को अलग देश बनाने का आंदोलन, और फिर… क्या कहा? अलग देश बन जाएगा तो वहाँ के लोग करेंगे क्या! करेंगे क्या का क्या मतलब है? अरे भई, वही करेंगे जो पूरी दुनिया करती है, रोटी, कपड़ा और मकान का जुगाड़। मगर उस देश के लोगों को तो ये आता ही नहीं है। अरे हांँ! ये समस्या तो इन विकट कलियुगी मानवों से भी विकट है। तो ऐसा करना, अलग देश का आंदोलन मत करना। विशेष राज्य के दर्जे के ही आंदोलन से काम चला लेना।

ठीक बा?

वरिष्ठ अफसर जयदीप भटनागर संभाली PIB की कमान

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भारतीय सूचना सेवा के वरिष्ठ अफसर जयदीप भटनागर को प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो के प्रधान महानिदेशक पद पर नियुक्त किया गया है। उन्होंने 28 फरवरी 2021 को निवर्तमान प्रधान महानिदेशक कुलदीप सिंह धतवालिया से पदभार ग्रहण किया।

भटनागर भारतीय सूचना सेवा के 1986 बैच के अधिकारी हैं। इससे पहले वह दूरदर्शन न्यूज में कमर्शियल्स, सेल्स व मार्केटिंग डिविजन के प्रमुख रहे हैं।

प्रसार भारती के विशेष संवाददाता के तौर पर भटनागर पश्चिम एशिया में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। इस दौरान उन्होंने 20 देशों को कवर किया। इसके बाद वे आकाशवाणी के समाचार सेवा प्रभाग के प्रमुख रहे।

भटनागर प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो के प्रधान महानिदेशक के दायित्व से पहले पीआईबी में विभिन्न पदों पर छह वर्षों तक रहे हैं। भटनागर ने कुलदीप सिंह धतवालिया के 28 फरवरी 2021 को सेवानिवृत्त होने के बाद कार्यभार संभाला है।

सरकार जल्द अनिवार्य करेगी डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म्स के लिए नियम

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जल्द ही ‘सूचना प्रसारण मंत्रालय’ डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म्स के लिए अपने संस्थान के बारे में संपूर्ण विवरण देना अनिवार्य करने जा रहा है। दरअसल, मंत्रालय के पास अभी तक देश में चल रहे ऑनलाइन न्यूज मीडिया के बारे में पूरा ब्योरा नहीं है, इसलिए इस तरह की योजना पर काम चल रहा है।

मीडिया खबर के अनुसार, मंत्रालय एक ऐसा फॉर्म लाने की योजना बना रहा है, जिसे सभी डिजिटल न्यूज संस्थानों को एक महीने के भीतर भरकर जमा कराना होगा। इस फॉर्म में डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म्स को उनके एडिटोरियल हेड, स्वामित्व, पता और शिकायत निवारण अधिकारी समेत तमाम ब्योरा भरना होगा।

सूचना प्रसारण मंत्रालय के सचिव अमित खरे का कहना है, ‘वर्तमान में सरकार के पास इस बात की पूरी जानकारी नहीं है कि इस सेक्टर में कितने और कौन-कौन से प्लेयर्स हैं। इन वेबसाइट्स पर जाने पर आपको ये भी नहीं पता चलेगा कि इनका ऑफिस कहां पर है और इनका एडिटर-इन-चीफ कौन है?’

सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का भी कहना है कि उनके मंत्रालय को भी नहीं पता कि देश में कितने न्यूज ऑर्गनाइजेशंस चल रहे हैं। उनका कहना है कि जब तक मंत्रालय को पता ही नहीं होगा कि देश में कितने डिजिटल न्यूज पोर्टल्स हैं, तब तक उनसे किसी भी महत्वपूर्ण विषय पर सलाह-मशविरा कैसे किया जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि हाल ही में केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया और ओवर-द-टॉप प्‍लेटफॉर्म्‍स के लिए गुरुवार को गाइडलाइंस जारी कर दी हैं। सरकार का कहना है कि इससे एक लेवल-प्‍लेइंग फील्‍ड मिलेगा।

श्री राम जन्मभूमि मंदिर निधि समर्पण अभियान पूर्ण

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विहिप ने ज्ञापित की कृतज्ञता

विनोद बंसल (राष्ट्रीय प्रवक्ता, विश्व हिन्दू परिषद)

अयोध्या में भगवान श्री राम की जन्मभूमि पर बनने वाले भव्य मंदिर के निर्माण हेतु गत मकर संक्रांति को प्रारंभ हुए देश-व्यापी निधि समर्पण अभियान की पूर्णाहुति तो शनिवार को हो गई किन्तु अपने पीछे चिर-स्मरणीय यादें छोड़ गया। विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय कार्याध्यक्ष व इस अभियान के राष्ट्रीय संयोजक एडवोकेट आलोक कुमार ने आज कहा है कि लगभग 10 लाख टोलियों में जुटे 40 लाख समर्पित कार्यकर्ताओं के माध्यम से शनिवार को संपन्न विश्व के इस सबसे बड़े अभियान में हमने प्रांत जिला, तहसील व गाँवों के घर-घर जाकर समर्पण निधि तो प्राप्त की ही साथ ही, रामजी के प्रति श्रद्धा, विश्वास व समर्पण के भाव ने गद-गद भी कर दिया। विश्व हिन्दू परिषद हिन्दू समाज के इस उदारता, समरसता व एकात्मता पूर्ण समर्पण के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करती है।

विनोद बंसल

आलोक कुमार ने कहा कि लाखों गांवों व शहरों के करोड़ों हिन्दू परिवारों ने भक्ति पूर्ण भाव से इसमें सह-भागिता की। इस अभियान में कार्यकर्ताओं को अनेकों भावुक क्षणों से गुजरना पड़ा व अनेक व्यक्तियों को अपनी क्षमता से बहुत अधिक समर्पण करते हुए देखा। रामजी के लिए अनेक भक्तों ने अपनी छल-छलाती आँखों से विनम्रता पूर्वक अर्पण किया। अनेक जगहों पर निधि समर्पण टोली की राम दूत मान कर अगवानी व सेवा हुई। इसमें भारत के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति से लेकर फुटपाथ पर सोने वाले व्यक्तियों ने अपनी पवित्र आय में से समर्पण कर स्वयं को भगवान श्रीराम से जोड़ लिया। अब यह निश्चित हो गया है कि अयोध्या में जन्मस्थान पर बनने वाला यह भव्य राम मंदिर एक राष्ट्र मंदिर का भी प्रतीक होगा। विश्व के इस सबसे बड़े महा-अभियान के आँकडों, अनुभवों व प्रेरक प्रसंगों का संकलन हो रहा है जिन्हें हम शीघ्र ही देश के समक्ष रखने का प्रयास करेंगे।

स्वदेश के प्रधान संपादक राजेंद्र शर्मा को पत्रकारिता भूषण सम्मान

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लोकेंद्र सिंह

उत्तरप्रदेश सरकार के प्रतिष्ठान उप्र हिंदी संस्थान ने वर्ष 2019 के लिए अपने प्रतिष्ठित सम्मानों/पुरस्कारों की घोषणा कर दी है। विभिन्न कला विधाओं में दिए जाने वाले इन सम्मानों के अंतर्गत पत्रकारिता क्षेत्र में उत्कृष्ट अवदान के लिए स्वदेश पत्र समूह भोपाल के अध्यक्ष व प्रधान संपादक राजेन्द्र शर्मा को चुना गया है। उन्हें पत्रकारिता भूषण से सम्मानित किया जा रहा है। इसके अंतर्गत दो लाख रुपए के साथ ही स्मृति चिह्न और प्रशस्ति पत्र दिया जाएगा।  

इसके साथ ही संस्थान का भारत-भारती सम्मान मुंबई की कवयित्री सूर्यबाला तथा हिंदी गौरव सम्मान वरिष्ठ साहित्यकार व पत्रकार तरुण विजय को प्रदान किया जा रहा है। अन्य क्षेत्रों में मध्यप्रदेश से सम्मानित होने वाली प्रतिभाओं में डॉ.कपिल तिवारी ( अवंतिबाई साहित्य सम्मान), डॉ. रामेश्वर मिश्र पंकज (महात्मा गांधी साहित्य सम्मान), डॉ. विनय  राजाराम (साहित्य भूषण सम्मान) शामिल हैं। 

पचहत्तर वर्षीय राजेंद्र शर्मा गत 54 वर्षो से पत्रकारिता के क्षेत्र में सतत सक्रिय हैं। उन्होंने पांच दशक पहले ग्वालियर में हमारी आवाज से पत्रकार के रूप में पत्रकारिता की यात्रा प्रारंभ की, जिसके बाद मात्र पच्चीस वर्ष की आयु में ही स्वदेश के संपादन का कार्यभार संभाल लिया.। इसके बाद आप इसी समूह के प्रधान संपादक बने। श्री शर्मा ने बाद में भोपाल से स्वदेश का प्रकाशन प्रारंभ कर इसका विस्तार किया। आप पिछले चार दशक से स्वदेश पत्र समूह भोपाल के प्रधान संपादक हैं। यह समूह भोपाल, रायपुर, बिलासपुर, सागर व जबलपुर से संस्करण प्रकाशित करता है। श्री शर्मा साहित्य अनुरागी भी हैं और विभिन्न सामाजिक सेवाओं में सक्रिय सहभागिता करते रहे हैं। 

पत्रकारिता की सुदीर्घ व उत्कृष्ट सेवाओं के लिए उन्हें माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय का गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान व मध्यप्रदेश शासन का माणिकचंद्र वाजपेयी सम्मान भी मिल चुका है। इसके अतिरिक्त वे अयोध्या के पं. रामकिंकर उपाध्याय सम्मान से भी सम्मानित किए जा चुके हैं।  पत्रकारिता भूषण सम्मान उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथों प्रदान किया जाएगा जो संस्थान के अध्यक्ष भी हैं।

आशुतोष कुमार सिंह को मिला वाग्धारा यंग अचीवर्स अवार्ड

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स्वस्थ भारत अभियान के राष्ट्रीय संयोजक आशुतोष कुमार सिंह को 2021 का वाग्धारा यंग अचीवर्स अवार्ड राजभवन, महाराष्ट्र  में आयोजित सम्मान समारोह में राज्यपाल श्री भगत सिंह कोश्यारी एवं पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे के हाथों दिया गया। जेनरिक दवाइयों के लिए  पूरे देश में जागरूकता अभियान चलाने के लिए ‘जेनमैन’ नाम से विख्यात आशुतोष  कुमार सिंह को यह सम्मान स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए उल्लेखनीय कार्यों के लिए दिया गया। इस अवसर पर महाराष्ट्र के पूर्व गृह राज्य मंत्री कृपाशंकर सिंह एवं वाग्धारा के अध्यक्ष डॉ.वागीश सारस्वत भी उपस्थित रहे ।

आशुतोष कुमार सिंह

स्वास्थ्य जागरूकता के लिए  भारत में 50 हजार किमी से ज्यादा का भ्रमण कर चुके स्वास्थ्य कार्यकर्ता आशुतोष कुमार सिंह को मुंबई की संस्था वाग्धारा ने यह सम्मान दिया  है। विगत 36 वर्षों से स्वास्थ्य, शिक्षा एवं संस्कृति के संवर्धन हेतु कार्य कर रही संस्था वाग्धारा विगत पांच वर्षों से वाग्धारा नवरत्न अवार्ड, जीवन गौरव अवार्ड एवं पिछले वर्ष से वाग्धारा यंग अचीवर्स अवार्ड दे रही है। मूल रूप से बिहार के सीवान जिला के रहने वाले श्री आशुतोष को इसके पूर्व बीबीआरएफआई द्वारा ‘मेसेंजर ऑफ हेल्थ एंड वेल विइंग्स’ अवार्ड-2019 , साउथ एशिया पेसिफिक हेल्थ केयर अवार्ड-2019, तिलका मांझी राष्ट्रीय सम्मान एवं वंदेमातरम सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है।

देश-दुनिया से मिल रही है शुभकामनाएं

आशुतोष कुमार सिंह के इस उपलब्धि पर उनके गृह जिला  बिहार राज्य के सीवान में खुशियों  का माहौल है। जिला के प्रबुद्ध लोगों ने उन्हें बधाई संदेश प्रेषित किया है। उनके बड़े भाई चंद्र शेखर सिंह ने कहा कि, यह उपलब्धि सीवान ही नहीं बल्कि बिहार के लिए गौरव की बात है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में आशुतोष का काम सराहनीय है और रजनपुरा ग्राम पंचायत की सम्पूर्ण जनता इस उपलब्धि से ख़ुद को गौरान्वित महसूस कर रही है। श्री आशुतोष की मां ने कहा कि, ‘हमार बबुआ निमन काम करत बा,आगे बढ़त बा, हमार आशीर्वाद बाबू के साथे बा।’ दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर श्री आशुतोष को देश दुनिया से शुभकामनाएं प्राप्त हो रही हैं। 

श्री आशुतोष ने इस बावत कहा कि यह सम्मान स्वस्थ भारत के साथियों को समर्पित है। पिछले 9 वर्षों से स्वस्थ भारत के सपने को साकार करने में नि:स्वार्थ भाव से जिन साथियों ने योगदान दिया है, यह सम्मान दरअसल उनका है।

चर्चित पत्रकार जमाल खगोशी की हत्या के मामले में आई ये रिपोर्ट

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अमेरिकी प्रशासन ने अंग्रेजी अखबार ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ के पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के मामले में बड़ा खुलासा किया है। दरअसल, अमेरिकी खुफिया विभाग की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान ने ही निर्वासन में रह रहे सऊदी पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या की मंज़ूरी दी थी।

मीडिया खबर के अनुसार, बाइडन प्रशासन ने शुक्रवार को जारी एक खुफिया रिपोर्ट में कहा है कि सऊदी युवराज ने उस योजना को अपनी सहमति दी थी, जिसके तहत अमेरिका में रह रहे खशोगी को या तो जिंदा पकड़ने या मारने का फैसला किया गया था। यह पहला मौका है जब अमेरिका ने खशोगी की हत्या के लिए सीधे पर तौर सऊदी क्राउन प्रिंस का नाम लिया है, हालांकि सऊदी युवराज इनकार करते रहे हैं कि उन्होंने खशोगी की हत्या के आदेश दिए थे।

इस रिपोर्ट को लेकर सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी किया है। इस बयान में कहा गया है, ‘सऊदी की सरकार जमाल खशोगी के मामले में अपमानजनक और गलत निष्कर्ष तक पहुंचने वाली अमेरिकी रिपोर्ट को सिरे से खारिज करती है। हम इस रिपोर्ट को अस्वीकार करते हैं। इस रिपोर्ट में गलत निष्कर्ष निकाला गया है।’

उल्लेखनीय है कि सऊदी अरब के शहजादे के आलोचक रहे खशोगी की दो अक्टूबर 2018 में उस समय हत्या कर दी गई थी, जब वह अपनी मंगेतर से शादी रचाने के लिए आवश्यक कागजात लेने इस्तांबुल में अपने देश के वाणिज्य दूतावास में गए थे। इसके बाद से वह लापता हो गए थे। शुरू में उनके लापता होने पर रहस्य बन गया था। तुर्की के अधिकारियों ने सऊदी अरब पर उनकी हत्या करने और उनके शव को ठिकाने लगा देने का आरोप लगाया था। हालांकि सऊदी अरब ने बाद में यह माना कि खशोगी की हत्या की गई, लेकिन उनकी हत्या में खुद की किसी संलिप्तता से इनकार किया था।

कोरोना से लड़ी, अब कश्मीर में कर रही मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व

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समीर कौशिक

मध्यप्रदेश, झाबुआ की बेटी क्रिया शर्मा गुलमर्ग, कश्मीर में आयोजित खेलो इंडिया विंटर गेम्स 2021 में मध्यप्रदेश का दूसरी बार प्रतिनिधित्व कर इस राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धा में 5वी रैंक प्राप्त की, ख़ास बात यह है कि कु. क्रिया को कोरोना हुआ था, वह केवल योग व संतुलित आहार से स्वस्थ होकर खेलो इंडिया में भाग लेने पहुँची केवल 1 माह के अभ्यास से उन्होंने यह उपलब्धि हासिल की है। इसके साथ ही झाबुआ के लिए ही नहीं अपितु सम्पूर्ण प्रदेश के लिये गर्व की बात है कि केंद्रीय खेल मंत्री मा. किरण रिजिजु ने इनका फ़ोटो अपनी वॉल पर भी पोस्ट किया है। इस अवसर पर क्रिया ने कहा कि आज मैं स्वयं को सौभाग्यशाली मानती हुँ कि भारत का शीश कहे जाने वाले कश्मीर में खेलो इंडिया विंटर गेम्स का आयजन हुआ और मध्यप्रदेश की ओर से प्रतिनिधित्व करने का सुवसर मुझे प्राप्त हुआ। यह प्रधानमंत्री मोदी जी के दृढ़ संकल्प व ऐतिहासिक निर्णय का ही परिणाम है कि आज हम यहाँ कश्मीर में सुरक्षित महसूस करते हुए विश्वस्तरीय खेलों में अपने प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। खेलो इंडिया जैसे आयोजनों के लिए भी मैं प्रधानमंत्री जी को कृतज्ञता ज्ञापित करती हुँ। अंत में बस इतना ही कहना चाहूँगी कि “पाँव मिले चलने के ख़ातिर पाँव पसारे मत बैठो, आगे-आगे बढ़ना है तो हिम्मत हारे मत बैठो।”


आंदोलनजीवी अर्थात मैं तो वो हूं जिसे हर हाल में बस रोना था

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पंकज झा

आनंद बक्शी साहब का गीत – ये न होता हो कोई दूसरा ग़म होना था, मैं तो वो हूं जिसे हर हाल में बस रोना था.. आंदोलनजीवी शब्द को सटीक व्याख्यायित करता है। आंदोलनजीवी अर्थात क्या? अर्थात ऐसा व्यक्ति जो इसलिए आंदोलन नहीं करता क्योंकि उसके कोई कारण होते हैं, वे हर वक़्त ऐसा कारण तलाशते रहते हैं जिससे आंदोलन हो, गोयाकि वह अपने उत्पाद के लिये कच्चा माल तलाश रहा हो। वे हर समाधान में समस्या तलाशने वाले लोग होते हैं। उनका जीवन ही समस्याओं के कारण सम्भव होता है। वे यह सोच कर भी आतंकित हो जाते होंगे कि अगर किसी दिन ‘समस्या’ न हो, तो उनका क्या होगा।

पंकज झा

जैसे कोई अभिनेता व्यस्त रहते समय ही अगले फ़िल्म के बारे में सोचना शुरू कर देता है वैसे ही आंदोलनकारी एक-दो समस्याओं का कच्चा माल हमेशा अपनी जेब में बचा कर रखता है, ताकि उसका कारोबार चलता रहे। कुछ फ़ीलर टाइप ऐसी सदाबहार समस्याएँ भी होती है पर्यावरण टाइप, जो बेरोज़गारी के समय इनके काम आती हैं। 

एक कश्मीरी आतंकी से किसी पत्रकार ने पूछा था कि अगर कश्मीर का समाधान आपके हक़ में ही हो जाय, तो क्या आप आतंक छोड़ देंगे? कुछ क्षण चुप रहने के बाद उसका जवाब था कि – बिल्कुल नहीं। तब हमारा ‘ज़ेहाद’ दीगर मसायलों को लेकर होगा- मसलन बाबरी की शहादत का बदला लेना। ऐसा ही आश्चर्यजनक संयोग पिछले दिनों एक अख़बार में प्रकाशित आंदोलनजीविता के पर्याय योगेन्द्र यादव के लेख में दिखा। यादव ने लिखा कि – तीनों कृषि क़ानून तो ख़त्म हो ही गये हैं, किसी सरकार की आगे हिम्मत भी नहीं होगी ऐसा कोई क़ानून लागू करने की। लेकिन हमारा आंदोलन अब उस क़ानून को ख़त्म करने से काफ़ी आगे निकल चुका है। आगे जैसा कि टिकैत ने कहा था – कि अब उनका आंदोलन क़ानून नहीं सरकार वापसी के लिये है। आंदोलनजीवी वो हैं, जैसा कि संयोग से ही एक भाषण में कांग्रेस सीईओ राहुल गांधी कह बैठे थे – उन्हें हर जवाब का सवाल चाहिये।

जाने, कौन से रेडियो FM ने किस शहर में जमाई धाक

वर्ष 2020 के 52वें हफ्ते से वर्ष 2021 के तीसरे हफ्ते (20 दिसंबर 2020 से 16 जनवरी 2021) के बीच की ‘रेडियो ऑडियंस मीजरमेंट’ (RAM) रेटिंग्स देश के चार बड़े शहरों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बेंगलुरु के लिए जारी हो गई हैं। इन रेटिंग्स के अनुसार, मुंबई और दिल्ली के मार्केट में ‘फीवर एफएम’ का दबदबा बना रहा है। बेंगलुरु में ‘रेडियो सिटी’ टॉप पर रहा है, जबकि कोलकाता में ‘रेडियो मिर्ची’ सबसे ज्यादा सुना गया है।

‘फीवर एफएम’  का मार्केट शेयर सबसे ज्यादा 16.9 प्रतिशत मुंबई में 12 साल से ऊपर आयुवर्ग के 12.2 मिलियन श्रोताओं में रहा है। श्रोताओं की हिस्सेदारी में ‘रेडियो सिटी’ और ‘रेडियो मिर्ची’ 13.8 प्रतिशत शेयर के साथ दूसरे स्थान पर रहे हैं। सुबह 11 बजे से दोपहर 12 बजे तक यहां रेडियो सबसे ज्यादा सुना गया।

इस लिस्ट में दिल्ली की बात करें तो यहां 12 साल से ऊपर आयुवर्ग के 16.5 मिलियन श्रोताओं में 20.2 प्रतिशत मार्केट शेयर के साथ ‘फीवर एफएम’ पहले नंबर पर रहा है। दिल्ली के मार्केट में 13.8 प्रतिशत शेयर के साथ ‘रेड एफएम’ दूसरे नंबर पर और 12.7 प्रतिशत शेयर के साथ ‘रेडियो मिर्ची’ तीसरे नंबर पर रहा है। यहां श्रोताओं की संख्या सबसे ज्यादा सुबह 9:00 बजे से 10:00 बजे के बीच रही।

बेंगलुरु के मार्केट को देखें तो यहां 5.3 मिलियन श्रोताओं में 23.6 प्रतिशत लोगों ने ‘बिग एफएम’ को सुना, वहीं ‘रेडियो सिटी’ को भी 23.6 प्रतिशत लोगों ने सुना। इसके बाद इस लिस्ट में 16.1 प्रतिशत के साथ ‘फीवर एफएम’ का नंबर रहा। यहां सुबह आठ से नौ बजे के बीच श्रोताओं की संख्या सबसे ज्यादा थी।

वहीं, एफएम सुनने वाले 9.1 मिलियन श्रोताओं में 26.8 प्रतिशत शेयर के साथ ‘रेडियो मिर्ची’ कोलकाता में टॉप पर रहा, जबकि 26.2 प्रतिशत श्रोताओं के साथ ‘बिग एफएम’ इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर रहा। इसके बाद इस लिस्ट में 17.7 प्रतिशत के साथ ‘रेड एफएम’ का नंबर रहा। सुबह 11 बजे से दोपहर 12 बजे तक यहां रेडियो सबसे ज्यादा सुना गया।

इस समय अवधि में मुंबई के मार्केट को छोड़कर सभी मार्केट्स में रेडियो की पहुंच काफी रही। सभी मार्केट्स में घर से बाहर रेडियो सुनने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।

दलित उद्धारक के रूप में वीर सावरकर

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26 फरवरी को पुण्य तिथि के उपलक्ष पर

डॉ विवेक आर्य

क्रांतिकारी वीर सावरकार का स्थान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना ही एक विशेष महत्व रखता है। सावरकर जी पर लगे आरोप भी अद्वितीय थे उन्हें मिली सजा भी अद्वित्य थी। एक तरफ उन पर आरोप था कि अंग्रेज सरकार के विरुद्ध युद्ध की योजना बनाने का, बम बनाने का और विभिन्न देशों के क्रांतिकारियों से सम्पर्क करने का तो दूसरी तरफ उनको सजा मिली थी पूरे 50 वर्ष तक दो सश्रम आजीवन कारावास। इस सजा पर उनकी प्रतिक्रिया भी अद्वितीय थी कि ईसाई मत को मानने वाली अंग्रेज सरकार कब से पुनर्जन्म अर्थात दो जन्मों को मानने लगी। वीर सावरकर को 50 वर्ष की सजा देने के पीछे अंग्रेज सरकार का मंतव्य था कि उन्हें किसी भी प्रकार से भारत अथवा भारतीयों से दूर रखा जाये। जिससे वे क्रांति की अग्नि को न भड़का सके। सावरकर के लिए शिवाजी महाराज प्रेरणा स्रोत थे। जिस प्रकार औरंगजेब ने शिवाजी महाराज को आगरे में कैद कर लिया था उसी प्रकार अंग्रेज सरकार ने भी वीर सावरकर को कैद कर लिया था। जैसे शिवाजी महाराज ने औरंगजेब की कैद से छुटने के लिए अनेक पत्र लिखे उसी प्रकार से वीर सावरकर ने भी अंग्रेज सरकार को पत्र लिखे। जब उनकी अंडमान की कैद से छुटने की योजना असफल हुई, जब उसे अनसुना कर दिया गया। तब वीर शिवाजी की तरह वीर सावरकर ने भी कूटनीति का सहारा लिया क्यूंकि उनका मानना था अगर उनका सम्पूर्ण जीवन इसी प्रकार अंडमान की अँधेरी कोठरियों में निकल गया तो उनका जीवन व्यर्थ ही चला जायेगा। इसी रणनीति के तहत उन्होंने सरकार से सशर्त मुक्त होने की प्रार्थना की, जिसे सरकार द्वारा मान तो लिया गया। उन्हें रत्नागिरी में 1924 से 1937 तक राजनितिक क्षेत्र से दूर नज़रबंद रहना था। विरोधी लोग इसे वीर सावरकर का माफीनामा, अंग्रेज सरकार के आगे घुटने टेकना और देशद्रोह आदि कहकर उनकी आलोचना करते हैं जबकि यह तो आपातकालीन धर्म अर्थात कूटनीति थी।

मुस्लिम तुष्टिकरण को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार ने अंडमान द्वीप के कीर्ति स्तम्भ से वीर सावरकर का नाम हटा दिया और संसद भवन में भी उनके चित्र को लगाने का विरोध किया। जीवन भर जिन्होंने अंग्रेजों की यातनाये सही मृत्यु के बाद उनका ऐसा अपमान करने का प्रयास किया गया। उनका विरोध करने वालों में कुछ दलित वर्ग की राजनीती करने वाले नेता भी थे। जिन्होंने अपनी राजनीतिक महत्वकांशा को पूरा करने के लिए उनका विरोध किया था। दलित वर्ग के मध्य कार्य करने का वीर सावरकर का अवसर उनके रत्नागिरी प्रवास के समय मिला। 8 जनवरी 1924 को सावरकर जी रत्नागिरी में प्रविष्ट हुए तो उन्होंने घोषणा कि की वे रत्नागिरी दीर्घकाल तक आवास करने आए है और छुआछुत समाप्त करने का आन्दोलन चलाने वाले है। उन्होंने उपस्थित सज्जनों से कहाँ कि अगर कोई अछूत वहां हो तो उन्हें ले आये और अछूत महार जाति के बंधुयों को अपने साथ बैल गाड़ी में बैठा लिया। पठाकगन उस समय में फैली जातिवाद की कूप्रथा का सरलता से आंकलन कर सकते है कि जब किसी भी शुद्र को सवर्ण के घर में प्रवेश तक निषेध था। नगर पालिका के भंगी को नारियल की नरेटी में चाय डाली जाती थी। किसी भी शुद्र को नगर की सीमा में धोती के स्थान पर अंगोछा पहनने की ही अनुमति थी। रास्ते में महार की छाया पड़ जाने पर अशौच की पुकार मच जाती थी। कुछ लोग महार के स्थान पर बहार बोलते थे जैसे की महार कोई गाली हो। यदि रास्ते में महार की छाया पड़ जाती थी तो ब्रह्मण लोग दोबारा स्नान करते थे। न्यायालय में साक्षी के रूप में महार को कटघरे में खड़े होने की अनुमति न थी। इस भंयकर दमन के कारण महार समाज का मानो साहस ही समाप्त हो चूका था।

इसके लिए सावरकर जी ने दलित बस्तियों में जाने का, सामाजिक कार्यों के साथ साथ धार्मिक कार्यों में भी दलितों के भाग लेने का और सवर्ण एवं दलित दोनों के लिए पतितपावन मंदिर की स्थापना का निश्चय लिया गया। जिससे सभी एक स्थान पर साथ साथ पूजा कर सके और दोनों के मध्य दूरियों को दूर किया जा सके।

1. रत्नागिरी प्रवास के 10-15 दिनों के बाद में सावरकर जी को मढ़िया में हनुमान जी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण मिला। उस मंदिर के देवल पुजारी से सावरकर जी ने कहाँ की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में दलितों को भी आमंत्रित किया जाये।जिस पर वह पहले तो न करता रहा पर बाद में मान गया। श्री मोरेश्वर दामले नामक किशोर ने सावरकार जी से पूछा कि आप इतने साधारण मनुष्य से व्यर्थ इतनी चर्चा क्यूँ कर रहे थे? इस पर सावरकर जी ने कहाँ कि

“सैंकड़ों लेख या भाषणों की अपेक्षा प्रत्यक्ष रूप में किये गए कार्यों का परिणाम अधिक होता है। अबकी हनुमान जयंती के दिन तुम स्वयं देख लेना।”

2. 29 मई 1929 को रत्नागिरी में श्री सत्य नारायण कथा का आयोजन किया गया जिसमे सावरकर जी ने जातिवाद के विरुद्ध भाषण दिया जिससे की लोग प्रभावित होकर अपनी अपनी जातिगत बैठक को छोड़कर सभी महार- चमार एकत्रित होकर बैठ गए और सामान्य जलपान हुआ।

3. 1934 में मालवान में अछूत बस्ती में चायपान , भजन कीर्तन, अछूतों को यज्ञपवीत ग्रहण, विद्यालय में समस्त जाति के बच्चों को बिना किसी भेदभाव के बैठाना, सहभोज आदि हुए।

4. 1937 में रत्नागिरी से जाते समय सावरकर जी के विदाई समारोह में समस्त भोजन अछूतों द्वारा बनाया गया जिसे सभी सवर्णों- अछूतों ने एक साथ ग्रहण किया था।

5. एक बार शिरगांव में एक चमार के घर पर श्री सत्य नारायण पूजा थी जिसमे सावरकर जो को आमंत्रित किया गया था। सावरकार जी ने देखा की चमार महोदय ने किसी भी महार को आमंत्रित नहीं किया था। उन्होंने तत्काल उससे कहाँ की आप हम ब्राह्मणों के अपने घर में आने पर प्रसन्न होते हो पर में आपका आमंत्रण तभी स्वीकार करूँगा जब आप महार जाति के सदस्यों को भी आमंत्रित करेंगे। उनके कहने पर चमार महोदय ने अपने घर पर महार जाति वालों को आमंत्रित किया था।

6. 1928 में शिवभांगी में विट्टल मंदिर में अछुतों के मंदिरों में प्रवेश करने पर सावरकर जी का भाषण हुआ।

7. 1930 में पतितपावन मंदिर में शिवू भंगी के मुख से गायत्री मंत्र के उच्चारण के साथ ही गणेशजी की मूर्ति पर पुष्पांजलि अर्पित की गई।

8. 1931 में पतितपावन मंदिर का उद्घाटन स्वयं शंकराचार्य श्री कूर्तकोटि के हाथों से हुआ एवं उनकी पाद्यपूजा चमार नेता श्री राज भोज द्वारा की गयी थी। वीर सावरकर ने घोषणा करी की इस मंदिर में समस्त हिंदुओं को पूजा का अधिकार है और पुजारी पद पर गैर ब्राह्मण की नियुक्ति होगी।

इस प्रकार के अनेक उदहारण वीर सावरकर जी के जीवन से हमें मिलते है जिससे दलित उद्धार के विषय में उनके विचारों को, उनके प्रयासों को हम जान पाते हैं। सावरकर जी के बहुआयामी जीवन के विभिन्न पहलुयों में से सामाजिक सुधारक के रूप में वीर सावरकर को स्मरण करने का मूल उद्देश्य दलित समाज को विशेष रूप से सन्देश देना है। जिसने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए सवर्ण समाज द्वारा अछूत जाति के लिए गए सुधार कार्यों की अपेक्षा कर दी है। और उन्हें केवल विरोध का पात्र बना दिया हैं।

वीर सावरकर महान क्रांतिकारी श्याम जी कृष्ण वर्मा जी के क्रांतिकारी विचारों से लन्दन में पढ़ते हुए संपर्क में आये थे। श्यामजी कृष्ण वर्मा स्वामी दयानंद के शिष्य थे। स्वामी दयानंद के दलितों के उद्धार करने रूपी चिंतन को हम स्पष्ट रूप से वीर सावरकर के चिंतन में देखते हैं।

सरकार ने सोशल मीडिया और OTT प्लेटफॉर्म्स पर कसी लगाम

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सोशल मीडिया और ओवर-द-टॉप (OTT) प्‍लेटफॉर्म्‍स के लिए केंद्र सरकार ने गुरुवार को गाइडलाइंस जारी कर दी हैं। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और रविशंकर प्रसाद ने गुरुवार की दोपहर आयोजित एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में इसकी घोषणा की। नई गाइडलाइंस के दायरे में फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्‍स और नेटफ्लिकस, अमेजॉन प्राइम और हॉटस्‍टार जैसे ओटीटी प्‍लेटफॉर्म्‍स आएंगे।

जानकारी के अनुसार, इस मौके पर केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का कहना था, ‘सरकार का मानना है कि मीडिया प्‍लेटफॉर्म्‍स के लिए एक लेवल-प्‍लेइंग फील्‍ड होना चाहिए इसलिए कुछ नियमों का पालन करना पड़ेगा। लोगों की मांग भी बहुत थी।’ प्रकाश जावड़ेकर ने कहा जिस तरह फिल्मों के लिए सेंसर बोर्ड हैं, टीवी के लिए अलग काउंसिल बना है उसी तरह ओटीटी के लिए भी नियम लाए जा रहे हैं। लगातार मिल रही शिकायतों के बाद सरकार ने नए नियम लागू करने पर विचार किया है। उनका कहना था कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के पास किसी तरह का कोई बंधन नहीं है। इसलिए तमाम आपत्तिजनक सामाग्रियां बिना किसी रोकटोक के दिखाई जाती हैं। इसी के मद्दे नजर सरकार को ये लगता है कि सभी लोगों को कुछ नियमों का पालन करना होगा।

रविशंकर प्रसाद का कहना था, ‘सोशल मीडिया कंपनियों का भारत में कारोबार करने के लिए स्‍वागत है। इसकी हम तारीफ करते हैं। व्‍यापार करें और पैसे कमांए। सरकार असहमति के अधिकार का सम्मान करती है लेकिन यह बेहद जरूरी है कि यूजर्स को सोशल मीडिया के दुरुपयोग को लेकर सवाल उठाने के लिए फोरम दिया जाए।’ प्रसाद ने कहा, ’हमारे पास कई शिकायतें आईं कि सोशल मीडिया पर मार्फ्ड तस्‍वीरें शेयर की जा रही हैं। आतंकी गतिविधियों के लिए इनका इस्‍तेमाल हो रहा है। सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म्‍स के दुरुपयोग का मसला सिविल सोसायटी से लेकर संसद और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है।’

सोशल मीडिया के लिए गाइडलाइंस

– इसमें दो तरह की कैटिगरी हैं: सोशल मीडिया इंटरमीडियरी और सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया इंटरमीडियरी।

– सबको शिकायत निवारण व्यवस्था (ग्रीवांस रीड्रेसल मैकेनिज्‍म) बनानी पड़ेगी। 24 घंटे में शिकायत दर्ज करनी होगी और 14 दिन में निपटाना होगा।

– अगर यूजर्स खासकर महिलाओं के सम्‍मान से खिलवाड़ की शिकायत हुई तो 24 घंटें में कंटेंट हटाना होगा।

– सिग्निफिकेंड सोशल मीडिया को चीफ कम्‍प्‍लायंस ऑफिसर रखना होगा जो भारत का निवासी होगा।

– एक नोडल कॉन्‍टैक्‍ट पर्सन रखना होगा जो कानूनी एजेंसियों के चौबीसों घंटे संपर्क में रहेगा।

– मंथली कम्‍प्‍लायंस रिपोर्ट जारी करनी होगी।

– सोशल मीडिया पर कोई खुराफात सबसे पहले किसने की, इसके बारे में सोशल मीडिया कंपनी को बताना पड़ेगा।

– हर सोशल मीडिया कंपनी का भारत में एक पता होना चाहिए।

– हर सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म के पास यूजर्स वेरिफिकेशन की व्‍यवस्‍था होनी चाहिए।

– सोशल मीडिया के लिए नियम आज से ही लागू हो जाएंगे। सिग्निफिकेंड सोशल मीडिया इंटरमीडियरी को तीन महीने का वक्‍त मिलेगा।

ओटीटी प्‍लेटफॉर्म्‍स के लिए गाइडलाइंस

– ओटीटी और डिजिटल न्‍यूज मीडिया को अपने बारे में विस्‍तृत जानकारी देनी होगी। रजिस्‍ट्रेशन अनिवार्य नहीं है।

– दोनों को ग्रीवांस रीड्रेसल सिस्‍टम लागू करना होगा। अगर गलती पाई गई तो खुद से रेगुलेट करना होगा।

– ओटीटी प्‍लेटफॉर्म्‍स को सेल्‍फ रेगुलेशन बॉडी बनानी होगी, जिसे सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज या कोई नामी हस्‍ती हेड करेगी।

– सेंसर बोर्ड की तरह ओटीटी पर भी उम्र के हिसाब से सर्टिफिकेशन की व्‍यवस्‍था हो। एथिक्‍स कोड टीवी, सिनेमा जैसा ही रहेगा।

– डिजिटल मीडिया पोर्टल्‍स को अफवाह और झूठ फैलाने का कोई अधिकार नहीं है।

गौरतलब है कि लंबे समय से नेटफ्लिक्स और अमेजॉन प्राइम जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को नियंत्रित करने पर बहस चल रही थी। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को नियंत्रित करने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई कर केंद्र सरकार से अब तक की गई कार्रवाइयों पर जवाब दाखिल करने को कहा था।

केंद्र सरकार ने सुनवाई के दौरान कहा था कि वह ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर कार्रवाई करने पर विचार कर रही है। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि केंद्र सरकार ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को नियंत्रित करने के मुद्दे पर कुछ कदम उठाने पर विचार कर रही है।

शूटिंग चैंपियनशिप में फन रायफ़ल क्लब ने प्री-नेशनल के लिए किया क्वालीफाई

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नेशनल रायफ़ल एसोसिएशन के 23 वें मप्र स्टेट शूटिंग चैंपियनशिप में फन रायफ़ल क्लब भोपाल के 7 शूटर्स ने प्री-नेशनल के लिए क्वालीफाई किया है ।  इंदौर के एमराल्ड हाइट्स इंटरनेशनल स्कूल के इंडोर शूटिंग रेंज में आयोजित 10 मीटर एअर रायफ़ल और पिस्टल श्रेणी में शफ़ीक़ खान शूटिंग रेंज में कोच मोहम्मद बिलाल खान और इदरीस खान के निर्देशन में प्रैक्टिस करने वाले 18  शूटर्स सहित प्रदेश भर के लगभग 250 शूटर्स ने विभिन्न आयु वर्ग में भाग लिया था । जिसमें यहां के 7 खिलाड़ियों का चयन आगामी मार्च में होने वाले वेस्ट जोन प्री-नेशनल चैंपियनशिप के लिए हुआ है ।

अमिर हुसैन, अभिनव देशमुख,प्रणव बिरोका,प्रगति ठाकुर, ज़ेदान अंसारी, कृष्णा साहू, (सभी 10 मीटर एअर रायफ़ल ) और मोहम्मद अली अंसारी  (10 मीटर एअर पिस्टल ) ने अलग-अलग आयु श्रेणी में इस चैपियनशिप को क्वालीफाई किया है ।

सभी खिलाड़ियों को क्लब के संरक्षक शफ़ीक़ खान ने बधाई एवं आगामी चैंपियनशिप के लिए शुभकामनाएं दी है।

समाज न तो अर्थसत्ता से चलता है न राजसत्ता से : गोविंदाचार्य

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अरविंद झा निर्भय

देश-दुनिया के जाने माने थिंक टैंक और राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संयोजक के एन  गोविंदाचार्य आज ‘नर्मदा दर्शन यात्रा’ के दौरान होशंगाबाद से हरदा पहुंचे। 20 फरवरी को अमरकंटक से नर्मदा यात्रा और अध्ययन प्रवास की शुरुआत हुई थी। आज यात्रा का छठवां दिन है। 

होशंगाबाद के सर्किट हाउस में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान गोविंदाचार्य ने कहा, पांच दिनों की  यात्रा में मैंने महसूस किया कि समाज न तो अर्थसत्ता से चलता है न राजसत्ता से। अनोखा समाज है जो समाजसत्ता से चलता है। इसमें  राजसत्ता का पूरक योगदान होता है। यह बात मुझे बरमान घाट के नजदीक लोगों को सड़क पर साष्टांग करते हुए  देखकर और साफ हो गया। इसी कड़ी में उन्होंने कहा कि संस्कारों से समाज चलता है, सत्ता से नहीं। 

प्रेसवार्ता के दौरान सवाल आया कि क्या राष्ट्र का स्वाभिमान खतरे में है?  इस सवाल के जवाब में गोविंदाचार्य ने कहा, स्वाभिमान को लेकर सावधानी की जरूरत है। भारत की सभ्यता मूलक यात्रा का जीवन काल बहुत लंबा रहा है। पिछले 200 सालों में भारत स्मृति भ्रंश का शिकार हुआ है। वहीं स्वाभिमान का संबंध स्व से होता है। भारत को भारत के नजरिए से देखने की जरूरत है। इसी क्रम में उन्होंने कहा, स्वाभिमान का संबंध आत्मविश्वास से है जिससे स्वालम्बन आता है। 

नर्मदा यात्रा और अध्ययन प्रवास की समाप्ति के बाद समाज और सत्ता के सामने रिपोर्ट रखने से संबंधित सवाल पर गोविंदाचार्य ने कहा, नर्मदा जी और उनके आस-पास की समस्याओं का समाधान 100 मीटर दौड़ नहीं है, मैराथन है। इसके लिए स्पीड से ज्यादा स्टेमिना की जरूरत है। 

धर्म सत्ता पर राजसत्ता के हावी होने के सवाल पर गोविंदाचार्य ने कहा, इसमें धर्मसत्ता की पहल जरूरी है। जो धर्मसत्ता के प्रतिनिधि हैं उनको पहल करना चाहिए। 

मध्यप्रदेश में शराब बंदी के सवाल पर गोविंदाचार्य ने कहा, नैतिक दृष्टि से शराब बंदी होनी चाहिए। इससे राजस्व को लेकर सोचे जरूरी नहीं। समाज का स्वास्थ्य भी सोचे। 

वहीं, गोविंदाचार्य ने होशंगाबाद के डोंगड़वारा गांव की महिलाओं से भी संवाद किया। ये गांव तब सुर्खियों में आया था जब यहां की महिलाओं ने अपने गांव के पुरुषों का शराब छुड़वाने के लिए कड़ाई की।  जिसकी बहुत सराहना हुई थी। इस गांव की कृष्णा देवी की अगुवाई में महिलाएं शराब बंदी की मुहिम में लगी हैं। गोविंदाचार्य ने शराब बंदी के खिलाफ उनके आवाज बुलंद रखने का आग्रह किया और महिलाओं की सराहना की।

 गोविंदाचार्य ने कहा, उनकी नर्मदा दर्शन यात्रा का उद्देश्य नव तीर्थ और नव देव दर्शन है। इसके लिहाज से डोंगड़वारा में नव तीर्थ और नव देव  दर्शन हुए। जो नया काम कर रहे नव देव हैं, जहां वो काम हो रहा नव तीर्थ है। 

बुधवार को नर्मदा दर्शन यात्रा और लोक संवाद के दौरान गोविंदाचार्य होशंगाबाद के सेठानीघाट, आंवली घाट, चांदगढ़ और हरदा जिले के टिमरनी सहित कई स्थानों पर गए।

THREAT TO DEMOCRACY

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 Sanjeev Uniyal

(Advocate Supreme Court of India)

Life without liberty and society without safety is like eyes without vision, ears without hearing power, Mind without thinking faculty and lips without smile.

On 25 of February 2020 a group of unruly, uncivilized, barbarous and dangerous mob transcripted a brutal story by killing more than 50 Hindus in North East Delhi riots . Which speaks volume about the intolerant, insensitive and unconstitutional temperament of so called minority community it doesn’t reflect that this kind of behavior could be correlated with the act of minority community in the heart of the capital of Bharat . In the global scenario it has been 180 degree reverse means majority community of other countries punished the minorities by signifying there numerological dominance.

The fundamental difference between rioters and murders have been unambiguously elaborated in criminal jurisprudence under constitution of India. Whereas in the eyes of the law it has been provided with separate provisions for punishment.

Riot is an offence against the public peace and good order, conspiracy to riot is also a separate offence. In one case the leader of a small Marxists group took to the streets preaching revolution and organized resistance to lawful authority. Cursing the police, he spoke about how to fight and kill them. Generally advocated violent means to gain political ends. The court laid down law and rule of the land is that the person who agrees with another to organize future riots and who commits an ‘overt’ act in conformity with the agreement is guilty not of riot, but of conspiracy to riot.

  The ‘Riots’ are the most dangerous, barbarous and a blot on the civilisation. The Delhi’s heated riots in a pre planned manner was an act of nefarious designs. On 25th Feb 2020 the Uttrakhand’s gullible young boy aged 20 years Dilbar Singh Negi had to fell victim to the brutality of anti Hindu riots.

Dilbar Singh Negi was burnt alive by a mob of rioters belonging to a community, while he was taking a nap inside a sweet shop in Shiv Vihar, North East Delhi. Who was demanding roll back of CAA. Dilbar Singh Negi came only 6 months ago from Uttrakhand to meet his livelihood, leaving behind his old age parents and brother at the remote village of Uttrakhand.

In the picture on social media one can see the burnt body of deceased Dilbar Singh Negi. The rioters after cutting Dilbar Singh Negi’s hands and feet, threw rest of his body into the fire. Dilbar used to work in a sweet shop at Shiv Vihar. Dilbar Singh Negi was from Thalisan block of district Pauri GarhwalDilbar’s younger brother who is a student, came all the way from Garhwal hills was shaken from head to toe and told that “he is unable to think how he will handover the dead body of his elder brother to his old ailing parents back in Uttrakhand”. Delhi Police has registered an FIR against these Jehadis, since “every cloud has a silver lining”.

Liberty is to the collective body what health is to every individual’s body. Without health no pleasure can be tasted by man, without liberty no happiness can be enjoyed by the society.

These hated crimes by a particular community against Hindus was pre-planned and pre-determined. It has been established with the FIR’s and then charge-sheet has been filed against the AAP counselor Tahir Hussain and 14 others in Karakardooma court of Delhi. This charge-sheet was in co-relation with the riots that took place in the Chand Bagh area of North-east Delhi on 24th and 25th February of this year. Delhi Police further enunciated in the said charge-sheet that on January 8th almost a month before February, North-east Delhi riots, Tahir Hussain met with Former JNU student Umer Khalid and Khalid Saifi and united against Hate at Shaheen Bagh Anti- CCA protest, and Umer asked Tahir “ to be prepared for something big/ riots at the time of TRUMP’s visit”. He and other PFI members will help ( Hussain financially ). Then the chief mastermind who organised the violence in the region for which Tahir Hussain has received Rs. 1.30 crores, his brother and 15 others also have been named as accused.

Police further elaborated in charge-sheet that Tahir Hussain got his pistol released from Khajuri Khas police station, just before the riots started and didn’t give any satisfactory reply for the same. He has to answer where are his live 14 cartridges also. Chand Bagh was the worst hit area where IB staffer Ankit Sharma was also found murdered in a drain. Here in Jaffrabad riots case also the Delhi Police filled charge-sheet on June 2nd. Natasha Narwal and Devan Gana Kalita of “Pinjara Tod” group have been accused and arrested. They both were also a part of longer conspiracy and were found to be hand in glove with the India against Hate group as Umer Khalid. It was a targeted attack on Hindu community. The Hindu community was totally unaware about the attack while the attackers belonging to the Muslim community pre-planned not only the man power and other resources but also the timing as well.

Whereas the culture of Bharat clearly gives us direction by way of Bhrtrihari’s Niti Shatak which as follows:

अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् |

 उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ||

Meaning

The person with narrow minded outlook thinks that he is mine, he is my enemy, But a person with a golden heart thinks…everyone on the earth is his brother.

The said factual information have been shared by the various independent social workers and other organisations like ‘GIA- Group of Intellectuals and Academicians’ and ‘Call For Justice’ another group of intellectuals.

As per the report of GIA there is not an iota of doubt that this riot is a tragic outcome of a planned and systemic radicalisation of minorities with a left Urban Naxal network operating in universities of the capital. The very presence of Jihadi organisations, like PFI (Popular Front of India ) at Dharna sites have been established by the fact finding team of GIA. The recommendation observed by various independent fact finding teams, thereby corroborating the same factual matrix in the charge-sheet filed by Delhi-Police on June 1st and 2nd. The needles of the clock are interlinked with each other, one moves with a greater speed then the other needle which moves slowly. The modus of operandi in these anti Hindu riots has the same pattern, as Tahir Hussain, Abdul Khalid, Gul Fisha, Shifa Ur Rehman etc. Have executed the riots on the ground level in conspiracy with bigger fishes having remote with International Jehadi and Urban naxal support like, Harsh Mander, Rajdeep Serdesai, Yogender Yadav etc.

The various Stringent steps have to be taken by the Central Government to handle these dangerous Anti- National acts so that the majoritarian society who is very peaceful, progressive, educated and civilised should not be penalised for no wrong.

 The Bharatiya point of view in this context is squarely matching with four corners of this present

situation,

 every man on the Earth has the right to be educated and

live healthy.

And “अहिंसा परमो धर्मः” Meaning Non-violence is the ultimate duty.

Last year on 25 February 2020 this episode of violent mob lynching brutal murder and mass killing of Hindu’s took place in the boarder day light in the presence of media persons, police and other authorities which can be witnessed through the various videos Available in the social media. We hope that highest democratic values of this ancient country Bharat shall be maintain by each and every citizen in the future, so that the ambition to become vishawguru could be achieved in no time and justify the sholaka

“sarve bhavantu sukhinah Vasudhaiva Kutumbakam”

संवेदना के धागों से बुनी गयी किताब है ‘जिंदगी का बोनस

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पद्मश्री से अलंकृत अशोक चक्रधर ने किया सच्चिदानंद जोशी की पुस्तक का लोकार्पण

प्रख्यात संस्कृतिकर्मी और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डा. सच्चिदानंद जोशी की रम्य रचनाओं की पुस्तक ‘ जिंदगी का बोनस’ का लोकार्पण इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में पद्श्री से अलंकृत प्रख्यात व्यंग्यकार अशोक चक्रधर ने किया। इस मौके पर पद्मश्री से सम्मानित नृत्यांगना शोभना नारायण, भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक प्रो.संजय द्विवेदी, कथाकार अल्पना मिश्र, प्रभात प्रकाशन के प्रभात कुमार विशेष रूप से उपस्थित थे।

    समारोह को संबोधित करते हुए आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो.संजय द्विवेदी ने कहा कि लेखक की सह्दयता ने जिंदगी की बहुत साधारण घटनाओं को ‘जिंदगी का बोनस’ बना दिया है,यह किताब संवेदना के धागों से बुनी गई है। लेखक की यही संवेदना, आत्मीयता और आनंद की खोज इस पुस्तक का प्राणतत्व है। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि श्री जोशी बहुमुखी प्रतिभासंपन्न और सह्दय व्यक्ति हैं, उनके इन्हीं गुणों का विस्तार इन रम्य रचनाओं में दिखता है। इस संग्रह की एक रचना ‘इफ्तार’ उनकी संवेदना का सच्चा बयान है। श्री जोशी की खासियत है कि वह सबको साथ लेकर चलते हैं, एक अच्छे संगठनकर्ता भी हैं, जहां जाते हैं अपनी दुनिया बना लेते हैं। सबको जोड़ कर रखते हैं।

 दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी की प्राध्यापक और लेखिका अल्पना मिश्र  ने कहा कि इस पुस्तक के बहाने हिंदी साहित्य को एक अनूठा गद्य मिला है। जिसमें ललित निबंध, रिपोर्ताज, कथा, निबंध चारों के मिले-जुले रूप दिखते हैं। इन रम्य कथाओं में विविधता बहुत है और इनका भरोसा एक सुंदर दुनिया बनाने में है। उन्होंने कहा कि अमेरिका के उपन्यासकार विलियम फॉल्कनर का कहना था कि हर किताब में एक फ्रोजन टाइम होता है। पाठक के हाथ में आकर वह बहने लगता है। घटनाएं जीवंत हो उठती है। इन रचनाओं में जिंदगी के छोटे-छोटे किस्से हैं मगर सरोकार बड़े हैं।

      अशोक चक्रधर ने इस कृति को हिंदी साहित्य के लिए बोनस बताया और कहा कि देश की मिली-जुली संस्कृति और संवेदना का इसमें दर्शन है, यही भावना प्रमोदक है। संवेदन तंत्रिका को झंकृत कर जाती है। इनकी कहानियों की प्रेरणा उनके सौंदर्य अनुभूति को दर्शाती है। जब मन-मस्तिष्क सुरम्य हो तभी आप रम्य रचनाएं लिख पाते हैं। ये सारी कहानियां खुशियां प्रदान करती हैं। सकारात्मकता से भरपूर हैं यह कहानियां पहले आपकी चेतना को टटोलती है और फिर बोलती हैं।

      कार्यक्रम की अध्यक्ष प्रसिद्ध नृत्यांगना शोभना नारायण ने कहा कि लघु कथा के इस संग्रह में चिंतन और मनन दिखाई देता है। सामान्य घटनाओं से निष्कर्ष निकालना और सीख लेना मानवीयता, सूक्ष्मता, सूझबूझ और जीवन जीने का साहस भी इसमें दिखाई देता है। साथ ही साथ रसास्वादन भी है। ये रचनाएं ज्ञानवर्धक भी हैं। कौन किस कहानी से क्या सीख ले जाता है लेखक ने यह सूक्ष्मता दिखाई है।

 इस मौके पर श्री सच्चिदानंद जोशी ने लेखकीय वक्तव्य दिया और अपनी दो कहानियों का पाठ भी किया।  कार्यक्रम का संचालन श्रुति नागपाल और आभार ज्ञापन मालविका जोशी ने किया। 

सरकार के साथ समझौते के बाद फेसबुक ने लिया ये फैसला

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दिग्गज सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक ऑस्ट्रेलिया सरकार के साथ समझौता होने के बाद वहां अपने प्लेटफॉर्म पर न्यूज देखने और शेयर करने पर लगाई रोक हटाने के लिए तैयार हो गई है। इस पूरे मामले पर फेसबुक का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया की सरकार प्रस्तावित मीडिया लॉ में संशोधन के लिए राजी हो गई है। इसके बाद उसने ये फैसला किया है।

दरअसल, जब अस्ट्रेलिया की सरकार ने देश में एक मीडिया कोड लागू करने की घोषणा की तब ये पूरा विवाद शुरू हुआ था । इस मीडिया कोड को वहां न्यूज मीडिया बार्गेनिंग कोड नाम दिया गया है। इस कोड के तहत कोई भी सोशल मीडिया कंपनी और टेक्नोलॉजी फर्म अपने प्लेटफॉर्म अगर कोई न्यूज लिंक दिखाती है या इस्तेमाल करती है, तो उसके लिए कंपनी को संबंधित मीडिया पब्लिशर को उसके लिए भुगतान करना होगा।

पिछले दिनों जब सरकार ने फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियों को इस कोड के अंतर्गत लाने का फैसला किया तब इस पर विवाद और बढ़ गया । इसके बाद ही फेसबुक ने विरोध में पिछले हफ्ते ऑस्ट्रेलिया में न्यूजफीड से समाचारों को ब्लॉक कर दिया था।  

सुनियोजित थे दिल्ली के दंगे..

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अर्पित जैन

दिल्ली दंगों की बरसी पर कॉल फॉर जस्टिस की तरफ से एक दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक दिल्ली दंगे साजिश का खुलासा का विमोचन किया गया। पुस्तक में विस्तार से पिछले साल पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के बारे में लिखा गया है। 

पुस्तक में बताया गया है कि किस तरह से साजिश के तहत दंगे भड़काए गए। पहले सत्र का संचालन डॉ. जसपाली चौहान ने किया। मंच पर वरिष्ठ अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा, अधिवक्ता नीरज अरोड़ा, पत्रकार आदित्य भारद्वाज मौजूद थे। कॉल फॉर जस्टिस के संयोजक नीरज अरोड़ा ने दिल्ली दंगों की प्लानिंग और उसको करने के कारणों के बारे में विस्तार से बताया। मोनिका अरोड़ा ने कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि जिस तरह दिल्ली दंगे भड़काए गए। उसी तरह इस साल कृषि कानूनों को लेकर भी किसानों को भड़काया जा रहा है। ग्रेटा थनबर्ग  की टूलकिट यदि बाजार में नहीं आई होती तो फिर से दिल्ली दंगों जैसी स्थिति पैदा हो सकती थी। यह शुक्र है कि इस बार ऐसा नहीं हो पाया है। दिल्ली दंगों और किसान आंदोलन के बीच काफी समानता है। दोनों में एक ही तरह का नेतृत्व काम कर रहा था। इन दोनों आंदोलनों में कई चेहरे एक जैसे हैं। पत्रकार आदित्य भारद्वाज ने बताया कि वो खुद उस इलाके में रहते हैं जहां ये दंगे हुए थे। उनके मुताबिक दंगों की प्लानिंग बहुत ही बेहतर तरीके से की गई थी। दंगा उस समय शुरू किया गया, जबकि घरों में पुरूष नहीं थे। जबकि जिन दुकानों और जगहों पर हमला किया जाना था, वो पहले से ही तय किया गया था। उसके लिए सारे हथियारों को भी बंदोबस्त भी किया गया था।

पुस्तक के लेखक मनोज वर्मा ने बताया कि दिल्ली दंगों की साजिश एक अंतरराष्ट्रीय साजिश थी। जिसको कई महीनों पहले प्लान कर लिया गया था। पुस्तक के अन्य लेखक वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप महापात्रा ने बताया कि जब कोर्ट में सीएए को लेकर 150 से ज्य़ादा पिटिशन लगी हुई थी। तो उस समय योजनाबद्ध तरीके से दंगे कर कानून को प्रभावित करने की कोशिश थी।

न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) प्रमाेद कोहली ने भावुक होते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर से होने के नाते वह जानते हैं कि दंगा क्या होता है। बहन-बेटियों की अस्मत लूटी गई। लोगाें की हत्याएं हुईं। दिल्ली दंगा पीड़ितों की दास्तां सुन कर ऐसा लग रहा है कि इनके साथ इंसाफ नहीं हो रहा है। हम न्याय के लिए संबंधित लोगो तथा आर्थिक सहायता के लिए सरकार तक इनकी बात पहुंचाएंगे। न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एमसी गर्ग ने कहा कि अगर पीड़ित परिवार अपनी समस्याओं की रिपोर्ट “कॉल फार जस्टिस’ को भेजें तो हम उनकी लड़ाई लड़ेंगे। आईपीएस बोहरा – पीड़ित को अगर लगता है की दबाब में बयान लिया गया है तो वो अपना बयान बदल सकते हैं।

        

बॉम्बे HC से न्यू टैरिफ ऑर्डर केस को जल्द सूचीबद्ध करने की TRAI ने की गुजारिश

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बॉम्बे हाई कोर्ट से ‘भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण’  ने समयबद्ध फैसले के लिए न्यू टैरिफ ऑर्डर-2.0 (NTO 2.0) के मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने की गुजारिश की है।

मीडिया खबर के अनुसार, ‘ट्राई’ ने न्यू टैरिफ ऑर्डर-2.0 के मामले को इसी महीने सूचीबद्ध करने के लिए कहा है, ताकि इस पर फैसला आ सके। रिपोर्ट के अनुसार, ‘ट्राई’ के चेयरमैन पीडी वाघेला उपभोक्ताओं के हितों को मद्देनजर नए टैरिफ ऑर्डर को जल्द से जल्द लागू कराना चाहते हैं।

मालूम हो कि पिछले साल जनवरी में ट्राई ने नए न्यू टैरिफ ऑर्डर (NTO 2.0) को लागू करने का आदेश दिया था, जिसके बाद ब्रॉडकास्टर्स के ग्रुप ने बॉम्बे हाई कोर्ट में ट्राई के आदेश को चुनौती दी थी। फिलहाल मामला कोर्ट में विचाराधीन है।

      

जीवन सरगम सिखाने वाले का बेसुरा होता जीवन और मूकदर्शक हम

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प्रकाश बादल

कल रात जब सोनी टीवी पर ‘इन्डियन आइडल’ पर संतोष आनंद नामक 81 वर्ष के बुज़ुर्ग के दर्शन हुए तो कलेजा मुंह को आ गया | रात भर नींद नहीं आई |  ‘इक प्यार का नगमा  है.  मौजों की रवानी है, ज़िन्दगी और कुछ भी नहीं तेरी मेरी कहानी है.’. लिखने वाले संतोष आनंद की पीडादायक कहानी सुनकर आसुओं का सैलाब और पीड़ा के अनेक उफान ज्वार-भाटा की तरह जीवन को तार तार कर गया | कितनी हैरानी होती है कि फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित होने वाले संतोष आनंद को हमने घनघोर पीड़ा की काल-कोठरी में धकेल दिया और उनके लिखे गीत आज भी हमारा संबल बनकर हमें मुश्किल समय में जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं | उनका एक गाना ही जीवन को उम्मीदों की डोर से बाँध देता है, और सभी गानों की बात करूं तो जीवन खुशी के आसमान में उड़ने लगता है | संगीत का ऐसा तिलिस्म रचने वाले गीतकार आज हमारे सामने ही नजर अंदाज़ हों और हमारे मन-मस्तिष्क को उन्हीं के लिखे गाने ताज़ा करे इससे बड़ी लानत और क्या हो सकती है | जब दूसरे कमरे से ‘बिग बॉस’ की नीरस बहसें सुनाई दे रही थी, उसी समय दोनो हाथ जोड़े  संतोष आनंद जी पूरे देश के सामने एक याचक की तरह मानो हाथ जोड़ कर कह रहे हों, कि मैं वहीं संतोष आनंद हूँ जो  फिल्म नगरी में रहकर जीवन को उमंगों तरंगों से भरने वाले गाने लिख चुका हूँ | बहुत हैरानी हुई.. जहाँ उन्हें हमें सहारा देना चाहिए, वहीं संतोष आनंद कृत्रिम वैसाखियों, और व्हील चेयर के सहारे चल रहे हैं और उनके लिखे मधुर गाने हमें उंगली पकड़ कर आशा के रास्ते पर ले जा रहे हैं |

 कहाँ है हमारी सत्ता में बैठ वो लोग, जो प्रतिभा को सम्मान देने की बात करते हैं | वो प्रावधान कहाँ है जो प्रतिभा को सम्मानित करने की डींगें हांकते हैं | संतोष आनंद का थर-थर काँपता जिस्म देख कर कलेजा फटने लगा था | जब संतोष आनद का आदित्य नारायण ने स्वागत किया को संतोष के जुड़े हाथ और समर्पित आवाज़ सुनते ही जिस्म के रोम-रोम से मानो ठंडे गर्म तूफ़ान उठ रहे हों, उन्होंने कहा बहुत अच्छा लग रहा है, अरसे बाद मुम्बई आकर अच्छा लग रहा है, ‘किसी ने याद तो किया’ चार शब्दों में एक बहुत बड़ी करुणा भरी व्यथा है और मैं खुदको बेबस महसूस करता हुआ एक ऐसा असहाय व्यक्ति जो ईश्वर से यह प्रार्थना कर रहा था कि काश ! मेरे पास इतने साधन होते कि मैं संतोष आनंद के लिए कुछ कर सकता ! मेरे पास कुछ धन होता तो मैं भी उन्हें अर्पित करता |

प्रतिभा के नाम पर बिना सिर-पैर के शो में करोड़ों दान करने वाले टीवी चैनल और फिल्म उद्योग के वो लोग इतने असंवेदनशील हैं कि फिल्मनगरी को मधुर गीतों की सौगात देने वाले संतोष आनंद को दर-दर की ठोकरें खाते हुए देखें | सरकार की साहित्य अकादमियों, और सम्मान समितियों पर लानत भेजने का मन करता है | दो कौड़ी के लेखकों को बड़े बड़े सम्मानों से नवाजने वाली सरकारें असल प्रतिभा को किसी अनाथ की तरह दुखों की काल कोठरी में जीने पर विवश होने के बावजूद भी देख नहीं पा रही | अनेक सरकारी संस्थान हैं जिनका काम प्रतिभा को समानित करना और प्रतिभा को तराशना है, लेकिन अब नई प्रतिभा सिर्फ वही मानी जाती है जो राजदरबारी की तरह सरकारों की प्रशंसा में खोखले लेख लिखे और ऐसे गाने लिखे जिसमें ख्याली पुलाव पकते हों.. जिसमें सरकार की चाटुकारिता करने वाले लोगों पर लाखों की धनराशी पुरस्कार के रूप में लुटा कर ऐसा आडम्बर रचा जाता है, कि मानो देश में प्रतिभा सबसे ऊंचे पायदान पर हो | बे सिर-पैर के आयोजनों में बेशक करोड़ों रुपये लुटाने वाले चैनल फूहड़ता का भोंडा मसाला परोस कर अपना व्यापार चलाते हों, मुनाफ़ा कमाते हों, ऐसे में संतोष आनंद जैसे प्रतिभा के धनी लेखक को जीवन जीने भर भी साधन न मिले तो लानत शब्द मुंह से न निकले तो भला और क्या निकले | मेरे ज़हन में संतोष आनंद का वो क्षणिक संबोधन एक अमूल्य पूंजी है और पीडादायक अनुभव भी |

 यह भी समझ आता है कि परिस्थितियाँ और भाग्य अगर आपको हाशिये पर धकेल दे तो आपके संसाधनों के दम पर आगे निकल गए लोग भी आपके साथ नहीं होंगे |  ईश्वर के दर पर ठोकरें खा कर माँगा हुआ बेटा जब अच्छी नौकरी पर लग जाए और घर में एक बहु के रूप में बेटी आए, और परिस्थितियो के चलते वही बेटा और बहु आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाए ऐसे में अकेले पड़े संतोष आनंद की कोई भी सुध न ले तो यह हमारी बेचारगी का निम्न स्तर नहीं तो और क्या है |  जब संतोष आनंद कहते हैं,’ मैं एक उड़ते हुए पंछी की तरह मुम्बई आता था.. रात रात  को जाग कर गाने लिखता था.. मैंने अपने खून से गाने लिखे, लेकिन अब मेरे लिए दिन भी रात हो गए हैं’. और उनके गले तक आता वो ग़मों का अथाह समंदर, उस समंदर के उफान को रोकती उनकी जिजीविषा.. जहाँ वो कहते हैं कि मैं जीना चाहता हूँ | इतनी पीड़ा के बाद भी जीने का हौसला रखता वो  टुकड़े-टुकड़े हुआ आदमी.. खुद को हौसलों के गोंद से जोड़े हुए है | बेचारी व्यवस्था और असंवेदनशील होती मानवता के बीच संतोष आनंद के लिखे गीतों की डोर से जीवन गाड़ी खींचते हम जब मूक दर्शक बन जाते हैं तो नेहा कक्कड़ जैसे पाक हृदय जब संतोष आनंद के माथे पर मुहब्बत भरा हाथ फेरते  हैं.. तो दिल को ढाढस बंधती है कि संतोष आनंद के जीवन की पीडाएं तो शायद कम न हो लेकिन उनके जीवन का आख़िरी पड़ाव थोड़ी राहत से गुज़रे.. नेहा कक्कड़ के मुहब्बत भरे हाथों ने जब संतोष आनंद के माथे को छूआ तो ऐसा लगा कि उनके दुःख भरे  घावों पर मुहब्बत का लेप लगा लिया हो |  फिर संतोष आनंद अपना शेर कहते हुए  विदा लेते हैं :-  

जो बीत गया है वो अब  दौर न आएगा 

इस दिल में सिवा तेरे कोई और न आएगा |

 घर फूंक दिया हमने अब राख उठानी है..

 ज़िन्दगी और कुछ भी नहीं तेरी मेरी कहानी हैं | 

ईश्वर छुपा कहाँ है रे तू….

“आदिवासी न कभी हिंदू था और न है और न रहेगा!” : हेमंत सोरेन

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गंगा महतो

“अहिंसा परमो धर्म:” …. इस वाक्य को इतना दोहराया गया इतना दोहराया कि लोग इसे ही सच मान बैठे.. ‘अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है… अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है!’ बारंबार बारंबार और बारंबार बस यही। और ये जब ख्याति प्राप्त व्यक्ति/व्यक्तियों के मुंह से निकलता है न तो फिर परम वाक्य बन जाता है और प्रमाणित भी। उसके बाद के लोग बस इसी चीज को कोट करेंगे कि देखिये इन्होंने क्या कहा था सो!! और हम उसकी अहवेलना कर रहे है/करेंगे ?? 

“अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च” … कौन जानता है इस पूर्ण वाक्य को ??? आधे अधूरे वाक्य ने कितना कुछ कबाड़ किया हिंदू समाज का उसका अंदाजा भी है ?? पंगू और नपुंसक बना दिया इस आधे-अधूरे वाक्य ने। क्योंकि इसे प्रमाणित व्यक्ति ने ठप्पा मार दिया।। और इसके बाद धर्म सम्मत हिंसा करना भूल गए लोग।। घर में जहाँ तलवार,भाला,फरसा,कटार,तीर-कमान आदि-आदि बड़े कॉमन हुआ करते थे वहाँ अब ढंग का एक सब्जी काटने का चाकू न मिलेगा।.. मुर्गी के खून देख कर उल्टी करने लगते है तो कई फिट हो जाते है।.. बस इस एक आधे-अधूरे सेंटेंस के कारण।

ये आधे-अधूरे वाक्य और उसका इंटरप्रेटेशन कितना घातक होता है ये हम समझने वालों में से नहीं है। कीमत चुका कर भी समझ नहीं आता हमें।

चुनाव के पहले और अब तक ये सीएम बड़े-बड़े प्लेटफॉर्म पे एकदम एक बात बोलते हैं “आदिवासी हिंदू नहीं है!” “आदिवासी न कभी हिंदू था और न है और न रहेगा!” और ऐसे ही डॉट डॉट डॉट .. बहुत खूब।.. ये वाला तुर्रम पहले भी था लेकिन बस छोटे पैमाने पे और मिशनरियों के गोद में पलने वाले चंद क्रिप्टो बुद्धिजीवियों के मुख पे और उनके चेला-चपाटियों के। लेकिन अब राज्य के मुखिया के मुखारबिंद से ऐसे बोल निकल रहे हैं और लगातार निकल रहे है भले ही ये अपने घर में हवन कराए,माता रानी का आरती उतारे, भोलेनाथ का पूजा करे और ऐसे ही डॉट डॉट लेकिन बड़े प्लेटफार्म पे यही वाक्य दुहरायेंगे कि आदिवासी हिंदू नहीं है।

और फिर सारा नैरेटिव इसी पे सेट हो जाता है.. सारा ज्ञान सिर्फ और सिर्फ इसी पे केंद्रित रहेगा.. इसके अलावे कोई और चर्चा नहीं होगा। और लोग बस इसी में उलझेंगे और इसी को सच/झूठ मान कर मत्था फोड़वल करेंगे।.. ये आधा अधूरा वाक्य ही पूर्ण वाक्य बन जायेगा और यही सच हो जाएगा।

जब से इसे सुन रहा हूँ तब से बस एक ही रट लगाए बैठा है कि “आदिवासी हिंदू नहीं है” .. अरे भाई इसी पे लटके रहोगे या इसके भी आगे कुछ बोलना है ?? आदिवासी हिंदू नहीं है तो आदिवासी क्रिश्चन भी नहीं है,आदिवासी मुस्लिम भी नहीं है।… पूरा बोलो न .. और खुल के बोलो। ये हिन्दू-हिन्दू पे आ के अटक क्यों जाते हो ?? मुस्लिम आदिवासी जहां है वहाँ है लेकिन सबसे ज्यादा इस मंत्र (आदिवासी हिन्दू नहीं है) से किसको फायदा हो रहा ?? निश्चय ही क्रिश्चन मिशनरियों को.. इसकी बात ही कहीं नहीं है.. और सबसे ज्यादा खतरा इन्हीं लोगों से है।.. एक भी बड़े प्लेटफार्म पे इसकी बात नहीं होती और न कोई करना चाहता है क्योंकि ये सारा प्रोपेगैंडा मिशनरियों का ही तो है। ये मिशनरी “आदिवासी हिंदू नहीं है” का नारा इस कदर बुलंद करेंगे कि इसके आगे-पीछे का किसी को भी सुझाई-बुझाई नहीं देगा और इसी को सत्य मान लेंगे.. जैसे “हिंसा तथैव च” किसी को दिखाई नहीं देता और इसके पहले वाला को ही लोग सत्य मान बैठे हैं।

दो टीवी चैनलों के दफ्तरों में जमकर तोड़फोड़

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कुछ उपद्रवियों ने पाकिस्तान में दो टीवी चैनलों पर हमला कर दिया और दफ्तरों में जमकर तोड़फोड़ की। बताया जा रहा है कि ये हमला कॉमेडी शो में किए गए मजाक को लेकर किया गया है। टीवी शो पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि इसके जरिए सिंध प्रांत और सिंधी भाषी लोगों का मजाक बनाया जा रहा है।

सूचना के अनुसार, गुस्साए लोग रविवार को ‘जियो न्यूज’ और ‘जंग न्यूज’ के ऑफिस में घुस आए। उन्हें रोकने का काफी प्रयास भी किया गया, लेकिन वे नहीं माने और ऑफिस के अंदर घुस आए। उन्होंने जमकर तोड़फोड़ मचाई और स्टाफ के साथ मारपीट भी की।

स्थानीय मीडिया द्वारा जारी की गई टीवी फुटेज के मुताबिक, जगह-जगह बिखरा सामान, टूटे शीशे साफ देखे जा सकते हैं।

टीवी चैनल के शो ‘खबरनाक’ के होस्ट इरशाद भट्टी ने बयान देकर कहा है कि उनका मकसद किसी का अपमान करना नहीं था। दरअसल, अपने इसी शो में सिंधी लोगों पर की गई पत्रकार इरशाद भट्टी की टिप्पणियों से ही लोगों में नाराजगी है।  इस महीने के शुरुआत में इरशाद भट्टी ने सिंधी समुदाय के लोगों को अपने कार्यक्रम में ‘भूखा-नंगा’ (भूखा और नंगा) कहा, तो लोगों का धैर्य टूट गया और विरोध प्रदर्शन करने लगे।

पत्रकार इरशाद भट्टी ने कार्यक्रम की शुरुआत में भिखारी-नंगे लोगों के करोड़पति नेता के तौर पर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी को इंट्रोड्यूस किया। फिर कहा था कि सिंध में बहुत से भीख मांगने वाले लोग हैं। उन्होंने यह भी कहा कि बहुत से भोले-भाले लोग जरदारी की रैलियों में शामिल होने आते हैं, जिन्हें इसके लिए भुगतान भी नहीं किया जाता है। इरशाद ने कहा कि भूखे-नंगे लोगों को पैसे का वादा करके पीपीपी रैलियों में लाया जाता है, लेकिन बाद में उन्हें भुगतान भी नहीं किया जाता है।

 इस हमले को लेकर, पत्रकार जेबुनिसा बुरकी ने कहा कि पुलिस की आंखों के सामने यह सब हुआ। जब पुलिस को सूचना दी गई, तब तक भी हमलावर वहीं थे।

जियो न्यूज के प्रबंध निदेशक अजहर अब्बास ने ट्वीट कर इस हमले की कड़ी निंदा की है। उन्होंने कहा, ‘जियो और जंग के ऑफिस पर हुए हमले की कड़ी निंदा करते हैं। उन्होंने रिसेप्शन एरिया में तोड़फोड़ की और हमारे कैमरामैन के साथ मारपीट भी की। आखिर सरकार कहा है?’

जियो न्यूज कराची के पत्रकार फहीम सिद्दिकी ने कहा कि भट्टी ने स्पष्टीकरण देने के बाद माफी भी मांगी थी। ऐसे में यह नहीं होना चाहिए था। इस विरोध प्रदर्शन के बारे में पहले से पता था, फिर भी पुलिस ने कुछ नहीं किया। कोई सुरक्षा न्यूज चैनल को मुहैया नहीं कराई गई। हम इस घटना के पीछे लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग करते हैं।

 घटना की निंदा करते हुए सिंध के सूचना मंत्री नासिर हुसैन शाह ने कहा कि हम मामले की जांच कर रहे हैं। सिंध के मुख्यमंत्री मुराद अली ने भी कहा कि उन्होंने इस घटना की जांच के आदेश दे दिए हैं और जियो न्यूज के प्रबंध निदेशक से इस बारे में बात भी की है। हालांकि विपक्षी दल इस घटना के बाद इमरान सरकार पर सवाल उठा रहा है।

यूपी विधानसभा में उठा पत्रकारों से जुड़ा मुद्दा

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राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के अभिभाषण के बाद विपक्षी दलों ने उत्तर प्रदेश विधानमंडल के बजट सत्र में विधानसभा की पत्रकार दीर्घा में कवरेज के लिए मीडिया को नहीं बैठने देने का मुद्दा उठाया, जिसके जवाब में विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि कोरोना काल के कारण पत्रकारों के लिए अलग व्यवस्था की गई थी और इस बारे में जल्द ही कोई फैसला लिया जाएगा।

राज्यपाल के अभिभाषण के बाद नेता प्रतिपक्ष राम गोविंद चौधरी ने पूछा कि विधानसभा में पत्रकार दीर्घा से पत्रकारों को क्यों दूर रखा गया है और क्या कोविड-19 केवल पत्रकारों को ही प्रभावित करता है, विधायकों, विधान परिषद सदस्यों, मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष और नेता विपक्ष को नहीं?

बहुजन समाज पार्टी के विधानमंडल दल के नेता लालजी वर्मा और कांग्रेस विधानमंडल दल की नेता अराधना मिश्रा ने भी चौधरी की इस बात का समर्थन किया। इस पर विधान सभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि कोरोना काल में पत्रकारों की सहमति से यह निर्णय लिया गया था कि मीडिया के लिए बैठने की अलग व्यवस्था कर दी जाए और उसी हिसाब से अलग व्यवस्था की गई थी।

उन्होंने कहा कि पत्रकारों ने कोई आपत्ति नहीं जताई है। लालजी वर्मा और अराधना मिश्रा ने इस पर कहा कि कुछ पत्रकारों को अनुमति दी जानी जाए, जिससे कि वे सदन की कार्यवाही सही ढंग से देखें और उसकी रिपोर्टिंग करें। विधानसभा अध्यक्ष ने इसके जवाब में कहा कि इस पर कार्यमंत्रणा समिति की बैठक में विचार कर लिया जाएगा।

TV पर विज्ञापनों को लेकर TAM AdEx की रिपोर्ट

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टीवी पर नए एडवर्टाइजर्स की संख्या में पिछले साल जनवरी की तुलना में टैम एडेक्स’ की रिपोर्ट के अनुसार, इस साल जनवरी महीने में कमी आई है। हालांकि, इस साल जनवरी में पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले टीवी पर विज्ञापनों की संख्या में 34 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी 2020 के मुकाबले जनवरी 2021 में टीवी पर 1500 से अधिक नए विज्ञापनदाताओं ने विज्ञापन दिया है। जनवरी 2020 में कुल विज्ञापनदाताओं की संख्या 3000 से ज्यादा थी, वहीं नवंबर और दिसंबर में यह क्रमश: 2900 से ज्यादा और 2300 से ज्यादा थी। जबकि पिछले साल जनवरी की तुलना में इस साल जनवरी में 1900 से ज्यादा एक्सक्लूसिव विज्ञापनदाता गायब थे।   

‘Starcom MediaVest Group’ के मैनेजिंग डायरेक्टर (नॉर्थ) दीपक शर्मा का कहना है,’किसी भी एडवर्टाइजर अथवा इंडस्ट्री के लिए साल की दो तिमाही अप्रैल-मई-जून और अक्टूबर-नवंबर-दिसंबर काफी महत्वपूर्ण होती हैं, क्योंकि तकरीबन 60 प्रतिशत रेवेन्यू इन्ही तिमाहियों में आता है। अक्टूबर-नवंबर-दिसंबर के मुकाबले जनवरी-फरवरी-मार्च का कम महत्व है, लेकिन यदि हम जनवरी-फरवरी-मार्च को तिमाही दर तिमाही देखें तो यह ज्यादा होगी, क्योंकि फाइनेंस सेक्टर, स्टूडेंट सेक्टर व अन्य के लिए मार्च काफी महत्वपूर्ण महीना है। इसके अलावा यह वित्तीय वर्ष का अंतिम महीना भी होता है।’

 व्हाइट हैट एजुकेशन टेक्नोलॉजी इस साल जनवरी में टॉप एडवर्टाइजर्स की लिस्ट में शामिल रहा। पिछले महीने टीवी पर दस नए एडवर्टाइजर्स की बात करें तो इनमें Dhani services, Airtel Payment Bank, International Cricket Council, Honda Cars India, Thangamayil Jewellery, Piccadily Agro Industries, Accenture Solutions, Ather Energy और Acko General Insurance आदि ब्रैंड्स ने अपनी जगह बनाई।  

शर्मा के अनुसार, महामारी के दौरान ऑटो, हॉस्पिटैलिटी, और ट्रैवल जैसे सेक्टर काफी प्रभावित हुए। ये सेक्टर विज्ञापनों पर सबसे ज्यादा खर्च करने वाले हैं, लेकिन पिछले साल इनके खर्च में गिरावट देखी गई और इसलिए विज्ञापन प्रभावित हुआ।

एक विशेषज्ञ के अनुसार , ‘सर्विस प्रोवाइडर्स, ऑनलाइन एजुकेशन, एजुटेक और ई-कॉमर्स जैसी कुछ कैटेगरी हैं, जिनमें इस साल उछाल आने की उम्मीद है। इसके अलावा लोन सर्विसेज और सर्विस सेक्टर जो नीचे खिसक गया है, वह आने वाले महीनों में ऊपर आ सकता है। भले ही नए विज्ञापनदाताओं की संख्या कम हो, लेकिन अन्य विज्ञापनदाताओं द्वारा खर्च में कटौती नहीं की गई। पिछले साल इन कैटेगरी में तमाम एडवर्टाइजर्स मौजूद थे, जिन्हें अभी रिकवर करना है। हालांकि, अब खर्च बंद नहीं किया गया है, एडवर्टाइजर्स सिर्फ टीवी पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं।’

डाटा के अनुसार, जनवरी 2020 के मुकाबले जनवरी 2021 में दस टॉप नए एडवर्टाइजर्स में से चार सर्विस सेक्टर से जबकि दो ऑटो सेक्टर से थे।

‘पिच मैडिसन एडवर्टाइजिंग रिपोर्ट’ 2021 के अनुसार, पहली तीन तिमाहियों में वर्ष 2019 के मुकाबले 31 प्रतिशत की गिरावट देखी गई, वर्ष 2020 की चौथी तिमाही (Q4’20) में तीसरी तिमाही (Q3 2020) के मुकाबले 66 प्रतिशत का इजाफा हुआ। वर्ष 2019 की चौथी तिमाही (Q4 2019) के मुकाबले इसमें 56 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई।

रिपोर्ट के मुताबिक, कैटेगरीज की बात करें तो कोविड-19 वर्ष में सबसे बड़ी वृद्धि अनुमानित रूप से ई-कॉमर्स कैटेगरी से आई है, जिसमें वर्ष 2019 के मुकाबले 95 प्रतिशत की ग्रोथ दर्ज की गई है। ई-कॉमर्स में ऑनलाइन शॉपिंग, मोबाइल वॉलेट्स और मीडिया/एंटरटेनमेंट/सोशल मीडिया/ओओटी प्रमुख कैटेगरी थीं। इसके बाद अगली बड़ी ग्रोथ एजुकेशन सेक्टर से देखने को मिली है।

इफको ने अयोध्या में श्री राम मंदिर निर्माण के लिए 2.51 करोड़ का दिया दान

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अयोध्या में चल रहे निर्माण कार्य हेतु विश्व की अग्रणी सहकारी संस्था इफको ने 2.51 लाख भेट किये। श्रद्धा से साथ सम्पूर्ण इफको परिवार की ओर से इस पूण्य कार्य के लिए योगदान है। इफको के अध्यक्ष श्री बलविंदर सिंह नकई जी के साथ इफको के उपद्यक्ष श्री दिलीपभाई संघणी, प्रबंध निदेशक श्री उदय शंकर अवस्थी, सं० प्रबंध निदेशक श्री राकेश कपूर, निदेशक (मानव संसाधन एवं विधि) श्री आर पी सिंह तथा विपणन निदेशक श्री योगेन्द्र कुमार ने मिलकर इफको निदेशक मंडल की ओर से श्री राम जनमभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट से सप्रेम 2.51 करोड़ का चेक भेट किया। ये चेक विश्व हिंदू परिषद के प्रमुख श्री आलोक कुमार और टीम को भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की उपस्थिति में सौंपा।

ज्ञात हो कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने 05 अगस्त, 2020 को अयोध्या में प्रभु श्री राम के जन्म स्थल पर मंदिर निर्माण कार्य के लिए भूमि पूजन किया था। इफको सहकारिया, किसानों व लोक मानस की भलाई हेतु अलग-अलग कार्य करती रहती है। पिछले वर्ष इफको ने कोविड महामारी से लड़ने के लिए प्रधानमंत्री केयर फड़ में 25 करोड़ का योगदान दिया था। इसके साथ-साथ इफको ने कोविड महामारी के दौरान देश भर में ‘इफको फाइट करोना – ब्रेक दी चैन’ की एक विशेष अभियान पूरे भारतवर्ष में चलाया था। साथ ही देश भर में ठंड के दौरान गरीबों में कंबल का वितरण करवाया गया था।

इफको पूरे भारत में किसानों को शिक्षित करने और उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने हेतु कई शैक्षिक कार्यक्रमों और गतिविधियों का आयोजन करता आ रहा है । इन कार्यक्रमों में संतुलित प्रजनन, गाँव को गोद लेना, कृषि विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों के लिए किसानों का दौरा, किसानों की बैठकें, फसल सेमिनार, स्टेटिक / मोबाइल मृदा परीक्षण प्रयोगशाला आदि शामिल हैं। इफको किसानों के सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के हेतु विभिन्न गतिविधियाँ करता है जैसे : सूखे की आशंका वाले क्षेत्रों में चारा की आपूर्ति, पशु चिकित्सा जांच और दवाइयों का वितरण, स्वास्थ्य शिविर, स्वच्छ पेयजल सुविधा, वाटरशेड विकास और किसानों के बच्चों की स्कूली शिक्षा के लिए वित्तीय सहायता। इफको ने ग्रामीण समुदायों की कला और संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन में महत्वपूर्ण योगदान देता आ रहा है।

दि ग्रेट टूल किट और पर्यावरण के जयकारे

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राजीव रंजन प्रसाद

ग्रेटा थनबर्ग का टूलकिट चर्चा में है लेकिन इसी के दृष्टिगत “वैश्विक नक्सलतंत्र” की नहीं पर्यावरण की चर्चा करनी आवश्यक है। भारत के भीतर होने वाली किसी भी अलगाववादी गतिविधि और उसके संचालन का मैकेनिज्म समझना है तो यही टूलकिट आजमायें, उदाहरण के लिये साझा किये गये दस्तावेज में किसान आंदोलन शब्द को काट कर नक्सलवाद जोड दें आपको देश-विदेश मेंउसके समर्थन में होने वाले कार्यक्रमों, अभियानों और गतिविधियों से कडियाँ जोडने मे मिनट नहीं लगेगा। बहरहाल टूलकिट और इसके भारतीय वामपंथी कलमखोरों की बात फिर कभी, ग्रेटा थनबर्ग से उसका ही प्रश्न पूछने की इच्छा है “हाउ डेयर यू?” 

ग्रेटा थनबर्ग के एन्वायरन्मेंटल एक्टिविज्म को एक सत्यकथा के आलोक में आपके सामने रखता हूँ। बात लगभग दस वर्ष पुरानी है। उन दिनों पर्यावरण के विषय “नेशनल एंवायरंवमेंट अपीलेट अथारिटी” के सम्मुख रखे जाते थे। अपने कार्य के सिलसिले में पर्यावरण कोर्ट निरंतर जाना होता था। वहीं उनसे पहली बार मुलाकात हुई थी। [ व्यक्ति का नाम इसलिये नहीं ले रहा हूँ क्योकि मैं एक लेखक हूँ मेरा काम घटना का विश्लेषण करना है उसे समाचार की तरह प्रस्तुत करना नहीं है।] शरीर पर कुर्ता, जिसमे पीछे की ओर पैबन्द लगा था। धोती मैली थी। उन्होने जो चश्मा पहना हुआ था वह एक हिस्से से फूटा हुआ था। मैं आदर से नतमस्तक हो गया। मुझे लगा कितना महान व्यक्ति है जिसे अपनी कोई परवाह नहीं; समाज के लिये जी रहा है। तकनीकी विषय पर उन्हे जिरह करने की अनुमति मिली थी और हल्के से झुकी कमर और दयनीय आवाज में “जन-जंगल-जमीन” पर एसी एसी दलीलें उन्होंने दीं कि यकीन मानिये दिल से मैं उनका भक्त हो गया था। वे कोर्ट आते थे तो साथ कुछ धोती-खादी वाले तथा कुछ ग्रामीण होते थे।

जज ने दलील सुनने के वाद विवादित स्थल को देखने की इच्छा जाहिर की। मेरा सौभाग्य कि कमीटी में मैं भी था और हम घटनास्थल पर पहुँचे। पास ही उन एक्टिविस्ट का मकान था। वहाँ पहुँच कर जैसे ही उन्हें मैने देखा मेरे बिम्ब धरे रह गये। पैंट-शर्ट पहनना कोई बुरी बात नहीं, नये फ्रेम का चश्मा भी पहना जा सकता है कोई बुराई नहीं। उनका मकान नदी के किनारे किसी रिसोर्ट की तरह था उसमें भी कोई बुराई नहीं।……लेकिन लेखक क्या करे उसे तो विषय कुरेदता है, इसलिये अपनी आदत के अनुसार शाम को जब पूरी कमेटी गेस्ट हाउस में थी मैं एक चौपाल में लगी मजलिश के बीच बैठ कर बात करने लगा। पता लगा कि जहाँ वह रिसोर्ट-नुमा मकान बना है वह जमीन एक विधवा की थी जिसे अपनी दबंगई तथा कानून की जानकारी के कारण उस एक्टिविस्ट ने अपने नाम करा लिया। विधवा और उसके बच्चे इतना सामर्थ तथा ज्ञान नहीं रखते थे कि कानून समझें या कानूनी लड़ाई लड़ सकें। सालों जमीन उसके कब्जे में रही फिर ‘एक्स-पार्टी निर्णय’ एक्टिविस्ट के पक्ष में हो गया तथा अब एक बढ़िया सा मकान नदी के किनारे….। अंत में बहुत मामूली “मुआवजा” दे कर विधवा से पिंड भी छुडा लिया था भाई साहब ने।…..। यहाँ आ कर मैने समझा कि एक्टिविज्म शब्द सुनते ही अभिभूत नहीं हो जाना चाहिये। हर इंकलाब-जिन्दाबाद चीखने वाले चेहरे के पीछे सही जुनून और सही मक्सद हो, कोई आवश्यक नहीं। इन दिनो बहुतायत के पीछे “हिडन एजेंडा” होते हैं। ये एजेंडा व्यक्ति को पूरा नाटकबाज बना देते हैं।

फूटा चश्मा, मैली धोती या पबंद लगा कुर्ता अगर आपको फैसिनेट करता है तो बुराई कुछ नहीं लेकिन सवाल इस वेषभूषा से उपर की चीज है। सवाल जब व्यक्ति से आगे निकलेंगे तभी जवाब मिलेंगे नहीं तो आपका जिन्दाबाद वैसा ही है जैसे निरमल बाबा के दरबार में जय-जय का घोष। इसी बात को एक अन्य उदाहरण से भी सामने रखता हूँ कि एक एक्टिविस्ट जो बहुधा घुटने तक खादी धोती और उपर भी आधी बाह का खादी कुर्ता पहना करते हैं तकनीकी विंदुओं पर एक पर्यावरण अदालत के  समक्ष बात रख रहे थे। विषय विशेषज्ञ ने बात बात दलील दी, साक्ष्य रखे, सिद्धांत बताये लेकिन मजाल है कि हॉर्न बजाने से पगुराती भैंस सडक से हट जाये? बाद में अदालत परिसर के बाहर मैंने एक्टिविस्ट महोदय का शैक्षणिक बैकग्राउंड पूछा तो जानकारी मिली हिंदी ऑनर्स ग्रेजुएट। ठीक है पर्यावरण ऐसा विषय है जिसमें नत्थू-खैरा भी विशेषज्ञ बन कर राय दे सकता है और ठस्स अपने ही तर्क पर खडा रह सकता है। यह विषय आसान लोकप्रियता की गायरंटी देता है।….इसीलिये मैं तो ग्रेटा थनबर्ग की निर्भीकता पर लहालोट था कि कोई साहस कर सकता है गंभीर पर्यावरण विषयों को वैशविक बना दे अब उसकी निर्लज्जता देख कर हतप्रभ हूँ। पर्यावरण अब एक टूल है किसी के लिये कोई संवेदनशील मसला नहीं। 

बॉम्बे HC ने BARC इंडिया के पूर्व CEO की अर्जी पर सुरक्षित रखा फैसला

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बॉम्बे हाई कोर्ट ने ‘टेलिविजन रेटिंग पॉइंट्स’ से छेड़छाड़ के मामले में गिरफ्तार ‘ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल’ (BARC) इंडिया के पूर्व चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर (CEO) पार्थो दासगुप्ता की जमानत याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

मीडिया खबर के अनुसार, जस्टिस पीडी नायक की एकल पीठ ने विशेष लोक अभियोजनक शिशिर हिरेय और वरिष्ठ अधिवक्ता ऐबाद पोंडा द्वारा पेश दलीलों के बाद यह फैसला किया है।

हिरेय का अपनी दलीलों में कहना था कि हालांकि BARC में बतौर सीओओ रोमिल रामगढ़िया के पास फाइनेंस की जिम्मेदारी थी, दासगुप्ता के पास कंपनी में ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी थी, क्योंकि वह कंपनी के सीईओ और एमडी थे। लोक अभियोजक का यह भी कहना था कि वॉट्सऐप पर की गई बातचीत से स्पष्ट है कि ‘रिपब्लिक टीवी’ के एडिटर-इन-चीफ अरनब गोस्वामी से दासगुप्ता के घनिष्ठ संबंध थे।

वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता ऐबाद पोंडा और अधिवक्ता अर्जुन सिंह ठाकुर ने राज्य को तर्कों का विरोध किया और अपनी दलीलें पेश कीं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ज्वेलरी, फोटो और रिपोर्ट्स अदालत में बेवजह दाखिल की गईं और इनका जांच से कोई संबंध नहीं है। दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने इस मामले में अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है।

पत्रकार प्रिया रमानी को कोर्ट ने एमजे अकबर से जुड़े मामले में किया बरी

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वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर की मानहानि के मामले में दिल्ली की एक अदालत ने पत्रकार प्रिया रमानी को बरी कर दिया है। कोर्ट में यह मामला दो साल से अधिक समय तक चला।

मीडिया खबर के अनुसार, अदालत ने माना कि किसी महिला को अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज बुलंद करने पर दंडित नहीं किया जाना चाहिए। अदालत का यह भी कहना था कि किसी भी महिला को दशकों बाद भी अपनी शिकायत रखने का अधिकार है। इसके साथ ही कोर्ट ने प्रिया रमानी को इस मामले में बरी कर दिया।

कोर्ट का यह भी कहना था कि यौन शोषण से गरिमा और आत्मविश्वास का काफी ठेस पहुंचती है। प्रतिष्ठा के अधिकार को गरिमा के अधिकार की कीमत पर सुरक्षित नहीं किया जा सकता है। समाज को यह समझना चाहिए कि शारीरिक उत्पीड़न और शोषण का पीड़िता पर कितना गहरा असर पड़ता है।  

मालूम हो कि #MeToo कैंपेन के तहत प्रिया रमानी ने एमजे अकबर पर तकरीबन 20 साल पहले उनके साथ यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया था। हालांकि, अकबर ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था। यौन उत्पीड़न के आरोप लगने के बाद अकबर ने प्रिया रमानी के खिलाफ दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में 15 अक्टूबर 2018 को मानहानि का मुकदमा दायर किया था।

एमजे अकबर ने 17 अक्टूबर 2018 को इसके बाद विदेश राज्य मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट रवींद्र कुमार ने अकबर और रमानी के वकीलों की दलीलें पूरी होने के बाद इस साल एक फरवरी को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सोशल मीडिया पर सक्रिय युवाओं को बंगाल फतह करने के लिए जोड़ रही है भाजपा

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भाजपा ने पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए बूथ और यूथ की रणनीति पर काम तेज कर दिया है। असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में तो वह इसका लाभ लेगी ही, साथ ही वह इससे वह अगले लोकसभा चुनाव के लिए भी जमीन तैयार कर रही है। खास बात यह है कि इनका पार्टी प्लेटफार्म पर दिखना जरूरी नहीं होगा।

 बूथ और यूथ अभियान संवाद और संपर्क का काम तो करेगा साथ ही भाजपा सोशल मीडिया पर ही ज्यादा सक्रिय रहेगा और लोगों तक पार्टी की पहुंच बनाएगा। सूत्रों के अनुसार यह जरूरी नहीं है कि इस अभियान से जुड़ने वाले युवा पार्टी के साथ किसी मंच पर सामने आएं या सड़क पर संघर्ष करते नजर आएं। इनको समसामयिक घटनाओं पर पार्टी व सरकार के रुख से लगातार अपडेट रखा जाएगा। आगे वह खुद ही उन सूचनाओं को आगे बढ़ाएगा।

कॉलेज में अध्ययनरत और रोजगार में लगे युवाओं को, डिजिटल और सोशल मीडिया प्रभावी है इसलिए पार्टी अपने इस अभियान का लक्ष्य बना रही है। भाजपा ने बीते साल अपने युवा मोर्चा का अध्यक्ष बंगलुरु के सांसद तेजस्वी सूर्या को बनाया है जो डिजिटल और सोशल मीडिया के जरिए युवाओं के बीच सक्रिय हैं। उनके साथ भाजपा को अपने इस काम में संघ से जुड़े संगठनों की भी मदद मिल रही है। खासकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जिसका देश भर में अपना नेटवर्क है। विभिन्न कॉलेजों और अन्य संस्थानों में काफी बड़ी संख्या में युवा उससे जुड़े हुए हैं इनके जरिए भाजपा अन्य युवाओं तक भी पहुंच रही है और उनको प्रभावित करने की कोशिश कर रही है।

पांच राज्यों में चुनाव की तैयारी

एक प्रमुख नेता ने कहा है कि पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव की तैयारी पूरी हो चुकी है और अब उम्मीदवारों की घोषणा और मुख्य चुनाव प्रचार अभियान होना ही बाकी है। लेकिन पार्टी का यह अभियान आगे भी चलता रहेगा। दरअसल भाजपा की सोच 2024 के लोकसभा चुनावों की है। जहां उसे देश के सभी राज्यों में ऐसे युवाओं की जरूरत है जो भले ही बूथ पर खड़े दिखाई न दें लेकिन वहां के लोगों से संपर्क में रहें और उनको भाजपा के पक्ष में प्रेरित कर सकें।

आज़ादी का गौरवपूर्ण अध्याय है 15 फरवरी 1932 का ‘ तारापुर शहीद दिवस ’

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जयराम विप्लव

(लेखक गुमनाम शहीदों के लिए अभियान चलाने वाली संस्था युवा ट्रस्ट के अध्यक्ष है )

भारतवर्ष के गौरवशाली अतीत का स्वर्णिम अध्याय लिखने वाले तारापुर के बलिदानी वीर हमारी स्मृतियों में जीवित है वो मर नहीं सकते | गीता में भगवन श्रीकृष्ण ने कहा है –“ न जायते म्रियते वा कदाचि –न्नायं भूत्वा भविता वा न भूय : | अजो नित्यः शाश्वात्यो अयं पुराणो – न हन्यते हन्यमाने शरीरे || “

तारापुर के बलिदानियों के राष्ट्र प्रेम के तत्व ने कालचक्र की सीमाओं के पार जाकर उन्हें अमर कर दिया. और आज जब भारत आज़ादी के 75 वें वर्ष का समारोह – अमृत महोत्सव मना रहा है। ऐसे में इतिहास में अछूते रह गए उन राष्ट्र नायकों की जीवनी, उनसे जुड़ी जगहों और घटनाओं को प्रकाश में लाने का बेहतरीन अवसर है, जिनकी वजह से हमें आजादी मिली ।

प्रसन्नता का विषय यह है कि ऐसे राष्ट्रनायकों और स्वातंत्रय वीरों को, घटनाओं को और इनसे जुड़े स्थलों को दुनिया के सामने लाकर उनका यथोचित सम्मान करने के विजन को  हमारे प्रधानमंत्री आ नरेंद्र मोदी जी ने सफलता पूर्वक क्रियान्वयित किया है. चाहे सरदार वल्लभ भाई पटेल स्मारक के रूप में स्टेचू ऑफ़ यूनिटी की स्थापना हो , नेताजी सुस्भाश चन्द्र बोस से जुडी फाइलों को सार्वजनिक करना और उनके जयंती को पराक्रम दिवस घोषित करना हो या अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद के जन्मस्थान आजाद कुटिया पर जाकर उन को सम्मान देना हो या आज़ाद हिन्द फ़ौज के लालतीराम (98 वर्ष), परमानंद (99 वर्ष ), हीरा सिंह (97 वर्ष), और भागमल (95 वर्ष) सिपाहियों को 70वें गणतंत्र दिवस परेड का हिस्सा बनाने का काम हो, उन्होंने इतिहास को पुनर्जीवित किया है.

इसी कड़ी में बीते 31 जनवरी को मन की बात में आ. मोदी जी ने इतिहास के एक और अछूते अध्याय का जिक्र किया तो देश भर में तारापुर शहीद दिवस का इतिहास खोजा जाने लगा है . आइये जानते हैं ,

15 फ़रवरी 1932 का वो बलिदानी दिन तारापुर ही नहीं समूचे भारतवर्ष के लिए गौरव का दिन है जब क्रांतिकारियों के धावक दल ने थाना पर फहराते हुए जान की बाजी लगा दी थी | ब्रिटिश थाना पर राष्ट्रीय झंडा फहराने के क्रम में भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का दूसरा सबसे बड़ा बलिदान तारापुर ” की धरती ने अपने 34 सपूतों की शहादत दी थी |

आरम्भ से तारापुर में स्वाधीनता का संघर्ष

वीर बलिदानियों की धरती ‘तारापुर’ (मुंगेर,बिहार) में राष्ट्रवाद का अंकुर सन 1857 की ऐतिहासिक क्रांति के समय से ही फूटने लगा था और बंगाल से बिहार की विभाजन के बाद वह अपना आकार लेने लगा था |

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान तारापुर का हिमालय ढोल पहाड़ी’ इन्डियन लिबरेशन आर्मी का शिविर था | जिसका संचालन क्रांतिकारी बिरेन्द्र सिंह करते थे ,इनके प्रमुख सहायक डॉ भुवनेश्वर सिंह थे | यहाँ के शिविर में दर्जनों ऐसे क्रान्तिकारी थे जो अपने क्रांतिकारी नेता के एक इशारे पर देश की आजादी के लिए जान हथेली पर लेकर घूमते थे |

तारापुर में सेनानियों का दूसरा बड़ा केन्द्र संग्रामपुर प्रखंड के सुपौर जमुआ ग्राम स्थित ‘श्रीभवन’ से संचालित होता था | जहां उस वक्त कांग्रेस से बड़े -बड़े नेता भी आया करते थे | इसी केन्द्र से तारापुर तरंग “ और “ विप्लव “ जैसी क्रांतिकारी पत्रिका छपती थी |

बिहार में देश के अन्य हिस्सों ही भांति गुलामी को तोड़ने के सतत प्रयास चल रहे थे | जब भी कोई चिंगारी देश के किसी कोने में लगती तो उसकी प्रतिध्वनि बिहार में जरुर सुनाई पड़ती |

बिहार में विप्लव की सुलगती आग

1930 में बिहार में अंग्रेज बिरोधी आन्दोलन में हजारों लोग शामिल हुए। उत्तर बिहार के बिहपुर सत्याग्रह आन्दोलन काफी महत्वपूर्ण रहा। बिहपुर कांग्रेस भवन को अंग्रेजों से मुक्त कराते समय डा. राजेन्द्र प्रसाद पर पुलिस लाठी चलाने लगी। इसे देख मधेपुरा जिलान्तर्गत करामा के सिंहेश्‍वर झा उनके बदन पर लेट गये और राजेन्द्र प्रसाद को अधिक मार खाने से बचाया। पुलिस सिंहेश्‍वर झा को पकड़ ली और साईकिल के पम्प से प्रताड़ित कर उन्हें बहरा बना दी। राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी आत्मकथा में इस प्रसंग का जिक्र किया है।

जब देश भर में 26 जनवरी 1931 को प्रथम स्वाधीनता दिवस को पूरे जोश से मनाने का निर्णय किया गया तब रघुनाथ ब्रह्मचारी के नेतृत्व में बेगूसराय जिले के पसराहा से एक जुलूस निकाला गया। डीएसपी वशीर अहमद ने गोली चलवा दी और 6सेनानी उस घटना स्थल पर ही शहीद हो गए |

आगे 23 मार्च 1931 को सरदार भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु की फांसी से  पूरे देश में युवाओं में उबाल था | ऐसे में बिहार के अंग क्षेत्र का  मुंगेर,भागलपुर,खगडिया,बेगुसराय सहित कोसी के इलाकों तक जनमानस इन छोटी-छोटी घटनाओं से सुलग ही रहा था |

गोलमेज की विफलता से शुरू हुआ दमन और सरदार शार्दुल का आवाहन

उधर 1931 में गाँधी–इरविन समझौता भंग हो चूका था. 27 दिसम्बर 1931 को  गोलमेज सम्मेलन लंदन से लौटते ही 1 जनवरी 1932 को  जब महात्मा गाँधी ने पुनः सविनय अवज्ञा आंदोलन को प्रारंभ कर दिया तो ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस को अवैध संगठन घोषित कर सभी कांग्रेस कार्यालय पर भारत का झंडा (तत्कालीन कांग्रेस का झंडा) उतार कर ब्रिटिश झंडा यूनियन जैक लहरा दिया | 4 जनवरी को गांधी जी गिरफ्तार हो गए थे। सरदार पटेल ,जवाहर लाल नेहरु और राजेंद्र बाबू जैसे दिग्गज नेताओं सहित हर प्रान्त के प्रमुख लोगोंको गिरफ्तार कर लिया गया | अंग्रेजी हुकुमत इस दमनात्मक कार्यवाई और भारत पर उनकी नाजायज हुकुमत के खिलाफ देशभर में एक आक्रोश पनपने लगा था | ऐसे वातावरण में अंग्रेजों के क्रिया की प्रतिक्रिया स्वाभाविक थी | लार्ड विलिंग्डन के उस ऐतिहासिक दमन से मुंगेर भी अछूता नहीं रह पाया था श्रीकृष्ण सिंह ,नेमधारी सिंह ,निरापद मुखर्जी , पंडित दशरथ झा ,बासुकीनाथ राय दीनानाथ सहाय ,जय मंगल शास्त्री आदि गिरफ्तार हो चुके थे.

ऐसे में युद्धक समिति के प्रधान सरदार शार्दुल सिंह कवीश्वर द्वारा जारी संकल्प पत्र कांग्रेसियों और क्रांतिकारियों में आजादी का उन्माद पैदा कर गया | और इसकी प्रतिध्वनि 15 फरवरी 1932 को तारापुर के जरिये लन्दन ने भी सुनी |

सरदार शार्दुल सिंह के द्वारा प्रेषित संकल्प पत्र में स्पष्ट आह्वान था कि सभी सरकारी भवनों पर तिरंगा झंडा राष्ट्रीय ध्वज लहराया जाए | उनका निर्देश था कि प्रत्येक थाना क्षेत्र में पांच ध्वजवाहकों का जत्था राष्ट्रीय झंडा लेकर अंग्रेज सरकार के भवनों पर धावा बोलेगा और शेष कार्यकर्त्ता 200 गज की दूरी पर खड़े होकर सत्याग्रहियों का मनोबल बढ़ाएंगे |

तारापुर में ‘ श्री भवन ‘ की बैठक में बना धावक दल

युद्धक समिति के प्रधान सरदार शार्दुल सिंह कवीश्वर के आदेश को कार्यान्वित करने के लिए वर्तमान में संग्रामपुर प्रखंड के सुपोर-जमुआ गाँव के ‘श्री भवन‘ में इलाके भर के क्रांतिकारियों, कांग्रेसियों और अन्य देशभक्तों ने हिस्सा लिया | बैठक में  मदन गोपाल सिंह (ग्राम – सुपोर-जमुआ), त्रिपुरारी कुमार सिंह (ग्राम-सुपोर-जमुआ), महावीर प्रसाद सिंह(ग्राम-महेशपुर), कार्तिक मंडल(ग्राम-चनकी)और परमानन्द झा (ग्राम-पसराहा) सहित दर्जनों सदस्यों का धावक दल चयनित किया गया |

15 फरवरी 1932 का वह बलिदानी दिन

15 फ़रवरी सन 1932 सोमवार को तारापुर थाना भवन पर राष्ट्रीय झंडा तिरंगा फहराने के कार्यक्रम की सूचना पुलिस को पूर्व में ही मिल गयी थी | इसी को लेकर ब्रिटिश कलेक्टर मिस्टर ई० ओ. ली डाकबंगले में  और एसपी डब्ल्यू.एस. मैग्रेथ सशस्त्र बल के साथ थाना परिसर में मौजूद थे |

दोपहर 2 बजे धावक दल ने ब्रिटिश थाना पर धावा बोला और अंग्रेजी सिपाहियों की लाठी और बेत खाते हुए अंततः ध्वज वाहक दल के मदन गोपाल सिंह ने तारापुर थाना पर तिरंगा फहरा दिया | उधर दूर खड़े होकर मनोबल बढ़ा रहे समर्थक धावक दल पर बरसती लाठियों से आक्रोशित हो उठे | गुस्से से उबलते नागरिकों और पुलिस बल के बीच संघर्ष और लाठीचार्ज हुआ जिसमें कलेक्टर ई० ओ० ली० घायल हो गये, पुलिस बल ने निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर कुल 75 चक्र गोलियाँ चलाई जिसमें कुल 34 क्रान्तिकारी शहीद हुए एवं सैंकडों क्रान्तिकारी घायल हुए | 

तिरंगे की आन पर जो हो गए बलिदान

तिरंगे की आन पर खुद को बलिदान कर देने वाले 34 वीर शहीदों में से मात्र 13 की ही पहचान हो पाई थी ,वो थे शहीद विश्वनाथ सिंह (छत्रहार), महिपाल सिंह (रामचुआ), शीतल (असरगंज), सुकुल सोनार (तारापुर), संता पासी (तारापुर), झोंटी झा (सतखरिया), सिंहेश्वर राजहंस (बिहमा), बदरी मंडल (धनपुरा), वसंत धानुक (लौढि़या), रामेश्वर मंडल (पड़भाड़ा), गैबी सिंह (महेशपुर), अशर्फी मंडल (कष्टीकरी) तथा चंडी महतो (चोरगांव)  । इसके अलावे 21 शव ऐसे मिले जिनकी पहचान नहीं हो पायी थी ।

उस दौर के प्रत्यक्षदर्शियों की कही बाते बताते हुए स्थानीय लोग इस गोलीकांड में 60 से ज्यादा सेनानानियों के मारे जाने की बात कहते हैं | उनके मुताबिक पुलिस द्वारा बहुत से शव तो गंगा में बहा दिए गए थे |

BBC न्यूज चैनल पर चीन ने लगाया बैन

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ब्रिटिश टेलीविजन न्यूज चैनल ‘बीबीसी वर्ल्ड न्यूज’ को चीन ने अपने देश में प्रतिबंधित कर दिया है। चीन का दावा है कि बीबीसी अनुचित और असत्य पत्रकारिता कर रहा है।

राष्ट्रीय रेडियो और टेलीविजन प्रशासन प्रतिबंध का ऐलान करते हुए चीन ने कहा कि बीबीसी ने कोरोना वायरस और शिनजियांग को लेकर गलत रिपोर्टिंग की है। चीन ने यह भी कहा कि बीबीसी ने समाचार के सत्य और निष्पक्ष होने की आवश्यक शर्त का भी उल्लंघन किया है।

मालूम हो कि बीते कुछ महीनों में चीन ने बीबीसी की कोरोना वायरस महामारी और शिनजियांग में वीगर मुसलमानों के शोषण पर रिपोर्टों की आलोचना की है।

चीन की एनआरटीए ने आरोप लगाया कि बीबीसी की रिपोर्टों से चीन के राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचा है और उसकी राष्ट्रीय एकता भी कमजोर हुई है। इसलिए, बीबीसी चीन में प्रसारण करने वाले विदेशी चैनलों के आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं करता है। चीन ने बीबीसी पर अगले साल भी प्रसारण के लिए आवेदन करने पर प्रतिबंध लगा दिया है।

वहीं, बीबीसी वर्ल्ड न्यूज चैनल पर प्रतिबंध लगाने के चीन के फैसले को ब्रिटिश के विदेश मंत्री डॉमिनिक रैब ने अस्वीकार्य बताया और कहा कि इससे चीन के वैश्विक रुख को नुकसान पहुंचा है। रैब ने ट्विटर पर कहा कि चीन में बीबीसी वर्ल्ड न्यूज पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय चीन की मीडिया स्वतंत्रता की अस्वीकार्यता है। चीन में इंटरनेट और मीडिया पर सबसे सख्त पाबंदियां लागू हैं। बयान में कहा गया है कि चीन का ये फैसला दुनिया के सामने उसकी ही साख को कम करेगा।

प्रतिबंध लगाए जाने पर ब्रिटेन के बीबीसी प्रसारणकर्ता ने निराशा व्‍यक्‍त की है। बीबीसी के प्रवक्ता ने एक ईमेल में दिए बयान में कहा कि चीन अधिकारियों की इस कार्रवाई से हम निराश हैं। बीबीसी दुनिया का सबसे भरोसेमंद अंतरराष्ट्रीय समाचार प्रसारक है और दुनिया भर की स्‍टोरी को निष्पक्ष और बिना किसी डर या पक्ष के रिपोर्ट करता है।

चीन के इस फैसले को बदले की भावना के तहत देखा जा रहा है, क्योंकि 4 फरवरी को ही ब्रिटेन ने चीन के सरकारी मीडिया सीजीटीएन को अपने देश में प्रतिबंधित किया था। तभी से इस बात की चर्चा थी कि चीन भी इसके जबाव में बीबीसी को प्रतिबंधित करेगा। ब्रिटेन की जांच में पाया गया था कि सीजीटीएन के पास संपादकीय नियंत्रण का अभाव था। इसके अलावा इस चैनल का संबंध चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के साथ भी था, जिसके बाद ब्रिटिश संचार नियामक ऑफकाम ने चाइना ग्लोबल टेलीविजन नेटवर्क (सीजीटीएन) का ब्रिटेन में लाइसेंस रद्द कर दिया था।

राम मंदिर में अंशदान कर समाज का प्रत्येक व्यक्ति राष्ट्रीय प्रवाह का अंग बनेगा – महामंडलेश्वर कृष्णशाह विद्यार्थी महाराज

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त्रिलोकपुरी के वाल्मीकि मंदिर में महामंडलेश्वर कृष्णशाह विद्यार्थी महाराज के सानिद्ध्य में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए निधि समर्पण अभियान के अंतर्गत भजन व निधि संग्रह का कार्यक्रम आयोजिक किया गया. विश्व हिन्दू परिषद् के अन्तराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष श्री आलोक कुमार मुख्य वक्ता के रूप में इसमें सम्मिलित हुए.

कृष्ण शाह विद्यार्थी ने बताया की अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर बनाने के लिए समाज में ऐसे बहुत से सक्षम व्यक्ति हैं जिन्होंने अकेले ही सारा निर्माण खर्च उठाने की बात कही है लेकिन संघ, विश्व हिन्दू परिषद् का मानना है की जहाँ एक और बड़े-बड़े बंगले में रहने वाले व्यक्ति जहाँ आज इसमें योगदान दे रहे हैं वहीं समाज के अन्दर झुग्गी, अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाला व्यक्ति भी इसमें सहभागी बने. इसलिए निधि समर्पण के लिए 10 रूपए से रसीद की शुरुआत की है. समाज का प्रत्येक व्यक्ति श्रीराम मंदिर से इस तरह से जुड़ेगा और जब कभी अयोध्या में मंदिर बनने के पश्चात दर्शन करने जाएगा तो भावनात्मक रूप से इस राष्ट्र मंदिर से जुड़कर स्वतः राष्ट्रीय प्रवाह का अंग बनेगा. इसके लिए लगभग 13 करोड़ परिवारों से संपर्क किया जाएगा. 5.25 लाख गावों तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचने का प्रयास करेंगे. उन्होंने समस्त समाज से आह्वान किया कि दिल्ली में 1 जनवरी से आरम्भ और 27 फरवरी तक चलने वाले निधि समर्पण अभियान में अधिक से अधिक लोग जुड़ें. इस अभियान में अंशदान करने के बाद अपने जीवन में कम से कम एक बार अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के दर्शन करने अवश्य जाएं.

विहिप के कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि अयोध्या में श्रीराम मंदिर हम सभी का संकल्प है. सामाजिक एकता व सद्भाव का एक स्वर्णिम अवसर हम सबके सामने है. श्रीराम जी की कथा से रामायण के माध्यम से जगत का परिचय करवाने वाले भगवान वाल्मीकि का स्थान भी रामजन्मभूमि मंदिर में बनेगा. भगवान वाल्मीकि के बिना श्रीराम का चरित्र अपूर्ण है. इस गणतंत्र दिवस पर सर्वश्रेष्ठ झांकी का पुरस्कार प्राप्त करने वाली श्रीराम मंदिर की झांकी में सबसे आगे भगवान वाल्मीकि जी प्रतिमा का होना इस तथ्य प्रकट करता है. यह झांकी राम मंदिर के पीछे बनने वाले संग्रहालय में भी रखी जाएगी. भगवान राम भगवान राम हैं यह हमें भगवान वाल्मीकि ने बताया. 

कार्यक्रम के पश्चात त्रिलोकपुरी में विहिप कार्यकर्ता स्वामी कृष्ण शाह विद्यार्थी व अलोक कुमार के साथ त्रिलोकपुरी व मयूर विहार में समाज के सभी लोगों के घरों में राम मंदिर निर्माण के जनजागरण व सामाजिक एकता आह्वान करते हुए निधि समर्पण की राशि एकत्र करने के लिए गए. मयूर विहार में रामभक्तों की 168 टोलियाँ प्रत्येक हिन्दू परिवार में निधि संग्रह के लिए जा रहे हैं. इस अवसर पर साह पंथ वाल्मीकि संप्रदाय के मुकेश शाह जी महाराज, गोपी साह महाराज, चिल्ला गाँव रोड मयूर विहार के महंत राममंगल दास महाराज की मंच में गरिमामयी उपस्थिति रही.

NBF ने सूचना प्रसारण मंत्रालय को TV रेटिंग्स को लेकर लिखा लेटर

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‘ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल’ से न्यूज चैनल्स की रेटिंग तुरंत प्रभाव से जारी करने की मांग ‘न्यूज ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन’ ने की है। वरिष्ठ टीवी पत्रकार अरनब गोस्वामी के नेतृत्व वाले ‘न्यूज ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन’ ने इस बारे में सूचना प्रसारण मंत्रालय से हस्तक्षेप करने की मांग की है।

‘एनबीएफ’ का सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को लिखे इस पत्र में कहना है कि वे BARC के किसी भी बदलाव के लिए तैयार हैं, लेकिन पूरी तरह से रेटिंग्स की गैरमौजूदगी ने न्यूज चैनल्स की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है।  

लेटर में कहा गया है, ‘हम BARC में स्टेकहोल्डर्स हैं। डाटा मीजरमेंट हमारी ब्रॉडकास्ट इंडस्ट्री की लाइफलाइन है। पूर्व में भी डाटा में हेरफेर की घटनाएं हुई हैं, लेकिन डाटा जारी करना बंद कर देना इसका समाधान नहीं है। इसमें सुधार तभी हो सकता है, जब डाटा का प्रवाह लगातार हो। यह सुधार की एक सतत प्रक्रिया है। हम विनम्रतापूर्वक आपसे इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करने का अनुरोध कर रहे हैं।’

BARC से ‘एनबीएफ’ ने पहले भी इसी तरह की दलीलों के साथ संपर्क किया था, लेकिन अब तक कुछ भी हल नहीं हुआ है। पत्र में निम्नलिखित मांगें उठाई गई हैं:

1- BARC को न्यूज चैनल्स की रेटिंग्स को पब्लिश करना चाहिए, ताकि विभिन्न मीडिया संस्थानों में कार्यरत लोगों की आजीविका को बचाया जा सके।

2- यदि साप्ताहिक रेटिंग्स को पब्लिश करने में समस्या है तो रेटिंग्स को पब्लिश करने के लिए एक वैकल्पिक सिस्टम अपनाया जा सकता है, ताकि ताकि न्यूज जॉनर में एडवर्टाइजर्स का विश्वास बहाल हो सके।

3- हमने कोई गलत काम नहीं किया है। ऐसे में हमें अपना संचालन बंद करने के लिए मजबूर न किया जाए।

यह भी इस लेटर में कहा गया है कि इस कदम से तमाम न्यूज चैनल्स में कार्यरत लोगों की आजीविका पर सीधा असर पड़ रहा है, क्योंकि यहां कार्यरत एम्प्लॉयीज की आजीविका न्यूज चैनल्स द्वारा जुटाए गए रेवेन्यू पर निर्भर होती है और चैनल्स के रेवेन्यू का सीधा संबंध टीआरपी से है। इसलिए एनबीएफ BARC के स्टेकहोल्डर्स से आह्वान करता है कि वे तत्काल प्रभाव से न्यूज चैनल्स की रेटिंग जारी करने के लिए कदम उठाएं। ‘एनबीएफ’ से पहले टीवी9 नेटवर्क के सीईओ बरुन दास ने भी सूचना प्रसारण मंत्री को इसी तरह का एक लेटर लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की थी।

मालूम हो कि टीआरपी से छेड़छाड़ के मामले को लेकर मचे घमासान के बीच ‘ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल’ (BARC) ने 15 अक्टूबर 2020 को 12 हफ्ते के लिए न्यूज चैनल्स की रेटिंग्‍स न जारी करने का फैसला लिया था, जिसकी समय-सीमा 15 जनवरी को समाप्त हो चुकी है। गौरतलब है कि मुंबई पुलिस द्वारा टीवी रेटिंग को लेकर किए गए खुलासे के बाद से BARC इंडिया की कार्यप्रणाली जांच के घेरे में है। ऐसे में सूचना प्रसारण मंत्रालय (MIB) तमाम कमियों को दूर करने के लिए टीवी रेटिंग्स की वर्तमान गाइडलाइंस का विश्लेषण कर रहा है। टीवी व्यूअरशिप/टीआरपी की समीक्षा के लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा चार सदस्यीय समिति भी गठित की गई थी, जिसने पिछले दिनों अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है।

पत्रकारों को प्रेस नोट जारी कर नक्सलियों ने दी धमकी

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पहली बार प्रेस नोट जारी कर छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने पत्रकारों को धमकी दी है। सुत्रो के मुताबिक, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) दक्षिण सब जोनल ब्यूरो की तरफ से जारी प्रेस नोट में पत्रकारों के नाम लिखकर उनके ऊपर सरकार के साथ चलने का आरोप लगाया गया है।

जिन लोगों के नाम माओवादियों द्वारा जारी इस प्रेस नोट में लिखे गए हैं उसमें करीब 18 साल से नक्सलियों के गढ़ में पत्रकारिता कर रहे बीजापुर के गणेश मिश्रा के साथ लीलाधर राठी, पी विजय, फारुख अली, शुभ्रांशु चौधरी के नाम शामिल हैं।

खबर के अनुसार, प्रेस नोट के जरिये ये भी कहा है कि सरकार हजारों की संख्या में ग्रामीणों को बेदखल करने के लिए खदान और बांध शुरू करने के लिए समझौता कर चुकी है। नक्सलियों ने पत्र के माध्यम से कहा है की इसलिए ही सुरक्षाबलों की नई कंपनी तैनात की जा रही है, जबकि जनता इसका विरोध कर रही है। पत्रकारों और समाजसेवियों पर इस पूरे मामले पर साथ देने का आरोप लगाते हुए नक्सलियों ने जनता के जनअदालत में सजा देने की बात कही है।

पत्रकारिता छत्तीसगढ़ के बस्तर में बेहद चुनौतीपूर्ण है। सच्चाई ये भी है की जब सरकार और नक्सलियों के बीच कोई वार्ता करनी होती है तब भी बस्तर के पत्रकार ही सरकार की मदद करते हैं। बस्तर के पत्रकारों के माध्यम से ही कई बार निर्दोषों को नक्सलियों के कब्जे से छुड़ाया गया है। इतना ही नहीं बस्तर संभाग के सभी नक्सल प्रभावित जिलों के पत्रकार जब कोई बड़ा नक्सली हमला होता तो पत्रकार के रूप में नहीं बल्कि मददगार बनकर खड़े हो जाते हैं। जान जोखिम में डालकर अंदरूनी इलाकों से खबर लेकर आते हैं, जिसके बाद वही खबर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खबर बनती है।

 लंबे समय से बस्तर में काम कर रहे शुभ्रांशु चौधरी का कहना है की वो बस्तर में शांति चाहते हैं इसलिए बस्तर में ऐसे प्रयास करते रहते है जिससे इस इलाके में शांति आये। इसलिए नक्सलियों ने उनके बारे में ऐसा लिखा है। वहीं 18 साल से नक्सलियों के गढ़ से रिपोर्ट लाने वाले पत्रकार गणेश मिश्रा का कहना है कि उन्हें इस बात का बहुत दुःख है की उनके बारे में नक्सलियों ने ऐसा लिखा है। आज भी वो बीजापुर में किराए के मकान में रहते हैं। बीजापुर के अंदरूनी इलाकों से जरूरतमंदों की खबर देश और दुनिया के सामने लाते हैं। जान जोखिम में डालकर वो अपने पेशे के साथ खड़े रहते हैं उसके बाद भी उनके बारे में नक्सली इस तरह की बात लिख रहे हैं जिससे वो दुखी हैं।

छत्तीसगढ़ पुलिस ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लिया है। बस्तर रेंज के आईजी पी.सुंदरराज ने बताया कि पुलिस इस प्रेस नोट की जांच कर रही है। पत्रकारों और समाजसेवी सहित सभी नागरिकों के सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस की है। किसे कितनी सुरक्षा दी जाएगी इस बात को हम सार्वजनिक नहीं कर सकते। वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता आरपी सिंह का कहना है की ये नक्सलियों की बौखलाहट है जो बस्तर के उन पत्रकारों को धमका रहे हैं जो सबसे ज्यादा जोखिम लेकर पत्रकारिता कर रहे हैं। सरकार पत्रकारों के साथ है और उन्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है।

एक साथ आए सात प्रमुख अखबार

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धीरे-धीरे पिछले काफी समय से रुकी हुई भारतीय अर्थव्यवस्था गति पकड़ रही है। तमाम अन्य बिजनेस के साथ भारतीय भाषाई अखबारों की ग्रोथ भी बढ़ रही है। ऐसे में अब सात प्रमुख भाषाई अखबार अपने स्टेकहोल्डर्स के लिए एक कॉमन लेटर के जरिये एक साथ आगे आए हैं। इस लेटर में कहा गया है कि कोविड-19 से पहले की तुलना में सर्कुलेशन 80 से 90 प्रतिशत तक पहुंच गया है और 80 प्रतिशत से ज्यादा एडवर्टाइजिंग रिकवरी हो चुकी है।

लेटर में कहा गया है, ‘भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी रिकवरी कर रही है। वैक्सीन अभियान गति पकड़ रहा है और जीएसटी कलेक्शन भी अच्छी ग्रोथ दिखा रहा है। देश के टियर-दो और टियर-तीन मार्केट इस ग्रोथ में अहम भूमिका निभा रहे हैं। अखबारों का सर्कुलेशन भी बढ़ रहा है और यह जितना कोविड-19 से पहले था, उसके 80-90 प्रतिशत लेवल तक पहुंच गया है, इसके साथ ही एडवर्टाइजिंग रेवेन्यू भी कोविड-19 से पहले की तुलना में 80 प्रतिशत ग्रोथ प्राप्त कर चुका है।’

‘अमर उजाला’ के राजुल माहेश्वरी, ‘ईनाडु’ के आई वेंकट, ‘हिन्दुस्तान’ के राजीव बेओत्रा, ‘साक्षी’ के विनय माहेश्वरी, ‘दैनिक जागरण’ के शैलेष गुप्ता, ‘दैनिक भास्कर’ के गिरीश अग्रवाल और ‘मलयाला मनोरमा’ के जयंत मैमन मैथ्यू इस लेटर पर हस्ताक्षर करने वालों में शामिल हैं। ‘दैनिक भास्कर ग्रुप’ के प्रमोटर डायरेक्टर गिरीश अग्रवाल का इस रिकवरी के बारे में कहना है, ‘टियर दो और टियर तीन शहरों की ग्रोथ की वजह से भारतीय भाषाई अखबार पूरे मार्केट की ग्रोथ में अहम भूमिका निभा रहे हैं। अब जब मार्केट्स सामान्य स्थिति में पहुंचे हैं और तेजी से खुल रहे हैं, अखबारों का सर्कुलेशन स्तर भी कोविड-19 से पहले की तुलना में लगभग 85-87 प्रतिशत तक पहुंच गया है। इसके अलावा समाचार पत्रों की विश्वसनीयता और भरोसा एक प्रमुख प्लस पॉइंट के रूप में उभरा है। खासकर फेक न्यूज के माहौल के बीच जिस तरह अखबारों ने अपनी विश्वसनीयत बनाए रखी है, ऐसे में अखबारों की संपादकीय शक्ति को मार्केट्स और पाठकों द्वारा सराहा जा रहा है।’ इस लेटर में अखबारों की ग्रोथ के साथ ही उसके कारणों पर भी बात की गई है।

ED के हाथ लगी NewsClick पर छापेमारी से अहम जानकारी

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प्रवर्तन निदेशालय की रेड ऑनलाइन न्यूज पोर्ट्ल ‘न्यूज क्लिक’  पर क्या हुई, इस पर बवाल मचना शुरू हो गया है। यही नहीं, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने तुरंत ही इस रेड को मीडिया के ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’  को दबाने का प्रयास बताया।

प्रवर्तन निदेशालय से मिले सूत्रों से निकलकर सामने आनेवाली बात बहुत ही हैरानी भरी है। दरअसल, ‘न्यूज क्लिक’ पर प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) से 10 करोड़ रुपए मिले हैं। खास बात ये है कि न्यूज क्लिक के मालिक प्रवीर पुरकायस्थ को यह नहीं पता कि अमेरिका की कंपनी ने यह 10 करोड़ रुपया उन्हें क्यों दिया है।

गाड़ी, 10 करोड़ के विदेशी धन लेने के बाद भी नहीं रुकी। इस बार एक दूसरी अमेरिकी कंपनी से 20 करोड़ मिले। सूत्रों ने बताया कि न्यूज क्लिक को अमेरिका की एक दूसरी कंपनी ने Export Remittance के रूप में 20 करोड़ रुपया दिया… वह भी सिर्फ इस काम के लिए कि न्यूजक्लिक ने People’s Dispatch नाम के एक पोर्टल पर कंटेंट को अपलोड किया।

फर्जीवाड़े की कहानी यहीं खत्म नहीं होती… न्यूज क्लिक के मालिक प्रवीर पुरकायस्थ ने 1.5 करोड़ रुपए मेंटेनेंस के नाम पर ले लिए, लेकिन पता चला है कि प्रवीर पुरकायस्थ के यहां मेंटेनेंस का काम एक नौवीं पास इटेक्ट्रीशियन करता है। मेंटेनेंस का काम भी बिना किसी डॉक्यूमेंटेशन के किया गया, लिहाजा इसका कोई प्रूफ वे प्रवर्तन निदेशालय को नहीं दे पाए।

पत्रकारिता और राजनीति का रिश्ता इस पूरे घालमेल में चोली दामन का है। जरा खुद देखिए, किस प्रकार न्यूज क्लिक का रिश्ता सीपीआई से जुड़ा है। सूत्रों ने बताया, प्रवर्तन निदेशालय को जो जानकारी हाथ लगी है उसके मुताबिक, न्यूज क्लिक में काम करने वाले एक व्यक्ति को 52 लाख रुपए अमेरिकी कंपनी से मिले हैं और हां, ये व्यक्ति सीपीआई के आईटी सेल का मेंबर भी है और सीपीआई के नेताओं का ट्विटर अकाउंट भी चलाता है।

प्रवर्तन निदेशालय से जुड़े सूत्रों के अनुसार न्यूज क्लिक को अमेरिका में एक ही जगह रजिस्टर्ड अलग-अलग कंपनियों से बड़े पैमाने पर धन मिला है। इसी में एक डिफेंस सप्लायर  की कंपनी है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, न्यूज क्लिक के मालिक प्रवीर पुरकायस्थ को गौतम नौलखा के साथ मिलकर कंपनी खोलने के लिए 20 लाख रुपए दिए हैं। ये वही गौतम नौलखा है, जो भीमा कोरेगांव दंगों का मुख्य आरोपी है और जेल में बंद है।

 सवाल उठता है कि आखिर अमेरिका डिफेंस सप्लायर कंपनी आखिर एक मीडिया संस्थान को पैसे क्यो दे रही है, वो भी उस शख्स को जो दंगों का आरोपी है और जेल में बंद है।

गौरतलब है कि बीते मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा ‘न्यूज क्लिक’ के दिल्ली स्थित कार्यालय पर छापा मारे जाने की खबर सामने आई थी। जांच एजेंसी ने ‘न्यूज क्लिक’ के एडिटर-इन-चीफ प्रबीर पुरकायस्थ के घर पर भी छापा मारा था।  ईडी अधिकारियों के हवाले से कहा गया था कि इस पोर्टल को कुछ संदिग्ध विदेशी कंपनियों से फंडिंग की गई है, जिसकी जांच की जा रही है।

मालूम हो कि इस पोर्टल को वरिष्ठ पत्रकार प्रबीर पुरकायस्थ ने वर्ष 2009 में शुरू किया था। अपनी कवरेज में मोदी सरकार के खिलाफ मुखर यह पोर्टल दिल्ली में किसानों के विरोध प्रदर्शन को कवर कर रहा है।

15 फरवरी तक BARC इंडिया के पूर्व CEO पार्थो दासगुप्ता की जमानत अर्जी पर सुनवाई स्थगित

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टीआरपी से छेड़छाड़ के मामले में गिरफ्तार ‘ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल’ इंडिया के पूर्व चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर पार्थो दासगुप्ता की जमानत याचिका पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने सुनवाई 15 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी है।

मीडिया सुत्र के अनुसार, दासगुप्ता के  अधिवक्ता शार्दुल सिंह का कहना था कि यह याचिका स्वास्थ्य कारणों के आधार पर दाखिल की गई थी, न कि मेरिट के आधार पर। स्पेशल लोक अभियोजक शिशिर हिरे ने जस्टिस पीडी नाइक को बताया कि दासगुप्ता की ओर से दो फरवरी को याचिका वापस लेने की सूचना देने के बावजूद यह लंबित थी।

दासगुप्ता की याचिका पर सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार हुई थी और उनके वकीलों ने संशोधन के लिए आवेदन दायर करने के लिए दो सप्ताह के स्थगन की मांग की थी। अदालत ने बताया कि दासगुप्ता के वकील द्वारा टेलीफोनिक अनुरोध किए जाने के बाद मामले को सूचीबद्ध किया गया था।

राजदीप सरदेसाई समेत छह पत्रकारों को सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत

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छह वरिष्ठ पत्रकारों और कांग्रेस नेता शशि थरूर को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने इन सबकी गिरफ्तारी पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत ने जिन लोगों को राहत दी है, उनमें कांग्रेस सांसद शशि थरूर, ‘इंडिया टुडे’ समूह के सलाहकार संपादक राजदीप सरदेसाई, ‘नेशनल हेराल्ड’ की वरिष्ठ संपादकीय सलाहकार मृणाल पाण्डेय, उर्दू अखबार ‘कौमी आवाज’ के मुख्य संपादक जफर आगा, ‘कारवां’ पत्रिका के मुख्य संपादक-प्रकाशक परेशनाथ, एडिटर विनोद के जोस और इसके कार्यकारी संपादक अनंतनाथ शामिल हैं। इसके अलावा इन सभी पर यूपी समेत अन्य दूसरे राज्यों में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग पर भी सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है।

कांग्रेस सांसद शशि थरूर और पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने पिछले हफ्ते 26 जनवरी पर किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान एक प्रदर्शनकारी की मौत के बारे में कथित तौर पर असत्यापित खबर शेयर करने के आरोप में अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को लेकर सुप्रीम कोर्ट की शरण ली थी। पत्रकार मृणाल पांडे, जफर आगा, परेश नाथ और अनंत नाथ ने भी इन एफआईआर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस. ए. बोबडे की अगुआई वाली बेंच में जस्टिस ए. एस. बोपन्ना और जस्टिस वी. रामसुब्रमणियन भी थे। इन्होंने शशि थरूर और छह पत्रकारों की याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की। उनकी पैरवी मशहूर वकील कपिल सिब्बल ने की। दूसरी ओर, सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने दिल्ली पुलिस का पक्ष रखा।

30 जनवरी को थरूर, राजदीप, ‘कारवां’ पत्रिका और अन्य के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने मामला दर्ज किया था। इससे पहले थरूर और छह पत्रकारों पर नोएडा पुलिस ने दिल्ली में ट्रैक्टर परेड के दौरान हिंसा को लेकर और अन्य आरोपों के साथ राजद्रोह का मामला दर्ज किया था। मध्य प्रदेश पुलिस ने भी दिल्ली में ट्रैक्टर परेड के दौरान हिंसा पर भ्रामक ट्वीट करने के आरोप में थरूर और छह पत्रकारों के खिलाफ मामला दर्ज किया है।

जानें, कितने टीवी चैनल्स को मिली MIB की मंजूरी

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पिछले पांच वर्षों के दौरान सूचना-प्रसारण मंत्रालय द्वारा 205 टीवी चैनल्स के लाइसेंस कैंसल किए गए हैं। इसके साथ ही मंत्रालय की ओर से जनवरी 2021 तक कुल 909 सैटेलाइट टीवी चैनल्स को देश में परिचालन की अनुमति दी गई है।

लोक सभा में सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस बारे में कहा, ’31 जनवरी 2021 तक देश में स्वीकृत चैनल्स की संख्या 909 है। एक जनवरी 2016 से 31 जनवरी 2021 तक यानी पिछले पांच वर्षों में विभिन्न कारणों से 205 टीवी चैनल्स के लाइसेंस कैंसल किए गए हैं। इनमें कुछ लोगों द्वारा लाइसेंस सरेंडर किए गए हैं, कुछ चैनल्स ने वार्षिक फीस जमा नहीं की है, वहीं कुछ ने संचालन बंद कर दिए है, जैसे कारण शामिल हैं।’

जावड़ेकर ने इसके साथ ही यह भी कहा, ‘इस तरह की अनुमति देने से पहले आवेदक कंपनी और उसके निदेशकों के संबंध में गृह मंत्रालय (MHA) से सुरक्षा मंजूरी ली जाती है।  वहीं, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में कोई भी बदलाव करने से पहले कंपनी को सूचना-प्रसारण मंत्रालय से मंजूरी लेनी होती है।’

जावड़ेकर ने एक अन्य सवाल के जवाब में यह भी कहा कि एमआईबी ने टेलिविजन चैनल के अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग के लिए मौजूदा नीति दिशानिर्देशों के तहत निजी सैटेलाइट टीवी चैनल्स के अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग के लिए 388 न्यूज और करेंट अफेयर्स चैनल्स को मंजूरी दी है।

मंत्रालय द्वारा एक जनवरी 2016 से 51 न्यूज और करेंट अफेयर्स टीवी चैनल्स को मंजूरी दी गई थी। इसके अलावा, मंत्रालय ने भारतीय संस्थाओं को भारत में 13 विदेशी समाचार और करेंट अफेयर्स चैनलों को डाउनलिंक करने की अनुमति दी है।

सूचना प्रसारण मंत्री ने लोकसभा में TV रेटिंग्स सिस्टम को लेकर दिया जवाब

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‘ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल’ इंडिया की कार्यप्रणाली मुंबई पुलिस द्वारा टीवी रेटिंग को लेकर किए गए खुलासे के बाद से जांच के घेरे में है। ऐसे में सूचना प्रसारण मंत्रालय तमाम कमियों को दूर करने के लिए टीवी रेटिंग्स की वर्तमान गाइडलाइंस का विश्लेषण कर रहा है।

सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा टीवी व्यूअरशिप/टीआरपी की समीक्षा के लिए चार सदस्यीय समिति भी गठित की गई थी, जिसने पिछले दिनों अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है।

प्रसार भारती के सीईओ शशि शेखर वेम्पती की अध्यक्षता में गठित इस कमेटी में आईआईटी कानपुर में गणित व सांख्यिकी विभाग के प्रोफेसर डॉ. शलभ, सी-डॉट के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर राजकुमार उपाध्याय और ‘सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी’ के प्रोफेसर पुलक घोष को मेंबर्स के तौर पर शामिल किया गया था।

लोकसभा में केंद्रीय सूचना-प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस बारे में कहा, ‘मौजूदा गाइडलाइंस में ऑडियंस के मापन, पैनल चयन, प्लेटफॉर्म की गोपनीयता, डाटा विश्लेषण, पारदर्शिता और शिकायत निवारण तंत्र आदि के लिए कार्यप्रणाली जैसे प्रावधान हैं, जो देश में एक मजबूत, पारदर्शी और जवाबदेह रेटिंग प्रणाली के लिए आवश्यक हैं।’

लोकसभा में इस पूरे मामले को लेकर पूर्व सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी समेत कई सांसदों द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब में जावड़ेकर का कहना था, ‘कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर वर्तमान गाइडलाइंस का विश्लेषण/ मूल्यांकन किया जा रहा है, ताकि यदि कोई कमी हो तो सामने आ सके और उसे दूर किया जा सके।’ इसके साथ ही जावड़ेकर का यह भी कहना था कि अक्टूबर 2020 के बाद पब्लिश कुछ न्यूज रिपोर्ट्स में टेलिविजन रेटिंग पॉइंट्स को लेकर चिंता व्यक्त की गई थी। ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल ने यह कहते हुए जवाब दिया था कि पैनल की पवित्रता बनाए रखने के लिए अनुशासनात्मक परिषद की कार्रवाई के अलावा उसने नमूनों के साथ छेड़छाड़ में शामिल लोगों के खिलाफ सक्रिय रूप से कार्रवाई की है और कई राज्यों में एफआईआर भी दर्ज कराई गई हैं।

यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार को वर्ष 2015 के बाद से टीआरपी में हेरफेर के बारे में कोई शिकायत मिली है और यदि हां, तो उस पर क्या कार्रवाई की गई है? जावड़ेकर ने जवाब दिया कि इस तरह की शिकायतों का कोई आंकड़ा तैयार नहीं किया गया है, हालांकि BARC से संबंधित शिकायतें आमतौर पर उचित कार्रवाई के लिए BARC को भेज दी जाती हैं।

जावड़ेकर के अनुसार, ‘पैनलों से छेड़छाड़ और हेरफेर को रोकने के उद्देश्य से एफआईआर दर्ज कराने के साथ ही BARC द्वारा नियमित रूप से तमाम ऐसे कदम उठाए जाते हैं, जिससे सुनिश्चित हो सके कि व्यूअरशिप डाटा और इसकी रिपोर्टिंग यथासंभव सटीक और पारदर्शी हो।’

जावड़ेकर ने यह भी बताया कि हाल में हुए विवाद के मद्देनजर टीवी व्यूअरशिप/टीआरपी की समीक्षा के लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय की ओर से प्रसार भारती के सीईओ शशि शेखर वेम्पती की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया था, जिसने तमाम सिफारिशों के साथ अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।

Tribals and media

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Darshana Gopa Minz

Tribal’s of India, a very vulnerable and utmost naïve group of this country, constitute 8.6% of nation’s total population, over 104 million people according to 2011 census.

Tribal’s has been moreof a figure of deprived people of jungle than people of nature; are still an outcaste and sidelined faction of our nation.

Rather than having a identity forunique heritage culture, traditions, rituals, festivals,beautiful art and folksongs that originated in this very lands of our country, tribal’s have been prejudice into just a pity image of poor, underdeveloped groups of forests subjected to exploitation.

Though government schemes are hurled forthe tribal’s on the name of evolvement, but little growth and progress is witnessed in parameters of mere socio-economic development.

Despite special enabling provisions for tribal’s in the legal framework and several targeted public policy initiatives, tribal’s have continued to suffer deprivations and harassment of different kinds. Precisely, the rights guaranteed to the tribal population have been grossly violated. The tribal population not only face severe socio-economic marginalization but also the threat of undermining of distinctive culture and identity, which in turn is deep-rooted in the livelihood patterns. Tribal’s have beensidelined in economic development programs and are severely marginalized with regard to political decisions.Suppressingtribal’s socially, economically or culturally is a fad; essentially weaker sections getoppressedmost, making tribal’s one of the most marginalized communities in India.Everywhere, the cultures of indigenous peoples have been repressed, challenged, or overwhelmed by larger populations and more powerful states.

With extensive tribal resources and wealth, private companies and corporate tend to exploit the naïve tribal population. Tribal’s are being dispossessed of their own ancestral lands to make ways for mines, dams, logging concessions, business investment and tourism complexes.

Large number of tribals are subjected to dislocation, effecting women and children the most by pushing them into trafficking, labor and domestic abusive jobs; since they are not educationally and technologically developed for better job roles yet.

With the wealthy connection of corporate houses, the police repression has also grown on tribal’s, who are facing major violation of human rights in India.

People who once dreamed of justice and equality, and dared to demand land to their tiller, have been reduced to having no rights of speech for their own land and dignity.

When the corporate wants another chunk of our tribal land, this isn’t first time or last time; it will be every time. There is no end to profit and greed.

Land is sacred; it belongs to the countless numbers who are dead, the few who are living and the droves of those who are yet to be born. It belongs to the tribals.

You take away their land; you take away their dignity.

Media plays an extremely important part in protection of human rights; journalists play a vital role in reporting concern and pain of common people. Media expose human rights violations, and give platform for different voices to be heard.

This is why, media have been called the Fourth Estate; an independent unbiased powerhouse for the voices common people.

But journalism is only ethical when done with the moral values of human rights protection. The dilemma remains; that how many journalists being outsiders would be authentic tobe able to understand the concerns and issues if tribal’s of this nation.

Often tribal sentiment gets hurt with the misrepresentation of outsider journalists in press and media. Without understanding the core values and sentiments of tribal’s, pieces have been said and published, putting tribal’s into identity crises that have damage their original culture and the inner dignity.

The role and impact of the Fourth Estate becomes more crucial, when the most naïve and humblepopulation of this nation is being subjects to voiceless suppression.

Further, while the importance of lack of participation in the decision-making process on development planning cannot be overstated, it is important that tribal community have an equal opportunity to benefit from the fruits of the process of development of this nation. If the flow of these benefits such as, livelihood, literacy, health facilities, etc. are marginal to the tribal communities, the right to participate in the development process is being violated and thereby, tribal rights are under severe threat.

Jharkhand, the newest State of the Indian Union, whose creation was the propositionon tribal identity and arguably is the fruition of some of the tribal rights entitlement on the Indian State, too doesn’t appear to serve the purpose of socio-economic development of tribal’s or have safeguarded tribal population socially, economically or culturally.

With no major media coverage of tribal rights violation to their own lands, of their culture, and basic human rights speech; can media, the fourth estate, make thevulnerablevoices and the pains of tribal’s heard or even recognized?

Not the television treats as entertainment and recreation medium only, but the harsh, cruelty and humiliation tribal populations are going through at the moment mentally, physically, socially and economically.

Will media ever play the key to core of socio-economic development of the tribal’s?

From our suffering and suppression to our self-respect and pride?

Can the fourth estate promote the full realization of the social, economic and cultural rights of tribal’s with respect for their social and cultural identity, their customs and traditions and their institutions?

And if yes! Then when?

लौटने लगी है अपनी पुरानी राह पर टीवी इंडस्ट्री

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देश की अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस महामारी की वजह से बड़ा असर पड़ा है। देश आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा था जब कोरोना अपने चरम पर था । महामारी, लॉकडाउन और इंटरनेशनल ट्रेड रुक जाने से लंबे समय तक पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था रुक गई, लेकिन जैसे-जैसे अब लॉकडाउन में छूट दी गई, अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे पटरी पर लौटने लगी। कोरोना वायरस  और लॉकडाउन के कारण पटरी से उतर चुकी अर्थव्यवस्था की चपेट में मीडिया इंडस्ट्री भी आई, लेकिन अब यह इंडस्ट्री भी पहले की तरह अपनी राह पर लौटने लगी है। दरअसल, ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (बार्क) के आंकड़ों से तो यही बात निकलकर सामने आई है।

गुरुवार को बार्क ने कहा कि टीवी पर विज्ञापनों की मात्रा बढ़ी है। इसके आंकड़ों पर नजर डालें तो टेलीविजन पर विज्ञापन जनवरी में करीब 23 प्रतिशत बढ़कर 13.3 करोड़ सेकेंड पर पहुंच गए, जबकि एक साल पहले इसी महीने पर टीवी विज्ञापन 10.8 करोड़ सेकेंड रहे थे।

बतौर बार्क कुछ क्षेत्र महामारी से अब भी प्रभावित हैं। दिलचस्प तथ्य यह है कि इस दौरान न्यूज चैनल्स आदि पर विज्ञापन 18 प्रतिशत बढ़कर 3.8 करोड़ सेकेंड पर पहुंच गए। हालांकि, बार्क ने अब टीआरपी आंकड़े प्रकाशित करना रोक दिया है।

उल्लेखनीय है कि महामारी से आर्थिक गतिविधियों में काफी गिरावट आई थी। इससे विज्ञापनों पर भी असर पड़ा था। महामारी के बीच ही शहर की पुलिस ने फर्जी टीआरपी घोटाले की जांच शुरू की। इसके बाद एजेंसी ने अस्थायी तौर पर दर्शकों के आंकड़ों का प्रकाशन रोक दिया है।

सबसे अधिक वृद्धि ज्ञापनों में बच्चों से जुड़े कार्यक्रमों में रही। आंकड़ों के अनुसार, बच्चों से जुड़े प्रोग्राम्स या चैनल्स में विज्ञापन 35 प्रतिशत बढ़कर 43 लाख सेकेंड पर पहुंच गई। इसके बाद संगीत कार्यक्रमों के लिए विज्ञापन 31 प्रतिशत बढ़कर 1.6 करोड़ सेकेंड पर पहुंच गए। मूवी चैनल्स के विज्ञापन 28 प्रतिशत बढ़कर 3.1 करोड़ सेकेंड पर पहुंच गए।

अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले कंटेंट न दिखाने हेतु टीवी चैनल्स के लिये सूचना प्रसारण मंत्रालय ने जारी की एडवाइजरी

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टीवी चैनल्स के लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय’ ने एक एडवाइजरी जारी की है। इस एडवाइजरी में टीवी चैनल्स को अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों का प्रसारण न करने के लिए कहा गया है।इस एडवाइजरी में मंत्रालय ने टीवी चैनल्स को केबल टेलिविजन नेटवर्क्स अधिनियम 1994 के तहत नियमों का पालन करने की सलाह दी है।

अपने एडवाइजरी में मंत्रालय की ओर से कहा गया है, ‘यह संज्ञान में आया है कि कुछ टीवी चैनल्स इस तरह के कार्यक्रमों/विज्ञापनों का प्रसारण करते हैं, जो अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं। यह प्रोग्राम कोड के नियम 6(1)(j) और एडवर्टाइजिंग कोड के नियम 7(5) का उल्लंघन है। ऐसे में इस तरह के कंटेंट वाले कार्यक्रमों का प्रसारण न किया जाए। पूर्व में 13 मई 2010 और सात जून 2013 को भी मंत्रालय द्वारा एडवाइजरी जारी की जा चुकी हैं।’

पत्रकारों पर FIR के विरोध में है NBA

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गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में हुई हिंसा और किसान आंदोलन की कवरेज को लेकर वरिष्ठ संपादकों-पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किए जाने की निजी टेलिविजन न्यूज चैनल्स का प्रतिनिधित्व करने वाले समूह ‘न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन’ (NBA) ने निंदा की है।  

‘एनबीए’ ने स्टेटमेंट जारी कर कहा है, ‘एनबीए का मानना है कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा दिल्ली और आसपास के इलाकों में किसानों के विरोध प्रदर्शन की कवरेज सही, संतुलित और उद्देश्यपूर्ण तरीके से गई है।’

सुधीर चौधरी और दीपक चौरसिया से डरे शाहीन बाग के सफेदपोश

आशीष कुमार ‘अंशु’

भारतीय टेलीविजन पत्रकारिता के इतिहास में 27 जनवरी की तारीख को याद रखा जाएगा। आने वाले समय में यह तारीख पत्रकारिता के शोधार्थियों के लिए अध्ययन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव होगा कि कैसे सामाजिक सरोकार के लिए राष्ट्रीय खबरिया चैनलों के दो बड़े पत्रकार आपसी प्रतिद्वन्दीता को भूलाकर एक साथ मैदान में उतरे।

 एक तरफ शाहीन बाग के कथित प्रदर्शनकारी कह रहे थे कि हमारी आवाज सुनी नहीं जा रही। वे कह रहे थे कि हमारा प्रोटेस्ट लोकतांत्रिक है। उसी कथित विरोध को कवर करने के लिए दीपक चौरसिया और सुधीर चौधरी जब शाहीन बाग पहुंचे तो उन्हें कवर करने से रोका गया। ऐसा कौन सा लोकतांत्रिक प्रदर्शन होगा जिसमें शामिल होने वालों को रोका जाता हो?

सुधीर चौधरी

चौधरी ने लिखा — ”आज मैं और दीपक चौरसिया शाहीन बाग गए। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि हम शाहीन बाग में ‘अलाउड’ नहीं हैं। रोकने के लिए पहली पंक्ति में महिलाओं को खड़ा कर दिया। पुरुष पीछे खड़े हो गए। नारेबाज़ी हुई। राजधानी में ये वो जगह है जहां पुलिस भी नहीं जा सकती। लोकतंत्र का मज़ाक़ है ये।”

देश की राजधानी दिल्ली में जब मुट्ठी भर समुदाय विशेष के गुंडा तत्वों ने ऐसा माहौल बना दिया है, सोचिए छोटे शहरों में समुदाय विशेष के कट्टरपंथियों ने जो घेटोज बनाए हैं, वहां क्या हाल होता होगा? इसी का परिणाम है कि धीरे—धीरे दिल्ली वालों की सहानुभूति जामिया नगर और शाहीनबाग के प्रति कम होती जा रही है। शांतिपूर्ण प्रदर्शन के पक्ष में समाज हो सकता है लेकिन गुंडा तत्व जब आंदोलन में घुल-मिल जाए तो ऐसे कथित आंदोलनों को खत्म ही कर देना चाहिए। इस कथित आंदोलन की वजह से लाखों लोगों की जिन्दगी प्रतिदिन ऐसी उलझी हुई है कि बच्चे ना स्कूल जा पा रहे है और ना बच्चे के पापा समय पर दफ्तर पहुंच पा रहे हैं।

24 जनवरी को शाहीन बाग के आयोजको से बातचीत करके दीपक चौरसिया अपनी टीम के साथ प्रदर्शन स्थल पर कवरेज के लिए पहुंचे। वहा उनके साथ मारपीट हुई। जिसमें उन्हें चोट आई। उनका एक कैमरा प्रदर्शनकारियों ने गायब कर दिया। जिसकी शिकायत उन्होंने पुलिस के पास की। दीपक शाहीन बाग के लोगों की आवाज पूरे देश में पहुंचाना चाहते थे और वे खुद मॉब लिंचिंग के शिकार हो गए।

दीपक चौरसिया

दीपक ने हार नहीं मानी। उन्होंने एक प्रयास और किया। जिसमें उनका साथ वरिष्ठ पत्रकार सुधीर चौधरी ने दिया। इस बार भी शाहीन बाग के आयोजक खुद को ‘सच्चा मुसलमान’ साबित करने में चूक कर गए। जबकि दीपक चौरसिया का किरदार इस मामले में पूरे देश ने देखा और लेफ्ट लिबरल पत्रकारों को छोड़कर हर तरफ उनकी तारिफ हुई।

मोहम्मद साहब और क्रोधी स्वभाव वाली बुढ़िया की कहानी दुहराता तो हर मुसलमान है लेकिन मानो इस कहानी से प्रेरणा दीपक ने ली और पूरा शाहीन बाग उस कर्कश बुढ़िया की भूमिका में था जो नमाज पढ़ने के लिए जब मोहम्मद साहब जाते तो वह घर की सारी गंदगी उनके ऊपर उड़ेल देती थी। मोहम्मद साहब कभी बुढ़िया पर नाराज नहीं हुए। दीपक भी बातचीत में शाहीन बाग में नाराज नहीं दिखे। वे बार—बार यही निवेदन करते रहे कि मैं आपसे बात करना चाहता हूं। उसके बावजूद उनकी बात को अनसुना करने वाला मोहम्मद साहब का अनुयायी तो नहीं हो सकता।

बूढ़ी औरत और मोहम्मद साहब की कहानी कूड़ा फेंकने पर खत्म नहीं होती। एक दिन जब उस राह से मोहम्मद गुजरे तो उन पर कूड़ा आकर नहीं गिरा। वे थोड़े हैरान हुए। फिर आगे बढ़ गए। अगले दिन फिर ऐसा ही हुआ। मोहम्मद साहेब को कुछ अंदेशा हुआ। वे उस बूढ़ी महिला के घर चले गए। दरवाजा खोलकर जब अंदर गए तो देखते हैं कि बूढ़ी महिला दो दिनों की बीमारी में ही बेहद कमजोर हो गई है। इस हालत में देखकर मोहम्मद साहब दुखी हुए। उन्होंने डॉक्टर बुलाया। उस बूढ़ी महिला की सेवा सुश्रुषा तब तक की जब तक वह स्वस्थ नहीं हो गई।

अब जो लोग खुद को मोहम्मद का अनुयायी कहते हैं और उनके किरदार में इतना छीछोरापन नजर आए कि देश के दो पत्रकार आपके दरवाजे पर खड़े हों और आप दरवाजा बंद कर दें। ऐसे में दरवाजा बंद करने वाले किस मुंह से खुद को मुसलमान कहलाने का दावा पेश करेंगे?

इसी तरह का अपने मित्र अहमद सुल्तान से जुड़ा एक वाकया इस्लाम के बड़े जानकार मौलाना वहिदुद्दीन खान साहब सुनाते हैं— एक मोहल्ले में फसाद होने वाला था। मानों दोनों तरफ से इसकी तैयारी पूरी हो चुकी थी। एक जुलूस निकल कर आने वाला था, उससे मुसलमानों का टकराव होता और फिर फसाद होता। अहमद सुल्तान साहब को जब इस पूरे मामले की जानकारी हुई तो वे मोहल्ले की मस्जिद में गए और इमाम साहब से मिले। सुल्तान साहब ने कहा— जब उनका जुलूस आए तो आप रोक—टोक मत कीजिए। आप सिर्फ इतना कीजिए कि बाजार से दस हार मंगवा लीजिए। जब जुलूस आए उस वक्त ट्रे में हार लेकर आप सड़क पर खड़े हो जाइए और जो भी आगे चलकर आ रहे हों। जुलूस के नेता हों, उन्हें हार पहना दीजिए और उनका स्वागत कीजिए। इमाम ने ऐसा किया और जो साम्प्रदायिक दंगा होना तय था, वह ना सिर्फ टला बल्कि दोनों समुदायों  के बीच एक मजबूत रिश्ते की उस दिन नींव पड़ी।

वैसे सच यह भी है कि शाहीन बाग का आंदोलन सिर्फ शाहीन बाग के लोगों से नहीं चल रहा। इसके कुछ स्टेक होल्डर बाहर भी हैं। जिस तरह इस पूरे मामले में एनडीटीवी रूचि ले रहा है, ऐसा लगता है कि वह भी इस कथित आंदोलन में एक स्टेक होल्डर है।  संभव है इसीलिए एनडीटीवी के एक स्टार एंकर ने श्री चौरसिया के साथ शाहीन बाग में पिछले दिनों जो गलत व्यवहार हुआ उसकी सुध लिए बिना उलटा उनकी पत्रकारिता को लेकर सवाल पूछा। एनडीटीवी के एंकर के बयान की आईसा—एसएफआई की वैचारिक पत्रकारिता स्कूल से निकले पत्रकारों को छोड़कर हर तरफ आलोचना हुई और यह सवाल भी सामने आया कि एनडीटीवी का इतना महत्वपूर्ण चेहरा जब कोई बात लिख रहा है तो उसे निजी राय नहीं माना जा सकता।

यहां गौरतलब है कि एनडीटीवी के पत्रकारों को शाहीन बाग में आसानी से जाने का रास्ता मिल जाता है। जामिया में हुई हिंसा और आगजनी के दौरान सहायता के लिए जिन लोगों के मोबाइल नंबर छात्रों के बीच वाट्सएप पर शेयर किए जा रहे थे, उसमें भी  एक एनडीटीवी का पत्रकार था और दूसरी पत्रकार का ताल्लूक वायर नाम की एक वेबसाइट से था। यह भी एक संयोग है कि देशद्रोह का आरोपी शरजील इमाम भी वायर नाम की वेबसाइट से जुड़ा रहा है।

  एनडीटीवी और वायर की पूरे मामले में जो भूमिका दिखाई पड़ी, उसे देखकर उनपर संदेह होना स्वाभाविक है। एनडीटीवी और वायर दूसरे चैनलों के साथ वहां हो रहे दुर्व्यवहार के सवाल को क्यों नहीं उठाते?  आज एनडीटीवी—वायर, शाहीन बाग में न्यूज नेशन और जी न्यूज को रोके जाने पर उत्सव मना रहे हैं।  वह नहीं जानते कि अगला नंबर उनका भी हो सकता है और फिर उनके पत्रकार किस मुंह से लोकतंत्र की दुहाई देंगे?

इस पूरे प्रकरण में एनडीटीवी और वायर ने अपने लिए यह मुसीबत जरूर मोल ले ली कि
उनके पत्रकारों पर भी लोग इस तरह का दबाव बना सकते हैं। उनसे भी लोग सवाल पूछ सकते हैं— पहले बताओ कि तुमने पत्रकारिता के लिए क्या किया है?

या फिर उनका माईक देखते ही कोई कह सकता है कि जो रिपोर्ट करना है सामने करो। मेरे मन का करो। अब सोचिए जब एनडीटीवी के पत्रकार के साथ यह हो रहा होगा तो वे किस मुंह से इसकी शिकायत कर पाएंगे। जबकि शाहीन बाग की अराजक भीड़ के पक्ष में वे लगातार रिपोर्ट कर रहे हैं।

इस संबंध में पत्रकारिता के पूर्व छात्र रहे चंदन श्रीवास्तव लिखते हैं —”एनडीटीवी के एक पत्रकार शाहीन बाग में दीपक चौरसिया पर हुए हमले की निन्दा करते हुए, उसे जस्टीफाई कर रहे हैं। वह पूछते हैं कि दीपक चौरसिया का पत्रकारिता में क्या योगदान है? इसमें कोई शक नहीं कि दीपक चौरसिया अपनी महात्वाकांक्षा की वजह से वह दीपक चौरसिया नहीं रह गए जो वह कुछ सालों पहले तक होते थे। लेकिन उनके आज की वजह से उनके कल की उपेक्षा करना तो उनके साथ अन्याय होगा।

एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार जिनके पूरे पत्रकारिता के करीयर में एक भी खोजी रिपोर्ट दर्ज नहीं है, वह दीपक चौरसिया के लिए पूछते हैं कि उनका पत्रकारिता में, इस देश के जनतंत्र में क्या योगदान है। जिस समय रवीश कुमार रवीश की रिपोर्ट नाम से औसत डाक्युमेंट्री बनाया करते थे, उस समय शाहीन बाग में पिटने वाला यह पत्रकार इलेक्ट्रानिक मीडिया की पत्रकारिता का सिरमौर हुआ करता था और कई वर्षों तक रहा भी। पत्रकारिता की पढाई करने वाले हर छात्र इलेक्ट्रानिक मीडिया में जाने का सपना पालते थे, तब वे दीपक चौरसिया बनने का ही ख्वाब देखते थे, रवीश बनने का नहीं।

2004-06 में हिन्दी पत्रकारिता एवं जनसंचार की पढ़ाई के दौरान हमने भी देखा कि गेस्ट लेक्चर के लिए आने वाले सक्रिय बड़े पत्रकार हमें दीपक चौरसिया के पत्रकारिता की बारीकियां सिखाया करते थे। मुझे याद है कि 26/11 के वक्त मुम्बई से लाइव करते हुए, दीपक चौरसिया बताते कि अभी-अभी मुझे दिल्ली में हुए अमुक डेवलपमेंट का पता चला है। हम लोग आश्चर्यचकित होते कि ये शख्स एक-दो मिनट के ब्रेक में कैसे दिल्ली की इतनी महत्वपूर्ण सूचनाएं मुम्बई में रहकर संकलित कर रहा है। ये उनके सूत्रों के मजबूत तंत्र का कमाल था।

पत्रकारिता में सूत्रों का महत्व होता है न कि एजेन्डा सेट करने की आपकी काबिलियत का। आखिर रवीश कुमार पत्रकारिता कहते किसे हैं? ढकी, लुकी-छिपी जानकारियों को निकाल कर जनता के सामने रख देने को या वह जो वे करते हैं, एजेन्डा पत्रकारिता। पत्रकार अपने सीवी में अपने खोजी रिपोर्ट्स को प्रमुखता से स्थान देता है। क्या रवीश की सीवी में ऐसी एक भी रिपोर्ट है, जिसे खोजी कहा जा सके? इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट्स का हिन्दी अनुवाद करके एक घंटे लेक्चर छांटना, कुछ भी हो पत्रकारिता तो नहीं है ना!”

एनडीटीवी और वायर की श्रृंखला में एक नाम कॉमरेड भाषा सिंह का भी जुड़ता है। शाहीनबाग में दीपक चौरसिया के साथ जब हाथापाई हो रही थी, उस वक्त वहां खड़ी तमाशबीनों में शामिल थी। यह बात उन्होंने अपने एक वीडियो में स्वीकार किया है। सिंह वीडियो में कहती हैं— ”आखिर दीपक क्या दिखाना चाह रहे हैं? जो शाहीन बाग से रिकॉर्ड करेंगे वह या ये कुछ और दिखाएंगे? उसी वक्त मंच से दरख्वास्त होती है कि दीपक चौरसियाजी शाहीन बाग से लाइव शो करें। इसके पीछे आयोजकों की चिन्ता यह है कि उनका टीवी चैनल शाहीन बाग को जेहादियों के अड्डे के तौर पर पेश कर रहा है, इससे उन्हें गहरी नाराजगी थी।”

10 साल पुरानी बात है। जिसे मुख्यधारा का मीडिया कहते हैं, वहां आरएसएस के कामों की बहुत कम सकारात्मक रिपोर्टिंग मिलेगी। लेकिन क्या आरएसएस ने किसी पत्रकार को रिपोर्टिंग से रोका। देशभर के मीडिया संस्थानों का बड़ा हिस्सा आईसा और एसएफआई से निकले कैडर और वामपंथी रूझान वाले पत्रकारों के हिस्से था। यदि आरएसएस यही व्यवहार लेफ्ट के पत्रकारों के साथ करता, भाषा सिंह को लिखने से पहले बंधक बना लेता और कहता कि भाषा तुम आउट लुक में जो लिखने वाली हो यहां लिखकर आउटलुक भेजो क्योंकि तुम यहां कुछ और कहती हो और छापती कुछ और हो। क्या भाषा को यह स्वीकार होता? वामपंथी जहर ने इनके दिमाग के एक हिस्से को मानो पक्षाघात का शिकार बना दिया है। यह बोलती हुई समझ नहीं पा रहीं कि इनकी यह सोच पत्रकारिता के लिए कितनी बड़ी खाई खोद रहा है। फिर रवीश, बरखा और राजदीप को अब कोई भी घेर के कह सकता है कि भैया तुम चैनल पर जाकर बकवास करते हो, अब जो रिपोर्ट करना है, हमारे सामने करो। फिर कहने के अधिकार का क्या होगा? फिर जिस आजादी की बात शाहीन बाग में हो रही है, वह झूठी और बेमानी ही साबित होगी क्योंकि जब तक आप दूसरों की आजादी का सम्मान नहीं कर पाएंगे तब तक आपकी आजादी की डिमांड तो धोखा ही है।

हम सबने ‘न्यूज नेशन’ और ‘जी न्यूज’ की संयुक्त प्रस्तुति में देखा कि कैसे दोनों पत्रकारों ने मिलकर कथित आंदोलन का हिस्सा बने लोगों से संवाद स्थापित करने की कोशिश की। वास्तव में वहां मौजूद भीड़ को यह पता तक नहीं है कि वे एक झूठ के सहारे पर वहां खड़े किए गए हैं। दीपक चौरसिया और सुधीर चौधरी जैसे पत्रकारों के  वहां मौजूद रहने से आयोजकों को डर रहा होगा कि उनका खेल खुल ना जाए। उनका झूठ बेपर्दा ना हो जाए।

शाहीन बाग में मीडिया रिपोर्टिग की जगह झूठ का कारोबार ही चल रहा है। सांच को आंच नहीं होता। लेकिन जिस तरह न्यूज नेशन और जी न्यूज के कैमरों से शाहीन बाग कथित आंदोलनकर्मी भागते हुए नजर आए, उससे यही पता चल रहा था कि कोई सच है जिस पर वे पर्दा डालना चाहते हैं।

यूं तो शाहीन बाग के मंच से एक नहीं दर्जनों झूठ बोले जा रहे थे। हो सकता है कि दीपक और सुधीर की मौजूदगी में वह झूठ बोलना मंच पर चढ़े लोगों के लिए सहज नहीं रह जाता। यह भेद देश के सामने जाहिर हो जाता। वहां गांधीजी की तस्वीर लगाकर बोली जाने वाली हिंसक बातों से पर्दा हट जाता। उनके झूठ पर पर्दा पड़ा रहे इसलिए जरूरी था कि दीपक चौरसिया और सुधीर चौधरी उनके कथित आंदोलन से दूर रहे।

शाहीन बाग के मंच से एक झूठ डिटेन्सन सेन्टर को लेकर भी लगातार बोला जा रहा है। यह भय फैलाया जा रहा है कि असम में जैसे डिटेन्सन सेन्टर बनाया गया है, वैसा सेन्टर पूरे देश में बनाकर मुसलमानों को उसमें कैद किया जाएगा। यह उतना ही बड़ा झूठ है, जैसे इस्लाम में कोई मोहम्मद साहब को खुदा कह दे। मोहम्मद साहब मुसलमानों के पैगम्बर तो हैं लेकिन वे खुदा नहीं।

वास्तव में वर्ष 2011 का साल एनआरसी के खिलाफ सड़क पर उतरे लोगों के लिए महत्वपूर्ण है। लेफ्ट यूनिटी की मीडिया किस तरह झूठ फैलाती है इस बात से जुड़ा है यह संदर्भ। 2011 वह साल था जब देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे और असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई। मतलब केन्द्र और असम दोनों जगह कांग्रेसी डबल इंजन सरकार थी। भाजपा सरकार एनआरसी 24 मई 2016 को सर्बानंद सोनवाल के मुख्यमंत्री बनने के बाद लाई। इसके पांच साल पहले ही असम में तीन डीटेन्सन सेन्टर कांग्रेस की सरकार बनवा चुकी थी। इससे यह साबित होता है कि डिटेन्सन सेन्टर में घुसपैठिए रखे जरूर गए हैं लेकिन उन सभी घुसपैठियों की पहचान कांग्रेस सरकार में हुई थी। जबकि एनआरसी में जिन लोगों का नाम नहीं आया है, वे लोग वहां नहीं डाले गए। प्रधानमंत्री मोदी ने जब डिटेन्सन सेन्टर ना बनने की बात की तो उसका सीधा सा मतलब था कि उनकी सरकार ने ऐसा कोई सेन्टर नहीं बनवाया। या फिर यह मतलब था कि एनआरसी में जिन 19 लाख लोगों का नाम नहीं आया वे लोग वहां नहीं डाले गए हैं। अब डिटेन्सन सेन्टर पर ‘चंदा मीडिया’ ने क्या रिपोर्ट किया है, वह पढ़िए और चंदे पर केन्द्रित इनकी निष्पक्षता को समझिए।

दीपक चौरसिया को लेकर दो खेमों में बंटे पत्रकार

सोशल मीडिया पर वरिष्ठ पत्रकार व न्यूज नेशन के कंसल्टिंग एडिटर दीपक चौरसिया पर दिल्ली के शाहीनबाग में हुए हमले का मुद्दा अभी भी गर्माया हुआ है। कुछ पत्रकारों ने जहां इस घटना की निंदा की है, वहीं कुछ इसके लिए दीपक चौरसिया को ही जिम्मेदार ठहराने में लगे हैं। आमतौर पर ऐसे मामलों में मीडियाकर्मी एक सुर में आवाज बुलंद करते हैं, मगर यहां वह अलग-अलग खेमों में विभाजित नजर आ रहे हैं। दरअसल, चौरसिया को ऐसे पत्रकार के रूप में देखा जाता है जो मोदी सरकार की नीतियों पर प्रहार नहीं करते, इसलिए जब नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में चल रहे प्रदर्शन में उन्हें निशाना बनाया गया, तो कई लोगों ने इसे साजिश की तरह से देखा, जिसमें कुछ पत्रकार भी शामिल हैं। यही वजह है कि सोशल मीडिया पर पत्रकार भी पक्ष-विपक्ष की भूमिका में नजर आ रहे हैं।

‘द वायर’ की आरफा खानम शेरवानी को ‘इंडिया टुडे’ समूह के न्यूज डायरेक्टर राहुल कंवल ने दीपक चौरसिया पर सवाल खड़े करने के लिए आड़े हाथों लिया है। आरफा ने शाहीनबाग की घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा था, ‘दीपक चौरसिया के साथ जो कुछ हुआ वह निंदनीय है, लेकिन यह पत्रकार या पत्रकारिता पर हमला नहीं है। सरकार के समक्ष नतमस्तक हो जाना पत्रकारिता नहीं होती। उत्पीड़ित समुदायों का गलत चित्रण पत्रकारिता नहीं कहलाती। एक पत्रकार के विशेषाधिकारों का दावा न करें, क्योंकि आप पत्रकार नहीं हैं’।

इसके जवाब में राहुल ने कहा, ‘बकवास तर्क। दीपक चौरसिया जैसी चाहें, वैसी पत्रकारिता रखने का अधिकार रखते हैं। यदि आपको पसंद नहीं तो न देखें। लेकिन एक पत्रकार पर सिर्फ इसलिए हमला करना क्योंकि आप उसकी बात को पसंद नहीं करते, पूरी तरह से अस्वीकार्य है। यह प्रदर्शनकारियों के एक वर्ग की असहिष्णुता को दर्शाता है’।

इसी तरह महाराष्ट्र के वरिष्ठ पत्रकार निखिल वाघले ने जहां घटना के लिए चौ