अब तो सारा देश है मोदी

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कुमारी अन्नपूर्णा

पीसीएस की परीक्षा में सवाल आया, देश की पहली महिला मोदी का नाम बताएं? सीबीएसई बोर्ड में प्रश्न था, देश के पहले मोदी कौन थे? समाचार पत्रों में छपा, राहुल गांधी क्या कभी नहीं बन पाएंगे देश के ‘मोदी’। क्या केजरीवाल हो सकते हैं देश के अगले मोदी।

कुमारी अन्नपूर्णा

यह दिसम्बर 2039 की कोई दोपहर थी। मीडिया में उत्साह था कि नोएडा फिल्म सीटी में विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘एक थी कांग्रेस’ फिल्म के प्रीमियर पर महाराजजी मीडिया से मिलेंगे। मीडिया की शिकायत थी कि लोकतंत्र की सबसे बड़ी कुर्सी पर बैठने के बाद एक बार भी मीडिया से नहीं मिले। आज वे प्रेस से मिलने वाले थे। आज मीडिया के पास सवाल के लिए एक गर्मा-गर्म विषय भी था।  जिस पर विपक्ष लगातार हंगामा कर रहा था। वह संसद नहीं चलने दे रहा था।

हुआ यूं था कि महाराजजी ने लोकतंत्र की सबसे बड़ी कुर्सी पर बैठते ही उसका नाम ‘मोदी’ रख दिया। यह निर्णय अचानक नहीं लिया गया। पूरे देश में एक बहस चली कि मोदी ने देश को इतना दिया, अब देश का उनके प्रति सम्मान समर्पित करने का समय है।

कुर्सी का नाम मोदी हो, यह सुझाव सोशल मीडिया की एक वेबसाइट पर अपलोड हुए एक वीडियो से आया। इस वीडियो को जिस हैंडल से शेयर किया गया था, उसका नाम हर्षवर्धन था। इस हैंडल को हर्षवर्धन टी नाम के एक पत्रकार चलाते हैं।

देखते ही देखते करोड़ो व्यूज और लाखों बार यह शेयर कर दिया गया। अखबार और चैनलों पर बहस प्रारंभ हो गई। उसके बाद ही महाराजजी ने रेफरेंडम कराने का निर्णय लिया। इस रेफरेंडम का आयडिया भी मुख्य विपक्षी पार्टी की तरफ से आया था। पार्टी के नेता ने अपने वेरिफाइड अकाउंट से लिखा — ”जनमत संग्रह कराना सबसे सही विकल्प होगा। यदि भारत की जनता ऐसा चाहती है तो हमें कोई एतराज नहीं है।”

यह संयोग था कि देश भर से जनमत संग्रह में आए मतों में अस्सी फीसदी लोगों का मानना था कि प्रधानमंत्री की कुर्सी का नाम मोदी रखना चाहिए। इससे उस कुर्सी पर बैठने वाले को हमेशा यह नाम कुर्सी की मर्यादा का ध्यान कराता रहेगा। वोटिंग में शामिल बीस फीसदी आबादी नहीं चाहती थी कि इस कुर्सी का नाम मोदी रखा जाए। उसे यह निर्णय लोकतंत्र पर खतरा नजर आ रहा था।

तबसे 2022 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में दिए गए सोलहवें मोदी महाराजजी के बयानों की क्लिप मीडिया में छाई हुई है। सोशल मीडिया पर यही ट्रेंड कर रहा है, दूरदर्शी महाराजजी। कांग्रेस चाहकर भी इस समय विरोध की स्थिति में नहीं है। आम आदमी पार्टी के सुझाव पर रेफरेंडम हुआ। वह कुछ बोल नहीं पा रही। आदित्य ठाकरे और अभिषेक बनर्जी देश के अगले मोदी बनने के लिए संघर्ष में हैं। दोनों ने मिलकर दो साल पहले गोवा में सरकार बनाई है। वह भी इस बहस में उलझना नहीं चाहते। उन्हें लगता है कि जनभावनाओं का सम्मान करना ही सही राजनीति है। 

पीसीएस की परीक्षा में सवाल आया, देश की पहली महिला मोदी का नाम बताएं? सीबीएसई बोर्ड में प्रश्न था, देश के पहले मोदी कौन थे? समाचार पत्रों में छपा, राहुल गांधी क्या कभी नहीं बन पाएंगे देश के ‘मोदी’। क्या केजरीवाल हो सकते हैं देश के अगले मोदी।

वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार एंकर प्राइम टाइम में बता रहे हैं, केजरीवाल की पार्टी गर्त में जा रही है। यह पार्टी अन्ना आंदोलन से निकली है। उस आंदोलन का मैं भी हिस्सा हुआ करता था। आज यह पार्टी किस रास्ते पर जा रही है?

चैनल पर फूटेज चलती है, आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता केजरीवाल का मुखौटा लगाकर नारा लगा रहे हैं— ”मैं भी मोदी, तू भी मोदी। अब तो सारा देश हैं मोदी।”

केजरीवाल की बाइट चलती है— हमारी पार्टी मानती है कि हमारी पार्टी से मोदी चुनने का मतलब एक ही है, देश का एक—एक नागरिक सत्ता में भागीदार होगा। एक—एक नागरिक मोदी होगा। पूरा देश मोदी होगा। यह बात मैं एक सौ पचास करोड़ भारतीयों की तरफ से कह रहा हूं।

रवीश कुमार एंकर आगे कहते हैं— ”ऐसे बयान देकर केजरीवाल क्या सोचते हैं कि वे रवीश का साथ पा लेंगे। ऐसे तो साथ नहीं पा सकेंगे। कांग्रेस की वापसी देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए बहुत जरूरी है। वैसे आप लोग टीवी देखना बंद क्यों नहीं कर रहे?”

अरविन्द केजरीवाल ने बरखा दत्त को इंटरव्यू देने से इंकार कर दिया है। उनके झारखंड वाले पंडितजी ने कहा है कि उनकी कृपा इसी इंटरव्यू में अटकी है। बरखा की जगह सुशांत सिन्हा को इंटरव्यू दो। कृपा आएगी।

द प्रिंट में शेखर गुप्ता का एक लेख छपा है, जिसमें वे लिख रहे हैं कि देश के वर्तमान मोदी महाराजजी अब वह महाराजजी नहीं रहे जो गोरखपुर के मठ में थे। उनमें बहुत परिवर्तन हुआ है। उनमें जिस तरह का संयम देखने को मिलता है, यकिन नहीं होता कि ये 40 साल पहले वाले महाराजजी हैं। लेकिन उप मोदी हिमंत बिस्वा सरमा के कई बयान ना सिर्फ आपत्तिजनक हैं, बल्कि देश को तोड़ने वाले हैं। ऐसा लगता नहीं कि यह पार्टी अटलजी की लीगेसी को संभाल पा रही है।

अब देखिए ना बीस साल गुजर गया, 2019 के चुनाव को। इतने सालों के बाद भी कुछ बदला क्या? यह बंद आंखों का नहीं बल्कि खुली आंख का सपना है। सबकुछ साफ—साफ दिख रहा है। कुछ बदला क्या?

 (उंगलबाज.कॉम, हमारी विश्वसनीयता संदिग्ध है)

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