पत्रकारिता में आदर्श की कोई बात नहीं, अब सब नंबर का गेम है

यह देखना ही दुर्भाग्यपूर्ण था कि एक चैनल ने कांग्रेस के युवा नेता कन्हैया कुमार के साक्षात्कार के लिए पांच संपादकों को बिठा दिया

संपादकों के अपमान का शोक

यू ट्यूब पर इस कार्यक्रम के वीडियो को देखकर ऐसा लगा कि चैनल संपादकों के अपमान का शोक नहीं बल्कि टीआरपी बढ़ने का उत्सव मना रहा था

यह देखना ही दुर्भाग्यपूर्ण था कि एक चैनल ने कांग्रेस के युवा नेता कन्हैया कुमार के साक्षात्कार के लिए पांच संपादकों को बिठा दिया। चैनल को इस बात पर विचार करना चाहिए था कि क्या कन्हैया पांच संपादकों के साथ बैठने के काबिल है?

जब पांच संपादक कार्यक्रम का नाम रख रहे हैं तो उनके सामने आप सड़क चलते किसी को भी लाकर बिठा दें। यह ठीक नहीं है। संपादकों के साथ बैठेने वाला भी संपादकीय गरीमा का सम्मान करने वाला होना चाहिए। जाफराबाद से अपनी जीह्वा में ब्लेड बांधकर आया कोई मुर्गा लड़ाने वाला नहीं।

क्या चैनल को इस बात पर तनिक भी शर्मिन्दगी नहीं हुई कि आपका अतिथि कैमरे पर आपके संपादकों का अपमान करता रहा और आपका एंकर बेबस होकर खड़ा देखता रहा। यह जो तमाशा चैनल पर हुआ है, वास्तव में इससे चैनल ही तमाशा बना है।

पांच संपादकों के साथ जिस मेहमान को आप बिठाते हैं। उस मेहमान के चयन में चैनल को सावधानी नहीं बरतनी चाहिए या फिर चैनल पर सम्मानित अतिथि आने को ही तैयार नहीं हो रहे? जो कन्हैया जैसों से काम चलाना पड़ रहा है। चैनल के दर्शकों के बीच ऐसे ‘छीछोरे साक्षात्कार’ से यही संदेश जा रहा है कि चैनल को पांच संपादक तो मिल गए हैं लेकिन जिनका साक्षात्कार लेना है। उसके लिए कायदे के लोग नहीं मिल रहे।

कन्हैया कुमार जिस तरह का व्यवहार टीवी चैनल पर आकर कर रहा था, इस कार्यक्रम को बीच में ना रोक देने की कोई वजह समझ नहीं आई। सबसे दयनीय स्थिति में इस शो के एंकर नजर आ रहे थे। वे ना जाने किस मजबूरी में इस कार्यक्रम को पूरा करने का संकल्प निभा रहे थे। हो सकता है कि ‘शर्माजी’ का दबाव काम कर रहा हो।
बात इतने पर खत्म हो जाती तो बात थी। अफसोस यह देखकर हुआ कि इस कार्यक्रम के छोटे—छोटे क्लिप बनाकर व्यूअर इकट्ठे करने वाला थमनेल डालकर, इसे यू ट्यूब पर ठेल दिया गया। ऐसी स्थिति में कन्हैया से अधिक हास्यास्पद स्थिति में वह चैनल और पांच संपादक दिखाई देते हैं क्योंकि कन्हैया तो सालों से अपनी ‘नंगई’ के लिए प्रसिद्ध है लेकिन चैनल पर आकर उसने अपने साथ—साथ सबको नंगा कर दिया।

इन दिनों लगता है कि खबरिया चैनलों को व्यूअरशिप के मामले में यूट्यूबर्स से टक्कर मिलने लगी है। इसलिए उनकी यह दशा हो रही है। दुख की बात इतनी है कि इस तरह की टक्कर में पत्रकारिता की फिक्र किसी को नहीं है।

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