समस्या समाधान पाने हेतु अन्तर्मुखी होना पड़ेगा

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अतुल कोठारी

अतुल कोठारी

पूरा विश्व विगत डेढ़ वर्ष से कोरोना के शिकंजे में है । इस दरम्यान अपने देश में बीच-बीच में कम से कम दो बार ऐसा समय आया कि अभी कोरोना की विदाई हो रही है, परंतु पिछले दो-तीन सप्ताह से कोरोना का ऐसा भयानक स्वरूप सामने आया है जो अत्यंत विकराल है । अभी तक यह धारणा बनी थी कि बड़ी उम्र के और उसमें भी जिनको उच्च रक्तचाप, डायबिटीज आदि बिमारियां है उन पर ज्यादा प्रभाव हो रहा है और अधिकतर उन्हीं की मृत्यु हो रही है । परंतु इस चक्र में वह सारी धारणाएं बदल गई है । युवक से लेकर छोटे बच्चे भी चपेट में आ रहे है और उनकी मृत्यु भी हो रही है । इस बार इसके विस्तार की गति भी बहुत तेज है । इन दो तीन सप्ताह में हर दिन कोरोना प्रभावितों की संख्या में बढ़ोत्तरी हजारों से लाखों तक पहुंच गई है । इसके परिणाम स्वरूप देश के अनेक राज्यों में अलग-अलग प्रकार से प्रतिबंध (लॉकडाउन) प्रारंभ हो गए है । इस वर्ष की विद्यालय स्तर की (12वीं को छोड़कर) सारी परीक्षाएं रद्द कर दी गई है । लगातार छात्र दो वर्ष तक बिना परीक्षा उपर की कक्षाओं में बढ़ जाएंगे, इसका कुल मिलाकर उनकी भविष्य की शिक्षा पर क्या प्रभाव होगा? यह भी चिंता एवं चिंतन का विषय है । इसके साथ ही मजदूर, कर्मचारियों का पुनः शहरों से गांवो की ओर स्थानान्तर प्रारंभ हो गया है । इन सारी बातों का दुष्परिणाम देश की आर्थिक स्थिति पर भी होगा ।

यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि इस प्रकार की विकट परिस्थितियों में भी कुछ राजनैतिक पक्षों के नेता अपनी राजनैतिक रोटियां सेकने से बाज नहीं आ रहे । हमारे देश में अच्छी, सकारात्मक बातों की चर्चा होती ही नहीं है या बहुत कम होती है । कोरोना महामारी के कारण विगत डेढ़ वर्ष से सरकारों की आय बहुत कम हुई है, व्यापार-रोजगार आदि आर्थिक गतिविधियों पर बहुत बुरा असर पड़ा है । ऐसी परिस्थिति में देश की 135 करोड़ जनसंख्या को कोरोना के वैक्सीन से लेकर दवाएं, इन्जेकशन आदि चिकित्सा की सारी व्यवस्था सरकार के द्वारा बिना शुल्क उपलब्ध कराना यह कोई छोटी बात है क्या? साथ ही भारत ने दुनिया के कई देशों को भी वैक्सीन, दवाएं, इन्जेकशन आदि उपलब्ध कराए है । इस प्रकार सामाजिक स्तर पर भी अनेक सकारात्मक प्रयास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं उनसे वैचारिक दृष्टि से जुड़ी संस्थाओं, संगठनों एवं अन्य धार्मिक-सामाजिक संस्थाओं द्वारा हो रहे है इसको भी बहुत कम संज्ञान में लिया जा रहा है । ऐसे समय में विभिन्न प्रकार के समाचार माध्यमों का यह दायित्व बनता है कि ऐसे सकारात्मक प्रयासों को अपने माध्यमों में प्राथमिकता से प्रकाशित करें और क्षुद्र राजनीति करने वालों को दरकिनार करें ।

विश्व के समक्ष यह भयानक चुनौती है । इस चुनौती का समाधान भी करना है और इसमें भविष्य के अवसर को भी तलाशना है । इससे भयभीत होने से कोई सकारात्मक परिणाम नहीं हो सकते । इस हेतु आवश्यक सावधानी अवश्य रखनी है वास्तव में चुनौती को अवसर में बदलना इसी में मनुष्य जीवन की सार्थकता है । इस दिशा में व्यक्ति से लेकर वैश्विक समुदाय के स्तर पर व्यापक चिंतन, चर्चा प्रारंभ करने की आवश्यकता है ।

इस दृष्टि से जब विचार करते है तब ध्यान में आता है कि विश्व ने विज्ञान, तकनीकी आदि दृष्टि से काफी प्रगति की है । परंतु मात्र भौतिक विकास यही विकास का मानदंड होना चाहिए? यह विचार का विषय है कि वैश्विक स्तर पर विज्ञान एवं तकनीकी ने जो भी प्रगति की है उसके परिणामस्वरूप विश्व भर में मनुष्य को सुख, शांति एवं आनन्द की अधिक प्राप्ति हुई है क्या? इसी प्रकार दुनिया में हिंसा, अत्याचार, दुराचार, महिलाओं का उत्पीडन, गरीबी आदि में कमी आयी है की बढ़ोत्तरी हुई है?वैश्विक स्तर पर पर्यावरण का संकट, स्वास्थ्य का संकट, विभिन्न देशों के आपसी संघर्ष आदि. में कमी आयी है क्या? इस प्रकार समाज जीवन के सभी पहलुओं पर व्यापक चिंतन करके हम सही या गलत दिशा में आगे बढ़ रहे हैं? इस पर व्यापक चिन्तन करके निष्कर्ष निकालना होगा ।          

वैश्विक स्तर पर कोरोना जैसी अनेक समस्याएं विद्यमान है परंतु उसका स्थाई समाधान नहीं मिल रहा । किसी भी समस्या का समाधान चाहिए तब प्रथम उसके कारण ढ़ूंढ़ने चाहिए तब समाधान की दिशा सुनिश्चित हो सकती है । दूसरी बात है की जहां समस्या होती है वहीं उसका समाधान होता है यह प्राकृतिक नियम है । तीसरी बात है कि मनुष्य बहिर्मुखी हो गया इसलिए हम समाधान बाहर ढ़ूंढ़ते है परंतु समाधान बाहर नहीं अन्दर होता है, इस हेतु अन्तर्मुखी होना पड़ेगा । यही आध्यात्मिक दृष्टि है । आवश्यकता है दृष्टि बदलने की, दृष्टि बदलेगी तो सृष्टि भी बदलेगी । इस प्रकार आध्यात्मिक दृष्टि से प्रयास करने से कोरोना जैसी किसी भी समस्या का समाधान भी हो सकता है और नए अवसर भी उपलब्ध हो सकते हैं । इन सारी परिस्थिति का नेतृत्व भारत को करना होगा क्यूंकि यह हमारे अनुभव का विषय है । विश्व में एक ही देश को आध्यात्मिक राष्ट्र कहा गया है और वह हमारा भारत राष्ट्र है ।

(लेखक शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव हैं।)

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