“आदिवासी न कभी हिंदू था और न है और न रहेगा!” : हेमंत सोरेन

114.1-1.jpg

गंगा महतो

“अहिंसा परमो धर्म:” …. इस वाक्य को इतना दोहराया गया इतना दोहराया कि लोग इसे ही सच मान बैठे.. ‘अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है… अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है!’ बारंबार बारंबार और बारंबार बस यही। और ये जब ख्याति प्राप्त व्यक्ति/व्यक्तियों के मुंह से निकलता है न तो फिर परम वाक्य बन जाता है और प्रमाणित भी। उसके बाद के लोग बस इसी चीज को कोट करेंगे कि देखिये इन्होंने क्या कहा था सो!! और हम उसकी अहवेलना कर रहे है/करेंगे ?? 

“अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च” … कौन जानता है इस पूर्ण वाक्य को ??? आधे अधूरे वाक्य ने कितना कुछ कबाड़ किया हिंदू समाज का उसका अंदाजा भी है ?? पंगू और नपुंसक बना दिया इस आधे-अधूरे वाक्य ने। क्योंकि इसे प्रमाणित व्यक्ति ने ठप्पा मार दिया।। और इसके बाद धर्म सम्मत हिंसा करना भूल गए लोग।। घर में जहाँ तलवार,भाला,फरसा,कटार,तीर-कमान आदि-आदि बड़े कॉमन हुआ करते थे वहाँ अब ढंग का एक सब्जी काटने का चाकू न मिलेगा।.. मुर्गी के खून देख कर उल्टी करने लगते है तो कई फिट हो जाते है।.. बस इस एक आधे-अधूरे सेंटेंस के कारण।

ये आधे-अधूरे वाक्य और उसका इंटरप्रेटेशन कितना घातक होता है ये हम समझने वालों में से नहीं है। कीमत चुका कर भी समझ नहीं आता हमें।

चुनाव के पहले और अब तक ये सीएम बड़े-बड़े प्लेटफॉर्म पे एकदम एक बात बोलते हैं “आदिवासी हिंदू नहीं है!” “आदिवासी न कभी हिंदू था और न है और न रहेगा!” और ऐसे ही डॉट डॉट डॉट .. बहुत खूब।.. ये वाला तुर्रम पहले भी था लेकिन बस छोटे पैमाने पे और मिशनरियों के गोद में पलने वाले चंद क्रिप्टो बुद्धिजीवियों के मुख पे और उनके चेला-चपाटियों के। लेकिन अब राज्य के मुखिया के मुखारबिंद से ऐसे बोल निकल रहे हैं और लगातार निकल रहे है भले ही ये अपने घर में हवन कराए,माता रानी का आरती उतारे, भोलेनाथ का पूजा करे और ऐसे ही डॉट डॉट लेकिन बड़े प्लेटफार्म पे यही वाक्य दुहरायेंगे कि आदिवासी हिंदू नहीं है।

और फिर सारा नैरेटिव इसी पे सेट हो जाता है.. सारा ज्ञान सिर्फ और सिर्फ इसी पे केंद्रित रहेगा.. इसके अलावे कोई और चर्चा नहीं होगा। और लोग बस इसी में उलझेंगे और इसी को सच/झूठ मान कर मत्था फोड़वल करेंगे।.. ये आधा अधूरा वाक्य ही पूर्ण वाक्य बन जायेगा और यही सच हो जाएगा।

जब से इसे सुन रहा हूँ तब से बस एक ही रट लगाए बैठा है कि “आदिवासी हिंदू नहीं है” .. अरे भाई इसी पे लटके रहोगे या इसके भी आगे कुछ बोलना है ?? आदिवासी हिंदू नहीं है तो आदिवासी क्रिश्चन भी नहीं है,आदिवासी मुस्लिम भी नहीं है।… पूरा बोलो न .. और खुल के बोलो। ये हिन्दू-हिन्दू पे आ के अटक क्यों जाते हो ?? मुस्लिम आदिवासी जहां है वहाँ है लेकिन सबसे ज्यादा इस मंत्र (आदिवासी हिन्दू नहीं है) से किसको फायदा हो रहा ?? निश्चय ही क्रिश्चन मिशनरियों को.. इसकी बात ही कहीं नहीं है.. और सबसे ज्यादा खतरा इन्हीं लोगों से है।.. एक भी बड़े प्लेटफार्म पे इसकी बात नहीं होती और न कोई करना चाहता है क्योंकि ये सारा प्रोपेगैंडा मिशनरियों का ही तो है। ये मिशनरी “आदिवासी हिंदू नहीं है” का नारा इस कदर बुलंद करेंगे कि इसके आगे-पीछे का किसी को भी सुझाई-बुझाई नहीं देगा और इसी को सत्य मान लेंगे.. जैसे “हिंसा तथैव च” किसी को दिखाई नहीं देता और इसके पहले वाला को ही लोग सत्य मान बैठे हैं।

Share this post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll to top