‘’आज विश्व को पारम्परिक भारतीय ज्ञान में उल्लेखित करुणा की महती आवश्यकता है’’ दलाई लामा

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अखिलेश पाठक

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, राष्ट्रपति निवास, शिमला गुरुवार को 24वें राधाकृष्णन स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया गया। नोबेल पुरूस्कार विजेता परम पूजनीय 14वें  दलाई लामा ने इस दौरान दिल्ली के इन्डिया इंटरनेशनल सेंटर में “यूनिवर्सल एथिक्स” विषय पर व्याख्यान दिया। कार्यक्रम की शुरुआत परम पूजनीय दलाई लामा, आईसीसीआर के अध्यक्ष डॉ. विनय सहस्रबुद्धे, भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के अध्यक्ष प्रो. कपिल कपुर, उपाध्यक्ष प्रो. चमन लाल गुप्ता, निदेशक प्रो. मकरंद परांजपे, सचिव कर्नल विजय तिवारी द्वारा दीप प्रज्ज्वलन करके की गई।

शुरुआत में निदेशक प्रो. मकरंद परांजपे द्वारा स्वागत प्रस्ताव रखा गया और उन्होंने दलाई लामा को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए उपस्थित जन समूह का स्वागत किया। फिर आईआईएएस शासकीय निकाय के उपाध्यक्ष प्रो. चमन लाल गुप्ता द्वारा दलाई लामा एवं आईसीसीआर के अध्यक्ष डॉ. विनय सहस्रबुद्धे का परिचय दिया गया।

डॉ. विनय सहस्रबुद्धे द्वारा अपने अभिभाषण में आध्यात्मिक लोकतंत्र के साथ उभरते हुए नैतिक विश्व, पर्यावरणीय न्याय, नैतिक अर्थशास्त्र में समग्रता के संतुलन जैसे विषयों पर प्रकाश डाला गया।  उन्होंने कहा की नैतिकता केवल को समाजिक विज्ञान नहीं होता जहाँ केवल सैद्धांतिक बातें की जाती हो।  नैतिकता में सिद्धांत और प्रायोगिकता दोनों सामान रूप से शामिल रहती हैं।

अपने व्याख्यान के दौरान परम पूजनीय 14वें दलाई लामा ने कहा “आज विश्व को पारम्परिक भारतीय ज्ञान में उल्लेखित करुणा की महती आवश्यकता है। अहिंसा इस विश्व को कष्टों से उबार सकती है। भले ही आधुनिक विज्ञान ने आज चाहे जितनी भी तरक्की कर ली हो पर जब बात अंतर्मन की शांति और आध्यात्मिकता की आती है तो केवल पारम्परिक भारतीय ज्ञान ही मानव जीवन और आत्मा से जुड़े इन विषयों पर हमारा मार्ग प्रशस्त कर सकता है। हमें अपने जीवन में आलोचनाओं के प्रति उदार रवैया अपनाते हुए उन्हें खुले मन से स्वीकार करना चाहिए। बौद्ध धर्म और भारतीय ज्ञान हमें इसी की शिक्षा देता है।” उन्होंने प्राचीन भारतीय ज्ञान परम्परा, करुणा, आध्यात्मिकता आदि को न केवल धार्मिक रूप से अपितु अकादमिक रूप से भी पढ़ाएं जाने की बात की। दलाई लामा ने वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी, प्राचीन भारतीय ज्ञान, आध्यात्मिकता, अधुनिक जीवन की जटीलताओं से जुड़े विषयों पर प्रश्नों का उत्तर दिया।

संस्थान के अध्यक्ष प्रो. कपिल कपूर ने समापन टिप्पणी देते हुए कहा की अहिंसा, करुणा और दया भारतीय चेतना और प्रकृति का मौलिक गुण है। ये हमारे जीवनमूल्यों और शिक्षा पद्धति का अभिन्न अंग भी है।

इस अवसर पर जम्मू और कश्मीर के पूर्व राज्यपाल श्री एन एन  वोहरा, पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री शिवशंकर मेनन, भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के अध्येता एवं अधिकारी, मीडियाकर्मी एवं कई विद्वान मौजूद थे।

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