आंदोलनजीवी अर्थात मैं तो वो हूं जिसे हर हाल में बस रोना था

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पंकज झा

आनंद बक्शी साहब का गीत – ये न होता हो कोई दूसरा ग़म होना था, मैं तो वो हूं जिसे हर हाल में बस रोना था.. आंदोलनजीवी शब्द को सटीक व्याख्यायित करता है। आंदोलनजीवी अर्थात क्या? अर्थात ऐसा व्यक्ति जो इसलिए आंदोलन नहीं करता क्योंकि उसके कोई कारण होते हैं, वे हर वक़्त ऐसा कारण तलाशते रहते हैं जिससे आंदोलन हो, गोयाकि वह अपने उत्पाद के लिये कच्चा माल तलाश रहा हो। वे हर समाधान में समस्या तलाशने वाले लोग होते हैं। उनका जीवन ही समस्याओं के कारण सम्भव होता है। वे यह सोच कर भी आतंकित हो जाते होंगे कि अगर किसी दिन ‘समस्या’ न हो, तो उनका क्या होगा।

पंकज झा

जैसे कोई अभिनेता व्यस्त रहते समय ही अगले फ़िल्म के बारे में सोचना शुरू कर देता है वैसे ही आंदोलनकारी एक-दो समस्याओं का कच्चा माल हमेशा अपनी जेब में बचा कर रखता है, ताकि उसका कारोबार चलता रहे। कुछ फ़ीलर टाइप ऐसी सदाबहार समस्याएँ भी होती है पर्यावरण टाइप, जो बेरोज़गारी के समय इनके काम आती हैं। 

एक कश्मीरी आतंकी से किसी पत्रकार ने पूछा था कि अगर कश्मीर का समाधान आपके हक़ में ही हो जाय, तो क्या आप आतंक छोड़ देंगे? कुछ क्षण चुप रहने के बाद उसका जवाब था कि – बिल्कुल नहीं। तब हमारा ‘ज़ेहाद’ दीगर मसायलों को लेकर होगा- मसलन बाबरी की शहादत का बदला लेना। ऐसा ही आश्चर्यजनक संयोग पिछले दिनों एक अख़बार में प्रकाशित आंदोलनजीविता के पर्याय योगेन्द्र यादव के लेख में दिखा। यादव ने लिखा कि – तीनों कृषि क़ानून तो ख़त्म हो ही गये हैं, किसी सरकार की आगे हिम्मत भी नहीं होगी ऐसा कोई क़ानून लागू करने की। लेकिन हमारा आंदोलन अब उस क़ानून को ख़त्म करने से काफ़ी आगे निकल चुका है। आगे जैसा कि टिकैत ने कहा था – कि अब उनका आंदोलन क़ानून नहीं सरकार वापसी के लिये है। आंदोलनजीवी वो हैं, जैसा कि संयोग से ही एक भाषण में कांग्रेस सीईओ राहुल गांधी कह बैठे थे – उन्हें हर जवाब का सवाल चाहिये।

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