आदिवासियों की जमीन को हड़पने का आरोप,क्यों खामोश है दैनिक भास्कर

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कुमारी अन्नपूर्णा चौधरी

शीतल ने ही अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा – अन्य मीडिया संस्थानों को डराने के लिए भास्कर समूह पर कार्रवाई हो रही है। ऐसा कहने वालों को जानना चाहिए कि विभिन्न अख़बार और चैनल, बैनर की आड़ में तमाम तरह के ग़लत-सलत धन्धे करते हैं और अपने उन धन्धों से जुड़ीं अवैध गतिविधियों की अनदेखी करने के लिए सरकारों पर अड़ी-तड़ी डालने में कोई कसर बाकी नहीं रखते। भास्कर ऐसे कामों में सिरमौर है।”

कुमारी अन्नपूर्णा चौधरी

आठ महीने पुरानी बात है, पिछले साल जुलाई में दैनिक भास्कर समूह पर आयकर विभाग के छापों का मीडिया ट्रायल प्रारंभ कर दिया गया था। उस समय भास्कर के मामले को समझे बिना कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने उसके पक्ष में बयान जारी कर दिया। वर्तमान में विपक्ष रचनात्मक भूमिका निभाने की जगह, विरोध के लिए विरोध करने में व्यस्त है। इसलिए धीरे-धीरे समाज का विश्वास विपक्ष से उठता जा रहा है। आखिर में भास्कर का मामला क्या था? आइए जानते हैं इस रिपोर्ट में।

भास्कर ने 22 जुलाई 2021 को छापे के संबंध में लिखा — ‘आयकर विभाग की टीम ने भास्कर के मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के कार्यालयों पर छापे मारे।’ अपनी खबर को समाचार पत्र ने शीर्षक दिया – ‘भास्कर के दफ्तर पर इनकम टैक्स का छापा: भास्कर की पत्रकारिता को रोकने की कोशिश।’

जबकि छापों का पत्रकारिता से कोई संबंध नहीं था। अखबार निकालने के अलावा भास्कर ग्रुप रियल स्टेट, टेक्सटाइल और पॉवर सेक्टर में भी काम करता है। उनके संबंध में विभाग को मिली सूचना के आधार पर छापेमारी हुई। इस जांच से पता चला कि दैनिक भास्कर ग्रुप ने पावर प्लांट के नाम पर वनवासियों की जमीन को धोखाधड़ी से खरीदा है।  एसिया न्यूज के अनुसार भास्कर पर चल रही जांच का संबंध उनकी पत्रकारिता से नहीं है बल्कि मामला पावर प्लांट के क्षेत्र में जमीन की खरीद में उनकी धोखाधड़ी से जुड़ा है।

भास्कर का पूरा मामला छत्तीसगढ़ के जांजागीर-चांपा जिले में जमीन खरीद से जुड़ा है।  इस संबंध में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजातिआयोग को भी शिकायत मिली। शिकायत में बताया गया कि कैसे समूह ने पावर प्लांट के नाम पर जमीन हथियाई है। शिकायत मिलने के बाद आयोग ने इस मामले में जिलाधिकारी और एसपी को समन जारी किया है।

पिछले साल जुलाई में इनकम टैक्स विभाग ने दैनिक भास्कर ग्रुप के कई कार्यालयों पर छापे मारे थे। छापेमारी में कई महत्वपूर्ण कागजात मिले थे। अब एक और नई जानकारी निकलकर सामने आई है। दैनिक भास्कर ग्रुप की एक और कंपनी है ‘डी.बी.पावर लिमिटेड’। आरोप है कि भास्कर ने छत्तीसगढ़ जांजगीर-चांपा जिले में इसका प्लांट लगाने के लिए  जमीन खरीदीने के लिए धोखाधड़ी की है। दरअसल भास्कर ने पहले यहां के एक स्थानीय व्यक्ति को अपने यहां नौकरी पर रखा। उसने यहां ‘डी.बी.पावर लिमिटेड’ के लिए एजेंट का काम किया।

पहले इसने सस्ते दामों में स्थानीय अनुसचित जनजाति समाज के लोगों की जमीन खरीदी। नियमानुसार जनजाति समाज की जमीन जब उनके ही समाज का व्यक्ति खरीदता है तो उसे  किसी की अनुमति की जरूरत नहीं होती है, लेकिन यदि कोई बाहर का व्यक्ति किसी वनवासी से जमीन खरीदता तो उसके लिए जिलाधिकारी की अनुमति लेनी पड़ती है। आरोप है कि भास्कर ग्रुप ने पहले अपने इस एजेंट के माध्यम से जनजाति समाज की जमीन को खरीदने को कहा। एजेंट के तौर पर काम कर रहे इस व्यक्ति ने जनजाति समाज से जमीन खरीदी और बाद में वह जमीन ‘डी.बी.पावर लिमिटेड’ को बेच दी।

इस बीच इसमें से काफी जमीन को पहले ‘छत्तीसगढ़ स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कारपोरेशन’ ने अधिग्रहित किया और फिर ‘डी.बी.पावर लिमिटेड’ को दे दिया। यानी पहले भास्कर के एक स्थानीय एजेंट ने यहां गांववालों से सस्ते में जमीन खरीदी और ‘डी.बी.पावर लिमिटेड’ को वही जमीन फिर से बेच दी गई। प्लांट के लिए और ज्यादा जमीन की जरूरत थी तो ‘छत्तीसगढ़ स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कारपोरेशन’ के माध्यम से भी यहां जमीन का अधिग्रहण कर उसे ‘डी.बी.पावर लिमिटेड’ को बेचा गया।

वास्तव में इस मामले में भास्कर समूह एक मीडिया कारोबारी से अधिक एक भू माफिया की भूमिका में अधिक दिखाई देता है। इस संबंध में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजातिआयोग को शिकायत मिलने के बाद आयोग ने छत्तीगढ़ के राजस्व सचिव और छत्तीसगढ़ स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कारपोरेशन’ के एमडी को नोटिस जारी किया है। समाचार लिखे जाने तक आयोग को कॉरपोरेशन के एमडी की तरफ से कोई सफाई नहीं आई है।

 इसके अलावा जांजागीर-चांपा जिले के जिलाधिकारी और एसपी को भी आयोग की तरफ से नोटिस भेजकर जवाब मांगा गया था। वहां से संतोषजनक जवाब न मिलने पर आयोग ने वहां के एसपी और जिलाधिकारी को समन जारी कर आज (आठ मार्च) आयोग में अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया है। 

आने वाले समय में भास्कर समूह पर यदि कोई कार्रवाई होती है तो संभव है कि एक बार फिर इसे मीडिया और अभिव्यक्ति पर हमला कह कर प्रचारित किया जाए।

भास्कर के ही एक पूर्व कर्मचारी एलएन शीतल का लिखा पिछले दिनों दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ। उन्होंने भास्कर से पूछा कि इतने कम समय में यह समूह हजारों करोड़ का मालिक कैसे बन पाया? उनका यह सवाल सही भी है। यदि भास्कर की समाज में प्रतिष्ठा एक मीडिया हाउस के रूप में है। मीडिया हाउस को चाहिए कि यदि उसके पाठकों के मन में संस्थान को लेकर कोई संदेह है तो उसे दूर करे। उसे अपनी कमाई के स्त्रोतों की जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए। कितना पैसा वे मीडिया हाउस से कमा रहे हैं और कितना पैसा उनके दूसरे कारोबार से आ रहा है। यह उनके पाठकों को जानना चाहिए। जिससे पाठक भी तय कर पाएंगे कि समूह पर पड़े छापे वास्तव में मीडिया हाउस पर पड़े हैं या उनकी दूसरी गतिविधियों की वजह से।

शीतल ने ही अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा – अन्य मीडिया संस्थानों को डराने के लिए भास्कर समूह पर कार्रवाई हो रही है। ऐसा कहने वालों को जानना चाहिए कि विभिन्न अख़बार और चैनल, बैनर की आड़ में तमाम तरह के ग़लत-सलत धन्धे करते हैं और अपने उन धन्धों से जुड़ीं अवैध गतिविधियों की अनदेखी करने के लिए सरकारों पर अड़ी-तड़ी डालने में कोई कसर बाकी नहीं रखते। भास्कर ऐसे कामों में सिरमौर है।”

दैनिक भास्कर समूह ने प्रेस पर हमले के नाम पर पिछले साल खूब सहानुभूति बटोरी थी लेकिन यह पूरा मामला आदिवासियों पर हमले का है। इस हमले पर भास्कर समूह की तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। उसे बताना चाहिए कि मीडिया समूह होने के नाते आदिवासियों की जमीन हथियाने का अधिकार उन्हें भारत का कौन सा कानून देता है? इस आरोप पर भास्कर समूह के जवाब की प्रतीक्षा है। 

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