क्या आपके लिए भी चम्पारण मतलब सिर्फ चम्पारण-मटन है? तो ये जानकारी आपके लिए!

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चम्पारन को बदनाम करने के इस सुनियोजित षड्यंत्र पर त्वरित टिप्पणी ….

डॉ. दिवाकर राय

यह चम्पारन की छवि को धूमिल करने की एक सुनियोजित कोशिश है। चम्पारन का इतिहास अत्यन्त गौरवशाली है। चम्पारन की पहचान महर्षि वाल्मीकि से है, जिन्होंने पहला महाकाव्य लिखा। चम्पारन की पहचान सीता माता की उन वीर संतानों लव-कुश से है, जिन्होंने अहंकार का मान-मर्दन किया। चम्पारन की पहचान उस नारायणी नदी से है जिसमें गज-ग्राह का प्रसिद्ध युद्ध हुआ था, जिसमें भगवान श्रीहरि को स्वयं भक्त की रक्षा के लिए आना पड़ा था। चम्पारन की पहचान लौरिया-अरेराज, लौरिया-नंदनगढ़ तथा रामपुरवा के उन स्तंभों से है, जिनपर सम्राट अशोक के शांति और सौहार्द के शासनादेश अंकित हैं। चम्पारन की पहचान उन बौद्ध विहारों एवं केसरिया तथा नंदनगढ़ व चानकीगढ़ जैसे विश्वविख्यात स्तूपों से है जिनके गर्भ में पूरा बौद्ध इतिहास समाया है।

चम्पारन की पहचान उस प्रसिद्ध सोमेश्वर पर्वतमाला से है जिसकी चोटी पर आज भी माँ कालिका विराजमान हैं जिनके दर्शन के लिए चैत्र नवरात्र में भारत तथा नेपाल के लाखों श्रद्धालु सैकड़ों वर्षों से कष्टमय तीर्थयात्रा करते हैं। चम्पारन की पहचान त्रिवेणी के उस मेले से है, जहाँ देश-विदेश लाखों श्रद्धालु माघ-अमावश्या को पवित्र डुबकी लगाने आते हैं। चम्पारन की पहचान सोमेश्वरनाथ महादेव, दुर्गाबाग व कालीबाग, सहोदरा माई, मदनपुर माई जैसे धामों से है, जहां प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु माथा टेकने पहुँचते हैं। चम्पारन की पहचान थारू और धांगड़ जैसी उन वनवासियों से है जो प्रकृति- साहचर्य का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। चम्पारन की पहचान उस सरभंग तथा कबीरपंथी संतों से है, जिन्होंने सामाजिक समरसता,सौहार्द तथा आध्यात्मिक जागरण के महति कार्य किए।

चम्पारन की पहचान बेतिया राज से है जिसके महाराजा युगल किशोर सिंह ने 1765 में ही अँगरेजी शासन के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूँक दिया था। चम्पारन की पहचान 1857 में सुगौली में हुए उस विप्लव से है जिसमें कई अँगरेज अधिकारी मारे गये थे और चम्पारन के अंगरेज अधिकारी चम्पारन छोड़कर राजधानी में शरणागत हुए थे। चम्पारन की पहचान उस नीलहा आंदोलन से है, जिसके किसान नायक राजकुमार शुक्ल ने मोहनदास करमचंद गांधी को चम्पारन बुलाकर अंगरेजी प्रशासन को घुटने टेकने पर मजबूर किया था। चम्पारन की पहचान उन वीर बलिदानियों से है, जो 1942 में तिरंगा झंडा फहराने के लिए अँगरेजी गोलियों के शिकार हुए। चम्पारन की पहचान यहां की मीठी भोजपुरी बोली, लोकगीत, लोकनृत्य, मर्चा चूड़, जोगिया भेली(गुड़), जर्दा आम, बासमती चावल जैसे उत्कृष्ट उत्पादों से है जो अन्तत्र दुर्लभ है और जिसको जीआई टैग मिल चुका है या फिर इसके लिए प्रशासनिक औपचारिकताएं हो रही हैं।इसलिए चम्पारन को बदनाम करने की इस कोशिश का मैं विरोध करता हूं

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