क्या टुकड़े गैंग का साथ दे रहा है, British Medical Journal Lancet

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राजीव मिश्रा

दुनिया किस तरह भारत के विरुद्ध मोर्चाबंदी करके बैठी है, इसकी एक झलक दिखाता हूं। और इस बार इस मोर्चेबंदी में आपको पॉलिटिशियंस, एक्टिविस्ट्स, जर्नलिस्ट ही नहीं, डॉक्टर्स भी दिखाई देंगे।

मशहूर ब्रिटिश मेडिकल जर्नल Lancet में यह एडिटोरियल छपता है 13 July को, जिसमें वे मोदी सरकार से सवाल करते हैं कि सरकार हेल्थ की स्थिति को छुपा रही है, आपके पास डेटा नहीं है।

और उसी दिन इस पोर्टल में यह आर्टिकल छपता है कि एक्सपर्ट्स लांसेट में छपे इस एडिटोरियल को सपोर्ट करते हैं।
पहला सवाल, मोदी सरकार अपना हेल्थ डेटा किसी अंग्रेजी जर्नल को बताने के लिए बाध्य है? आप आज भी दुनिया के कोतवाल बैठे हैं। आप सवाल पूछें और हम जवाब देते रहें।

दरअसल यह एक किस्म की कोलोनियल सत्ता ही है। अंग्रेजों को भारत की गर्मी बर्दाश्त नहीं हुई, वे अपना बोरिया बिस्तर समेट कर चले गए. पर इंतजाम करते गए कि सबकुछ उनके मुताबिक हो, उनसे पूछ पूछ कर हो. पिछले दस वर्षों से हो नहीं रहा तो खुजली हो रखी है। उन्होंने एक सड़ा गला एनएचएस बना रखा है जहां लोग एक मामूली से गॉल ब्लैडर सर्जरी के लिए भी नौ दस महीने इंतजार कर रहे हैं, एक गाइनेकोलॉजी आउटपेशेंट अपॉइंटमेंट के लिए 44 वीक की वेटिंग टाइम है, पूरे देश की इकोनॉमी मुफ्तखोरों को मुफ्त बिठा कर खिलाने में डूब रही है. अपना हगा पोंछ नहीं पा रहे (धोते तो यूं भी नहीं हैं), दुनिया को खेत का रास्ता बता रहे हैं। भारत सरकार पर प्रेशर बनाने का प्रयास है कि जो गंदगी हमने सजा कर रखी है, वह तुम भी अपने घर पर ले जाओ।

पर उससे भी बड़े किस्म के नमूने हैं ये एक्सपर्ट, 13 अप्रैल की लैंसेट में एडिटोरियल छपा। 13 अप्रैल को ही एक्सपर्ट्स ने पढ़ भी लिया, उस पर अपनी राय भी दे दी और एक पत्रकार ने उसपर आर्टिकल लिखकर छाप भी दिया।

दो एक दिन तो सबर कर लेते। कुछ प्रिटेंस ही कर लो कि यह सब पहले से प्लान्ड नहीं है, सचमुच आर्टिकल पढ़ कर बोल रहे हो।

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