पाकिस्तानी मॉडल ऑफ जर्नलिज्म, तमंचे पर पत्रकारिता

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को आतंकी कहा तो पत्रकार को मिलेगी सजा ए मौत

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान

पाकिस्तानी आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने तमाम मीडिया समूहों के नाम एक खुला पत्र लिखा है। पत्र में धमकाया गया है कि आगे से कोई भी मीडिया हाउस उसे आतंकी संगठन ना लिखे और ना इलेक्ट्रानिक मीडिया के एंकर ऐसा कहने की कहने जुर्रत करें। आपत्र में साफ—साफ कहा गया है कि अगर उन्हें आतंकी कहा जाता है तो ऐसे मीडिया समूहों से वही बर्ताव किया जाएगा जो दुश्मनों के साथ किया जाता है। यह पत्र सोशल मीडिया पर छह सितम्बर को जारी किया गया।

आतंकी सिखा रहे पत्रकारिता

संगठन के प्रवक्ता मोहम्मद खुरासानी ने जारी किए एक वीडियो में पाकिस्तानी पत्रकारों पर तालिबान पाकिस्तान के लिए इस्तेमाल किए जा रहे नामों पर सख्त नाराजगी जाहिर की। बात नाराजगी तक की नहीं थी, उन्होंने पत्रकारों को पत्रकारिता भी सिखाई। आतंकियों के प्रवक्ता के अनुसार— उनके आतंकी संगठन के लिए आतंकी और कट्टरपंथी जैसे शब्दों का इस्तेमाल करता है। ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करना पत्रकारिता नहीं है। अपने बयान में फिर प्रवक्ता खुरासानी ने यह भी कह दिया कि इस तरह की गलत पत्रकारिता को वे बर्दाश्त नहीं कर सकते। अब ऐसी पत्रकारिता करने वालों के साथ उनका आतंकी संगठन उसी तरह की व्यवहार करेगा, जैसा वे अपने दुश्मनों के साथ करते हैं। एक आतंकी संगठन जिस तरह स्थानीय पत्रकारों को तमंचे के जोर पर पत्रकारिता सिखा रहा है, यह भविष्य में पाकिस्तान मॉडल ऑफ जर्नलिज्म ना बन जाए।

खुरासानी के अनुसार— पाकिस्तान की मीडिया इमरान सरकार के इशारे पर काम कर रहा है, यह सरकार इलेक्टेड नहीं बल्कि सिलेक्टेड है। यह बात पाकिस्तान के आम जनों के बीच भी मानी जा रही है इमरान वहां फौज के आशीर्वाद से ही सरकार चला पा रहे हैं।

पाकिस्तान फेडरेशन यूनियन आफ जर्नलिस्ट (PFUJ) ने पाकिस्तानी तालिबान की तरफ से पत्रकारों के लिए आई धमकी पर अपनी चिन्ता जाहिर की। उन्होंने पत्रकारिता संस्थानों और पाकिस्तान की सरकार से इस धमकी को गंभीरता से लेने की बात कही है। इस धमकी के बाद पाकिस्तान में पत्रकारों की सुरक्षा का प्रश्न फिर एक बार अहम हो गया है।

पाकिस्तानी तालिबान

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान 2007 में बना। यह अफगानिस्तान में सरकार चला रही तालिबान का ही एक हिस्सा है। यह आतंकी संगठन पाकिस्तान में शरिया कानून लागू करवाना चाह रहा है। पाकिस्तान में ये 2008 से ही प्रतिबंधित है। इसके पहले प्रमुख बैतुल्लाह महसूद को अमेरिका ने संगठन बनने के दो साल बाद ही ड्रोन हमले में में मार गिराया था।

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